ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है-करुणा मलिक । Moral stories in hindi

जब भी दिवाली आती मीनू के ज़ेहन में अनगिनत सवाल लाती। एक अजीब सी खामोशी और अशांति से मीनू घिर जाती । सभी कहते हैं कि भगवान जो भी करता है, अच्छा ही करता है पर मेरी माँ के जाने में क्या अच्छाई छिपी है ? यह बात मीनू की समझ से बाहर थी ।

गिनने के लिए तो चौंतीस साल बीत गए पर मीनू के लिए तो जैसे कल की ही घटना थी । उसकी माँ जिन्हें हर त्योहार मनाने का बहुत शौक़ था । महीनों पहले दिवाली की तैयारियों में जुट जाती । बच्चों के लिए नए कपड़े, मिठाइयों का हिसाब , नया बरतन, बहन- बेटियों के भेजने की चीजें, चाँदी का सिक्का इत्यादि । हालाँकि बाबा की कमाई इतनी नहीं थी कि वे खुले हाथ से खर्च कर पाती पर फिर भी कहीं कुछ भी कमी ना रहने देती ।

माँ , वो ताऊजी के बच्चों ने नए कपड़े पहने हैं । मुझे भी नया फ्रॉक ला दो ना ।

सिल दूँगी । अभी तो दिवाली के कई दिन पड़े हैं ।

मैं घर का सिला नहीं पहनूँगी । मुझे बाज़ार से ख़रीद कर दो।

जितने का बाज़ार से आएगा उतने में तो दो-तीन फ्रॉक बन जाएँगे ।

और सचमुच माँ कटपीस के लाए कपड़े का ऐसा सुंदर लेस लगाकर फ्रॉक बनाती कि मीनू भी इस भुलावे में रहती कि उसके रोने  के कारण माँ बाज़ार से फ्रॉक ख़रीद कर लाई है।भेद तब खुलता जब कोई पड़ोसन दुकान का पता जानने का प्रयास करती ।

बाबा की शर्ट के फटे कॉलर इतनी सफ़ाई से बदलती कि साल डेढ़ साल आराम से निकल जाता । बाबा की पुरानी पेंट में से छोटे भाई की पेंट निकाल देती । बाबा की सीमित आय को अपनी सुघडता से असीमित कर देती ।

नाते- रिश्तेदारी में भी हमेशा लेना- देना रखती । दूर-दूर की वे रिश्तेदारियाँ जिनके संबोधन को ढूँढने के लिए उँगलियों पर हिसाब लगाया जाता , माँ ने वे सब जोड़ कर रखी थी ।

वो दिवाली ही तो थी जब माँ नई साड़ी पहन कर कुलदेवता पर ताईजी के साथ माथा टेकने मंदिर गई थी । जाने से पहले मीनू से बोल कर गई-

मीनू , मैं देवता पर जोत लगाकर आती हूँ । बस दस मिनट इंतज़ार कर , आकर खाना लगाती हूँ ।

ठीक है माँ तब तक मैं गणित के सवाल हल कर लेती हूँ ।

पर मीनू उस दिन से लेकर  आज तक माँ के हाथ से परोसे खाने को तरस गई।

घर आकर ताईजी ने बताया-

मैं और कामना जोत लगाकर घर की तरफ़ मुड़ गए थे । तभी वो बोलते- बोलते तुतलाने सी लगी । मैंने जैसे ही उसकी तरफ़ देखा तो उसका मुँह भी टेढ़ा लगा । मैंने वहीं सड़क पर पेड़ के सहारे बिठा दिया । धीरे-धीरे आँखें मुँद गई । शोर मचाने पर आसपास के लोग आ गए और माँ को खाट पर लिटाया गया । बाबा बदहवास से वहाँ पहुँचे तो पड़ोस के डॉक्टर ने कहा कि समय बरबाद मत करो , ब्रेन हैमरेज हो गया तुरंत दिल्ली ले जाओ । वहीं से टैक्सी में माँ को ताऊजी और बाबा अस्पताल ले गए ।

मीनू  ! भाई का ख़्याल रखना । खाना मैं भेज दूँगी और दरवाज़े की कुंडी लगा ले । जब कोई खटखटाए तो नाम पूछकर खोलना ।

ठीक है, ताईजी । माँ कब तक आ जाएगी ?

तेरी माँ कल आएगी । भगवान से माँ को ठीक करने की पूजा कर। 

इतना कहकर ताईजी चली गई और दोनों भाई- बहन देवी की फ़ोटो के पास बैठकर प्रार्थना करते रहे । ताईजी खाना खिलाकर तथा बहुत सी हिदायतें देकर चली गई । 

अगली सुबह तड़के ही गाड़ी के तेज हार्न तथा दरवाज़ा पीटने की आवाज़ से दोनों भाई-बहन उठे तो बाबा की काँपती आवाज़ आई-

मीनू …… माधव….. दरवाज़ा खोलो । 

पर दरवाज़ा खुलते ही सफ़ेद कपड़े में लिपटे और स्ट्रेचर पर रखे मृत शरीर को देखकर मीनू चीख उठी और माधव बहन से लिपट गया ।

बाबा …….. हमारी माँ…..

ताईजी ने दोनों भाई- बहन को छाती से लगा लिया और बोली- आज से मैं तुम्हारी माँ हूँ ।

तेरहवीं तक मीनू और माधव समझ गए कि कोई किसी की माँ नहीं बन सकता । पर मीनू को आज तक ईश्वर के बारे में कहा जाने वाला वाक्य समझ नहीं आया कि दो बच्चों की माँ और बाबा जैसे सरल सीधे- सादे व्यक्ति की पत्नी छीनकर भगवान ने क्या अच्छा किया ?

