‘ हाँ, मैं स्वार्थी हूँ ‘ –  विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : लीना ने अखबार में एक नर्स की वैकेंसी का विज्ञापन देखा तो उसने तुरन्त फोन नंबर और क्लिनिक का पता नोट कर लिया।फ़ोन लगाने पर उसे इंटरव्यू के लिए शाम चार बजे बुलाया गया।डाॅक्टर का क्लिनिक उसके घर से करीब बीस मिनट की दूरी पर था लेकिन ट्रैफिक और भीड़ को ध्यान में रखते हुए वह अपने सभी जरूरी डाॅक्युमेंट्स के साथ दस मिनट पहले ही डाॅक्टर आकाश शर्मा जो कि शहर के जाने-माने कार्डियोलिजिस्ट थें,के क्लिनिक पहुँच गई।

           रिसेप्शन पर अपनी एंट्री कराने के पाँच मिनट बाद ही एक इंटर्न डाॅक्टर ने उसकी फाइल देखी,कुछ ज़रूरी सवाल पूछे और उसकी फ़ाइल डाॅक्टर साहब के केबिन में भेजकर उसे प्रतीक्षा करने को कहा।काॅल होने पर जब वह डाॅक्टर के केबिन में गई तो केबिन की व्यवस्था व साज-सज्जा देखकर वह चकित रह गई।उसने अपने आपको संयत करके डाॅक्टर के पूछे हर सवाल का जवाब दृढ़तापूर्वक दिया।डाॅक्टर शर्मा ने उसे उसी समय ‘ सेलेक्टेड ‘ कहकर बाकी फार्मेलिटिज़ टेबल नंबर तीन पर जाकर पूरी करने को कहा।

        दिखने में आकर्षक, छरहरे बदन वाली व्यवहार-कुशल लीना अपने नर्सिंग कार्य में पूर्ण दक्ष थी।वह बहुत खुश थी कि डाॅक्टर शर्मा के साथ काम करने का उसका सपना पूरा हो रहा था।वह समय से पहले ही क्लिनिक पहुँच जाती और आठ घंटे की ड्यूटी पूरी करके घर चली जाती थी।क्लिनिक के साथ ही एक बड़ा नर्सिंग होम भी था जहाँ मरीजों की देखभाल होती थी।लीना की जब भी वहाँ ड्यूटी होती तो सभी मरीज़ बहुत खुश हो जाते थें।




           एक दिन नाइट ड्यूटी वाली नर्स छुट्टी पर थी तब लीना को उसकी जगह पर नाइट ड्यूटी करनी पड़ी।डाॅक्टर साहब एक ऑपरेशन करके बहुत थके हुए थें, तब लीना ने उन्हें काॅफ़ी बनाकर दी और उनसे दो-चार बातें करके उनकी थकान दूर करने का प्रयास किया।गौर वर्ण के आकर्षक व्यक्तित्व वाले डाॅक्टर आकाश शर्मा ने उस रात पहली बार लीना को ध्यान से देखा था और अपना दिल दे बैठे।

अब ओटी(ऑपरेशन थियेटर)में लीना भी डाॅक्टर शर्मा को सहयोग देने लगी, कभी-कभी तो दोनों साथ ही घर जाते थें।एक दिन अवसर देखकर डाॅक्टर अशोक ने अपने मन की बात लीना से कह दी जिसे लीना ने मुस्कुरा कर स्वीकार भी कर लिया।जब अशोक ने विवाह करने की बात कही तो लीना ने ‘ कुछ ज़िम्मेदारियाँ हैं, उसके बाद.. ‘ कहकर उस वक्त टाल दिया।

          एक दिन लीना सात वर्षीय एक बच्ची के साथ ड्यूटी पर आई तो सहकर्मियों ने कई सवाल किये।उसने बताया कि उसके परिचित की बेटी है, चेकअप कराने लाई है।डाॅक्टर आकाश ने उस बच्ची जिसका नाम आयशा था,चेकअप करने के बाद लीना को बताया कि दो सालों से आयशा के हृदय में एक छेद है जो अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा है।

