हरे कांच की चूड़ियाँ – कमलेश राणा

आज विम्मो की लगुन थी जब उसकी भाभी ने उसे हरे कांच की चूड़ियाँ पहनाई तो एक अलग सी उमंगें उन चूड़ियों की खनकती आवाज़ के साथ उसके मन में सर उठाने लगीं जैसे ही ये खनकतीं वह चौंक सी जाती और फिर अपने हाथों को देखकर मुस्कुरा देती। आज उसे अपने हाथ बहुत सुंदर लग रहे थे खुद ही मोहित हुई जा रही थी वह खुद पर। 

वह छत पर बैठी गुनगुना रही थी… 

आयेंगे जब सजन जीतने मेरा मन

कुछ न बोलूँगी मैं मुँह न खोलूंगी मैं

बज उठेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ

वादा लेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ

क्या बात है विम्मो रानी… क्या क्या ख्वाब सजाये जा रहे हैं जो गाल गुलाल हुए जा रहे हैं। 

अरे कुछ नहीं भाभी.. आज पहले सुहाग चिन्ह के रूप में आपने ये चूड़ियाँ पहनाई हैं.. पता है इन्हें पहनने के बाद अपने आप में बहुत अच्छा सा महसूस हो रहा है और ये कुछ कहती सी जान पड़ रही हैं। 

क्या??? मैं भी तो सुनूँ जरा क्या कह रही हैं हरे कांच की चूड़ियाँ। 

ये कह रही हैं अब पहले जैसा निश्चिंत जीवन नहीं रहा तुम्हारा…अब इन्हें संभालने के लिए मुझे हर कदम सोच समझ कर उठाना होगा नये जीवन में। 

सही कह रही हो विम्मो गृहस्थ जीवन की सफलता का पहला मंत्र यही है। 

पर तुम इतनी चिंता क्यों कर रही हो तुम्हारी सगाई तो बड़ी हवेली में की है तुम्हारे भैया ने, नौकर चाकरों की फौज है उनके यहाँ। 

वही सोच सोच के तो परेशान हूँ भाभी उनके घर के नियम कायदे भी बहुत सख्त हैं ऐसा सुना है मैंने …कैसे अपने आपको उनके अनुरूप ढाल पाऊँगी। हवेली की बहुएं पर्दा भी बहुत करती हैं छबीली बता रही थी उसकी बहन का घर उनके पड़ोस में है। मैं तो हमेशा से आज़ाद पंछी की तरह रही हूँ।

विम्मो को पुरानी बातें याद आ रही थी तभी बाहर आवाज़ सुनाई देती है.. 

चूड़ी ले लो.. रंग बिरंगी चूड़ी ले लो.. 

हवेली में हलचल सी मच जाती है नई चूड़ियाँ पहनने के लिए हर महिला लालायित थी सब की सब दौड़ कर दादी सा के पास पहुँच जाती हैं.. 

दादी सा…बुला लो न मनिहार को .. आज तो बहुत दिन बाद आया है। 

अरे यह हरकू कहाँ चला गया.. इससे कहो मनिहार को बुला लाये बहुएं चूड़ियाँ पहनेंगी .. और हाँ यह भी कह देना अच्छी से अच्छी मीने के काम वाली लाये। 




जी अभी बुलाकर लाता हूँ। 

और हाँ पहले एक खाट लाकर सामने रख जा.. उस पर एक चादर भी डालते जाना। 

विम्मो का मन नई चूड़ियों के नाम से बल्लियों उछल रहा था पर खाट और चादर वाली बात उसे समझ नहीं आ रही थी। परिवार की सारी महिलाएं वहाँ आकर बैठ गईं। 

खाट के उस पार मनिहार और इस पार महिलाएं थी। चूड़ियाँ छबीली लाकर पसंद करवा रही थी। 

विम्मो के मन में बड़ा कौतूहल था कि अब वह पहनायेगा कैसे जब कोई सामने ही नहीं जायेगा तो। 

शायद दादी सा उसके मन की दुविधा को समझ गई थी। वह बोली.. बड़ी बहू पहले तुम पहन लो। 

बड़ी बहू ने खाट की पांयतन में से हाथ आगे बढ़ा दिया और मनिहार ने चूड़ी पहना दी। 

उफ्फ् क्या जमाना था वह… 

आज उसकी बेटी की लगुन थी बहू निधि सामने खड़ी पूछ रही थी ..मम्मी आप दीदी के लिए जो हरी चूड़ियाँ लाई थी वह कहाँ रख दी। 

तुम चलो …मैं लेकर आती हूँ। 

उसकी बेटी जर्मनी में एक कंपनी में कार्यरत है उसके ही सहकर्मी से उन दोनों की पसंद पर आज यह विवाह हो रहा था। दोनों ही बहुत खुश थे कि उनके प्यार को मंजिल मिल गई वो भी सबके आशीर्वाद और सामाजिक स्वीकृति के साथ। 

बेटी को चूड़ियाँ पहनाते हुए विम्मो ने कहा… बेटा रिश्ते इन चूड़ियों की तरह नाज़ुक होते हैं जरा सी चोट उन्हें तहस – नहस कर देती है जिस तरह चूड़ियों की खनक मन को खुशी देती है उसी तरह रिश्तों में भी प्यार की खुशियाँ जीवन को महका देती हैं उम्मीद करती हूँ मेरी बात तुम समझ गई होगी। 

जी मम्मी, समझ गई कि ये हरे कांच की चूड़ियाँ यूँ ही नहीं पहनाई जातीं बहुत कुछ कहती हैं ये हमसे। 

माँ का मन अब संतुष्ट था। 

#5वां_जन्मोत्सव

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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