आज मीनू खुद पचपन- साठ की दहलीज़ पर पैर रख चुकी है । जब भी कहीं ईश्वर की मर्ज़ी और फ़ैसले की चर्चा चलती है, उसके  दिलोदिमाग़ में यही प्रश्न उठता है कि ईश्वर ने उनकी माँ को छीनकर, क्या अच्छा किया ? 

वास्तव में, कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका जवाब ईश्वर के अलावा कोई नहीं दे सकता ।

माँ , वो ताऊजी के बच्चों ने नए कपड़े पहने हैं । मुझे भी नया फ्रॉक ला दो ना ।

सिल दूँगी । अभी तो दिवाली के कई दिन पड़े हैं ।

मैं घर का सिला नहीं पहनूँगी । मुझे बाज़ार से ख़रीद कर दो।

जितने का बाज़ार से आएगा उतने में तो दो-तीन फ्रॉक बन जाएँगे ।

और सचमुच माँ कटपीस के लाए कपड़े का ऐसा सुंदर लेस लगाकर फ्रॉक बनाती कि मीनू भी इस भुलावे में रहती कि उसके रोने  के कारण माँ बाज़ार से फ्रॉक ख़रीद कर लाई है।भेद तब खुलता जब कोई पड़ोसन दुकान का पता जानने का प्रयास करती ।

बाबा की शर्ट के फटे कॉलर इतनी सफ़ाई से बदलती कि साल डेढ़ साल आराम से निकल जाता । बाबा की पुरानी पेंट में से छोटे भाई की पेंट निकाल देती । बाबा की सीमित आय को अपनी सुघडता से असीमित कर देती ।

नाते- रिश्तेदारी में भी हमेशा लेना- देना रखती । दूर-दूर की वे रिश्तेदारियाँ जिनके संबोधन को ढूँढने के लिए उँगलियों पर हिसाब लगाया जाता , माँ ने वे सब जोड़ कर रखी थी ।

वो दिवाली ही तो थी जब माँ नई साड़ी पहन कर कुलदेवता पर ताईजी के साथ माथा टेकने मंदिर गई थी । जाने से पहले मीनू से बोल कर गई-

मीनू , मैं देवता पर जोत लगाकर आती हूँ । बस दस मिनट इंतज़ार कर , आकर खाना लगाती हूँ ।

ठीक है माँ तब तक मैं गणित के सवाल हल कर लेती हूँ ।

पर मीनू उस दिन से लेकर  आज तक माँ के हाथ से परोसे खाने को तरस गई।

घर आकर ताईजी ने बताया-

मैं और कामना जोत लगाकर घर की तरफ़ मुड़ गए थे । तभी वो बोलते- बोलते तुतलाने सी लगी । मैंने जैसे ही उसकी तरफ़ देखा तो उसका मुँह भी टेढ़ा लगा । मैंने वहीं सड़क पर पेड़ के सहारे बिठा दिया । धीरे-धीरे आँखें मुँद गई । शोर मचाने पर आसपास के लोग आ गए और माँ को खाट पर लिटाया गया । बाबा बदहवास से वहाँ पहुँचे तो पड़ोस के डॉक्टर ने कहा कि समय बरबाद मत करो , ब्रेन हैमरेज हो गया तुरंत दिल्ली ले जाओ । वहीं से टैक्सी में माँ को ताऊजी और बाबा अस्पताल ले गए ।

मीनू  ! भाई का ख़्याल रखना । खाना मैं भेज दूँगी और दरवाज़े की कुंडी लगा ले । जब कोई खटखटाए तो नाम पूछकर खोलना ।

ठीक है, ताईजी । माँ कब तक आ जाएगी ?

तेरी माँ कल आएगी । भगवान से माँ को ठीक करने की पूजा कर। 

इतना कहकर ताईजी चली गई और दोनों भाई- बहन देवी की फ़ोटो के पास बैठकर प्रार्थना करते रहे । ताईजी खाना खिलाकर तथा बहुत सी हिदायतें देकर चली गई । 

अगली सुबह तड़के ही गाड़ी के तेज हार्न तथा दरवाज़ा पीटने की आवाज़ से दोनों भाई-बहन उठे तो बाबा की काँपती आवाज़ आई-

मीनू …… माधव….. दरवाज़ा खोलो । 

पर दरवाज़ा खुलते ही सफ़ेद कपड़े में लिपटे और स्ट्रेचर पर रखे मृत शरीर को देखकर मीनू चीख उठी और माधव बहन से लिपट गया ।

बाबा …….. हमारी माँ…..

ताईजी ने दोनों भाई- बहन को छाती से लगा लिया और बोली- आज से मैं तुम्हारी माँ हूँ ।

तेरहवीं तक मीनू और माधव समझ गए कि कोई किसी की माँ नहीं बन सकता । पर मीनू को आज तक ईश्वर के बारे में कहा जाने वाला वाक्य समझ नहीं आया कि दो बच्चों की माँ और बाबा जैसे सरल सीधे- सादे व्यक्ति की पत्नी छीनकर भगवान ने क्या अच्छा किया ?

आज मीनू खुद पचपन- साठ की दहलीज़ पर पैर रख चुकी है । जब भी कहीं ईश्वर की मर्ज़ी और फ़ैसले की चर्चा चलती है, उसके  दिलोदिमाग़ में यही प्रश्न उठता है कि ईश्वर ने उनकी माँ को छीनकर, क्या अच्छा किया ? 

वास्तव में, कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनका जवाब ईश्वर के अलावा कोई नहीं दे सकता

करुणा मलिक

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