कसक –    मुकुन्द लाल

अंधेरी रात में मूसलाधार बारिश हो रही थी। रह-रहकर बिजली चमक रही थी। बादल गरज रहा था।। हवा तूफ़ान की तरह तेज गति से बह रही थी। नालियों में वर्षा का पानी ‘घर्र-घर्र’ की आवाज के साथ बह रहा था। पेड़ों की डालियाँ बेतरतीब ढंग से हिल रही थी, मानो टूट कर गिर जाएगी। ऐसा मालूम पड़ रहा था कि प्रलय आ जाएगा।

  ऐसी भीषण परिस्थितियों में खतरों से बेखबर रवि उस शहर की गलियों में जमे हुए पानी में ‘छप-छप’ की आवाज के साथ फिल्मी गीत गुनगुनाता ‘मुझे दुनिया वालों शराबी न समझो…’ चला जा रहा था।

  जब सारी दुनिया सोती थी उस वक्त डगमगाते कदमों से चलते हुए कुत्तों के भौंकने की आवाज के संग अक्सर वह इधर-उधर बेमतलब चहलकदमी करता था। 

  अपने-अपने घरों में बिस्तर पर सोये हुए या आराम फरमा रहे लोग जानते थे कि यह शराबी रवि की आवाज है, जो कभी शरीफ बैंक  कर्मचारी था, किन्तु क्या फर्क पड़ गया पति-पत्नी के बीच कि उसकी पत्नी उसको छोड़कर किसी गैर मर्द के साथ भाग गई और रवि उसी समय से शराबी के रूप में विख्यात हो गया।

  न उसे बारिश की परवाह थी, न ठंड की, न लू की, न किसी अन्य खतरे की। यह भी सभी को ज्ञात था कि जो शराब को छूना भी इस घटना के पहले गुनाह समझता था, आज गम भूलाने के लिए इससे अच्छा कोई साधन नहीं था उसकी समझ से। यही उसके जीवन का सहारा बन गया था।

  नशे में कई बार गिर जाने के कारण वह घायल भी हो जाता था। उसके चेहरे पर कई जख्म के निशान इसके गवाह थे। 

  उसका जीवन उस टूटे हुए पत्तों के समान था जो तेज हवा के झोंकों से कभी ऊपर जाता है, कभी नीचे आता है लेकिन उन्हें कोई निश्चित आश्रय नसीब नहीं होता है।

  शराब ने उसके शरीर और जेहन दोनों को खोखला बना दिया था। 

  अनियमितता, बिना सूचना दिए बैंक में अनुपस्थित रहने और गलत व्यवहार करने के कारण उसे बैंक से निलम्बित कर दिया गया था। हालांकि उसने कोर्ट में बैंक के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया था कुछ शुभचिंतकों के कहने पर।

  उसके उदास और नीरस जीवन के अंँधेरे में उसे आशा की बहुत पतली सी किरण का आभास उसे होने लगा था, जब वह प्रतिमा के पान की दुकान के पास से डेरा जाने के क्रम में ऑटो से गुजरता था तो उसके गौर वर्ण तीखे नाक-नक्स वाला खूबसूरत चेहरा देखकर वह अक्सर आटो से उतरकर पान का बीड़ा लेकर खाने लगा। इस दौरान वह उसके साथ इधर-उधर की बात-चीत करके उसके साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास करने लगा।


  उस दिन उसकी छोटी सी दुकान पर ग्राहक नहीं रहने के कारण उसने उससे पूछ ही लिया,

” मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ।”

  ” पूछिये!… एक नहीं दो चार बातें पूछ सकते हैं।”

  ” आप क्यों इस पान की दुकान पर बैठती हैं, ऐसी क्या मजबूरी है? क्या आपके घर में भाई या पिताजी नहीं हैं?”

