हम औरतें ससुराल बस क्लेश करने ही तो आती हैं.. -रोनिता कुंडु : Moral stories in hindi

बहु… यह कहां जाने की तैयारी कर रही हो..? मनोरमा जी ने अपनी बहू अक्षरा से कहा 

अक्षरा:   मम्मी जी… बताया तो था सिम्मी का रोका है, तो मायके जाना है उसी के तैयारी कर रही हूं मैं… कमला दीदी को सब अच्छे से समझा दिया है और अगर आपको कुछ अलग से कहना हो तो आप कह देना…

मनोरमा जी:  यह क्या बहू..? तुम तो हर वक्त बस अपने मायके जाने के ही फिराक में रहती हो… अभी बहन के रोके पर जाना है फिर शादी में… इतना ही था तो शादी ही क्यों की फिर..? रहती अपने मायके में… हमें भी कोई ऐसी मिल जाती जिसे हमारी ज्यादा परवाह होती… 

अक्षरा:   यह कैसी बातें कर रही है आप मम्मी जी..? मुझे भी आप लोगों की परवाह है… पर इसका मतलब यह तो नहीं ना कि मैं अपना मायका जहां मैं जन्म लिया पली-बढ़ी… उसे ही भूल जांऊ… सगी बहन का रोका है तो मेरा जाना तो बनता ही है ना..? भला शादी के बाद मायके से रिश्ता क्यों तोड़ना..? 

मनोरमा जी:   देख बहू हम औरतों के जीवन का यह सबसे बड़ा सच है.. शादी के बंधन में उसका उसके पति के साथ जो अटूट बंधन बंध जाता है… उसके बाद सारे रिश्ते उसके आगे कमजोर पड़ जाते हैं… पति से उसका वजूद, उसका घर बन जाता है.. मायका तो बस एक होटल बनकर रह जाता है… जहां घूमने दो चार दिन के लिए गया, खाया पिया, वक्त गुजारा और निकल गए… भला होटल के साथ मोह क्यों रखना..? 

अक्षरा:   होटल..? मम्मी जी कितनी आसानी से कह दिया आपने यह बात..? होटल बना दिया हमारे बचपन की सारी यादों को..? यह आपकी सोच होगी, पर मेरी नहीं… मेरे लिए तो यह घर जितना महत्वपूर्ण है उतना मेरा मायका भी और मैं कल अपनी बहन के रोके पर जा रही हूं… 

मनोरमा जी:   सोच ले अगर कल गई तो फिर शादी पर जाना नहीं हो पाएगा और अगर तू सोच रही है कि विक्रम तेरी साइड लेगा, तो भूल जा… उसने आज तक कभी मेरी बात नहीं टाली.. कहीं ऐसा ना हो मायके के बंधन को निभाने के चक्कर में पति के साथ बांधा गया अटूट बंधन टूटने के कगार पर आ जाए… तू क्या समझती है बाकी बहू की तरह तू भी इस घर में अपना राज चलाएगी और मैं बिचारी बनकर तेरी जी हुजूरी करूंगी..? कभी नहीं, इस घर में पहले भी मेरी चली है आगे भी मेरी ही चलेगी, समझी… 

अक्षरा अब कुछ नहीं कह पाती, बस उसके आंखों से आंसुओं की धारा बहती चली जा रही थी… उसके शादी को ज्यादा दिन नहीं बीते थे और उसके सास की तानाशाही आदत उसे पहले दिन ही दिन से खटकती थी… पर आज अपने सास के मुंह से ऐसी बातें सुनकर तो उसके होश ही उड़ गए… वह समझ चुकी थी उसकी भावनाओं की मनोरमा जी को कोई कदर नहीं है.. पर वह कर भी क्या सकती थी..? तो उसने सोचा अपने पति विक्रम से इस बारे में बात करेगी… रात को जब विक्रम आया… अक्षरा ने उसे पूरी बात बताई तो, इस पर विक्रम कहता है… हां मुझे सब पता है… मां ने फोन पर मुझे सब बता दिया…

अक्षरा:   क्या मम्मी जी ने आपको बता दिया..? अच्छा फिर आप मम्मी जी को समझाते क्यों नहीं..? आखिर वह मेरा मायका है, ऐसे कैसे मैं वहां ना जाऊं..?

