जीवन का सवेरा (भाग – 2) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

आरुणि शीशे से रोहित को जाता हुआ देखती हुई बुदबुदाती है, “कन्फ्यूजड है ये बंदा। महादेव की इच्छा हुई कि इसका दिमाग संतुलित हो जाए तो फिर से यही भेज देंगे.. आरुणि कैफे.. आरुणि से मिलवाने”…जी हाँ.. बिल्कुल सही सुना आपने.. ये आरुणि का कैफे है… इसीलिए वो हमेशा यहाँ मिलती है।

रोहित होटल में बैठा रिमोट हाथ में लिए आरुणि के बारे में सोच रहा था। क्या ग़ज़ब लड़की है.. मुझे… रोहित मेहता को, जो इस तरह हँसने को बेग़ैरत सा समझता है, उसे भी हँसने पर मजबूर कर दिया। नाम भी काफी खूबसूरत है आरुणि… जीवन का सवेरा। ओह हो मैंने कैफे का नाम भी नहीं देखा। लेकिन डेली सिर्फ कॉफी पीने आती है क्या.. मुझे क्या.. सोच कर कंधे उचकाता रोहित न्यूज देखने में खो गया।

 

आज मौसम भी बहुत सुहाना हो रहा है, साथ ही शिवरात्रि की धूम भी है। सारे मंदिर सजाए गए हैं। आज आरुणि ने कैफे की छुट्टी रखी है। शिवरात्रि होने के कारण ज्यादा लोग इस दिन कैफे आते भी नहीं हैं। उसका और उसकी सहेलियों का दर्शन के लिए सुबह जटाशंकर मंदिर जाने का प्रोग्राम था, जो कि सतपुड़ा के जंगलों से घिरा हुआ है। बहुत पसंद है उसे यहाँ की मनोरम झाँकियाँ। भोर के समय भीड़ भी नहीं होती और दर्शन भी अच्छे से कर सकते हैं, यही सोच जल्दी जल्दी निकल पड़ी थी चारों सखियाँ। चारों तरफ की हरियाली निहारते हुए, आध्यात्म और प्रकृति के विहंगम दृश्य को आत्मसात करते हुए बढ़ती जा रही थी। यूँ तो बचपन से ही यहाँ आती रही है। सुबह सुबह चिड़ियों की आवाज़ कितनी मधुर होती है। हर बार कुछ नया अनुभव कराती है, मानो हर बार आत्मशक्ति बढ़ जाती है। यहाँ आकर, शंकर के चरणों में आकर आंतरिक शांति मिलती है।

मंदिर प्राकृतिक गुफा, जो कि गहरी खाई पर बना हुआ है। पहाड़ों को काटकर मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई है। इन्हीं सीढ़ियों के पास एक मंदिर भी है, जहाँ बहुत सारे खरगोश मिल जाते हैं। चारों रुक कर खरगोश के साथ खेलने लगती हैं। तभी आरुणि की नजर सीढ़ी उतरते रोहित पर पड़ती है। वो जल्दी से खरगोश को गोद से उतार रोहित के पास आकर पुकारती है, “हैलो रोहित.. माई सेल्फ आरुणि”…

रोहित पलट कर देखता है, “आरुणि… कैसी हो.. यहाँ कैसे?”

आरुणि हॅंस कर कहती है, “वैसे ही जैसे आप आए, अपने पैरों से चलकर।”

रोहित को आरुणि की बात पर हँसी आ गई। जब तक रोहित कुछ कहता है, आरुणि की सखियाँ भी आ गई। आरुणि ने सबका एक दूसरे से परिचय कराया। 

ये रोहित हैं.. मेरे कॉफी और सैंडविच वाले गेस्ट और ये तीनों मेरी सहेलियाँ तृप्ति, राधा और योगिता है।

रोहित और सब एक दूसरे को हैलो कहते हैं..

“एक जिज्ञासा थी, अगर आप इजाजत दे तो पूछने की हिमाकत करुँ।” रोहित अपनी जिज्ञासा के प्रति बताते हुए कहता है।

आरुणि मुस्कुराती है, “इरशाद”

“मैं कोई शेरों शायरी नहीं कर रहा हूँ, जो आप इरशाद कर रही हैं।” रोहित चिढ़ता हुआ कहता है।

“बरखुरदार.. मेरे लिए किसी की जिज्ञासा का समाधान करना भी तरन्नुम से कम नहीं है.. सो इरशाद।” आरुणि अपनी मुस्कुराहट बरकरार रखती हुई कहती है।

आरुणि की तीनों सखियाँ हँसने लगती हैं..

“ये ऐसी ही है, इसकी बातों का बुरा ना माने। जो पूछना है पूछिए।” तृप्ति रोहित का रूखा चेहरा देखकर कहती है।

“नहीं अब रहने दीजिए।” रोहित नाराजगी से बोल कर दो सीढ़ी नीचे उतरता है।

आरुणि भी फुर्ती से नीचे उतरते हुए कहती है, “अहम् की बीमारी है क्या आपको। ओह.. हो.. बहुत ही खराब बीमारी होती है ये तो।”

ऐसा कीजिए.. अपने अहम् को आम समझ कर चूसिए और गुठली के साथ अहम् को फेंक दीजिए। अगर अहम् लाभदायक होता तो मैं कहती मिट्टी के नीचे दबा दीजिए, एक नया पेड़ होगा.. हवा, छाया, आम सब देगा लेकिन अहम् तो सिर्फ दूरियाँ पैदा करेगा। इसलिए इसकी गुठली डस्टबीन में डाल दीजिए।” आरुणि भी रोहित के साथ नीचे उतरती हुई कहती है।