  ” आपका प्रश्न ही बेतुका है, आजकल लड़कियाँ किसी भी मामले में लड़कों से या स्त्रियांँ पुरुषों से कम नहीं है। मैं अच्छी तरह से दुकानदारी कर सकती हूँ।… वैसे जानकारी के लिए बता देना चाहती हूँ कि हमलोग तीन बहनें हैं, भाई नहीं है। तीनों बहनें कोई न कोई व्यवसाय करके अपनी-अपनी आजीविका चलाती है। हमलोगों के पिताजी बहुत पहले गुजर गये इस दुनिया से, मांँ प्रायः बीमार रहती है”कहती हुई थोड़ी दुखी हो गई।

 ” माफ करना प्रतिमा!… मैंने नाहक तुम्हारा दिल दुखाया। “

 ” सुन लीजिए!… यहांँ पर पान खाने आते हैं तो पान तक ही नाता रखिये, इसके अलावा आइंदा कभी मुझसे निजी प्रश्न नहीं करेंगे, यही आपके लिए बेहतर होगा “बेबाकी से उसने कहा।

  रवि पान का पैसा देकर सीधे आगे बढ़ गया। 

  जैसे भगवान के भक्त प्रति दिन मंदिर जाना नहीं भूलते हैं, उसी प्रकार पान की दुकान ही उसके लिए मंदिर था, चाहे सावन की घटा हो या कड़ाके की ठंड हो या चिलचिलाती धूप हो, वह हर हालत में वहांँ पहुंँचकर पान खाता ही था। इस बहाने प्रतिभा से दो-चार बातें कर भी लेता था।

  किसी कारणवश उसकी दुकान बंद रहती तो उसके लिए बहुत बड़ी बात हो जाती थी। वह बेचैन हो उठता था। वह जासूस की तरह छानबीन करता। अगल-बगल के दुकानदारों से उसके बारे में पूछ-ताछ करता। इसी क्रम में उसने एक बार उसके घर का पता भी लगा लिया था।

  उस दिन प्रतिमा की दुकान के सामने औटो ज्योंही रुका, उसने औटो से उतरकर लड़खड़ाते कदमों से पान लेने के लिए उसकी दुकान की तरफ बढ़ गया। उसकी आँखें चढ़ी हुई थी। मुंँह से शराब की बदबू आ रही थी। दुकानदार ग्राहकों को लक्ष्मी मानता है, कुछ इसी तरह की प्राचीन मान्यता के अनुसार आंँखें लाल पीला करते हुए उसको पान दे दिया। उसके मूल्य से बड़ा नोट उसके हाथ में पकड़ा दिया। हालांकि प्रतिमा शेष पैसे लौटाने का उपक्रम कर ही रही थी कि वह बिना ठहरे मुंँह में पान का बीड़ा डालते हुए आगे बढ़ गया। ऐसी अवस्था में वह भी उसके मुंँह लगना नहीं चाह रही थी।


  दूसरे दिन जब वह उसकी दुकान पर पान खाने के लिए पहुंँचा तो प्रतिमा उबल पड़ी,

” क्यों कल शराब पीकर मेरी दुकान पर आने की हिम्मत की… क्या समझते हो हमको!.. मेरी कोई इज्जत नहीं है।”

  क्षण-भर रुककर डांँटते हुए उसने कहा,

” खबरदार!… मेरी दुकान पर आइंदा शराब पीकर भूलकर भी नहीं आना नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, मैं व्यवसाय करती हूँ… शराबी के साथ तमाशा लगाने के लिए मैंने दुकान नहीं खोली है… दंडस्वरूप मैं तुमको आज पान नहीं दूंँगी और लो उस दिन के शेष पैसे जो तुमने नहीं लिये थे। “

  वह खामोश रहकर उसकी चेतावनी, डांट-फटकार और झिड़कियों को उसने झेल लिया।

  अगल-बगल के दो-चार लोग जमा भी हो गये।

  उसकी आंँखों में आंँसू छलछला आये, जिसको उसने जबरन रोक लिया बाहर निकलने से।

  वह वहांँ पर से बिना पान खाये चला गया।

  उसके बाद एक पड़ोसी दुकानदार ने प्रतिमा को उसकी पत्नी द्वारा रवि को छोड़कर भाग जाने की घटना के संबंध में बतलाया। प्रतिमा के दिल में उसके प्रति सहानुभूति और दया उमड़ने लगी। उसे उसके साथ किये गये व्यवहार के कारण उसका दिल ग्लानि से भर गया।

