हमारे बच्चे समझदार हो गये है – संगीत अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुनिए सारे त्योहार सर पर है और आपने अभी तक मुझे खर्च के पैसे नही दिये कैसे सब काम करूंगी मैं कुछ दिनों मे । आप तो व्यस्त रहने का बहाना कर देते हो बाज़ार जाने के नाम पर !” मीनाक्षी पति के घर आते ही हंस कर बोली।

” हम्म !” पति राकेश ने केवल इतना कहा।

” अरे क्या हम्म लगता है आपका ध्यान अभी भी काम पर ही है !” मीनाक्षी झूठी नाराज़गी दिखाती हुई बोली।

” मीनाक्षी इस बार दिवाली पर ज्यादा खर्चा मत करना फैक्टरी मे बहुत बड़ा नुकसान हो गया है” राकेश धीरे से बोला।

” ओह्ह ….पर सबके कपड़े, मिठाई, पटाखे? मीनाक्षी राकेश के पास बैठती हुई बोली।

“देखो मीनाक्षी मैं सब समझ रहा हूँ पर मजबूर हूँ सारी जमा पूँजी इस नुकसान से उबरने मे लग जायेगी पहले ही कोरोना ने कमर तोड़ दी थी उस पर ये नुकसान …तुम ऐसा करो चारों बच्चों को कपड़े दिला लाना पर जरा सस्ते हर बार की तरह नहीं “। राकेश ने दुखी होते हुए कहा …. आज से पहले राकेश ने दिल खोल कर खर्च किया था इसलिए उसे ऐसा कहते हुए बहुत तकलीफ हो रही थी।

“लेकिन थोड़े बहुत तो पटाखे भी लाने पड़ेगे साल मे एक बार त्योहार आता है बच्चों का दिल तो नहीं तोड़ सकते ! ” मीनाक्षी ने कुछ सोचते हुए कहा “ऐसा करो मेरी चेन बेच दो, आपको भी इस साल गर्म जैकेट लेना था वो भी ले लेना मेरा क्या मेरे पास तो बहुत साड़ियां है! “

“मुझे माफ कर दो मीनाक्षी मैं तुम लोगो को खुशी नही दे पा रहा ”  राकेश ने आँखो मे आए आँसुओ को पीते हुए कहा।



राकेश और मीनाक्षी की छोटी बेटी परी पापा और माँ की बात दरवाजे की ओट से सुन रही थी असल मे वो पापा की आवाज़ सुन आई थी, पर उनकी बातें सुन अंदर ना जा सकी… अपनी दो बड़ी बहनों और एक छोटे भाई को जा उसने सारी बात बताई….फिर उन सबने मिल कर एक प्लान बनाया ।

अगले दिन…..

“पापा देखो ना खुशी दीदी मुझे अपना लाल सूट नहीं दे रही मेरा बहुत मन है इस दिवाली वो पहनने का ” परी ने जाकर पापा से अपनी छोटी दीदी की शिकायत की।

“पापा_ मैंने भी रिया दीदी से उनका गुलाबी सूट माँगा मुझे वो बहुत पसंद है पर वो बोल रही है तू कपड़े जल्दी फाड़ देती है! ”  खुशी ने मचलते हुए बोला।

“अरे! अरे इतनी बड़ी हो गई हो पर बचपना नहीं गया… माँ तुम्हे दिवाली के लिए नये कपड़े दिला लायेगी मैंने बोल दिया है ” राकेश ने दोनो से कहा।

” नहीं पापा हमे वही सूट पहनने हैं ” दोनों बहने एक स्वर मे बोली।

” अच्छा… अच्छा ठीक है।। रिया और खुशी तुम दोनों अपने सूट लाओ….. लो परी तुम अपना लाल सूट, लो खुशी तुम अपना गुलाबी सूट… खुश अब । ” राकेश ने कहा और सूट आ जाने पर दोनो लड़कियों को देता हुआ बोला। दोनो खुशी से उछल पड़ी मानो कोई खजाना मिल गया हो। राकेश उन्हे देख मुस्कुरा दिया।

