खुशियों की बरसात। – ममता गुप्ता

ठंडी ठण्डी हवाए…औऱ रिमझिम बूंदों  की हल्की फुल्की बारिश का आनंद लेते हुए सरला जी अपने फोन की गैलरी में सहज कर रखी हुई यादो का आनन्द ले रही थी,परिवार के साथ इतनी प्यारी यादो को फ़ोटो के रूप में देखकर मन ही खुश थी,तो उन्ही आंखों में थोड़ी नमी भी थी।

“जब बेटा बहूऔऱ पोता तीनो उनके साथ रहते थे,तब घर मे रौनक लगी रहती थी।

“आज अपने बेटे विशाल ,बहू नमिता, औऱ पोता गौरव के बिना घर वीरान लग रहा था….ऐसा लग रहा था जैसे इस घर की खुशियों को किसी की नजर लग गई थी…।

नजर किसी की क्या शायद सरला जी की गलती की वजह से ही वह आज अपने बेटे-बहू से दूर थी…

सरला जी को याद है वो दिन जब उनकी बेटी शिवानी मायके आई हुई थी..। रोज रोज शिवानी का मायके में आना नमिता को ठीक नही लगता था।

नमिता को ठीक इसलिए नही लगता था कि “शिवानी खुद तो घर के काम मे हाथ बटाती नही थी…ऊपर से हर काम मे नुक्स जरूर निकाल देती थी…!

ग़र नमिता कुछ कहती तो सरला जी झट से कह देती थी कि..”मेरी बेटी दो दिन के लिए आई हैं..चैन से तो रहने दे..। घर के काम तो इसे वही बहुत है,औऱ तू है कि मेरी बेटी के यहाँ आते ही इससे लड़ने झगड़ने बैठ जाती है।

सरला जी ने गुस्से से कहा।

नही..माँ जी!! मैं दीदी से लड़ाई नही कर रही हूँ… बल्कि मै तो उनसे यही कह रही हूं कि ग़र मेरे से किसी काम मे कोई कमी रह जाती है तो प्लीज़ उस काम में सुधार करवाये… ताकि दूसरी बार वह कार्य अच्छे से कर सकूं.. नमिता ने नम्रतापूर्वक कहा।

हा हा जानती हूँ!! तेरी सब चालाकियां ताकि मेरी बेटी काम मे लगी रहे औऱ तू आराम करें… सरला जी ने मुँह सिकुड़ते हुए कहा।।

नमिता को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन गुस्से को अंदर ही अन्दर दबा गई। रात को जब विशाल ऑफिस से आया,तब नमिता ने सारी बातें विशाल को बताई… विशाल भी इस रोज रोज के झगड़े,कहासूनी से परेशान हो गया था…विशाल के लिए इधर कुआ औऱ उधर खाई वाली स्थिति थी…क्योंकि पिता के मरने के बाद माँ की देखभाल की ज़िम्मेदारी उसी की थी,लेकिन बहन शिवानी जो छोटी छोटी बातों को लेकर घर मे बहस  करवाती यह ठीक नही था।



विशाल ने मन ही मन सोच लिया था कि”आज वह अपनी छोटी बहन शिवानी से साफ साफ कह देगा कि दीदी आप यहाँ आती हो हम सभी को अच्छा लगता है, लेकिन जब आप नमिता के हर काम मे नुक्स निकालती हो,तब हमें बुरा लगता है…। 

ग़र!! तुम्हे इसके हाथ का काम पसन्द नही आता है तो प्लीज खुद ही कर ले..।

विशाल सुबह होने का इंतज़ार करने लगा… जैसे ही सुबह हुई सभी नाश्ते के लिए टेबल पर बैठे थे…नमिता ने सभी को नाश्ता सर्व किया..

अरे!! ये क्या? यह सैंडविच तो ठीक से   सिका नही है,औऱ ये टमाटर की चटनी तो बहुत ही तीखी है.. सच मे भाभी को कुछ भी बनाना नही आता… शिवानी ने कहा।

सरला जी भी नाश्ता बिन टेस्ट किये ही  बेटी की तूती ने तूती बजाने लगी।विशाल ने नाश्ता टेस्ट किया सबकुछ परफेक्ट था…लेकिन क्या करे..?

  कुछ लोगो की आदत हो गई थी जब तक किसी काम मे नुक्स न निकाले तब तक खाना हजम नही होता था..!