  अगले ही दिन जब रवि प्रतिमा की दुकान पर पान के लिए ज्योंही पहुंँचा, प्रतिमा ने कहा,

” मुझे माफ कीजिए रवि बाबू!… अनजाने में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, कल न जाने मुझे क्या हो गया था कि मैंने आपके साथ अत्यंत ही कठोर और ओछा बर्ताव किया…”

  ” सब मेरी गलती है प्रतिमा!…तुमको अफसोस करने की जरूरत नहीं है।”

  ” मैं आपको एक अनामंत्रित सलाह देना चाहती हूँ। “

 ” कौन सी सलाह है, आपकी आज्ञा सिरोधार्य है। “

 ” आप शराब पीना छोड़ दीजिए। “

 ” समझ लो मैंने अभी इसी वक्त से ही शराब पीना छोड़ दिया। “


  प्रतिमा के साथ वाद-संवाद से उसके दिल पर बहुत अच्छा प्रभाव पङा। उसमें नई ऊर्जा संचारित होने लगी। उत्साहित होकर वह निलंबन से संबंधित मुकदमें की पैरवी में लग गया। उसके अंतस में खुशगवार सपनें अंगड़ाइयांँ लेने लगी। उसके दिल में प्यार के अंकुर फूटने लगे। आशा और विश्वास से परिपूर्ण प्रकाश की किरणों से उसकी मानसिकता सराबोर हो गई। वह प्रतिमा के साथ दाम्पत्य जीवन जीने का स्वप्न अपनी खुली आंँखों से देखने लगा।

   उसका निलंबन कोर्ट द्वारा उठा लिया गया। बकाये वेतन के लाखों रुपये उसे प्राप्त हो गये। 

  वह हर्ष से पुलकित होकर औटो रिजर्व करके चल पड़ा जल्द से जल्द प्रतिमा को इस खबर से अवगत कराने की नीयत से। इस खुशी के अवसर पर वह उसको भेंट स्वरूप देने के लिए कीमती मिठाइयों और गिफ्ट के पैकेट उसने खरीद लिए थे।

  किन्तु वहांँ पर पहुंँचते ही, उसने देखा कि दुकान बंद है।

  देखते-देखते आकाश काले बादलों से घिर गया। बूंदाबांदी शुरू हो गई। जोर-जोर से हवा बहने लगी। वृक्षों की डालियाँ हिलने लगी। दिन में ही सूर्यास्त का नजारा उपस्थित हो गया था।

  वह मिठाई और गिफ्ट के पैकेट लेकर उसके घर की ओर तेज कदमों से चल पड़ा। 

   उसका घर खूबसूरत व सुगंधित फूलों से सजाया गया था। अतिथियों से घर भरा हुआ था। वातावरण उमंग-उत्साह और खुशियों की तरंगों से लबरेज था। 

     घर के हाॅल में प्रतिमा की मंगनी(सगाई) की प्रक्रिया चल रही थी।

  मनमोहक और हृदयस्पर्शी संगीत की धुन पर गीत बज रहा था ” बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम बरसात में”

  रवि संकोच के साथ मिठाई और गिफ्ट के पैकेट लेकर हाॅल में दाखिल हुआ।

    क्षण-भर के लिए दूल्हन की तरह श्रृंगार किए हुए सजी-धजी प्रतिमा की नजरें रवि की नजरों से मिली। वह कुछ बोलना ही चाह रहा था कि उसने अपनी नजरें दूसरी ओर फेर ली।

   वह मिठाई और गिफ्ट के पैकेट उसके परिजन को सुपुर्द कर दिया बधाईयाँ एवं शुभकामनाएं देते हुए और फिर लौट पड़ा वह अपने डेरा की ओर।

     फिर से उस शहर की गलियों में चाहे घनघोर बारिश हो, बादल गरजता हो या बिजली चमकती हो एक शराबी का दर्द भरा गीत “मिल न सके हम, मिल न सके तुम…” अंधेरी रात के माहौल को गमगीन बना देता है।

    स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

                मुकुन्द लाल 

              हजारीबाग (झारखंड)

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