मूक दायित्व – करुणा मलिक  : Moral stories in hindi

मम्मी! विभोर आ गया क्या? उसने आपसे कोई बात की ?

नहीं अभी तो नहीं आया । बात…. किस बारे में ?

किसी लड़की के बारे में । आज मैं ऑफिस के किसी क्लाइंट से मिलने रॉक इन रेस्टोरेंट में गया था । जनाब, वहीं किसी लड़की के साथ बैठे कॉफी पी रहे थे ।

हाँ तो किसी दोस्त के साथ गया होगा । इसमें बताने वाली क्या बात है  ? क्या तुम किसी दोस्त से मिलने से पहले मुझे बताते हो ? वहाँ मिले , तो पूछ लेते ।

मम्मी! वे दोनों दोस्त से बढ़कर लग रहे थे । वहाँ तो मैं कुछ बोला नहीं पर आने दो पूछना तो पड़ेगा ही ।

माधवी अपने बड़े बेटे विराट से बात कर ही रही थी कि तभी विभोर घर में घुसते ही बोला—

मम्मी ! प्लीज़ एक कप कड़क सी चाय पिला दीजिए, सिर में दर्द हो गया ।

क्यूँ, कॉफी अच्छी नहीं थी , रॉक इन की ?

अच्छा….. तो भइया ने मेरे पहुँचने से पहले ही धमाका कर दिया । मैंने भी भइया को देख लिया था पर वे अपने क्लाइंट के साथ थे इसलिए मैं बोला नहीं ।

विभोर , कौन लड़की थी तुम्हारे साथ ? 

मम्मी ! चाय पीते-पीते बात करते हैं ना । प्लीज़…

इतना कहकर विभोर कपड़े बदलने चला गया और माधवी रसोई की तरफ़ ।

आरती, चाय चढ़ा दो , बेटा! दोनों भाई आ गए हैं । तब तक मैं खाने के लिए कुछ निकालती हूँ ।

मम्मी , विराट क्या किसी लड़की की बात कर रहे हैं?

हाँ कह तो रहा है । चलो , चाय के दौरान ही सारी बातें पूछेंगे ।

माधवी बिस्कुट- नमकीन लेकर और बहू आरती चाय की ट्रे लेकर ड्राइंगरूम में पहुँच गई ।

मम्मी , वो पुष्प मेरे साथ ही काम करती है । बड़े ही साधारण से घर की सिंपल लड़की है ।

तुम्हें कैसे पता कि सिंपल है ? 

दो साल से ज़्यादा हो गया उसे देखते हुए, शायद इतने दिन में इतना सा तो पता लग ही जाता है ।पुष्प…..

 तभी आरती बात काटते हुए बोली—

पर मम्मी , आपने तो मेरी बुआ की लड़की के रिश्ते को हाँ कह दिया था ।

आरती , कैसी बातें करती हो ? भला उस समय जब मुझे पता ही नहीं था तो …. मुझे भी आज ही पता चल रहा है ना ।फिर कौन सा रिश्ता पक्का हो गया था । जिस घर में विवाह लायक़ लड़का- लड़की होते हैं, वहाँ तो आपस में पूछपाछ हो ही जाती है । ये कोई बड़ी बात नहीं है ।

सास का जवाब सुनकर आरती कप उठाकर वहाँ से चली गई । उसने तो सोचा भी नहीं था कि सास इतनी आसानी से विभोर के द्वारा चुनी गई लड़की के लिए मान जाएगी ।

रात के खाने के समय भी आरती का मुँह फुला रहा । माधवी चुपचाप सब देख- समझ रही थी । पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । पति की असमय मृत्यु ने उन्हें हर बात को कई कसौटियों पर नाप-तोलकर समझना सिखा दिया था ।

अगले दिन विराट और आरती के ऑफिस जाने के बाद माधवी विभोर से बोली—-

बेटा , क्या आज तुम और पुष्प छुट्टी ले सकोगे? मैं पुष्प और उसके माता-पिता से मिलना चाहती हूँ ।

