मेरी बहना आ गई – विभा गुप्ता । Moral stories in hindi

मेरी बहना आ गई 

      ” भवानी बाबू…आप दवा नहीं खायेंगे तो कैसे ठीक होंगे।अभी कितना कुछ करना है आपको…बेटे की शादी करनी है…पोते-पोतियों के साथ खेलना है।इसलिए दवाएँ समय पर अवश्य खाएँ और हाँ, खुश रहने का प्रयास कीजिये।” मुस्कुराते हुए डाॅक्टर अग्निहोत्री ने भवानी बाबू को देखा और कमरे से बाहर निकल गये।

    ” भाईसाहब…आप इतने दिनों से इनका इलाज़ कर रहें हैं… ये ठीक क्यों नहीं हो रहें हैं…इन्हें हुआ क्या है?” भवानी बाबू की पत्नी सरिता ने डाॅक्टर अग्निहोत्री से चिंतित स्वर में पूछा।

     ” भाभी जी….एक डाॅक्टर और उनका मित्र होने के नाते मैं भवानी बाबू का बेस्ट ट्रीटमेंट कर रहा हूँ लेकिन उन्हें भी तो कोशिश करनी चाहिए।वैसे भी भाभी…हर बीमारी का इलाज सिर्फ़ दवा नहीं होती।आप समझ रहीं हैं ना कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ..।” कहते हुए डाॅक्टर अग्निहोत्री ने एक गहरी नज़र उनपर डाली।

    ” जी भाईसाहब…।” सरिता जी ने अपनी नज़र नीची कर ली।

          भवानी बाबू तेरह बरस के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था।उनकी माताजी ने बड़े कष्टों से उन्हें और उनसे सात बरस छोटी बहन गायत्री को पाला था।

        इंटर के बाद पढ़ाई भवानी बाबू ने पढ़ाई छोड़ दी और अपनी माँ का सहारा बन गये। थोड़ी पूँजी लगाकर उन्होंने कपड़े की एक दुकान खोली।उनकी मेहनत और ईश्वर की कृपा से उनके काम में खूब बरकत होने लगी।गायत्री में उनके प्राण बसते थे।उसको हल्की खरोंच भी आ जाती तो वो परेशान हो जाते थें।गायत्री भी अपने भाई पर जान छिड़कती थी।

     माताजी का आदेश मानकर भुवन ने उनकी पसंद की लड़की सरिता से विवाह कर लिया।सरिता सुलझे विचारों वाली सरल स्वभाव की लड़की थी।जल्दी ही सास-ननद के साथ उसका तालमेल बैठ गया था।

     समय के साथ सरिता दो बेटों की माँ बन गई।गायत्री अपने भतीजों के साथ खेलते हुए खुद बच्ची बन जाती थी।दोनों भतीजों के साथ गायत्री का जुड़ाव देखकर सरिता उससे मज़ाक करती,” ससुराल जाते समय इन्हें भी साथ ले जाना।” तब वह ‘ धत् भाभी’ कहकर शरमा जाती थी।

     गायत्री की माताजी अस्वस्थ रहने लगी तब उन्होंने भवानी से कहा कि कोई अच्छा-सा घर-वर देख ले…अपनी आँखों के सामने बेटी को विदा कर देना चाहती हूँ।भाग्य से उन्हें अपने ही शहर में अच्छा परिवार मिल गया।पिता अध्यापक और पुत्र केशव बैंक अधिकारी।उन्होंने तुरंत बात पक्की करके चट मंगनी पट ब्याह कर दिया।जिस बहन को देखे बिना मुँह में निवाला नहीं जाता था, उसे विदा करना भवानी बाबू के लिये बहुत कठिन था परन्तु समाज की रीत तो निभानी ही पड़ती है।रोते हुए बहनोई को हाथ जोड़कर विनती किये थे कि मेरी नादान बहना से कोई भूल हो जाए तो माफ़ कर देना।

      शादी के बाद पहली रक्षाबंधन पर गायत्री मायके आई तब भवानी बाबू ने बहन को बहुत उपहार दिये तो  सरिता के तेवर बदल गये।साल भर बाद गायत्री गर्भवती हुई तब भवानी बाबू ने उसकी गोद भराई पर जी भर के खर्चा किये।गायत्री के बेटा होने पर उसके ससुराल वालों ने पार्टी दी।वहाँ जाने के लिये भवानी बाबू खरीदारी करने लगे तब उनकी माताजी ने कहा,” बेटा..भाई का फ़र्ज निभाने में अपने परिवार का कर्तव्य मत भूल जाना।तुम्हारे बच्चे भी अब सयाने हो रहें हैं..उनके बारे में सोच।गायत्री के लिये तेरी ज़िम्मेदारी…।”

