घर की चौथी बेटी और संघर्ष – मंजू तिवारी

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का मौका था जब मैं 2004 में एक महिला महाविद्यालय से b.ed कर रही थी

सुबह से ही महिला दिवस की बात हो रही थी लंच टाइम के बाद से महिला दिवस मनाया जाएगा और सभी लड़कियां अपनी अपनी स्पीच देंगी इससे पहले मैंने कभी महिला दिवस नहीं मनाया था ना ही सुना था

सभी लड़कियां किताबें टटोल रही थी उसमें से कुछ पढ़ कर अपने पन्ने पर लिख रही थी,,,, हमारा लंच खत्म हुआ हमें एक हॉल में बिठा दिया गया,,,,

सारी अध्यापिकाएं व प्रिंसिपल मैम भी बैठ गई,,,, अब एक-एक करके छात्राओं को बोलने के लिए माइक पर बुलाया जाने लगा,,,, छात्राओं ने जो स्पीच तैयार की थी उसे बोलने का प्रयास कर रही थी कुछ माइक पर बोल भी पा रही थी कुछ का गला बोलने में कांप  रहा था,,,,

 सारी छात्राओं में एक बात जो सामान्य सी लग रही थी वह यह थी,,,,, प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति बड़ी ही खराब थी लेकिन अब,,,,,,,,

मैं बड़ी असहज हो रही थी क्योंकि यह बात मेरे गले से नहीं उतर रही थी,,,,, क्योंकि प्राचीन काल मे  महिलाओं को भारत में बड़ा पूजनीय स्थान प्राप्त था

 मैंने स्पीच के लिए कोई पन्ना भी तैयार नहीं किया था,,,,

 इस तरह से छात्राएं आती पन्ने पर से देखकर अपनी स्पीच देती और बैठ जाती हैं,,,,,,

एक छात्रा का नंबर आया वह बोल रही थी

मैडम हम यहां महिला दिवस मना रहे हैं न जाने कितनी बेटियां अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष कर रही हैं। मैम मुझसे बड़ी मेरी तीन बहने हैं।,,, मैं चौथे नंबर की थी,,,,,, जब मैं पैदा हुई,,,,, मेरे घर में मातम था,,,,,, मेरी मां पिता दादी सब ऐसे उदास थे जैसे कोई मर गया,,,,,, मेरी दादी ने मेरे पिता से कहा,,,,, लकड़ियों के साथ चूल्हे में रख दो,,,,,,, इस चौथी बेटी का क्या करेंगे,,,,, पहले से ही तीन बेटियां हैं। यह सब कहते हुए अब उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे गला रूंध रहा था,,,,, फिर आगे उसने बताया हम दिल्ली में रहते हैं।,,,, मेरी बड़ी बहन एयरलाइंस में है।,,,, उसने छोटी दो बहनों के बारे में भी बताया शायद वह भी कहीं अच्छी जॉब में थी,,,,, मैडम मैं भी बी ऐड कर रही हूं। मेरी तीनों बहनों ने जी तोड़ मेहनत करके अपने आपको साबित किया है।

मैं पूछना चाहती हूं हम बेटियों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों,,,,? अब हॉल में सन्नाटा था,,,

उसके बाद एक छात्रा का और नंबर आता है। वह शादीशुदा थी शायद मुझसे उम्र में भी कुछ बड़ी रही होंगी,,,,,,,,

वह बोली मैडम क्या हम आजाद हुए हैं अभी भी बेड़ियों में जकड़े हुए हैं ,,,अभी महिलाओं को इतनी भी आजादी नहीं मिली है कि वह अपने मनपसंद का खाना बना ले,,,, और मैम मजेदार बात तो यह है बेटियों को थकान होती है बहू को तो थकान होती ही नहीं,,,, मारपीट करना तो पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है।,,,




सब्जी भी पूछ कर बनानी पड़ती है कि आज कौन सी सब्जी बनेगी,,,,?

घर से निकलो तो परंपरा के नाम पर कॉलेज के बाहर तक लंबा घूंघट उड़ना  पड़ता है। सासू मां का बस चले तो क्लास में भी घूंघट करवा दे।,,,, चुटकी लेते हुए मैडम यहां उनका बस नहीं चलता है।,,,,,,

फिर उसके बाद अगली छात्रा बोलती है। वह भी शादीशुदा ही थी,,,,, मैडम भाई की शादी है बरसों से अरमान सजाए थे पैसे जोड़े थे कि मेरा भाई दूल्हा बनेगा घोड़ी चढ़ेगा और मैं ना जाने क्या-क्या करूंगी,,,

पति बाहर जॉब करते हैं। सासू  मां भेजने से मना कर दिया,,,,,,,,,,,, तू ऐसा कर यहीं से स्टेशन से गाड़ी पकड़ और निकल जा भाई की शादी में,,,,,, मैम ऐसा कैसे कर सकते हैं रहना तो उसी घर में है।,,,,,

यह वह छात्राएं थी जो जीवन के संघर्ष की सच्चाई बोल रही थी,,,,,

मैंने कोई पेपर तैयार नहीं किया था जो मुझे लगा उसे बोलना शुरू किया इन सब को सुनने के बाद मेरे मन में उथल-पुथल मची थी,,,,,

