अपनी बेटी भावना अब बीए पास कर चुकी है,अब इसके लिए लड़का देखना चाहिए, ताकि हम इस साल इसकी शादी कर सकें। हैं ना सुधा। सुधा के पति रमेश ने कहा।
सुधा ने कहा, अभी तो उसने बीए ही पास किया है,उसका अभी और भी पढ़ने का मन है, तो पढ़ने दीजिए, और अभी उसकी उम्र ही कितनी है? नहीं, सुधा, बहुत पढ़ लिया उसने।अब घर गृहस्थी का काम सिखाओ तुम।
भावना ने जब यह सुना तो रोती हुई मां के पास आई, मम्मी, मुझे अभी और पढ़ना है, मुझे किसी काबिल बनना है। मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं। मम्मी,पापा को मना कर दो ना।
सुधा ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा, नहीं बेटी,जो मेरे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ नहीं होगा।
सुधा सोचने लगी कि जब वह बारहवीं कक्षा में थी तभी उसके पिता जी उसकी शादी करने के लिए लड़का देखने लगे थे। सुधा ने बहुत कहा कि वह आगे पढ़ना चाहती है, कुछ बनना चाहती है।पर उसके पिता जी नहीं माने और बिना ज्यादा जांच पड़ताल के एक गांव में रिश्ता तय कर दिया,यह कहकर कि क्या उन्हें बेटी की कमाई खाना है।
लड़का किसी यूनिवर्सिटी में बीएससी प्रथम वर्ष में पढ़ रहा था। उसके माता-पिता निहायत ही घमंडी और बदजुबान थे। उसके माता-पिता को लड़का पसंद आ गया बस शादी कर दी।
जब सुधा अपने ससुराल गई तो उसके शहरी तौर-तरीकों से बिल्कुल ही उल्टा गांव का तौर-तरीका था। कच्चा मकान, शौचालय तक नहीं था। सुधा को हमेशा लंबे घूंघट में ही रहना पड़ता। घर की चहारदीवारी में वह कैद हो कर रह गई थी।
चूल्हा चौका बर्तन बस यही उसकी जिंदगी थी। सुधा के पति रमेश तो कुछ ही दिनों में पढ़ने बाहर चले गए।
जब सुधा के पिता जी सुधा की विदाई कराने आये तो सुधा की स्थिति देखकर उनका कलेजा मुंह को आ गया। मेरी इतनी होनहार, पढ़ाई में अव्वल बेटी एक दम अनपढ़ गंवारू बना दी गई है।उसे मुझसे भी मिलने की इजाजत नहीं है। किसी तरह मां की बीमारी का बहाना बना कर वो सुधा को अपने घर ले आए।
एक महीने में ही सुधा एकदम सूख सी गई थी।
उसके माता-पिता ने उसे वापस नहीं भेजा। बेटी से कहा,अब तुम दामाद जी के आने पर ही जाओगी। उन्होंने रमेश से बात किया कि जब-जब तुम अपने घर छुट्टियों में आओगे तब तब सुधा तुम्हारे साथ गांव जाएगी।उसे हमारे पास ही रहने दो। चूंकि रमेश अपनी मां के स्वभाव जानता था इसलिए उसने मान लिया।
अब सुधा चुपचाप प्रायवेट परीक्षा देकर बीए एमए भी कर ली और नौकरी भी करने लगी। जब उसके सास-ससुर को पता चला तो घर में तूफान आ गया।
पति ने भी सुधा को नौकरी छोड़ने को कहा तो सुधा ने कहा, पहले तुम कमाओ तो। मैं अब तुम्हारे साथ ही रहूंगी पर गांव में नहीं जाऊंगी। तुम्हारी मां मेरे साथ कैसा सलूक करतीं हैं, तुमने देख ही लिया है ना।
इन सबके बीच सुधा ने बहुत कुछ झेला, सुना,पर उसके पति को भी यह बात समझ में आ गई थी।
अब दोनों साथ रहने लगे थे।पर घर जाने पर उन दोनों को मां के गुस्से का शिकार होना पड़ता।
सुधा सोचने लगी उसकी तो किस्मत अच्छी थी जो पिता और पति ने उसका साथ दिया वरना उसकी जिंदगी तो पूरी नरक बन चुकी थी।
सुधा ने अपने पति से कहा,जब तक कोई अच्छा लड़का और खानदान नहीं मिल जाता तब तक उसे पढ़ने दीजिए ना। रमेश मान गए और भावना भी आगे की पढ़ाई के लिए बाहर हास्टल में चली गई और अपना मनपसंद विषय लेकर पढ़ने लगी।
अब रमेश अपनी पत्नी सुधा को लेकर लड़के को देखने की मुहिम पर जुट गए। पर हर बार सुधा कोई ना कोई बुराई बता कर मना कर देती। धीरे धीरे एक साल बीत गए अब रमेश ने जिद पकड़ ली,अब जो कोई लड़का मिलेगा मैं उसके साथ भावना की शादी कर दूंगा।
सुधा एकदम से बिफर पड़ी। हरगिज नहीं। जो मेरे साथ हुआ वो बेटी के साथ कदापि नहीं होने दूंगी।
मैं जिस आग में बरसों झुलसती रही, मैं ही जानती हूं। मुझे तो आपका और माता पिता का सहारा मिल गया था वरना तो तुम्हारे घर से मेरी लाश ही निकलती।
और हां,सुनिए, भावना की इस साल पढ़ाई खत्म होते ही वह कहीं ना कहीं एक अधिकारी बन जाएगी, क्यों कि वह एम बी ए कर रही है।
शाम को सुधा ने भावना को फोन किया, भावना ने मां से कहा, मम्मी, क्या सचमुच में पापा कुछ महीनों में ही मेरी शादी कर देंगे ? सुधा ने इत्मीनान से कहा नहीं बेटा, “जो मेरे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ नहीं होगा ” मेरा विश्वास करना। तुम मन लगा कर अपना लक्ष्य हासिल करो और अपने पापा को अपनी काबिलियत दिखा दो।
कुछ समय बाद भावना एक बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर थी और अब रमेश अपनी पत्नी और बेटी पर गर्व कर रहे थे। उसकी शादी भी एक बड़े और बहुत अच्छे परिवार में हुई।
सुषमा यादव पेरिस से
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित