हमनशीं (भाग 1) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

इतनी जरूरी मीटिंग और ऊपर से लेट हो गया। आज तो मेरी खैर नहीं। पक्का आज तो मुझपर शामत आने वाली है और बॉस से गालियां खाने को मिलेंगी।” – अपनी अम्मी को बोलता हुआ रफ़ीक़ घर से बाहर की तरफ निकला। कार के पास पहुंच चाभी के लिए अपनी जेब में हाथ डाला।

“उफ्फ, जिस दिन लेट हो रहा हो। मुसीबतें भी उसी दिन क़हर बनकर आएंगी। अब ये कार की चाभी किधर गई!”- अपनी जेबें टटोलता हुआ रफ़ीक़ खुद से ही बड़बड़ाया।

“इसीलिए कहती हूँ भाईजान, कि इस छोटी बहन पर तरस खाओ और जल्दी से निकाह कर एक सुंदर-सी भाभीजान ले आओ। पर मालूम नहीं, मेरे नसीब में भाभीजान का साथ लिखा भी है या नहीं। ये रही आपकी चाभियाँ।”– मुस्कुराते हुए कार की चाभी अपने बड़े भाई की तरफ बढ़ाती हुई ज़ीनत बोली।

फुर्ती से चाभी को लपक कर रफीक अपनी छोटी बहन की शरारत पर मुस्कुराता है और कार स्टार्ट कर ऑफिस की तरफ निकल जाता है। हवा में हाथ लहराते हुए ज़ीनत उसे अलविदा करती है।

तेज़ गति से कार भगाते हुए रफीक ऑफिस की तरफ बढ़ता रहता है। तभी, एक मोड़ पर उसकी गाड़ी एक लड़की से टकराने से बचती है।

“ओह, रब खैर करे !  आज ही ये सब होना है।”– मन ही मन रफीक बड़बड़ाया और कार से नीचे उतर बीच सड़क पर उस लड़की के बिखरे बैग उठाकर उसकी तरफ बढ़ाते हुए माफी मांगा।

“आपको कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आई। मुझे माफ करें। दरअसल आज मैं थोड़ी जल्दी में हूँ और इसी हड़बड़ी में….।”– उस लड़की की तरफ उसका हैंडबैग बढ़ाते हुए रफीक बोला।

“आप न घबराएँ, मैं ठीक हूँ। मैं भी एक कंपनी में इंटरव्यू देने के लिए जा रही हूँ। पर, कोई टैक्सी नही मिलने की वजह से मुझे देर हो रही थी और इसी हड़बड़ी में आपकी कार के नीचे आते-आते बची।”– उस लड़की ने बताया।

“अच्छा, अब मुझे चलना चाहिए। आज मुझे बहुत लेट हो गया है। बेस्ट ऑफ़ लक ! वैसे कौन-सी कंपनी में है,  आपकी इंटरव्यू?”– हड़बड़ी में, पर कौतूहलवश रफीक ने पूछ लिया।

“एसएफए ग्रुप ऑफ कंपनी में।”– उस लड़की ने रफीक को बताया।

“तब तो बिल्कुल सही आदमी से टकराई हैं, आप। “– मुस्कुराता हुआ रफीक बोला।

“मैं भी उसी कंपनी में काम करता हूँ। आप चाहें तो मेरे साथ चल सकती हैं।”– जल्दी में अपनी कार में बैठ स्टीयरिंग पकड़े रफीक बोला।

किसी अंजान के साथ कार में अकेले जाने से असहज महसूस करती हुई, पर इंटरव्यू में देर हो जाने के डर से वह लड़की रफीक के आग्रह पर उसके बगलवाली सीट पर आकर बैठ गयी।

“हाय, मेरा नाम रफीक है। उम्मीद करता हूँ कि आपका इंटरव्यू अच्छा जाएगा और अल्लाह मियाँ ने चाहा तो नौकरी के लिए भी चुन ली जाएंगी।”– ऑफिस की तरफ अपनी कार भगाता हुआ रफीक बोला।

“मेरा नाम सुहाना है। इसी साल मैने इकोनॉमिक्स से अपना मास्टर्स पूरा किया है। अखबार में इस कंपनी की नौकरी का इश्तहार देखी तो एप्लाई कर दिया और इंटरव्यू के लिए बुलावा भी आ गया। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो मुझे लिफ्ट दे दिया, नहीं तो इंटरव्यू मिस ही कर देती। “– सुहाना ने रफीक को बताया।

