जब मैंने कोई गलती नहीं की है तो बर्दाश्त क्यों करूँ – के कामेश्वरी: Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : श्रीजा जब दसवीं में स्टेट फस्ट आई तो घर में माता-पिता उतना ख़ुश नहीं हुए जितना कि स्कूल और बाहर के लोग खुश हुए थे । 

उनकी भी गलती नहीं है एक तो ग़रीबी दूसरी उनकी तीन बेटियाँ थीं । उनकी शादियाँ कराना है तो पहले श्रीजा को पार लगाना पड़ेगा ।

पिताजी ने रिश्ते देखना शुरू किया था । श्रीजा ने पिता से बड़ी मुश्किल से परमिशन लिया था कि रिश्ता तय होने के बाद पढ़ाई छोड़ देगी । श्रीजा ने बारहवीं कक्षा में भी स्टेट फ़र्स्ट आई। टी वी चैनल में भी उसके साक्षात्कार हुए । उसी समय उसके लिए कमल का रिश्ता आया । पिताजी ने श्रीजा को समझाया और रिश्ते के लिए तैयार कर लिया । कमल वह तो श्रीजा पर लट्टू हो गया था क्योंकि वह बहुत ही सुंदर है । उसने अपने माता-पिता को बता दिया था कि दहेज कितना भी कम दे पर शादी वह श्रीजा से ही करेगा । उसकी इस जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा । श्रीजा के पिता ने इसका फ़ायदा उठाकर थोड़ा सा दहेज देकर अपनी बेटी को उनके घर भेज दिया । 

जब से श्रीजा कमल के घर पहुँची कमल तो लट्टू की तरह उसके आगे पीछे घूमते देख बहन , भाई और माँ के कलेजे पर साँप लोटने लगा था । 

बहन छोटी थी परंतु श्रीजा को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी । 

श्रीजा ने पूरे घर का काम सँभाला फिर भी सास उससे बहुत सारे काम कराने में लग गई थी। एक दिन श्रीजा ने कमल के कमरे में आते ही कहा कि मेरे लिए एक फेवर करेंगे क्या?

कमल- कहो ना तुम्हारे लिए तो कुछ भी करूँगा । 

आपको मालूम है ना शादी के पहले मैं बारहवीं कक्षा में स्टेट फस्ट आई थी । मैंने एम सेट के लिए फ़ॉर्म भर दिया था । आज भाई ने मुझे हॉल टिकट लाकर दिया है आप अपनी माँ को समझाइए और मुझे परीक्षा देने के लिए इजाज़त ले लीजिए ना । 

कमल ने कहा इतनी सी बात है मैं माँ को समझा दूँगा। 

माँ को उसने समझाया कि श्रीजा को परीक्षा देने के लिए तैयारी करने दो । 

माँ को श्रीजा का आगे पढ़ना पसंद नहीं था पर बेटे को वह नाराज़ नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने हामी भर दी थी ।

श्रीजा ने ख़ुशी से अपनी पढ़ाई की तैयारी शुरू कर दिया ।

जिस दिन परीक्षा थी उस दिन वह जल्दी से उठकर तैयार हो गई कमल उसे छोड़ने जाने वाला था कि बाथरूम से सासु माँ के चिल्लाने की आवाज़ आने लगी । सब लोग भागकर वहाँ पहुँचे थे देखा तो वे ज़मीन पर पड़ी हुई थी । उन्हें उठाकर कमरे में ले जाकर सुलाया और डॉक्टर को बुलाया उनके आने के पहले कमल ने कहा श्रीजा मेरी बात मान माँ को इस समय हमारी ज़रूरत है अगले साल परीक्षा लिख लेना श्रीजा को मन मारकर घर में रहना पड़ा । 

दूसरे दिन सासु माँ को चाय देने जा रही थी कि अंदर कमरे से ननंद और देवर की बातें सुनाई दी थी कि वाह माँ आप तो बहुत बड़ी नौटंकी निकली हैं । भाभी को आगे पढ़ने से रोकने के लिए अच्छा बहाना बनाया है । श्रीजा को यह सुनकर बहुत बुरा लगा । चाय देकर वह कमरे में आई और कमल से कहा कि आपकी माँ ने गिरने का नाटक किया है यह सुनते ही कमल ने अपना आपा खो बैठा और श्रीजा को एक तमाचा मारते हुए कहा कि मेरी माँ के बारे में मेरे कान भर रही है आइंदा मैं कुछ भी उनके बारे में नहीं सुनना चाहता हूँ। समझ गई है ना । 

उस दिन से कमल में बदलाव आ गया था। अब वह बात बात पर उसके ऊपर हाथ उठाने लगा , दो साल इसी तरह सास और पति की ज़्यादतियों को बर्दाश्त करते हुए बीत गए । 

उस दिन सुबह श्रीजा घर के सबके कपड़े कुँए 

पर धोने के लिए बैठी थी । जब कपड़ों में साबुन लगा रही थी तो पति का पेंट हाथ में आया एक बार उसके मन में बात आई थी कि पेंट के दोनों पैर पकड़कर बीच से चीर दूँ तो कितना अच्छा होता इस बात को सोचते ही उसकी होंठों पर मुस्कान आई तभी उसके अठारह साल के देवर राजीव ने उसके गाल को चूम लिया था ।  श्रीजा ने अपने दाहिने हाथ से उसके गाल पर थप्पड़ मार कर कहा अपनी हद पार मत करना दोनों काम पलक झपकते ही हो गए थे । राजीव चिल्लाकर कहने लगा श्रीजा इस थप्पड़ का जवाब तुम्हें ज़रूर दूँगा । उसी समय सास अंदर से आकर कहती है कि क्या गलत हो गया है जो इस तरह उसे तुमने थप्पड़ मार दिया है । 

राजीव को लेकर अंदर चली गई । उस दिन से श्रीजा ने एडजेस्टमेंट को तिलांजलि देकर जवाब देना शुरू कर दिया था । एक सप्ताह इसी तरह बीत गया था । 

 उस दिन वह रसोई में खाना बना रही थी कि कमल ने जोर से पुकारा श्रीजा कहाँ मर गई है इधर आ !!!

श्रीजा धीरे से हाथ पोंछते हुए आई तो कहने लगा था क्या बात है आजकल तुम अपने देवर को फँसाने में लगी हुई हो !!!

श्रीजा आश्चर्य में पड़ गई और उसने कमल को देखा उसकी आँखें ग़ुस्से से लाल हो गई थी । उसे लगा कि कमल के मन में शक का बीज बो दिया गया है मैं कुछ बोलूँ भी तो कोई सुनने वाला नहीं है । 

वह कहने लगा कि इतनी बेशर्म हो गई हो तुम !!

श्रीजा को लगा कि अब मेरा यहाँ रहना व्यर्थ है । मैं यहाँ रहूँगी भी तो ये लोग मेरा जीना हराम कर देंगे । वैसे भी जब मैंने कोई गलती की नहीं है तो बर्दाश्त क्यों करूँ ।

दूसरे दिन सब देख रहे थे वह अटैची लेकर कमरे से बाहर आई और घर के बाहर कदम रखा वह मायके भी नहीं जाना चाहती थी अकेले ही अपनी ज़िंदगी जीना चाहती थी । कहते हैं कि जब व्यक्ति दृढ़ निश्चय कर लेता है रास्ता अपने आप मिल जाता है इसलिए बिना किसी की परवाह किए वह निश्चिंत होकर घर से बाहर निकल गई । 

के कामेश्वरी

 

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