जीवन का सवेरा (भाग – 1) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

आसमान में मद्धम मद्धम चमक रहे सूरज के साथ बारिश की बूँदों से नहाया रोहित जल्दी जल्दी पैर बढ़ाता कैफे के सामने रुकता है। रोहित खुद से भागने की कोशिश में पचमढ़ी आया था, खुद के बारे में रोहित की यही सोच है। छींकते हुए रोहित को एक अदद गर्म कॉफी की तलब हो रही थी। सरसरी निगाह दौड़ाता हुआ चारों तरफ देखता है। उस समय उसे कोई भी टेबल खाली नहीं दिखी, लेकिन खिड़की के पास वाली टेबल पर कॉफी की सिप लेती हुई बारिश की बूँदों को निहारती एक लड़की दिखी, उसके साथ कोई नहीं था, वो लड़की अकेले ही कॉफी और बारिश की बूंदें दोनों का ही आनंद ले रही थी। कुछ देर रोहित अन्यमनस्क सा सोचता रहा, “ अगर उसे बुरा ना लगे तो वही बैठ जाता हूँ। लेकिन उसने कोई गलत अर्थ निकाल लिया तो, क्या करें क्या ना करें, अजीब सी मुश्किल हाय। ये स्थिति ज्यादा देर नहीं रही क्योंकि अब इस अहसास के साथ साथ रोहित के ऊपर ठंड का अहसास भी हावी होने लगा था। ऐसी स्थिति में खुदबखुद उसके कदम उस टेबल की ओर बढ़ चले।

“एक्सक्यूज मी”, रोहित की आवाज से शीशे पर टपकती बूंदों को निहारती उस लड़की की तंद्रा टूटी थी।

“जी कहिए”, रोहित के कानों में जैसे मंदिर की घंटी बजी। सुन्दरता की प्रतिमूर्ति… रोहित उसे अपलक निहारे जा रहा था।

रोहित सोच रहा था, “किसी को भी विश्व सुंदरी का खिताब दे देते हैं। विश्व सुंदरी तो यहाँ बैठी कॉफी और बारिश इन्जॉय कर रही है”, अपनी सोच पर ही मुस्कुरा उठा रोहित।

“आप मुस्कुराते ही रहेंगे कि कुछ कहना भी चाहेंगे।” रोहित की अनजानी विश्व सुंदरी उसके सामने चुटकी बजाती हुई बोली।

“जी.. वो”… रोहित अपनी सोच और उस लड़की की प्रतिक्रिया को एक साथ संभाल नहीं सका और हकलाने लगा।

“जी.. क्या जी. वो.. हद्द ही है.. ना चैन से बैठने देते हैं.. ना कुछ बोला जा रहा है।” वो लड़की धीमे से बुदबुदाती हुई कहती है।

“जी.. मैं बारिश में गीला हो गया था। ठंड भी हो रही है। एक गर्म कॉफी पीना चाहता था।” अब रोहित खुद को व्यवस्थित करता हुआ कहता है।

रोहित की बात पर लड़की मुस्कुरा पड़ी, “ओह.. ये कहिए ना.. पैसे नहीं हैं आपके पास और कॉफी की सुगंध आपके नथुनों में समा गई है।

“नहीं.. नहीं ऐसी बात नहीं है..कोई भी टेबल खाली नहीं है.. इसीलिए”… रोहित उसकी इस सोच पर हड़बड़ा कर शीघ्रता से कहता है।

“ओह.. ऐसे कहिए ना… बैठिए… बैठिए”, रोहित से कहती हुई वो लड़की दो कॉफी और एक सैंडविच मँगवाती है।

“मैं खुद मँगवा लेता, आपने क्यूँ तकलीफ की!” रोहित बैठते हुए ऑर्डर करने की सोच ही रहा था कि वह लड़की ने उससे पहले ही ऑर्डर कर देती है।

“क्यूँकि अभी आप मेरे अतिथि हैं।” वो लड़की बहुत ही प्यारी मुस्कान के साथ कहती है।

रोहित भी प्रत्युत्तर में मुस्कान देता हुआ कहता है, “अतिथि, नाइस। सुनकर बहुत अच्छा लगा। आपका नाम जान सकता हूँ।” 

“जी.. आरुणि नाम है मेरा” 

“सो ब्यूटीफुल नेम, वैसे इस नाम का मतलब क्या होता है।” नाम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रोहित पूछता है।

“आरुणि.. जीवन का सवेरा”, ये कहते हुए आरुणि के स्वर में थोड़ी उदासी झलकने लगी थी

“वाह… किसने रखा इतना सुन्दर नाम”, रोहित कहता है। उस समय रोहित की हर बात पकड़ कर पूछने, बोलने की उत्सुकता से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो रोहित को बहुत दिनों बाद कोई बात करने के लिए मिला हो।

“मेरे मॉम डैड ने”… आरुणि भीगे स्वर में कहती है।

“आप ठीक तो हैं”, चहकती आवाज के मध्य में अचानक स्वर के भीग जाने को महसूस करता हुआ रोहित पूछता है।

“लीजिए आपकी गर्म कॉफी और सैंडविच।” रोहित के आगे कॉफी रखती हुई आरुणि अपने आप को संयत करती हुई कहती है।