ऑफिस पहुंचकर रफ़ीक़ और सुहाना दोनो लिफ्ट से तीसरे तल्ले पर आते हैं। सुहाना को इंटरव्यू बोर्ड के कक्ष के बाहर तक पहुंचाकर रफीक तेज़ कदमों से मीटिंग हॉल की तरफ बढ़ जाता है। 

रफ़ीक़ की मीटिंग लंबी चली। खत्म होने तक लंच टाइम हो चुका था, सो वह नीचे कैंटीन की तरफ बढ़ चला। तभी, दूसरी ओर से सुहाना आती दिखी।

“बहुत देर से आपको ढूंढ रही हूँ। मेरा मोबाइल आपके कार में ही छूट गया है।” – पास आकर सुहाना बोली।

“आपका इंटरव्यू कैसा रहा?” – रफीक ने पूछा।

“अच्छा नहीं रहा। इंटरव्यू बोर्ड के एक सदस्य ने मुझसे कहा कि अभी अच्छे से तैयारी करो और अगली बार फिर से कोशिश करना। पर कोई नहीं……..अभी तो शुरुआत है। आगे और कोशिश करूंगी तो कहीं न कहीं अच्छी जॉब जरूर मिल जाएगी।” – सुहाना ने रफीक से कहा।

“कोशिश करती रहिए, जॉब मिल जाएगी। मैं लंच लेने जा रहा हूँ। इतना वक़्त हो गया है, चलिए आप भी कुछ खा लीजिए।”- यह कहते हुए रफीक सुहाना के साथ कैंटीन की तरफ बढ़ चला।

“इतनी गर्मी होने की वजह से मेरा सिर भारी लग रहा है। मुझे अब घर चलना चाहिए।”– सुहाना ने बताया।

“इतनी गर्मी में आप अभी तक खाली पेट हैं तो सिर तो दुखेगा ही। फ़िक्र न करें, लंच का कोई पैसा नहीं लूंगा। इसी बहाने सुबह के ऐक्सीडेंट का हर्जाना तो चुका देने दीजिये मुझे।” – मुस्कुराते हुए रफीक बोला। रफीक की बातों पर हँसकर सुहाना उसके साथ कैंटीन की तरफ बढ़ चली।

कैंटीन पहुंचकर रफीक ने खाने का ऑर्डर किया और दोनो साथ में लंच लेने लगें। बातचीत में सुहाना ने बताया कि वह छोटे बच्चों को ट्यूशन भी देती है। इसपर, रफीक तपाक से बोल पड़ा–”अगर आपको मुनासिब लगे तो क्या मेरे बड़े भाईजान के पाँच साल के बेटे को ट्यूशन दे पाएंगी? उसे पढ़ाने के लिए हमसब कब से एक अच्छे ट्यूटर की तलाश में है। खुदा खैर करे, न जाने अच्छे ट्यूटर कहाँ गुम हो गए आजकल, अभी तक एक भी न मिला।” – रफीक ने सुहाना से आग्रह करते हुए कहा।

रफ़ीक़ की बातों को बीच में ही रोकते हुए सुहाना बोली –”पर, वह छोटा बच्चा इतनी दूर से मेरे पास पढ़ने के लिए कैसे आएगा? और अगर, इसी दौरान मुझे कहीं जॉब मिल गई तो उसकी तालीम बीच में ही छुट जाएगी। और यह मुझे कतई अच्छा न लगेगा।”

“आप उसकी फ़िक्र न करें। ड्राइवर उसे लेकर आ जाया करेगा। इतने दिनों से हमारे चिंटू मियां ने घर पर उधम मचा रखा है, भाभीजान की बातों का तो उसपर कोई असर ही नहीं होता। अगर आप रजामंदी दें तो मैं कल से ही उसे आपके पास भेज दूं।” – रफ़ीक़ ने आग्रह करते हुए कहा।

“आप अपना नंबर दे दें, मैं आपको फोन करके इत्तल्ला कर दूंगी।”– रफीक की बातें सुन सुहाना बोली।