रोहित उसकी बात सुनकर रुक गया। क्या फिलासफी दी है इसने। यही तो करके आया है रोहित.. अपने इगो के कारण अपनों से दूर। इसी इगो के कारण खुद से भी भागना चाहता है।

“तो क्या विचार, अब अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहेंगे।” आरुणि रोहित के थमते कदम के साथ चेहरे पर आश्चर्य का भाव देख कर पूछती है।

“तुमने कॉफी और सैंडविच वाले गेस्ट कहकर क्यूँ परिचय कराया। सिंपल तरीके से दोस्त भी तो कह सकती थी।” रोहित बिना एक पल गंवाए आरुणि की फिलासफी स्वीकार करते हुए पूछता है।

“दोस्त, कब हुई दोस्ती। ठीक है तो अब कर लेते हैं दोस्ती, फिर हम पाँच हो जायेंगे। आप अकेले आए हैं या आपके साथ आपके दोस्त या परिवार भी हैं।” चारों ओर नजरें घुमाती हुई आरुणि पूछती है।

“मैं पचमढ़ी ही अकेले आया हूँ।” दोनों साथ साथ सीढ़ी उतरते हुए बातें कर रहे थे।

“कोई बात नहीं फ्रेंड।” आरुणि बोलकर हाथ आगे बढ़ाती है।

हेंडशेक करता हुआ रोहित भी आरुणि को फ्रेंड कहकर संबोधित करती है। आरुणि की तीनों सहेलियाँ ताली बजाती हैं और रोहित की चारों से दोस्ती हो जाती है।

“अब हम चारों आपको पचमढ़ी घुमाएंगी। आप पहली बार आए हैं या पहले भी आ चुके हैं।” आरुणि रोहित से जिज्ञासा करती हुई पूछती है।

रोहित खीझ भरी आवाज में कहता है, “पहले तो तुम लोग मुझे तुम बोलना शुरू करो। बुजुर्गों सा अनुभव होने लगता है।” 

आरुणि अपने प्रश्न को तुम शब्द के उच्चारण के साथ फिर से दुहराती है, “तुम पहली बार आए हो या पहले भी आ चुके हो।” 

“पहली बार आया हूँ।” रोहित बताता है।

“फिर तो तुम्हारे बहाने हमारी भी आउटिंग हो जाएगी।” योगिता का स्वर उत्साह से भरा हुआ था।

सब साथ साथ सीढ़ियाँ उतरने लगते हैं। “इतनी मधुर आवाज में कोई भजन गा रही हैं शायद।” रोहित भजन की मीठी मधुर आती आवाज़ की दिशा में देखते हुए कहता है।

“हाँ एक बुजुर्ग महिला हैं, शिव जी की अनन्य भक्त हैं। वही इतने मधुर स्वर में गा रही हैं।” आरुणि कहती है।

फिर चारों उसे एक गुफा में ले जाती हैं, जहाँ एक छोटी सी चट्टान पर शिव पार्वती की मूर्ति बनी हुई है। कुदरत का नायाब तोहफा, जैसे कि कुदरत ने वहाँ एक अनूठा चमत्कार प्रकट किया हो। चट्टान की सतह पर शिव और पार्वती की मूर्ति का निर्माण इतने सावधानी से किया गया था कि वे एक-दूसरे के साथ एक अद्वितीय संयोग बनाते नजर आ रहे थे। शिव जी का त्रिशूल और नंदी के साथ, उनकी ध्यानमुद्रा और पार्वती जी की मधुर मुस्कान, सभी को एक अद्वितीय और शांतिपूर्ण वातावरण में ले जा रहे थे। यह मूर्ति एक माध्यम बनकर, देखने वालों को ध्यान और शांति का अनुभव कराती थी, जैसे कि उसमें प्राचीन काल की कथाऍं समाहित हो गई हो।

“कहीं भजन कीर्तन हो रहा है।” रोहित मंत्रमुग्ध सा शिव पार्वती का मुस्कुराता हुआ विग्रह के साथ प्राकृतिक सौंदर्य को आत्मसात करता कहता है।

आरुणि रोहित को लिए आगे बढ़ती हुई कहती है, “आओ.. देखो इस मंदिर में चौबीस घण्टे रामायण का पाठ होता रहता है। अगर तुम्हें जल्दी ना हो तो यहाँ थोड़ी देर बैठ भी सकते हैं।”

“नहीं कोई जल्दी नहीं है।” रोहित रुकता हुआ कहता है।

तब थोड़ी देर बैठा जाए। बहुत ही अच्छा लगेगा, मन पवित्र हो जाएगा।” योगिता खुश होती हुई कहती है।

वहाँ से सभी पानी पीकर, जुते, सैन्डलस् उतार आगे बढ़ते हैं और जाकर पैरों को समेटते हुए ध्यानमुद्रा में बैठ गए। ऑंखें बंद कर बैठे उन सभी को देखकर प्रतीत हो रहा था मानो उनका ध्यान उनके अंतर की गहराई में उतर रहा है। वे एक नए और प्रेरणादायक आध्यात्मिक अनुभव के साथ संवाद कर रहे हों। उनके चेहरे की शांति कह रही थी कि इस संवाद के माध्यम से वे अपनी आत्मा के संगीत को सुन रहे हैं। इस आध्यात्मिक अनुभव के माध्यम से, वे सभी स्वयं के साथ साक्षात्कार कर अपनी आत्मा की ऊर्जा सींचते हुए भगवान के साथ एक मिलन क़ी स्थिति में जा रहा थे।

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