मैंने बोलना प्रारंभ किया,,,, मैम हिंदुस्तान में खाली 10 परसेंट लोगों को ही पता होगा कि आज महिला दिवस है। जिन महिलाओं के लिए महिला दिवस मनाया जा रहा है उन महिलाओं को तो पता ही नहीं है कि आज महिला दिवस है। और वह चारदीवारी के भीतर क्या-क्या भुगत रही है उसका भी शायद अंदाजा नहीं है। महिला दिवस मना कर मात्र औपचारिकता पूरी हो रही है।,,,,,,, जहां तक मैडम मैंने देखा है महिलाएं सिर्फ घर में काम करती हैं कोई निर्णय लेने में उनकी कोई भागीदारी नहीं होती है। देख कर ऐसा लगता है कि वह तो सिर्फ काम करने  के लिए ही बनी है।

 हमेशा शारीरिक श्रम ही उनसे करवाया गया जब मानसिक श्रम किया ही नहीं तो निर्णय लेने की क्षमता आएगी भी कहां से,,,,,, लोग बड़ी जल्दी महिलाओं को मूर्ख कह देते हैं या बेवकूफ कह देते,,,,,

मैडम मुझे पूरा विश्वास है जिस दिन महिलाएं मानसिक श्रम करेंगी उस दिन पुरुषों से चार कदम आगे ही होंगी 

 और मैं अपने आप को इस दौर में बड़ा सौभाग्यशाली मानती हूं कि मेरे साथ कोई पक्षपात और भेदभाव नहीं है 

अपनी सहपाठियोंको सुनने के बाद मेरा मेरे परिवार के प्रति सम्मान और बढ़ गया था

 दादा-दादी मेरे मम्मी पापा अब मेरे लिए देवतुल्य हो चुके थे,,,,, 

अब माता-पिता के सम्मान में मेरे आंसू बह रहे थे,,,




 यह उस दौर की बात थी जब सभी जगह बेटा बेटी में भेदभाव हो रहा था कॉलेज से घर तक के सफर में मैं यही सोचती रही मैं कितनी भाग्यशाली हूं। जो मुझे इस दौर में भी बेटे जैसी परवरिश दे रहे है।,,,, घर आकर अपनी दोनों बाहें अपनी मम्मी के गले में डाल दी मम्मी को क्या पता कि आज कॉलेज में क्या हुआ था और मैं मन ही मन भगवान का धन्यवाद दे रही थी कितने अच्छे मां बाप मुझे भगवान ने दिये,,,

 मेरे चचेरे सभी भाई बहनों की परवरिश में बेटा बेटी का भेद बिल्कुल भी ना था,,,,,

 क्योंकि हम  अपने माता-पिता की मात्र दो बहने ही संतान थी लेकिन मेरे दादा दादी और मम्मी पापा ने मेरा कभी भी तिरस्कार नहीं किया,,,, हमारे लिए भाई जरूर चाहिए था,,, लेकिन हम बहनों का तिरस्कार लेश मात्र ना था,,,, हम दोनों बहनों को बहुत अच्छा पढ़ाया लिखाया गया,,,,

मम्मी सुबह 4:30 जग जाती और हमारे लिए नाश्ता और टिफिन तैयार करती,,,,, जब हम बहने बोर्ड परीक्षा देने जाते पापा धीरे से मम्मी को इशारा करते इनको दही और और मीठा खिलाकर इनका टीका  कर दो,,,,,, हमारी सफलता पर मम्मी पापा बहुत खुश हो जाते हुए,,,,, पापा ने हमारे लिए किसी चीज की कसर ना छोड़ी,,,,

पापा ने मेरे लिए जीवनसाथी भी बड़े सोच समझकर सूझबूझ से चुना जिस के सहयोग से मैं अपने सारे सपने पूरे कर रही हूं। बेटियां मंच के सहयोग से मैं बेटियों के संघर्ष को भी सामने लाने का प्रयास कर रही हूं।,,, 

विडंबना यह है। हम सभी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस बड़ी जोर शोर से मना रहे हैं जो मना रहे हैं उन्हें महिला दिवस की आवश्यकता ही नहीं है। लगभग वह अपने हिस्से का आसमान नाप चुकी हैं।

जो महिलाएं भारत में ग्रामीण क्षेत्र में चार दीवारी के अंदर संघर्ष शोषण का शिकारहो रही है शहरी क्षेत्र भी अछूते नहीं है उन्हें तो यह भी नहीं पता कि महिला दिवस पड़ता कब है मनाया क्यों जा रहा है। उनके लिए महिला दिवस सार्थक नहीं हो पा रहा है।

लेकिन हमारे सामूहिक प्रयास जरुर सफल होंगे आशा करती हूं की बराबरी की दुनिया जरूर बनेगी चलो आओ हम सहयोग करें और आगे बढ़े एक  बराबरी वाली दुनिया बनाए,,,, जिसमें महिला भी महत्वपूर्ण हो पुरुष भी महत्वपूर्ण हो,, कोई कम या ज्यादा ना हो,,, सब बराबर के हो,,,, महिला पुरुष एक दूसरे का हाथ थाम कर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो ऐसी मैं आशा करती हूं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं,,,,,

#संघर्ष

मंजू तिवारी

गुड़गांव

मौलिक स्वलिखित

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