जीवन का सवेरा (भाग – 3) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

रोहित वहाँ से उठकर आरुणि और उनकी सहेलियों के साथ चलते हुए बोला, “सच कह रही थी योगिता, मन बहुत शांत लग रहा है। हृदय शांति सुकून से भर गया है।” उसके चेहरे पर एक गहरे आनंद और शांति की मुस्कान थी, जो उसके मन की स्थिति को प्रकट कर रही थी। उसके वचनों में संतुलिन और संवेदनशीलता का अनुभव हो रहा था, जैसे कि उसने अपने अंतर में शांति और सुकून का संगम प्राप्त किया हो। उसके ध्यान और संवेदनशीलता को समूह के द्वारा महसूस किया जा रहा था।

“ऐसे कुछ हुआ है क्या मन को।” आरुणि रोहित क़ी बात पर प्रतिक्रिया देती हुई उसके मन के भावों को कुरेदते हुए पूछती है।

“फिर कभी”.. बोलकर रोहित आगे बढ़ गया।

आरुणि भी “ठीक है” बोलकर रोहित के कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ती है।

“चट्टानें.. पहाड़.. हरियाली सब बहुत खूबसूरत हैं। तुम लोग तो अक्सर यहाँ आती होगी।” रोहित चारों ओर देखता हुआ उस आबोहवा को आत्मसात करता हुआ कहता है। रोहित की वाणी में चारों ओर की प्राकृतिक सौंदर्य को महसूस करते हुए एक विशेष ऊर्जा थी। उसकी आँखों में चमक और हर्ष की भावना थी, जो रोहित के उस समय क़ी स्थिति को प्रकट कर रही थी।

“हमेशा तो नहीं लेकिन जैसे ही मौका मिलता है, हमलोग आ जाती हैं।”तृप्ति रोहित के प्रश्न के उत्तर में कहती है।

बातें करते करते सभी लोग धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतरने लगते हैं, जो मुख्य मंदिर तक जाने के लिए बनाई गई थी। इन सीढ़ियों का डिज़ाइन बहुत ही शानदार और सुरक्षित था, जो लोहे की शक्ति से युक्त था। उन्हें उतरते समय सुरक्षित महसूस हो रहा था। ये सीढ़ियाँ मंदिर के दरवाजे तक पहुंचने का मार्ग दिखा रही थी। उनका डिज़ाइन भव्य और प्रभावशाली था, जो मंदिर की महत्ता को और अधिक बढ़ा रहा था। यह सीढ़ियाँ न केवल पहुँचने का एक सरल साधन होती हैं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव के लिए भी एक महत्वपूर्ण अंग होती हैं। अलग अलग समूह में चलते हुए लोग एक दूसरे के संग जयकारा लगाते हुए मन का मैल धुलते हुए मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।

“यार बंदर बहुत हैं”… रोहित सीढ़ियाँ उतरते हुए सीढ़ियों पर औऱ इधर उधर उछलते कूदते या बैठे हुए बंदरों को देखकर कहता है।

“हाँ.. थोड़ा सम्भल कर चलना होता है। नहीं तो ये सामान लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं और हम बेचारे इंसान हाथ मलते हुए देखते रह जाते हैं।” आरुणि हँस क़र कहती है। उसके बोलने के ढंग पर सभी हँसे बिना नहीं रह सके। उन सब की हँसी माहौल को मनोरंजक बना रही थी। एक दूसरे के साथ बातें करते, एक दूसरे की पसंद नापसंद जानते समझते हुए जब वे मंदिर के प्रांगण में पहुँचते हैं, तो उन्हें मंदिर की भव्यता और शांति का अनुभव होता है।

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गुफा के अंदर शिवलिंग और नाग की प्रतिमा दिखती है, जो कि प्राकृतिक रूप से बनी हुई थी। गुफा के अंदर ही भगवान शिव की प्रतिमा भी चट्टान की बनी हुई थी। यह कुछ इस तरह से बनी थी कि मानो भगवान शंकर ने अपनी जटाएँ फैला रखी हो। गुफा की चट्टानों से निकलता हुआ पानी वातावरण को ठंडा और शुद्ध बनाए हुए था। सरल शब्दों में इसे प्राकृतिक एयर कंडिशनर कह सकते हैं। जो आत्मिक शांति और समाधान का अनुभव दिलाता हुआ प्रतीत होता है।