मम्मी , उनसे मिलने से पहले मैं कुछ ओर भी बताना चाहता हूँ ।

दरअसल पुष्प साधारण से भी निचले परिवार से है । उसके पिता ने रिक्शा चलाकर और मम्मी ने दूसरों के घरों में झाड़ू- पोंछा करके अपने तीनों बच्चों को पढ़ाया है । पुष्प सबसे बड़ी है और शादी के बाद अपने भाई- बहन की पढ़ाई में मदद करना चाहती है । वैसे पुष्प की नौकरी लगने के बाद उसकी मम्मी ने काम करना बंद कर दिया और पापा ने भी लोन पर एक आटोरिक्शा ख़रीद लिया है ।

तो तू क्यों  उन्हें इतना  दीन-हीन दर्शा रहा है । चोर- डाकू तो नहीं है वे , मेहनत करके अपना घर चला रहे हैं । रही भाई- बहन की मदद की बात , तो ये बात तुझे सोचने की है । मेरे विचार से तो ये एक परिपक्व निर्णय है । 

माँ का पाजिटिव जवाब सुनकर विभोर ने ऑफिस में फ़ोन करके छुट्टी ले ली पर पुष्प ने बताया कि पापा तो बारह बजे के बाद ही मिल सकते है क्योंकि किसी महिला मरीज़ को ठीक दस बजे फिजियोथैरेपी के लिए अस्पताल लेकर जाते हैं और बारह बजे उसे घर छोड़ते हैं । 

तो कोई बात नहीं, विभोर, एक बजे का समय पक्का कर दे ।

तो मम्मी, मैं भी हॉफ डे की ही छुट्टी लेता हूँ । ऐसा करना , भाभी भी अपने स्कूल से दो बजे तक आ जाती है । फिर तो उनको भी अपने साथ लेती आना । एक बजे की जगह तीन बजे का समय रख लेते हैं ।

नहीं विभोर, पहले मैं ही मिलूँगी । और सुन , इस बारे में अभी विराट और आरती दोनों को भी पता नहीं लगना चाहिए । हम पुष्प के घर ही मिलने जाएँगे क्योंकि बाहर मिलने से खबर फैल ही जाती है ।

पर , आप भाभी से क्या कहोगी? वो तो आपके पीछे से घर पहुँच जाएँगी ।

वो सब तू मुझपे छोड़ दें और साढ़े बारह तक मैं तेरे ऑफिस पहुँच जाऊँगी । 

इस तरह विभोर तो चला गया और माधवी अपने बेडरूम में जाकर पति की लगी फ़ोटो को देखकर बोली—

आप तो जानते ही हैं जी कि मैंने दोनों भाइयों में कभी अंतर नहीं किया पर एक सास होने के नाते दोनों बहुओं के मान- सम्मान की रक्षा करना भी मेरा फ़र्ज़ है । इसलिए कुछ बातें विराट और आरती से छिपानी ही पड़ेगी ।

माधवी उठी । नहा-धोकर कॉटन की साड़ी पहनकर अच्छे से तैयार हुई और घर के मंदिर में भगवान के सामने हाथ जोड़कर बोली—

प्रभु , जहाँ बच्चों की ख़ुशी है , उसी में मुझे भी ख़ुशी है । बस अपना आशीर्वाद बनाए रखना ।

घर का ताला लगाया और पड़ोसन को चाबी देकर बोली— चाची ! अचानक सहेली से मिलने जाना पड़ गया । बहू आएगी तो ये चाबी दे देना । वैसे मैं फ़ोन कर दूँगी उसे पर कभी-कभी फ़ोन मिलता भी तो नहीं । जाओगी तो ना कहीं ?

ना बहू , कहाँ जाऊँगी? आज तो सारा दिन यहीं गली में बैठना है , गेहूं सूखने जो डाले हैं । अंदर धूप ही ना आती ।

 पर माधवी ने सोच लिया कि पुष्प और उसके घरवालों से मिलने के पहले वह आरती से फ़ोन नहीं करेंगी क्योंकि दस सवाल करके पीछे ही पड़ जाएगी।  ठीक समय पर वे विभोर के ऑफिस में जा पहुँची । वहाँ से विभोर की बाइक से दोनों माँ-बेटा पुष्प के घर जा पहुँचे। एक तंग सी गली के नुक्कड़ पर ही घर था । कमरे का दरवाज़ा पुष्प ने ही खोला । साँवली दुबली-पतली , एक बहुत साधारण से नैन-नक़्श की लड़की थी पुष्प ।