” रिया बेटा तुम और चिराग दोनो माँ के साथ जा कपड़े ले आना  और चिराग तुम मेरे साथ चलना मैं पटाखे दिला दूँगा तुम्हें! ” राकेश बाकी दोनो बच्चो से बोला।

” पापा मेरी सहेली सिलाई सीख रही है उससे मैं अपनी पसंद का सूट सिलवा लूंगी जो कपड़ा बुआ राखी पर लाई थी उससे । माँ को बोलो बस चिराग को कपड़े दिला लायें। रिया ने कहा…।

” और पापा आप मुझे पटाखों के पैसे दे देना मैं दोस्तों के साथ जाके ले आऊँगा ” चिराग ने कहा।

” ठीक है बेटे लो 1000 रुपए ले आना पटाखे ” राकेश ने पैसे देते हुए कहा।

अगले दिन मीनाक्षी चिराग को कपड़े दिला लाई वो लेना नहीं चाहता था पर उसके पास कोई बहाना भी नहीं था… पापा मम्मी को शक ना हो इसलिए सब बच्चो ने मिलकर यही फैसला किया था क्योकि चिराग के पास कोई ऑप्शन भी नही था।



दिवाली वाले दिन सब बच्चे तैयार हो पापा का इंतज़ार कर रहे थे… उनके आते ही सब बच्चो ने राकेश को एक उपहार पकड़ाया।

“ये क्या है ?” राकेश हैरानी से बोला

” पापा खोलो तो सही ” चारों बच्चे चिल्लाये मीनाक्षी भी रसोई से बाहर आ गई उन्हे भी बच्चो ने एक उपहार दिया।

” ये क्या ” मीनाक्षी उपहार खोलती हुई बोली।

“अरे ये जैकेट और साड़ी??? दोनो ने अपने उपहार खोले तो हैरानी से कभी एक दूसरे का कभी बच्चो का मुंह देखते हुए बोले।

” पापा ये आपके लिए हमारी तरफ से गिफ़्ट है ” सब बच्चे एक साथ बोले।

” पर तुम्हारे पास पैसे कहा से आये ? ” राकेश ने पूछा।

” पापा 1000 रुपए आपने पटाखों को दिये बाकी हमने अपनी गुल्लक फोड़ दी ” बच्चे ख़ुशी से मचलते हुए बोले।

” बेटा ये सब क्यों किया तुमने अपनी खुशियों को मार के हमारे लिए ये सब क्यों ” राकेश ने रोते हुए कहा।

” पापा हमने खुशियाँ नहीं मारी अपनी। हमारी ख़ुशी तो आप हो जैसे हम आपकी हमें सब पता है फैक्टरी मे नुक्सान का भले आप हमें ना बताओ पर हम भी इस घर मे ही रहते है । ” रिया ने पापा के आंसू पोंछते हुए धीरे से कहा।।

” वैसे भी पापा पटाखे से तो प्रदूषण ही होता है ना ” परी राकेश के गले मे बाहें डालते हुए बोली!

” मीनाक्षी देखो बच्चे कितने समझदार हो गए है। अपनी खुशी को साइड करके हमारे लिए सोचने लगे है। ” राकेश ने सबको गले लगा लिया।।



“ओहो अब ये इमोशनल ड्रामा बन्द करो मुझे मिठाई भी तो खानी है जल्दी से पूजा करो अब। ” अचानक से चिराग बोला और सब हँस दिये। सबने मिलकर पूजा की और मिठाई खाई।

दोस्तों माँ – बाप तो अपने बच्चों की खुशी के लिए हमेशा से त्याग करते हैं… पर जब बच्चे माँ बाप के लिए कुछ करते तो माँ बाप के साथ साथ बच्चों को अलग ही ख़ुशी मिलती है….क्यो सही कहा ना ? वैसे भी परिवार का असली मतलब ही एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की खुशी को ऊपर रखना है।

वैसे भी दीवाली तो पर्व ही खुशियों का है|

कैसा लगा आपको ये प्यारा सा परिवार…?? बताइयेगा जरूर

आप सभी को मेरी तरफ से दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएँ|

#परिवार 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

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