तुरन्त ऑपरेशन करना होगा।सुनकर लीना चिंतित हो गई,बोली कि आयशा के पिता नहीं हैं और इसकी माँ इतने कम समय में तो आपकी फ़ीस की व्यवस्था कर नहीं सकती।अब तो इसकी मृत्यु …। ” नहीं-नहीं, फ़ीस की कोई बात नहीं है।” लीना की बात पूरी होने से पहले ही डाॅक्टर आकाश बोल पड़े।उन्होंने लीना को प्रिस्क्रीप्शन देते हुए कहा कि तुम आज ही इसे एक स्पेशल वार्ड में एडमिट करा दो और सारी दवाएँ लेकर ओटी में आ जाओ, तब तक मैं आयशा के बाकी टेस्ट भी करा देता हूँ।

         आयशा का ऑपरेशन कामयाब रहा।लीना ने पूरे नर्सिंग होम में मिठाई बाँटी।पाँच दिनों के बाद वह आयशा को लेकर घर चली गई।अगले दिन वह ड्यूटी पर आई लेकिन उसने नर्स का सफ़ेद यूनिफॉर्म नहीं पहना और सीधे डाॅक्टर अशोक के केबिन में चली गई।डाॅक्टर अशोक ने सोचा कि शायद लीना अब विवाह की बात करने आई है लेकिन लीना ने अपना इस्तीफ़ा अशोक को थमाते हुए कहा, ” गुड बाय मिस्टर अशोक!”  कल तक जो उसे प्यार से अशोक पुकारती थी,उसके मुँह से ‘ मिस्टर अशोक ‘ सुनकर वे आश्चर्यचकित रह गए।

         लीना एक व्यंग्य भरी मुस्कान देती बोली, ” मिस्टर अशोक, आपकी क्लिनिक में नौकरी करने और आपसे प्यार करने के पीछे मेरा एक मकसद था।आयशा मेरी बेटी है।जब वह पाँच वर्ष की थी,तभी एक दुर्घटना में उसके पिता गुज़र गये।मैं नर्सिंग का जाॅब कर रही थी,एक दिन अचानक आयशा बेहोश हो गई, तब मुझे उसके हृदय में छेद होने का पता चला।

उसका मंहगा इलाज कराना मेरे लिए संभव नहीं था और तब मैंने आपकी क्लिनिक का विज्ञापन देखा,आपके बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने के बाद मैंने आपसे ही अपनी बेटी का इलाज कराने का सोचा।काम मुफ़्त में हो,इसके लिए मुझे आपके साथ प्यार का नाटक करना बहुत ज़रूरी था।” लीना की बात सुनकर डाॅक्टर अशोक के पैरों तले ज़मीन निकल गई।वे गुस्से से चिल्लाये, ” तुमने अपना मतलब निकालने के लिए मेरा इस्तेमाल किया।छी:,तुम कितनी स्वार्थी हो।मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई।तुम तोऔरत के नाम पर तुम एक कलंक हो।” 




       ” हाँ, मैं कलंक हूँ, स्वार्थी हूँ।अपने बच्चे की जीवन-रक्षा के लिए तो एक माँ बड़े से बड़े तूफ़ान से भी टकरा जाती है,यहाँ तक कि यमराज से भी भिड़ जाती है,मैंने भी अपनी बेटी के जीवन-दान के लिए आपको एक मोहरा बनाया,आपसे अपना मतलब साधा है तो क्या गलत किया।

मेरा काम अब पूरा हो गया है,अब मुझे न आपकी जरूरत है और ना ही आपकी नौकरी की।” कहकर उसने अपना पर्स कंधे पर डाला और केबिन का दरवाज़ा खोलकर अकड़ती हुई बाहर निकल गई।पूरा स्टाफ़ उसे जाते हुए देखता रहा।

       # स्वार्थ

 विभा गुप्ता 

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