विशाल के सब्र का बांध टूटा… औऱ उसने आखिर कह ही दिया।

दीदी जब आपकों नमिता के हाथ का कुछ पसन्द ही नही आता तो तुम खुद क्यो नही बना लेती…विशाल की बात खत्म होने से पहले ही सरला जी बोल पड़ी…अच्छा मेरी बेटी क्यों करेगी मायके में आकर काम..हम काम करने के लिए नोकरानी लाये तो है।

माँ नमिता नोकरानी नही है.. इस घर की बहू है। औऱ शिवानी इसके काम मे जानबूझकर गलतियां निकालती है ताकि इसे परेशान किया जा सके।।

विशाल ने कहा।

“अब तो खुश है ना.. माँ बेटे के बीच झगड़ा करवाकर..शिवानी ने नमिता से कहा।

छोटी सी बात का राई का पहाड़ बन गया था…।

विशाल ने भी गुस्से में घर छोड़ने का फैसला ले लिया…।

नमिता ने विशाल को खूब समझया की यह फैसला बदल दे लेकिन विशाल किसी की सुनने वाला नही था…नमिता को भी विशाल का फैसला मानना पड़ा।

सरला जी ने भी गुस्से से कह दिया था कि”हा जा मुझे किसी की कोई जरूरत नही है… मेरी बेटी है मेरे साथ ..हमेसा मेरे साथ ही रहेगी। जा रहा है तो वापिस कभी लौटकर मत आना।।

छोटी सी बात पर सरला जी का घर बिखर गया था…या यूं कहें गुस्से में लिए गए गलत फैसले की वजह से भी सबकुछ खत्म हो गया था…!



उधर विशाल माँ की चिंता में आधा हुआ जा रहा था..तो सरला जी भी विशाल औऱ नमिता के बिन ठीक नही थी…आखिर शिवानी भी कहा तक मायके में रुकती उसका भी ससुराल से बुलावा आ गया था…माँ को अकेले छोड़कर जाना पड़ा..।

अब सरला जी उस घर मे अकेली थी..इतना बड़ा मकान खाने को दौड़ता था…बेटे बहु की याद आती तब उनकी तस्वीरों को देख लेती ,आँखो के कोर भीग जाते थे..लेकिन क्या करे..? जिस घर मे हर मौसम में खुशियों की बरसात हुआ करती थी,वहाँ खुशियों का अकाल नजर आ रहा था।

समय ऐसे ही निकलता गया..।

एकदिन सरला जी की तबियत बिगड़ गई थी।”उन्होंने अपनी बेटी शिवानी को फोन किया औऱ अपनी तबियत के बारे में बताया…।

शिवानी ने कहा -“माँ मेरा आना नही होगा।”क्योंकि मेरे घर कुछ रिश्तदार आने वाले है,ऐसा करो तुम खुद ही डॉक्टर के दिखा आना। यह कहकर फोन काट दिया।

सरला जी को उम्मीद न थी कि शिवानी ऐसा जवाब देगी। वैसे तो कभी भी मायके ने आ जाती थी,”जब आज जरूरत है तब मना कर दिया।

ग़र डॉक्टर  के जाने की हालत में होती तो मै स्वयं ही चली जाती..लेकिन क्या करे सब दुःख में साथ छोड़ देते है।

सब मेरी ही गलती है… सरला जी मन ही मन सोचने लगीं।



“अब तो विशाल को ही फोन करना पड़ेगा..कभी उसने भी यही जवाब दिया तो,डरते हुए सरला जी ने फोन किया।

“माँ का फोन औऱ फोन पर बोली से ही विशाल समझ गया कि माँ की तबियत ठीक नही है.. उसने नमिता को कॉलकर मॉ के पास जाने को कहा.. “क्योंकि किराया वाला मकान थोड़ी ही दूरी पर था..औऱ खुद डॉक्टर को लेकर पहुँचा…।

सरला जी बाहर के कमरे ही पलंग पर लेटी हुई थी..नमिता ने देखा कि सरला जी को बहुत तेज बुखार है,इतने में विशाल भी डॉक्टर को लेकर आ गया था…! सरला जी ने नमिता औऱ विशाल को अपनी आँखों के आगे देखकर हैरान हो गई।

इनको कैसे पता चला,मैने विशाल को फोन जरूर किया लेकिन यह नही बताया कि मेरी तबियत खराब है, सरला जी मन मे सोचने लगी।

तभी विशाल ने कहा-“माँ हम इस घर से गए थे आपके दिल से नही।हमने यह घर छोड़ा जरूर लेकिन हमारी रूह यही थी।”मै आपके फोन से ही समझ गया था कि माँ तकलीफ में है…!

सरला जी ने विशाल औऱ नमिता से माफ़ी मांगी औऱ कहा मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चो,मै बेटी के प्यार ने अंधी हो गई यह देखना ही भूल गई की जितनी फिक्र एक बेटी को होती है ,उससे ज्यादा फिक्र बेटे औऱ बहू करते है।

तुम लोगो के चले जाने के बाद,ये घर घर नही रहा। तुम लोग क्या गए..इस घर की खुशियां ही चली गई। 

विशाल ने कहा-माँ मुझे भी माफ कर दो। अब तुम्हें छोड़कर कभी न जाऊंगा.. सरला जी के घर मे फिर से खुशियो की बरसात होने लगी। 

घर का कोना कोना खुशियों से महक रहा था…जैसे सुखी धरा पर कुछ बूंद प्रेम की पड़ने से धरा तृप्त हो जाती है, वैसे ही एक माँ के सीने से जब बच्चे लगते है तब माँ की आत्मा भी तृप्त हो जाती हैं।

ममता गुप्ता

अलवर राजस्थान

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