 विक्रम:   अक्षरा… तुम मां को गलत समझ रही हो… मां का कहने का वह मतलब नहीं है… उनका तो बस यह कहना है बात बात पर मायके मत जाओ.. साल दो साल में एक बार चली जाना, इससे उन्हें भी शांति रहेगी तुम्हें भी और जब तुम्हें रहना ही यहां है, तो यहां के तौर तरीको को सीखने पर ज्यादा ध्यान दो ना… मुझे तो मां की बातों में कुछ भी नाजायज नहीं लगा… 

अक्षरा विक्रम के मुंह से यह बात सुनकर दंग ही रह गई… एक बार भी इनके ऐसे विचार शादी से पहले पता चल जाता तो, कभी यहां शादी नहीं करती… अक्षरा ने मन ही मन सोचा, पर अक्षरा भी इनको सबक सिखाएगी यह सोचकर कुछ इरादा करती है… अगले दिन अक्षरा के पापा विनोद जी सुबह-सुबह अक्षरा के यहां आते हैं… तब विक्रम ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा था और मनोरमा जी बैठकर माला जप रही थी… उन्हें देखकर वह चौंक कर कहती है अरे समधी जी आप..? इतनी सुबह-सुबह..? आज तो सिम्मी का रोका भी है ना..? फिर वह सब छोड़ आप यहां..? 

विनोद जी:   हां आना ही पड़ा, क्योंकि आप लोगों ने कोई रास्ता ही कहां छोड़ा…? अक्षरा को आने नहीं दिया तो मैं ही उसे लेने आ गया… अब छोटी बहन के रोके पर बड़ी बहन ना हो, ऐसा भी हो सकता है भला..? बुलाइए जरा मेरी लाडो को… लाडो कहां है..? बाहर आ… देख मैं तुझे लेने आया हूं… 

मनोरमा जी:   समधी जी… वह मेरी तबीयत ठीक नहीं है ना इसलिए मना किया था उसे… आप पता नहीं क्या सोच बैठे..?

 तब तक अक्षरा कमरे से एक बड़ा सूटकेस लेकर बाहर आती है… जिसे देख मां बेटे दोनों हैरान होकर पूछते हैं… तुम जा रही हो..?

 अक्षरा:   हां और सिर्फ रोके पर नहीं, हमेशा के लिए… अब इस घर में तभी आऊंगी जब मम्मी जी को आप वृद्धाश्रम भेजोगे… वरना तलाक के लिए तैयार रहिए.. आधी प्रॉपर्टी तो ले ही लूंगी दहेज में इतना कुछ मांगने के लिए, अब आप लोगों को पता चलेगा जब अटूट बंधन गले का बंधन बन जाए, तो कैसा लगता है..? चलिए पापा इनको दो दिनों का समय देते हैं… फिर करेंगे फैसला..

 मनोरमा जी:  जा.. जा… बड़ी आई… यह मेरा घर है मैं क्यों जाऊं वृद्धाश्रम..? सच कहते हैं सभी सारी लड़कियां एक जैसी ही होती है… 

अक्षरा:   मम्मी जी.. वृद्धाश्रम तो आपको जाना ही पड़ेगा… जब जिन्होंने मुझे जन्म दिया, मैं उनकी सेवा नहीं कर सकती, फिर आप तो मुझे मुफ्त में मिली है पति के साथ… आपको मैं क्यों झेलूँ..? और रही बात इस घर की, वह आपके बेटे के नाम है, तो उस हिसाब से आधा मेरा हुआ.. आप कहां है इन सब में..? और आप सुनिए जी जो इन्हें नहीं भेजा वृद्धाश्रम तो फिर अपनी पूरी प्रॉपर्टी का बंटवारा करने के लिए तैयार हो जाइएगा…

 मनोरमा जी:   सच कहते हैं सभी… आजकल की लड़कियां बस घर तोड़ने ही आती है… जिस घर को इतने सालों से संभाला उन्हें एक पल नहीं लगता, अपने सास ससुर को वहां से निकाल फेंकने में… बस यह शादी इसीलिए तो करती है, पर मैं तेरे यह इरादे कभी पूरे नहीं होने दूंगी… बेटा, तू इसे तलाक दे दे… हमें नहीं चाहिए ऐसी लड़की… मनोरमा जी ने फिर विक्रम से कहा 

विक्रम:   और फिर तलाक देकर खुद कंगाल हो जांऊ… आपने सुना नहीं इसने अभी-अभी क्या कहा..? मां आजकल औरतों के मामले में कानून बड़ी सख्त हो गई है और उसी का फायदा इन जैसी औरतें उठाती है… मां आप लोग यह कोर्ट कचहरी ना जाकर आपस में मामला सुलझा ले तो बेहतर होगा… मुझे यह फालतू के क्लेश नहीं चाहिए… 