पहले तो माधवी ने सोचा कि ये शायद पुष्प की छोटी बहन होगी पर जब उसने माधवी को विभोर के साथ देखकर सिर पर दुपट्टा डाला और पैर छूने के लिए नीचे झुकी तो माधवी समझ गई कि यही पुष्प है ।

एक बार तो दिल बैठ सा गया । हाय ! मेरे विभोर के लिए ये लड़की, कहीं फँसा ही तो नहीं लिया ?

पर तुरंत माधवी ने खुद को सँभाला । माँ जरूर हूँ मैं विभोर की पर अपनी ज़िंदगी का फ़ैसला करने का उसे पूरा अधिकार है । और अगर कुछ ऐसा-वैसा लगा भी तो वह ज़रूर समझाएगी । पर केवल लड़की की शक्ल देखकर किसी को सही-ग़लत ठहराना एकदम अनुचित है ।

छोटे से कमरे में दो फोल्डिंग बेड और चार प्लास्टिक की कुर्सियाँ रखी थी । कमरा साफ़ सुथरा था । दीवारों पर एक-दो  परिवार की फ़ोटो और दुर्गा माँ तथा हनुमानजी  के कैलेंडर टँगे थे । कमरे के अंदर जाने के दरवाज़े पर पुरानी साड़ी को सिलकर पर्दा बनाकर टाँगा गया था । कुल मिलाकर कहा जा सकता था कि सारी व्यवस्थाएँ  कम बजट में बड़ी ही सुगढता का परिचय दे रही थी । 

पुष्प के माता-पिता और भाई-बहन भी मौजूद थे । सबने बड़ी ही सादगी से दोनों माँ- बेटे का स्वागत सत्कार किया । माधवी ने महसूस किया कि पुष्प के माता-पिता खुलकर बात नहीं कर पा रहे थे । वे काफ़ी असहज प्रतीत हो रहे थे । तब माधवी बोली —

भाईसाहब!  आपकी बेटी के जीवन का सवाल है । कोई भी बात दिल में मत रखना । विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं होता , दो परिवारों का भी मेल होता है । पता नहीं, क्यों ? पर मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि आप कुछ दबाव में है ।

जवाब पुष्प की माँ ने दिया — बहनजी ! दरअसल आपके और हमारे बीच ज़मीन- आसमान का अंतर है । हम आपसे कुछ भी छिपाना नहीं चाहते । बड़ी मुश्किल से घर …….

मुझे सब पता है । आप बेफ़िक्र रहें । आपकी इज़्ज़त अब मेरी भी इज़्ज़त है । बस कम कहे को ही ज़्यादा समझ लेना । बाक़ी पुष्प से विवाह के बाद जो ज़िम्मेदारी एक बेटे के रूप में विभोर को निभानी चाहिए वो ये ज़रूर निभाएगा । जल्दी कोई नहीं है , अगर थोड़ा ओर समय लेना चाहते हैं तो मुझे कोई परेशानी नहीं है बस इस बात का ख़्याल रहे कि जब रिश्ता दूसरों की नज़रों में आने लगता है तो बातें बननी शुरू हो जाती हैं ।

इस तरह काफ़ी खुले तौर पर बातचीत के बाद माधवी लौट आई । 

— देखने में तो सब ठीक ही है पर विभोर आज की इस मुलाक़ात के बारे में अभी विराट या आरती के सामने बात मत करना ।

वे दोनों जैसे ही घर पहुँचे तो गली में कुर्सी डाले बैठी पड़ोसी चाची बोली — ए माधवी ! ये आरती तो ना आई अभी तक ? तू तो कहे थी के दो बजे तक आ जावेगी । 

हाँ चाची , रोज़ तो दो बजे आ जाती है । कोई बात नहीं, कभी-कभी मीटिंग के कारण देर हो जाती है ।

फ़ोन करने के लिए जैसे ही माधवी ने पर्स खोलकर रिंग करनी चाही तो आरती की छह मिस्ड कॉल देखकर घबरा गई । 

