बहुत स्वाभिमानी थी अम्मा – उमा वर्मा 

अम्मा की बरसी है आज।निधि अपने भाई के घर सवेरे ही आ गई थी ।घर में कोई चहल-पहल नहीं है ।बस वह और भाई का परिवार ।एक साथ खाना पीना और अम्मा को याद करना चाहती है वह ।अम्मा को भी तो कोई आडम्बर पसंद नहीं था ।

बेकार के दिखावे का हमेशा विरोध किया था उनहोंने ।लेकिन यादोँ का क्या? उसपर तो कोई रोक टोक नहीं था ।बीती बातें याद आ गई ।जब पिता जी गुजर गए थे और वह पति के साथ अम्मा को लेने पहुंच गयी थी ।

“” पागल हुई है क्या, बेटी दामाद के घर रहने को कह रही है “” आत्मसम्मान नाम की कोई चीज होती है कि नहीं? अम्मा बिफर पड़ी थी।”” तुम यहाँ अकेले कैसे रहोगी “” और तुम्हारे आत्मसम्मान को कहाँ ठेस पहुंचेगी।”” नहीं बाबा, लोग क्या कहेंगे “” ? लोगों को छोड़ो,बस हमारे साथ चलने की तैयारी करो।बहुत मान मनौवल के बाद वह तैयार हुई थी साथ आने को।

बहुत झेलना पड़ा था परिवार वालों के ताने उलाहने।”” अरे, बेटी दामाद के घर रहने को कह रही है, यह अच्छा लगता है क्या? परिवार में इतने सारे लोग हैं, जो खायेंगे, खिलायेंगे।सवाल सिर्फ खाने का नहीं था ।दो छोटे बच्चों के परवरिश, शिक्षा, शादी ब्याह सभी कुछ तो बाकी था ।

अंत में अम्मा राजी हुई थी आने को।”” देख निधि, आ तो गये हैं हम पर बेटा अच्छा नहीं लगता है कि दामाद जी पर बोझ बनें ।”” और फिर अम्मा ने बच्चों को टयूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ।रात में वे रद्दी अखबार के लिफाफे बनाती, और दुकान में सेल कर देती।

इस तरह उनकी जिंदगी की नाव चलने लगी थी ।उनका कहना था कि मेहनत मजदूरी कर लेंगे लेकिन किसी के आगे हाथ नहीं पसारने है ।उन पैसे को हमारे ही उपर खर्च कर देती।फिर भी ऐसा कितना दिन चलता ।

पति देव और अम्मा दिन रात दफ्तरों  के दौड़ लगाते ।सात महीने के बाद उनकी नौकरी लग गई ।परिवार में खुशी का माहौल बना ।सब लोग बहुत खुश थे। निधि के ससुराल वाले भी साथ रहते थे ।समधियाने के लोगों का साथ रहना मुश्किल होने लगा था ।



थोड़ी बहुत टकराव होने लगी थी ।निधि को लगता अम्मा खर्च करने में कोई कटौती नहीं करती, न काम काज का बोझ डालती फिर क्यों लोग खुश नहीं हैं।जिन्दगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ती रही ।बच्चे बड़े हो गये ।पति बहुत समझदार थे, उनका सहयोग मिलने से निधि को ताकत मिलती ।

जाने दो,लोगों का क्या? पिता जी नहीं है तभी तो अम्मा को साथ रहना पड़ा ।सुबह अम्मा का नाश्ता, टिफ़िन, बच्चों को स्कूल, पति को आफिस भेजना सब कुछ निधि के जिम्मे था ।फिर भाई पढ़ाई करने बाहर चला गया था ।और बहन की शादी हो गई ।कितना टेंशन झेलती रही निधि ।

लेकिन सब में तालमेल बना कर रखा।सच कितना मुश्किल होता है ससुराल और मायके वालों का साथ रहना । दिन को गुजरना होता है वह गुजर रहा था ।एक दिन अम्मा अपना सामान पैक करने लगी थी “” ये क्या, कहाँ की तैयारी हो रही है अम्मा “” ?”” 

अब बहुत दिन रह लिए बेटा, मुझे क्वाटर मिल गया है ।तो अब जाना चाहती हूं ।”” तुम लोगों ने बहुत सहारा दिया ।मै धन्य हो गई ऐसा बेटी दामाद पाकर।शाम को रिक्शा आ गया ।अम्मा अपने घर चली गई ।घर सूना लगने लगा था ।

बहुत स्वाभिमानी थी अम्मा ।अपने आत्म सम्मान के लिए जीती रही ।समय बहुत आगे बढ़ने लगा ।बच्चों की शादी हो गई ।उनके भी बच्चे हो गये ।सबकुछ अच्छे से निपट गया ।अम्मा पहले बहुत एक्टिव थी ।लेकिन शरीर तो एक दिन थक ही जाता है ।वे अब बीमार रहने लगी थी ।

फिर भी कभी बेटी के आती, कभी बेटा बहु के साथ रहती ।उनकी तबियत को लेकर सब लोग चिंता करते डॉकटर को दिखाने ले गए तो कैंसर बताया ।तीन साल के बाद अम्मा ने खाट पकड़ लिया अब उनका खाना पीना बेड पर होता ।

डायपर पहन कर रहती वे।सब लोग सेवा में लगे हुए थे ।हालत बिगड़ रही थी ।लोगों ने कहा, रामायण पढ देना, गीता पढ़ देना ।निधि सब कुछ कर रही थी ।और एक दिन अम्मा हाफने लगी ।सांस उपर नीचे होने लगी थी ।और देखते देखते उनकी सांसें बन्द हो गई ।

सब कुछ खत्म हो गया ।कितनी जिन्दा दिल इनसान थी वह ।आखों से ढलक आए आँसू को पोंछ  लिए निधि ने ।यादोँ की श्रद्धांजलि ही तो दे सकती है वह ।अम्मा जहां भी हैं बस आशीर्वाद दो ।

 #आत्मसम्मान

लेखिका : उमा वर्मा

 

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