एक रिश्ता ऐसा भी – संगीता त्रिपाठी । Moral stories in hindi

 ” गलती इंसान के जीवन का एक हिस्सा हैं…. निधि, कुछ तुम से हुई और कुछ मुझसे “। मयंक दुखी स्वर में बोला।

“हमें उसी समय हिम्मत दिखानी थी। तुम तो कमजोर पड़ी, पर मै क्यों नहीं मजबूत रह पाया अपने निर्णय पर “…

   कॉफी के कड़वे घूंट लेती हुई निधि ने कहा -“अब जो हो गया उसे बदल नहीं सकते। जो जैसा हैं रहने दो। प्यार मिलन ही नहीं त्याग भी मांगता हैं। तुम अपने परिवार में मन लगाओ। दोनों बेटों को अच्छी शिक्षा देने के साथ ही उनके निर्णय को सम्मान भी देना।चलो अब देर हो रही हैं।”

” फिर कब मिलोगी, “मयंक ने पूछा। 

  “मै अब पर्सनल तौर पर नहीं मिलना चाहूंगी। क्योंकि मै तुम्हारी पत्नी को ये फीलिंग्स नहीं देना चाहती की पुरुष खराब होते हैं।तुमको भी अब इस बात का ध्यान रखना चाहिये”।

कॉफी टेबल पर बैठे निधि और मयंक कभी इस कॉफी शॉप की ही नहीं,बल्कि कॉलेज की भी लोकप्रिय जोड़ी थी।दोनों को देख कर लगता था, वे दोनों एक दूसरे के लिये ही बने हैं।पर विधि के विधान के आगे किसकी चली,खुद मयंक और निधि को भी नहीं लगा, कुदरत ने उनके लिये कुछ और सोच रखा है।

निधि ने अपने ट्रांसफर का आवेदन दे दिया.जानती थी यहाँ रह कर,वो मयंक को रोक नहीं पायेगी।विगत उसकी आँखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगा।

     कॉलेज खत्म होते ही निधि के घर वाले उसकी शादी के पीछे पड़ गये।जबकि निधि और मयंक सिविल सर्विसेज की प्रतियोगी परीक्षा देना चाहते थे। निधि ने अपने माता -पिता को बहुत समझाया , पर मध्यवर्गीय और रूढ़िवादी परिवार, बेटी के हाथ पीले कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेना चाहता था।

हार कर मयंक को निधि के घर आना पड़ा। बेरोजगार मयंक में निधि के घर वाले अपना दामाद के गुण नहीं देख पा रहे थे। मयंक उनसे सिर्फ एक साल मांग रहा था, प्रतियोगिता का एक चरण वो पास कर चुका था, दूसरे चरण की तैयारी में था। उसे पूरा विश्वास था, वो सेलेक्ट हो जायेगा।

           लेकिन निधि के घर वाले इंतजार करने को तैयार नहीं थे। मयंक के बाऱ बाऱ कहने पर भीकि चलो हम कोर्ट मैरिज कर लेते,वो माता -पिता के विरुद्ध नहीं जा पाई।

 बाईस साल जिसके साथ बिताया, उसे कैसे अनदेखा करें।दिल का रिश्ता मयंक के साथ था लेकिन इस दिल के रिश्ते के आगे वो खून के रिश्ते को कैसे अनदेखा करें….।

एक खूबसूरत कहानी का अंत हो गया। निधि का विवाह आनन -फानन में, बिना जरुरी जानकारी जुटाये, कर दिया गया। ससुराल जा निधि को समझ में आया, वहां पैसा जरूर हैं पर संस्कार नहीं हैं। माता -पिता को कुछ कहती तो वे कहते “अब वही तुम्हारा घर हैं, एडजस्ट करों सब लड़कियाँ करती हैं।”

 वे बेटी के जीवन में छाये उस अंधेरे को नहीं देख पा रहे थे, जो निधि भुगत रही थी। निधि हर पल वहां मर -मर कर जीती। कम पढ़ा -लिखा पति नितिन,उसे प्रताड़ित कर अपने अहम को संतुष्ट करता।आखिर एक दिन निधि के सब्र का घड़ा भर गया।शरीर ही नहीं दिल पर भी सैकड़ो घाव लिये वो ससुराल छोड़ आई। 

माता -पिता ने उसे वापस जाने का जोर दिया। माँ ने कहा -“पति परमेश्वर होता हैं,क्या हुआ अगर कभी -कभार हाथ उठ गया”।

” अगर परमेश्वर ऐसे होते तो मुझे नहीं रहना ऐसे परमेश्वर के साथ, “निधि चीख पड़ी। अगले दिन उसने मायके की भी दहलीज लाँघ दी। दोनों घरों के दरवाजे उसके लिये बंद हो गये। आँसू बहाती निधि सोच रही थी। काश उसने यही हिम्मत पहले दिखाई होती। मयंक की बात मान लेती तो आज जिलाधिकारी की पत्नी होती। मयंक की भी शादी साथ काम करने वाली लड़की रूचि से हो गई थी।