“नहीं नहीं, सैंडविच आप लीजिए। मैं सिर्फ कॉफी लेना चाहूँगा।” सैंडविच आरुणि के सामने सरकाता हुआ रोहित कहता है।

“आपके लिए ही सैंडविच है। यह सैंडविच इस कैफे की विशेषता है। आप खा कर तो देखिए।” आरुणि सैंडविच का प्लेट फिर से रोहित के आगे रखती हुई कहती है।

रोहित आरुणि के कहने पर प्लेट बिल्कुल अपने सामने रखता हुआ कहता है, “ओके..लगता है, आप अक्सर आती हैं यहाँ।”

“हम तो हैं ही यहाँ के.. इसी वादी के”, आरुणि गुनगुनाहट भरी आवाज में कहती है।

लेकिन रोहित उसकी बात पर ध्यान ना देकर कॉफी की सिप लेता हुआ कहता है, “अमेजिंग कॉफी, अभी मुझे ऐसी ही स्ट्रॉन्ग कॉफी की आवश्यकता थी, शुक्रिया आपका”

“मैं आपका प्यारा नाम जान सकती हूँ”, आरुणि अब रोहित से पूछती है।

“जी.. रोहित कहते हैं इस नाचीज़ को।” रोहित अदा से अपने सीने पर हाथ रखता हुआ कहता है।

“नाचीज़… हाहाहा”.. आरुणि रोहित के बोलने के अंदाज पर हँसती है। रोहित आरुणि की हॅंसी को मुग्ध होकर देखना लगा, जैसे कोई चमत्कारिक दृश्य उसके सामने आ गया हो। उसके चेहरे पर एक आश्चर्य की झलक थी, जैसे प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति के उसके सम्मुख उपस्थित हो गया हो। उसका हृदय उस हॅंसी में सुंदर रंगीन बादलों के मध्य से उगती हुई सुहानी धूप की अनुभूति कर रहा था, जो उसे आरुणि की हॅंसी के साथ एक नई आभा दे रहा था।

“तो नाचीज़ जी, आं मतलब रोहित जी”…

“सही कहा था आपने यहाँ की सैंडविच बिल्कुल अलग ही है .. साथ में ये स्ट्रॉन्ग कॉफी सोने पर सुहागा। आपसे फिर से मिलना हो तो।” आरुणि कुछ कहती उससे पहले ही रोहित अपने मन के विचारों को छुपाने की कोशिश करता हुआ कहता है।

“आ जाइएगा.. यही मिलूँगी.. ये टेबल मेरे लिए रिजर्व है।” आरुणि जो कि रोहित की मनोदशा से अनभिज्ञ थी, सामान्य तरीके से कहती है।

“आप प्रत्येक दिन आती हैं यहाँ?” रोहित आरुणि से पूछता है।

आरुणि शायराना लहजे में कहती है, “ये कॉफी.. ये सैंडविच.. ये फिज़ा खींच लाती है मुझे।” 

रोहित मुस्कुरा कर कहता है, “शायराना अंदाज”… 

“कुछ दिन इस वादी में रह कर देखिए। आपके मिजाज़ भी शायराना हो जाएंगे।” आरुणि शीशे से बाहर फैली पहाड़ की चोटियों को देखती हुई कहती है।

“हूंह.. मुझसे.. मुझसे कुछ भी नहीं हो सकता।” रोहित धीरे से मायूसी से कहता है।

“क्या कहा आपने, जरा जोर से बोलिए।” रोहित की बड़बड़ाहट पर आरुणि कहती है।

“नहीं, बस यूँ ही”, रोहित सिर झुकाए हुए ही कहता है।

आरुणि उसके झुके सिर पर नजरें गड़ाए हुए कही है, “देखिए.. सुन तो लिया मैंने.. स्पष्ट सुनना चाहती हूँ।” 

रोहित नहीं चाहते हुए भी सम्मोहन से बंधा हिचकिचाते हुए कहता है, “मुझसे कोई काम परफेक्ट नहीं होता है।” 

“ऐसे कैसे, देखिए कितने परफेक्शन से आपने कॉफी और सैंडविच खत्म किया है। एक बूँद कॉफी मग में नहीं दिख रही है और प्लेट देखकर तो कोई कह ही नहीं सकता कि भूतकाल में इसमें सैंडविच रखी हुई थी।” आरुणि अपनी बड़ी बड़ी ऑंखों को और बड़ी करके कहती है।

रोहित जोर से हँसने लगता है, “आप सबसे इतनी बेतकल्लुफ होकर ही बात करती हैं क्या?”

“सबसे क्यूँ… आप मेरे गेस्ट हैं, इसलिए आपसे बेतकल्लुफ हूॅं।

अच्छा तो ये बात है, बहुत बहुत धन्यवाद आपका। अब बारिश भी रुक गई है। मैं भी अपने होटल पहुँचता हूँ।” रोहित शीशे से बाहर देखता हुआ कहता है।

“ओके.. हैव ए गुड डे….कभी मिलना चाहे तो मैं यही हूँ।” आरुणि भी मानो किसी सम्मोहन से ही बंधी कह रही थी।

“श्योर … थैंक्यू अगेन.. बाई”..रोहित आरुणि को कहकर निकल गया।

 

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आरती झा आद्या 

दिल्ली

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