“सो ब्यूटीफुल”। रोहित की आँखों में प्रकृति की अद्भुत रचना को देखकर  प्रशंसा का भाव था। उसके चेहरे पर एक मन्त्रमुग्ध सी अभिव्यक्ति थी। प्रकृति की इस दिव्य गढ़न को, इस सुंदर दृश्य को देखकर उसका चेहरा आनंद से लबालब हो रहा था।

“क्या”.. राधा रोहित के आनंदित चेहरे की ओर देखती हुई पूछती है।

रोहित राधा की ओर ना देख चट्टान की ओर देखता हुआ कहता है, “एक चट्टान दूसरी चट्टान के ऊपर टंगी हुई है..कैसे संतुलन बनाए हुए है। प्रकृति का अद्भुत नज़ारा.. काश मनुष्य भी अपने जीवन को इस तरह संतुलित क़र सकता। बोलते हुए की मुख्यमुद्रा उदासी से भर गई। उसकी बातों से स्पष्ट हो रहा था कि वह अपने जीवन कि बात क़र रहा है और संतुलन और स्थिरता के जद्दोजहद में फँसा हुआ है।

“क्या बात कही तुमने, ये सब प्रकृति ने खुद से तैयार किया है। इसलिए संतुलन भी है और सुलझा हुआ भी है और हम मनुष्य उससे आगे निकलने की होड़ में उससे उलझते हुए स्थायित्व और संतुलन दोनों खो बैठे।” आरुणि भी रोहित की बातों को सहमति देती हुई कहती है।

“वैसे तुम्हारी बातें भी कम उलझन पैदा नहीं करती। तुम्हारी बातों से लगता है जैसे जीवन के उठापटक को तुमने खूब जिया है।” आरुणि रोहित द्वारा कोई उत्तर ना पाकर पूछती है।

“छोडो भी, जीवन है तो कुछ ना कुछ लगा ही रहेगा।” रोहित आरुणि की उत्सुकता को टालते हुए कहता है।

“बिल्कुल जीवन में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता है और हमें हमें हमारे जीवन के साथ सहानुभूति भी रखना चाहिए। लेकिन देखो, अब ये है शिव जी का दूसरा घर तो यहाँ क्या नहीं हो सकता है। कुछ भी असम्भव नहीं है। हो सकता तुम अपनी उलझन हमें कहो और तुम्हें तुम्हारी सुलझन मिल जाए।” आरुणि स्वर को रहस्यमयी बनाते हुए अपने बालों को दोनों हाथों से पीछे करती हुई कहती है।

“दूसरा घर.. कैसे.. यहाँ की कहानी क्या है?” रोहित की जिज्ञासा जाग उठी थी इसलिए वह आरुणि की कही अन्य बातों पर ध्यान ना देकर कहानी जानने हेतु जिज्ञासु हो उठा।

“अब चलते हैं.. रास्ते में बताती हूँ।” खड़ी होती हुई आरुणि कहती है।

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“गर्ल्स भूख लग रही है। चौपाटी पर पोहा और जलेबी का लुत्फ उठाया जाए। तब रोहित साहब इस विषय पर आप क्या फरमाते हैं।” मुख्य सड़क पर पहुँचने के बाद कमर पर दोनों हाथ रखे हुए आरुणि पूछती है।

“भूख तो वाकई लगी है, जो तुम सबों की इच्छा।” रोहित इधर उधर देखते हुए कहता है और थोड़ी दूर पर दिख रहे ढाबा की ओर इशारा करते हुए कहता है।

सबके पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे थे। चूहों के कबड्डी खेलने के दौरान, सभी के पेट में तेज भूख की अनुभूति हो रही थी। उन्हें महसूस हो रहा था कि उनके शरीर को ताज़ा ऊर्जा की जरूरत थी। इसीलिए सर्वसम्मति से पोहा और जलेबी पर हाथ साफ़ करने का फ़ैसला लिया गया।

“चाचा पाँच प्लेट पोहा लगा दीजिए और दो प्लेट जलेबी।” बेंच पर सबके द्वारा स्थान लेते ही आरुणि चूल्हे के पीछे खड़े बुजुर्ग से कहती है।

“आज मेरी तरफ से”.. आरुणि के आर्डर देते ही रोहित प्रस्ताव देता है

“इतने सस्ते में नहीं जनाब। हम तो आपसे बड़ी पार्टी की आस लगाए बैठे हैं।” आरुणि रोहित के सामने बैठती हुई कहती है।

“ठीक है.. ये भी और दूसरी पार्टी भी”..