लंच लेने के बाद दोनो कैंटीन से निकलकर रफीक की कार की तरफ बढ़ने लगें। धूप काफी तेज पड़ रही थी, जिससे सुहाना का सिरदर्द और तेज़ हो गया और उसे चक्कर भी आने लगें। उसे सहारा देकर रफीक ने एक किनारे बिठाया और ठंडे पानी से उसके चेहरे पर कुछ छींटे मारी, जिससे सुहाना को थोड़ी राहत महसूस हुई।

“आप ठीक नहीं लग रहीं। चलिए, मै आपको घर छोड़ देता हूँ।”– सुहाना की तबीयत ठीक न देख रफीक बोला।

“अरे नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं। मैं ठीक हूँ, चली जाऊंगी। आप केवल एक टैक्सी कर दीजिए।”– सुहाना ने रफ़ीक़ को मना करते हुए कहा।

“ओह! इतनी तकल्लूफ न करें। आप चलिए, मैं आपको आपके घर पहुंचा आता हूँ।–रफीक बोला। सुहाना समझ गई कि रफ़ीक़ मानने वाला नहीं। मुस्कुराकर वह रफीक के साथ उसके कार की तरफ बढ़ चली।

सुहाना के घर के बाहर अपनी कार खड़ी कर रफीक उसे दरवाजे तक छोड़ने आया। कॉलबेल बजाने पर भीतर  से सुहाना की अम्मी ने दरवाजा खोला। अपनी बेटी के साथ किसी अंजान शख्स को देखकर रफ़ीक़ की तरफ गौर से निहारने लगी।

“यह रफ़ीक़ साहब हैं, अम्मी। जिस कम्पनी में मेरा इंटरव्यू था, यह उसी में काम करते हैं। लौटते वक्त मेरा सिर अचानक से भारी लगने लगा तो इन्होने ही मुझे संभालते हुए घर पहुंचाया।

“खुदा खैर करें, मेरी बच्ची। अब तू ठीक है न? तुम्हारा शुक्रिया बेटा, आओ भीतर आओ।”– सुहाना की अम्मी ने रफ़ीक़ को धन्यवाद देते हुए कहा।

“नही आंटी। अब मुझे इज़ाज़त दें। काफी देर हो गई है, ऑफिस भी पहुँचना है।” – ऑफिस लौटने की अनुमति मांगते हुए रफ़ीक़ बोला।

पर, सुहाना उसकी एक न सुनी और एक कप कॉफी पीकर ही जाने का आग्रह किया। सुहाना की अम्मी ने भी उसे बैठने को कहा तो रफीक मना न कर पाया।

“अम्मी, इन्होंने अपने भतीजे को ट्यूशन पढ़ाने का आग्रह किया है। लेकिन, पता नही मैं कितने दिनों तक पढ़ा पाऊंगी! अगर कोई जॉब मिल गई तो बीच में ही उसकी ट्यूशन छूट जाएगी।”– सुहाना ने अपनी अम्मी को बताया और सोफे पर बैठ सिरदर्द की गोली लेकर उसे पानी के साथ गटक गई।

“अल्लाह! इस लड़की को कब अक्ल आएगा। इतने पाक काम के लिए इन्होंने तेरी मदद मांगी और तूने मना कर दिया। जब तक तू घर पर है, तब तक तो तालीम दे ही सकती है। आगे जो होगा, देखा जाएगा। बेटा रफीक, आप कल से ही अपने भतीजे को भेज देना। यह उसे पढ़ा दिया करगी। पर….आप किधर रहते हो?” सुहाना की अम्मी बोली।

“चचिजान, थोड़ी ही दूरी पर मेरा घर है। और फिर, चिंटू-मेरा भतीजा, उसे ड्राइवर रोज लाया और ले जाया करेगा।”– रफीक ने बताया।

अपनी कॉफी खत्म कर सुहाना और उसकी अम्मी को अलविदा कर रफीक़ वापस ऑफिस की तरफ लौट गया

रफ़ीक़ के परिवार में उसकी अम्मी, बड़े भाईजान आमिर– भाभी ख़ुशनूदा व उनका बेटा चिंटू तथा छोटी बहन ज़ीनत थी। कुछ ही साल पहले रफीक के वालिद का लंबी बीमारी के बाद इंतकाल हो गया था।

रफीक के बड़े भाईजान आमिर शहर के ही एक नामी-गिरामी कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत थें।