मनोरमा जी अपनी परिस्थिति बिगड़ती देख कहती है… ठीक है बहु, तुझे जो करना है कर… बस यह सब केस कचहरी मत कर… मैं भूल गई थी कि आजकल की लड़कियां बहू बनकर नहीं, चंडी बनकर आती है.. कर.. कर.. तुझे जो करना है… 

अक्षरा:   देखा पापा… आ गए सारे लाइन पर… मम्मी जी कैसा लगा जब आपको अपने ही घर से रिश्ता तोड़ने को कहा..? आप भी तो वही कर रही थी ना…? मम्मी जी कोई भी लड़की शादी करके क्लेश करने नहीं आती… उसे वहां का माहौल वैसा बना देता है… कोई तो उस माहौल में खुद को ढाल लेती है और कोई बस घुटती चली जाती है और अंत में वह घुटन जब ज्वालामुखी की तरह फटती है, तो क्लेश होना स्वाभाविक है.. 

विनोद जी:   समधन जी… बेटियों की जब शादी होती है तो वह देखती है कितने अरमानों के साथ उसके माता-पिता उसे ब्याह रहे हैं… ना जाने कितने कर्ज तक वे ले लेते हैं… उस शादी को निपटाने के लिए, फिर वह उस शादी को क्यों तोड़ना चाहेगी भला..? पर जब बार-बार उसके वजूद और आत्म सम्मान को तोड़ा जाए तो वह भी मजबूर हो ही जाती है… औरतों के लिए इतनी सख्त कानून यूं ही नहीं बनाए गए हैं, क्योंकि आज भी औरतों के साथ यह सब हो रहा है… मैं यह नहीं कहता कि सभी औरतें सही में इसके लायक है… कुछ इस कानून का गलत इस्तेमाल भी कर रही है.. पर हम उनमें से नहीं है… हम तो बस आपको सबक सिखाना चाहते थे.. इसीलिए यह नाटक रचा, जो अभी भी आपको समझ ना आया हो तो बताइए… आगे का हम देख लेंगे… 

अक्षरा:   मम्मी जी..! हम बहुएं ससुराल में पूरे साल रहकर चाहे कितनी भी सेवा कर ले… पर जब भी हम दो-चार दिनों के लिए मायके जाने की बात करें… हमारी सारी की हुई सेवा भुला दी जाती है और गिनवाए जाते हैं हमारी जिम्मेदारी… और अगर हम अपने लिए कुछ कह दे, तो यह कहा जाता है हम तो ससुराल बस क्लेश करने ही आते हैं… क्यों भाई हमारी जिम्मेदारी बस ससुराल वालों के लिए ही है..? जिनसे हम अभी-अभी मिले हैं… उनका क्या..? जिन्होंने हमें जन्म दिया, पाला पोसा और इस काबिल बनाया कि आप लोगों की सेवा कर सके.. क्या उनके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं बनती हमारी..? एक तरफ तो आप चाहते हैं कि आपका बेटा बहू आपकी सेवा करें और दूसरी तरफ जब एक बेटी अपने माता-पिता की सेवा करने के बारे में सोचती है, तो फिर आप लोगों के छाती पर सांप लोटने लगते हैं, एक पराई लड़की आप लोगों का अपने माता-पिता की तरह सेवा कर सकती है, तब तो आप कहते हैं यह उसका धर्म है, पर कभी यह तो आप लोग अपने बेटों को नहीं सीखाते के एक जमाई भी अपने सास ससुर की वैसे ही सेवा करें, यह उसका धर्म क्यों नहीं है….? आज मैं भी चाहती तो बाकी औरतों की तरह चुपचाप रहकर इसे अपनी तकदीर मान लेती… पर यह अगर मैंने आज किया तो यह हम औरतों की तकदीर बन जाएगी… किसी को तो आवाज उठानी पड़ेगी ना…   

मनोरमा जी और विक्रम चुपचाप वहां खड़े अक्षरा की बातें सुनते हैं, उनकी नज़रें भी नीची थी, पर शायद बदलाव आया या नहीं यह कहना ज़रा मुश्किल है, पर अक्षरा ने भी ठान रखा था कि उसे आगे क्या करना है…?  

धन्यवाद 

रोनिता

#अटूट बंधन

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