” क्या माँ…एक ही तो मेरी बहन है..।” भवानी बाबू ने माँ की बात को अनदेखा कर दिया।

     अब सरिता को ननद का आना अखरने लगा।सास का लिहाज़ करके बोलती तो कुछ नहीं थी लेकिन उसके हाव-भाव से सास और गायत्री को अंदेशा हो गया था।माताजी के देहांत के करीब छह माह बाद जब गायत्री मायके आई तो सरिता ने उससे बात नहीं की, ना ही उसके बेटे को अपनी गोद में लिया।भाई-भतीजों से मिलकर अगले दिन वह वापस जाने वाली थी।उसी रात भाई के कमरे से उसे आवाज़ सुनाई दी।भाभी कह रही थी कि सब बहन पर लुटा देंगे तो मेरे बच्चे क्या भीख माँगेगे? भवानी बाबू बोले,” तुम्हें या बच्चों को कोई कमी होनी दी है हमने?” 

” मेरी माँ ठीक ही कहती थी कि तुम्हारी ननद भाई-भाभी को कंगाल..।” 

  ” सरिता..।” भवानी बाबू ज़ोर-से चीखे थे।फिर गायत्री वहाँ नहीं रुकी।अगली सुबह जो गई तो फिर मायके कभी नहीं आई।रक्षाबंधन के दिन भवानी बाबू रूठी बहन को मनाने गये लेकिन उसने हँसकर मना कर दिया।

      साल दो साल बीतते चले गये लेकिन एक ही शहर में रहते हुए भी भवानी बाबू बहन को देखने के लिये तरस गये थे।रक्षाबंधन पर जब वो जा नहीं पाते तो गायत्री किसी के हाथ राखी और मिठाई भेज देती थी।उस दिन वो बहुत रोते और गायत्री भी बहुत रोती।

   भवानी बाबू का बड़ा बेटा बीकाॅम करके अपने पिता के काम को संभालने लगा था और छोटा आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग कर रहा था।अब उनका जी उचाट हो गया था।अनमने-से रहने लगे थे।पत्नी कारण पूछती पर वो कुछ जवाब नहीं देते और फिर एक दिन उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।कम बोलते और खाने में आना-कानी करते।डाॅक्टर अग्निहोत्री उनका इलाज कर रहे थे।कुछ दिनों में ही वो समझ गये कि भवानी बाबू का मर्ज़ क्या है।इसीलिए आज जब सरिता जी ने उनसे प्रश्न किया तो उन्होंने कह दिया कि इन्हें दवा की नहीं बल्कि…।

        सरिता जी तुरंत ननद के ससुराल गई और हाथ जोड़कर माफ़ी माँगते हुए बोली,” अपने भाई को बचा लो गायत्री…।”

  ” क्या हुआ मेरे भइया को…।” जैसे थी वैसे ही भाभी के साथ मायके आ गई और भाई के गले लगकर रो पड़ी।बहन की आवाज़ ने भवानी बाबू के शरीर में जैसे प्राण फूँक दिये हो।मेरी बहना आ गई…कहते ही उठकर बैठ गये।उनका चेहरा खिल उठा।इतने दिनों बाद पति को हँसते-बोलते देख सरिता जी की आँखें खुशी-से भर आईं।खाने का थाल गायत्री को थमाते हुए बोली,” अब आप दोनों भाई-बहन खाना खाइए…मैं आती हूँ।” 

     चाय का कप डाॅक्टर अग्निहोत्री को देने लगी तो वो बोले,” देखा भाभी…बहन को देखते ही भवानी बाबू की बीमारी उड़न छू हो गई।”

 ” हाँ भाईसाहब…आपने ठीक ही कहा था कि हर बीमारी का इलाज सिर्फ़ दवा नहीं होती।उनकी बीमारी तो बहन से बिछोह था जो उसे देखते ही ठीक हो गई।” कहते हुए सरिता जी भाई-बहन के मिलाप को देखकर हौले- हौले मुस्कुराने लगीं।

                        विभा गुप्ता 

                          स्वरचित 

                ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

# हर बीमारी का इलाज सिर्फ़ दवा नहीं होती

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!