“आज सब मिला कर कर लेते हैं।” योगिता रोहित की बात काटती हुई कहती है।

“नो.. आज का बिल मैं दूँगा”.. रोहित योगिता के कथन पर असहमति जताते हुए कहता है।

“इसमें बहस की क्या बात है, आधा आधा कर लेंगे ना।” तृप्ति रोहित और योगिता दोनों की ओर देखती हुई कहती है।

“आधा आधा”.. सब तृप्ति का चेहरा देखने लगते हैं।

“आधा हम लड़कियाँ दे देंगी और यहाँ अलौकिक पुरुषों के एवज में आधा रोहित महोदय दे देंगे.. बोलो मंजूर।” तृप्ति कहती है।

“अब ये अलौकिक पुरुष क्या है भई।” रोहित झुंझला क़र कहता है।

हाहाहाहा अलौकिक पुरुष मतलब वो पुरुष जो प्रेत योनी में जाकर यहाँ आसपास हमारे इस पोहा जलेबी को ललचाई नजर से देख़ रहे होंगे।” तृप्ति जोर से हँसती हुई टेबल पर आ गए पोहा के एक प्लेट को रोहित की ओर खिसकाती हुई कहती है।

सभी के लिए पोहा तैयार था और उसे देखकर सबका मुँह पानी से भर गया। भूख उनके पेट से होकर मानो आँखों समा गई थी। आँखों में पोहा के लिए लालच साफ साफ दिख रहा था और सब उस पर इस तरह टूट पड़े थे, जैसे जन्म जन्म के भूखे हों।”

सभी एक दूसरे का साथ एंजॉय कर रहे थे और आज छुट्टी होने के कारण वक़्त ही वक़्त था तो पेट पूजा के बाद सबको एक साथ ही चाय की तलब जगती है।

सभी एक दूसरे का साथ एंजॉय कर रहे थे और आज की छुट्टी के आनंद में वे सब खुश थे। वक़्त बड़ा ही सुहावना और मनमोहक था। पेट पूजा के बाद, चाय की खुशबू ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया। चाय की तलब सबके मन में जाग उठी, जैसे कि वे इस मिठास भरी चाय के साथ अपने दोस्तों के साथ बातचीत का आनंद लेने के लिए आतुर हो उठे हो।इस छुट्टी के दिन की सुखद राहत का आनंद उनके चेहरों पर दिखाई दे रहा था। चाय की प्यालियों के चारों ओर के माहौल में एक आनंदमय और खुशी भरा महौल बना हुआ था। वे एक दूसरे के साथ मुस्कान और हँसी में डूबे हुए थे, चाय के साथ बिताया गया यह विशेष पल उनकी बातचीत को, संबंधों को और भी गहराई से मजबूत करने में सहायक हो रहा था।

“अब तो बताओ मंदिर की कहानी या इसके लिए मुहुर्त निकलवाना है।” रोहित अचानक से कहता है।

“चाय के साथ समोसे भी खिलाओ, फिर चटखारे लेकर कहानी सुनाऊँगी। तब ना मुझे स्टोरी टेलर की फील आएगी।” आरुणि रोहित से मुस्कुरा क़र कहती है।

“समोसी लवर हो तुम”.. रोहित आँखों को बड़ी करके कहता है।

“समोसी…. क्या”… राधा माथे पर बल डालती हुई कहती है।

“क्या घुमा कर बात करना सिर्फ इन्हें आता है.. हमें भी आता है”… रोहित मस्ती के मूड में कहता है।

“ऑर्डर तो करो जनाब या सिर्फ थमी हुई चाय ही पिलाओगे।” आरुणि भी उसी तरह कहती है।

“थमी हुई चाय.. अब ये क्या है”… अब रोहित के माथे पर बल पड़ गए थे।

“हाहाहा..बालक चाय तरल पदार्थ है। अगर गिर गई तो बह जाएगी, लेकिन कप और ग्लास में आकर थम जाती है ना.. तो हुई ना “थमी हुई चाय” … आरुणि रोहित की आँखों में देखती हुई हँस क़र कहती है।

आरुणि की बात सुनकर रोहित दोनों हाथ आसमान की ओर उठाते हुए कहता है, “हे भगवान.. ये कैसी दोस्त दिया है आपने, कोई बात सीधे तरीके से बोलती ही नहीं है।”

अगर तुम दोनों का समझना और समझाना, भगवान जी के सामने अर्जी लगाना हो गया हो तो अब चाय के साथ समोसे मंगवाए जाएं।” योगिता आँखें घुमाती हुई कहती है।