—- हे भगवान, मेरा फ़ोन साइलेंट पर था । मुझे तो पता ही नहीं चला । ….. हाँ आरती , बेटा वो फ़ोन….. । अच्छा… कोई बात नहीं… मैं विभोर को भेज दूँगी…. छह बजे । अचानक ….. इंस्पेक्शन….. ठीक है ।

ठीक दो दिन बाद पुष्प की माँ का फ़ोन आया— बहनजी ! समझ नहीं आ रहा कि क्या करें , बस यही डर लगता है कि हमारी बेटी सारी ज़िंदगी बड़े घर में जाकर शर्मिंदगी महसूस ना करे । कुछ बातें अभी नहीं समझाई जा सकती । और इतना अच्छा वर- परिवार भी भला कहाँ मिलेगा? 

मैं तो उस दिन भी कह चुकी हूँ कि अपने मन की सुनिए और बाक़ी सब कुछ भगवान पर छोड़ दीजिए ।

ठीक है तो आप शादी की तारीख़ निकलवा लीजिए ।

पुष्प की मम्मी, क्यों ना हम साथ बैठकर योजना बनाएँ । अभी तो मैंने अपने बड़े बेटे और बहू से भी बात नहीं की । 

उसी दिन शाम को माधवी ने विराट और आरती से कहा—

अरे हाँ, मैं तो बताना ही भूल गई । तुम पिछले हफ़्ते जब अपनी ससुराल गए थे तो रास्ते में पुष्प और उसके माता-पिता मिल गए । वहीं पास में…….

पुष्प कौन …. अच्छा वही लड़की, जो उस दिन विभोर के साथ देखी थी । मुझे लगा कि वो क़िस्सा बंद हो चुका ।

वो अनुरोध करने लगे कि घर चलें, बिल्कुल नज़दीक है तो मैं और विभोर चले गए । भले लोग हैं । साधारण बिल्कुल हमारे जैसे , कोई दिखावा नहीं । जो जैसा था वहीं दिखाया । लड़की भी ठीक है । घर परिवार में मिलजुल कर रहने वाली लगी । अब विभोर की भी इच्छा है तो बेटा , इतवार को मिलकर शगुन की रस्म कर लेते हैं । जब दोनों की इच्छा है तो ज़्यादा देर भी ठीक नहीं । तुम दोनों की क्या सलाह है ? विराट! तुम्हारी शादी के समय तो मुझे अकेली को ही सब करना पड़ा, अब तो मुझे कोई चिंता नहीं ।

हाँ मम्मी, आप क्यों चिंता करती हो ? सब हो जाएगा । बस आप बताती जाना । बातचीत तो आपको ही करनी पड़ेगी । एक तो ऑफिस के काम में भूल जाते हैं दूसरे , आप बड़ी हैं । 

ठीक है बेटा , मैं फ़ोन पर बातचीत करके तुम्हें बताती रहूँगी ।

बस उस दिन से माधवी छोटे बेटे के विवाह की तैयारियों में लग गई । 

विराट ! बेटा , ज़्यादा लोगों को बुलाने की क्या ज़रूरत है ? सगाई की रस्म तो दिन के समय ओपन गार्डन में भी की जा सकती है । करीबी रिश्तेदार और मित्रों को बुला लो बस ।

अंगूठी की रस्म के समय विराट की बुआ बोली—

ए भाभी, जाँच पड़ताल भी कर ली अच्छे से । आजकल लड़कों को फँसाकर लूटने का कारोबार बना लिया है लोगों ने ?

