“काश, बिटिया के मन को पढ़ पाते….-सुधा जैन

अनुराधा को विश्वास ही नहीं हो रहा कि उसकी परिचिता सुनंदा की बिटिया ने आत्महत्या कर ली… ऐसा क्या हो गया ?जो शादी के 15 वर्ष बाद उसने ऐसा कदम उठाया। यह प्रश्न उसे बहुत विचलित कर रहा है ।आराधना को पूरी बात पता है कि कैसे आज से 15 वर्ष पूर्व सुनंदा की प्यारी सी बिटिया सलोनी जो की बहुत ही सुंदर ,सुशील, शालीन और जीवन ऊर्जा से भरी हुई थी.. एक दिन उसने अपने पापा मम्मी को बताया कि वह अपने साथ में पढ़ रहे रितिक से शादी करना चाहती है.. लेकिन  पापा मम्मी सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण इस बात को स्वीकार नहीं कर पाए कि उनकी बेटी किसी  विजातीय से शादी करें… उन्होंने स्वीकृति नहीं दी और जबरदस्ती अपने साधर्मी परिवार में उसका संबंध कर दिया। सगाई हो गई …लेकिन शादी के कुछ दिनों पहले सलोनी अपने परिवार को छोड़कर रितिक के साथ चली गई और शादी कर ली। शादी के दो-तीन वर्षों तक तो माता-पिता बहुत नाराज रहे और बाद में फिर बोल चाल शुरू हो गई …लेकिन माता-पिता सामाजिक प्रतिष्ठा… धार्मिक अनुष्ठान.. विदेश यात्राएं और अपने अहम के कारण अपनी बिटिया को दिल से स्वीकार नहीं कर पाए… कभी भी उसका सुख दुख वह साझा नहीं कर पाई… अगर प्रेम विवाह है तो यह जरूरी नहीं कि सभी कुछ अच्छा हो… समस्याएं तो दोनों प्रकार के विवाह में आती ही हैं ।सलोनी अपनी शादी को सहेजने की पूरी कोशिश करती रही… दो प्यारी सी बिटियाएं जीवन में आ गई… बाहर से दिखने में सब कुछ अच्छा लग रहा था …लेकिन इन दिनों रितिक का व्यवहार बदल गया …वह ड्रिंक करने लगे …कमाई पर भी असर पड़ा… सलोनी ने घर की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए बुटीक भी खोला… मेहनत भी की। इन दिनों उसका दिल ऐसा चाह रहा था कि मैं अपने दिल की बात अपनी मां से कहूं… मां मेरे सिर पर हाथ फेरे मुझे गले से लगा कर बोले कि “कोई बात नहीं बिटिया.. हम तेरे साथ हैं “उसके पापा उसे कहें कि “क्या परेशानी है.. बिटिया मुझे बता मैं तेरी मदद करता हूं”


किसी भी तरह से मदद का कोई हाथ नहीं मिल रहा ..वह अपने आप को भरी दुनिया में अकेला समझ रही… सोच रही थी.. क्या मम्मी पापा ऐसे होते हैं? क्या इतनी बड़ी दुनिया में उसके दर्द को समझने वाला कोई नहीं है? क्या उसने प्रेम विवाह करके बहुत बड़ी गलती कर ली है? क्या उसके जीवन में जीने की कोई दूसरी राह नहीं है… जितना सोचती अपने आप को निराशा में डूबा हुआ पाती… और निराशा भी ऐसी जिससे निकलना संभव ही नहीं हो रहा था ।अपनी दोनों प्यारी बिटियाओं को देखती… फिर जीने की इच्छा करती पर फिर भी जीने की इच्छा पर मरना भारी पड़ा… और एक दिन वह इस दुनिया से चली गई। अनुराधा सुनंदा से मिलने गई ।सुनंदा ने बेरुखी से कहा “जैसा किया वैसा  भोगना पड़ेगा “

आराधना को लगा “काश सुनंदा अपनी बिटिया के मन को पढ़ पाती ..और बाहरी दिखावे और लोक लाज से दूर अपनी बिटिया के मन को समझ पाती.. अपनी विदेश यात्रा में तो कितना खर्चा करती हैं.. थोड़ा पैसा अपने बेटी के घर को चलाने के लिए दे देती उसे अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद करती …उसे मानसिक संबल प्रदान करती तो बिटिया इस तरह का कदम नहीं उठाती। सुनंदा  और उसके पति सदैव अपने धार्मिक उपदेशों में जीवन की क्षण भंगुरता की बात दुनिया को समझाते हैं …लेकिन अपनी बिटिया के मन को वह नहीं पढ़ पाए।

सुधा जैन

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