किस्मत समझौता एक्सप्रेस – तृप्ति शर्मा

बड़ी दीदी की बरात में सबसे आगे नाचते देखा था उसे बहुत पसंद आया ज्योति को वह लड़का बाद में पता चला कि वह तो उसकी दीदी का देवर है। जीजा जी का सगा छोटा भाई बस 16 साल की ज्योति वही दिल बैठी थी उसे। पर कभी किसी को बता नहीं पाई

 

                   उम्र का पड़ाव आगे की और बड़ा ज्योति अब के 20 वा  बसंत देखने वाली थी घर में उसकी शादी की बात चलने लगी। घर में सबसे छोटी होने के कारण लाडली थी, पर शादी जैसे मामलों में अभी उसके घर में बड़ों की ही चलती  पर ज्योति हड़ताल पर बैठ गई कि शादी करेगी तो रवि से ही , दीदी की देवरानी ही बनना था उसे ।घरवाले उसकी जिद के आगे झुक गए खबर जीजाजी तक भेजी गई पर बाबूजी ने साफ मना कर दिया।”, एक घर की दो लड़की नहीं आएगी “परडोर बंधचुकी थी दिलों की भी और शायद रिश्तों की भी ।                        

जभी तो ज्योति की हड़ताल को विराम मिला बस यही से चल पड़ी दोनों के प्यार भरी समझौता एक्सप्रेस । मां बाबूजी की राजी ना होने के कारण दोनों लगभग नाराज से ही रहते थे ज्योति से।     

     बाकी दो बहूओ जैसा मान ना मिलता उसे पर यह सोचकर समझौता किया हालातों से कि दोनों का साथ तो है ,एक दूसरे के साथ है दोनों, शादी के कुछ साल बाद पता चला कि रवि ज्योति को ममता का सुख नहीं दे सकता, बच्चा गोद लेना तय हुआ पर मातृत्व को भटकने नहीं दिया ज्योति ने, यहां समझौते की दूसरी सीढ़ी चढ़ी ज्योति,

   बेटे वत्सल को वात्सल्य से परिपूर्ण करती ज्योति कभी शिकायत ना करती जान जो बसती थी रवि मे उसकी।

वत्सल के साथ खेलते हुए कब 5 साल बीत गए दोनों को पता नहीं चला ।अनभिज्ञ थे दोनों आगे आने वाले समझौतों से ,लगातार सूजते पैरों ने संकेत दिया कि रवि की किडनी  जवाब देने लगी है।

    किस्मत ने ज्योति का फिर इम्तिहान लिया, यहां भी एक अच्छी बीवी एक प्रेम से भरी प्रेमिका की जीत हुई समझौता हुआ एक एक किडनी पर जीने का, ब्लड ग्रुप समान होते हुए ज्योति ने किसी और की राह नहीं तकी अपनी जान रवि को बचाने की,

    कहावत सच कर दिखाई ज्योति ने और सिद्ध कर दिखाया अपना अर्धांगिनी होना अपनी एक किडनी रवि को देकर।

    ज्योति ने सिद्ध कर दिया वाकई में दोनों एक जिस्म दो जान हैं सब कुछ साझा करते करते अंग तक साझा कर गई वो। पर अपने प्यार की जान के साथ कोई समझौता नहीं किया उसने इस बार।

    दोनों की किस्मत और प्यार भरी समझौता एक्सप्रेस रुकते रुकते फिर पटरी पर चलने लगी। यह ज्योति का अपने दिल के साथ समझौता था या किस्मत के साथ, पर दोनों प्रेम रस के साथ-साथ वत्सल के साथ एक बार फिर वात्सल्य रस में डूब चुके थे।

तृप्ति शर्मा।

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