“आँख टेढ़ा हो जाएगा।” योगिता को आँखें घुमाते देख़ रोहित उसे चिढ़ाते हुए उठ कर चाय के साथ समोसे बोल आता है।

पाँच मिनट में ही चाय और समोसे के साथ लड़का हाजिर हो जाता है। रोहित सबको चाय और समोसा सर्व कर खुद भी लेता है।

“अब तो बताओ समोसी क्या था”… तृप्ति समोसा उठाकर उसे देखती हुई पूछती है।

रोहित हँसता हुआ कहता है, “लड़कों के लिए समोसा तो लड़कियों के लिए समोसी”…

“वैरी फन्नी” … तृप्ति मुँह बनाकर कहती है।

“क्यों बातें बनाने का ठेका तुमलोग को ही मिला है क्या?” रोहित भी समोसा दांतों तले दबाता हुआ कहता है।

आरुणि चाय के एक दो सिप लेकर थोड़ी गंभीर होती हुई कहती है, “तो क्या जानना था आपको रोहित साहब”…

“अगर आपकी नजरे इनायत हो तो मंदिर पर कुछ प्रकाश डालें।” रोहित अपनी ठुड्डी पर हथेली रखता हुआ थोड़ा आगे झुककर कहता है।

“जो खुद प्रकाशवान है.. उस पर प्रकाश डालने वाली मैं कौन होती हूँ”.. आरुणि भक्ति भाव से कहती है।

“देवी ये जगह शंकर जी का दूसरा घर कैसे कहलाता है..आप बस यही बता दें, बड़ी कृपा होगी आपकी।” रोहित हाथ जोड़ क़र कहता है।

“जरूर.. जरूर”, आरुणि चाय के घूँट के साथ कहती हैं, “तो सुनो.. पौराणिक कथाओं के अनुसार भस्मासुर नाम का दैत्य भगवान शिव का भक्त था। उसने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर वरदान माँगा कि जिसके सिर पर भी वह हाथ रखेगा, वो भस्म हो जाएगा। हमारे भगवान तो भोले ठहरे तुरंत तथास्तु कर दिया। भस्मासुर वरदान पाकर अत्यंत खुश हो गया। वरदान की आजमाइश के लिए उसने भगवान शिव पर ही आक्रमण कर दिया और शिव जी के पीछे पड़ गया। तब उससे बचने के लिए शिव जी पहले इटारसी के पास तिलक सिंदूर में शरण लिए। उसके बाद भगवानजी यहीं जटाशंकर में शरण लेते हैं। यहाँ अपनी विशालकाय जटाएँ भगवान शिव जी ने फैलाई थी, यहाँ की चट्टानों को देखने से भी ऐसा ही लगता है। ये तो रही एक बात और दूसरी मान्यता ये है कि भगवान शिव देवासुर संग्राम में जरा दैत्य को मारने के बाद अपने संताप को दूर करने के लिए यही आकर ध्यानमग्न हुए थे और यह जटाशंकर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

“अच्छा.. दूसरा घर कैसे हुआ.. ये तो स्पष्ट नहीं हुआ।” रोहित सिर खुजलाते हुए पूछता है।

अभी स्पष्ट किए देते हैं। एक बात बताओ.. जब हम किसी मुसीबत में होते हैं तो सबसे पहले कहाँ पहुँचना चाहते हैं सबसे ज्यादा आराम हमें कहाँ मिलता है।” आरुणि आराम की मुद्रा में बैठती हुई कहती है।

“बेशक, अपने घर जाकर।” रोहित इत्मीनान से जवाब देता है।

“हाँ बिल्कुल”, आरुणि कहती है, “अब समझ आया… दूसरा घर कैसे हुआ।”

रोहित हँसते हुए कहता है, “समझ तो आ गया था। बस तुम्हारे दिमाग की जाँच कर रहा था।”

स्कूल इंस्पेक्टर लगे हो ना, दिमाग की जाँच क़र रहे थे। भगवान शिव का पहला घर तो बताना जरा… देखें जनाब को थोड़ा भी ज्ञान है कि नहीं।” आरुणि रोहित की खिंचाई करती हुई कहती है।

रोहित दोनों हाथ बाँध क़र पीछे की ओर टेक लगाता हुआ कहता है, “ये किसे पता नहीं होगा.. कैलाश पर्वत… अब टेस्ट नहीं दूँगा मास्टरनी जी। चाहूँगा एक एक और चाय हो जाए। “

सब साथ ही बोलती हैं… “बिल्कुल”….

रोहित सबके लिए चाय के लिए कहकर इधर उधर घूमने लगता है।

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