शाम को ओफिस से घर पहुँचकर रफ़ीक ने अपनी भाभी ख़ुशनूदा को चिंटू की नई ट्यूटर के बारे में बताया। ख़ुशनूदा भी चिंटू की दिनभर की धमाचौकड़ी और उसके स्कूल से आने के बाद पढ़ाई में तनिक भी ध्यान न लगाने की वजह से काफी परेशान थीं।

“वाह भाईजान, आप ऑफिस गए थे तो ट्यूटर कहाँ से ढूंढ लाएँ! कहीं कोई और बात तो नहीं…….। अब बात मेरी पल्ले पड़ी, इसीलिए आप आज सुबह-सुबह इतनी जल्दी में थे।” – रफीक़ को उसकी छोटी बहन ज़ीनत ने चिढाते हुए कहा।

“अम्मीजान देख लो, कहे दे रहा हूँ। ये ज़ीनत की बच्ची ने मुझे छेड़ा तो पीट जाएगी मेरे हाथों से।” – ज़ीनत के यूँ चिढाने पर रफ़ीक ने अपनी अम्मी से शिकायत करते हुए कहा।

इसपर सभी मुस्कुराने लगे। रफीक़ की अम्मी भी मुस्काती हुई ज़ीनत को ऐसा करने से मना करते हुए बोली – “अरे, क्यूँ चिढ़ा रही है उसे। अभी ऑफिस से थका-हारा आया है। थोड़ा आराम तो कर लेने दे।”

रफीक़ ने दिनभर की घटी पूरी घटना के बारे में सबको बताया। नई ट्यूटर की बात सुन चिंटू की सूरत लटक गयी। अपनी घूरती हुई निगाहों से चाचू को देखकर उसका मुंह बनाना रफीक को बड़ा भा रहा था और सोफे से उठ बच्चों की भांति चिंटू के साथ खिलवाड़ करने लगा।

इसपर वहा मौजुद सभी घरवालों के चेहरे पर हंसी उभर आई।  तभी ख़ुशनूदा कुछ पंक्तियां गुनगुनाने लगी, जिसने उनकी खुशियों में चार चांद लगा दिया:

साँसें चलतीं हैं तो जीवन है,

हवाओं से जुड़ी जैसे ये पवन है।

ये घरौंदा है हमारी ताक़त,

प्यार से सींचा ये उपवन है।

जीवन में सब मिलता है

पर मिलती नही ये दौलत,

संग अपनों का पाकर

पा ली उस रब की सीरत।

हमारा ये गुलिस्तां यूं ही खिला रहे,

स्नेह से फ़िजा सदा महका रहे।

आएँ लाख आंधी या तूफां

छत ये प्यार का सदा बना रहे।

इस बगिया की हर फुलवारी

पे जाऊँ मैं वारी, 

इनकी छांव में फिरूँ

मैं होके मतवारी।

अगले दिन, रफ़ीक़ ने ड्राइवर को सुहाना के घर का पता और उसका मोबाइल नंबर देकर चिंटू को रोज ट्यूशन ले जाने का जिम्मा सौंप दिया।

सुहाना के पास ट्यूशन लगने से कुछ ही दिनों में चिंटू की पढ़ाई पर असर दिखने लगा। अपनी अगली परीक्षा में चिंटू ने काफी अच्छा किया, जिससे घर में सभी खुश थें। ख़ुशनूदा, जो अपने बेटे की तालीम को लेकर इतना फिक्रमंद रहा करती थी, वह भी अब बेफिक़्र थी।

एक दिन। ख़ुशमूदा ने रफीक से कहा –”रफीक मियां, मैने सुहाना और उसकी अम्मी को कल दावत पर बुलाने का सोचा है। इसी बहाने उससे मिल भी लूँगी और उसका शुक्रिया भी अदा कर दूंगी। आखिर उसी की मेहनत की बदौलत मेरा यह नटखट और शैतान बेटा पढ़ाई में इतना होशियार हुआ है। आज चिंटू को ट्यूशन के लिए लेकर आप चले जाएं और सुहाना व उसकी अम्मीजान को आमंत्रित कर आएं।”………….

अगला भाग

हमनशीं (भाग 2) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

मूल कृति : श्वेत कुमार सिन्हा

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