पता नहीं, कौन है ? कल ही तो सगाई की खबर दी । कपड़े- लत्तों से तो रहन- सहन वैसा ही लग रहा ।

ख़ैर… शाम तक जिसे जो बातें बनानी थी , बनाई । चलते समय माधवी आरती और विराट से बोली——-

बेटा , लड़की वालों ने ये दस साड़ियाँ, लिफ़ाफ़े और मिठाई के डिब्बे इकट्ठे ही उधर रखवा दिए हैं । आरती , वे तो किसी को जानते नहीं और अगर सब का परिचय करवाएँगे तो देरी हो जाएगी, सबको जाने में । तुम इनकी तरफ़ से दे दो बेटा । तीनों बुआओं को , दोनों चाचियों को , एक तुम्हारी ताईजी की ,  दोनों मामियों को और दो हमारी होंगी । आदमियों के लिए केवल मिठाई तथा लिफ़ाफ़े है। माधवी ने इतनी कुशलता से कार्य निपटवाए कि एक हाथ की खबर दूसरे हाथ को भी ना लगी ।

अगले दिन विराट को थकान के कारण छुट्टी लेनी पड़ी । जब आरती और विभोर चले गए तो वह माधवी से बोला—

मम्मी!  मेरी शादी में आपने अकेली ने कैसे सब सँभाला होगा ? मैं तो इतने से काम में थक गया । ऊपर से कोई कुछ कह रहा , कोई कुछ । कितनी जल्दी कमियाँ ढूँढते हैं लोग? उफ़्फ़, मन तो करता है कि  अब चुपचाप मंदिर में जाकर शादी कर दें ।

तूने तो मेरे दिल की बात कह दी विराट ! हमारे रिश्तेदारों के कारण बेचारे लड़की वालों को भी सुनना पड़ता है । कुछ भी कर लो , कैसा भी दे दो , ये खुश नहीं होंगे । बेटा , सुबह ही पंडित जी से बात करी है, इसी इतवार का बड़ा शुभ मुहूर्त है, क्यों ना मंदिर में शादी की रस्में कर लें । और सोमवार को दावत । इसी शहर में हैं सब । दो- तीन दिन की जगह , एक ही दिन निपट जाएगा । क्या कहते हो?

विचार तो अच्छा है मम्मी, पर विभोर को तो बुरा नहीं लगेगा ? एक ही  तो भाई है मेरा । मेरी शादी में कितना धूम धड़ाका किया था उसने ।

अरे नहीं बेटा , वो तो खुद किसी तरह का तमाशा नहीं चाहता । वो तो कोर्ट मैरिज के हक में था । एक बार तू भी पूछ लेना ।

माधवी ने इस तरह से भूमिका बनाई कि विराट और आरती को आभास तक नहीं हुआ कि मम्मी का एक-एक कदम सोची समझी रणनीति के तहत लिया जा रहा है । माधवी जानती थी कि आज दोनों बहुएँ उनके सामने मुँह नहीं खोलेंगी पर कल भगवान ना करें , किसी बात पर कहा सुनी हो जाए और आरती कोई ताना उलाहना मार दें या उसके परिवार की आर्थिक स्थिति की बात ले आए तो पुष्प भी चुप नहीं रहेगी और यहीं से परिवार का विघटन शुरू हो जाएगा । दोनों का बराबरी का रिश्ता और दर्जा है । इसलिए एक दूसरे की नज़रों में आपसी सम्मान बनाए रखना ज़रूरी है । 

विराट से भी यह बात छिपानी ज़रूरी समझी  कि सगाई और विवाह का सारा खर्चा विभोर ने उठाया है , यहाँ तक कि लड़की वालों की तरफ़ से दिखाए गए उपहार भी । माधवी जानती थी कि पति के मुँह से  कभी ना कभी पत्नी के सामने  हर बात निकल ही जाती है । 

आपसी सहमति से मंदिर में विवाह की रस्में पूरी हुई और अगले दिन दावत ।पुष्प ने माधवी को एक लिफ़ाफ़ा दिया —

मम्मी ! ये पापा की ओर से । एक मामूली सा योगदान । 

माधवी ने सम्मान के साथ लिफ़ाफ़ा स्वीकार किया क्योंकि जो था , जितना भी था , पुष्प के माता-पिता की सप्रेम सौग़ात थी। आज माधवी  बच्चों की ज़िम्मेदारियों से निश्चिंत हो गई थी । 

करुणा मलिक

5 thoughts on “मूक दायित्व – करुणा मलिक  : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही मुश्किल परीक्षा में प्राविण्य सूची में स्थान पाया है विपुल और विराट की मां ने ।बहुत शानदार शिक्षाप्रद कथानक।

    Reply

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!