                             कहते हैं ना ईश्वर एक दरवाजा बंद करता तो दूसरा दरवाजा जरूर खोलता हैं। निधि ने अपनी सहेली से सहायता मांगी, उसने निधि की बहुत मदद की। निधि को प्रोत्साहित करके प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने को प्रेरित किया। 

निधि अपने इस आखिरी दरवाजे के लिये जी -जान से जुट गई। और एक दिन सफल हो मसूरी ट्रेनिंग के लिये चली गई। निधि की सफलता से उसका पति, अब उसे घर लौट आने का दबाव डालने लगा। निधि बिना किसी डर के तलाक का पेपर भेज दी। 

अब वो आत्मनिर्भर हो सक्षम हो चुकी थी।नितिन तिलमिला गया। एक औरत की इतनी हिम्मत, पति को तलाक के पेपर भेजे। उसने निधि को बदनाम करने की कोशिश करने लगा। अब माता -पिता को भी बेटी की याद आई। उन्होंने बेटी का साथ दिया।

                    ट्रेनिंग के बाद निधि की पोस्टिंग अपने शहर से बाहर हो गई। उसने नया जीवन आत्मविश्वास और हिम्मत से जीना शुरू किया। एस. पी. सिटी निधि मैडम अपने हिम्मती स्वाभाव से प्रसिद्ध हो गई। घूमते -फिरते आखिर निधि की पोस्टिंग अपने शहर में हो गई। एक समारोह में मयंक से मुलाक़ात हो गई, जो मुख्य अतिथि बन आया था। निधि को देख मयंक अपने को रोक नहीं पाया,अगले दिन मयंक ने उसे उसी कॉफी शॉप में बुलाया, जहाँ वे कॉलेज के समय मिलते थे।

      आज ये कॉफी शॉप ही, जो उसके प्यार का साक्षी था। फिर जीवन का एक खूबसूरत पन्ना बंद कर आई। शुरू में की गलती के लिये अब पूरी किताब को तो नहीं फाड़ सकती। सिर्फ गलती वाले पन्ने को ही हटा सकती हैं। 

निधि को शादी के कई रिश्ते आये। उसने मना कर दिया। आखिर कब तक दिल को जख़्मी करेंगी। समय अपनी रफ़्तार से भाग रहा था,निधि अपने काम में व्यस्त ध्यान ही नहीं दे पाई कब उम्र भी फिसल गई, बालों कि चांदी ने उसे अहसास दिलाया, अब उम्र हो चली।

   एक छुट्टियों में निधि अमेरिका गई। मॉल में घूमते हुये, उसे एक लड़के ने आवाज दी “आप निधि मैम हैं।” 

   ” हाँ, आपको मैंने पहचाना नहीं, “हालांकि कुछ अपनत्व की फीलिंग आ रही हैं।

     ” मै कार्तिक हूँ, अब तो आप समझ गई होंगी।”

     ” ओह तुम मयंक जी के बेटे हो।”कैसे भूलती मयंक के साथ देखे ख़्वाबों में बेटे का नाम कार्तिक रखा था उसने।

    ” जी “कह कार्तिक ने उसे आग्रह किया “आप अगर समय दे तो मै आधे घंटे के लिये आपको अपने घर ले जाना चाहता हूँ। मेरी मॉम आपसे मिलना चाहती हैं।”

       “मयंक कैसे हैं, अब तो वो भी रिटायर हो गये होंगे।”

  ” जी अब वो नहीं हैं “

   निधि लड़खड़ा गई। कार्तिक ने उसे संभाल लिया। ठीक वैसे, जैसे कभी मयंक संभाल लेता था।कार्तिक के घर पहुंची तो रूचि दरवाजे पर इंतजार करते मिली, शायद कार्तिक ने पहले ही फोन कर दिया था। कार्तिक की पत्नी और नन्ही बेटी थी। रूचि ने निधि को बताया मयंक उसे भूल नहीं पाया था।जब निधि मयंक को दुबारा मिली थी,उसके दो साल बाद ही मयंक की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी।अटैक से पहले मयंक डायरी ही लिख रहे थे, अंतिम बार, पन्ने पर निधि ही लिखा था, कि कलम हाथ से छूट गई थी। रूचि ने तय कर लिया था मयंक के जज्बातों की ये डायरी निधि को दे देगी..।मयंक ने रूचि को शादी से पहले ही सब कुछ बता दिया था। रूचि मयंक की ईमानदारी से प्रभावित थी। इसलिये मयंक उसे दिल की सब बातें बताता था।रूचि ने निधि को वो डायरी दे दी, जो मयंक रोज लिखता था। निधि डायरी सीने से लगाये लौट आई।

       एक युग का अंत हो गया।स्वस्थ और सुंदर दिल के इस रिश्ते को समाज में अहमियत नहीं मिली, लेकिन इस कहानी ने कई दिलो को छुआ, रिश्ता सिर्फ मिलना ही नहीं होता, बल्कि त्याग भी रिश्ते की पुख्ता जमीं होती है।

                     —संगीता त्रिपाठी 

   #दिल का रिश्ता

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