दो फूल एक माली – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज सिया ने रिद्धि और सिद्धि दोनों को कानूनी तौर तरीके से भी अपना बना लिया था। कल इसी उपलक्ष्य में घर में पूजा रखी गई थी। बहुत सारे रिश्तेदारों और मित्रों को आमंत्रित किया गया था। रात को सोने के समय भी सिया की आंखों से नींद गायब थी। रह-रह कर उसकी नज़र रिद्धि और सिद्धि के मासूम चेहरे की तरफ जा रही थी जो पूरी दुनिया से बेखबर होकर आज़ सुकून की नींद ले रही थीं।उनकी तरफ देखते हुए,वो अपनी ज़िंदगी के पुराने लम्हों में खो गई। आज से लगभग नौ-दस साल पहले जब सिया ने कॉलेज शुरू ही किया था,तब कक्षा का रास्ता पूछते हुए उसकी मुलाकात मानव से हुई थी। मानव को देखते ही सिया की तो पलकें झपकना ही बंद हो गई थी। असल में मानव का चेहरा बहुत कुछ उसके सपनों के राजकुमार जैसा था। वैसे भी ये उम्र ही ऐसी होती है जिसमें दिवास्वप्न देखने की आदत सी होती है और फिर सिया तो वैसे भी अपनी ही कल्पनाओं में खोई रहने वाली लड़की थी। इन सब बातों का मतलब ये नहीं था कि उसका पढ़ाई लिखाई में कोई मन नहीं था।वो पढ़ाई में भी बहुत अच्छी थी। उसको अपनी तरफ इस तरह से देखते हुए मानव ने भी पूछ ही लिया था, कि उसको कुछ काम था क्या? तब उसने चौंककर अपनी कक्षा का पता पूछा। बातों- बातों में दोनों को पता चला वो एक ही कक्षा में हैं। इस तरह उसकी और मानव की दोस्ती की शुरुआत हुई। 

समय के साथ दोनों एक दूसरे के नज़दीक आते गए। दोनों ने एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार भी कर दिया था।दोनों अपना अधिकतर समय एक दूसरे के साथ ही बितातें थे। ऐसा लगता था दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं। कॉलेज के तीन साल कब पंख लगाकर उड़ गए पता भी ना चला। पूरे कॉलेज में उन दोनों को हीर-रांझा, रोमियो-जूलियट और भी पता नहीं किन-किन नामों से पुकारा जाता था। 

कॉलेज के बाद मानव को अपने पापा की फैक्ट्री संभालनी थी और सिया को आगे प्रबंधन की पढ़ाई करनी थी। पर दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करते थे कि उन्होंने सोचा कि पहले अपने घरवालों को भी अपने रिश्ते के विषय में बता देते हैं जिससे भविष्य में कोई समस्या ना हो। दोनों को घरवालों के इन्कार की कोई संभावना ना थी, क्योंकि सब विकासशील विचार वाले थे। 

जब घर वालों को पता चला तो उन्होनें खुशी-खुशी अपने बच्चों की पसंद पर मोहर लगा दी। अब सिया अक्सर मानव को कहती कि दुनिया में बहुत सारी प्रेम कहानी है पर उनकी प्रेमकहानी सबसे अनोखी होगी।सब अच्छा चल रहा था पर कहते हैं ना,खुशियों को कभी कभी खुद की ही नज़र लग जाती है। ऐसा ही कुछ मानव और सिया के साथ हुआ।



दोनों के घर वालों ने सोचा शादी होती रहेगी पर अभी एक छोटी सी रसम कर लेते हैं। इसी सिलसिले में मानव के पिता ने अपने घर के पुरोहित जी को भी बुलाया। मानव के घर में सारे कार्य उन पुरोहित जी से पूछ कर ही किए जाते थे। पुरोहित जी ने शुभ मुहूर्त सुझाने के लिए मानव और सिया की जन्मपत्री मंगाई। जैसे ही उन्होंने दोनों की जन्मपत्री देखी तभी उनके मुख पर अवसाद के बादल आ गए। उन्होंने इस विवाह के लिए इंकार कर दिया। उनके अनुसार सिया मांगलिक थी और मानव के लिए ये शादी बहुत अनिष्टकारक सिद्ध होगी। जब मानव और सिया को इस बात का पता चला तब उनके तो पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। मानव ने अपने घर पर सबको मानने की बहुत कोशिश की पर उसकी एक नहीं सुनी गई। मानव वैसे भी अपने माता-पिता का इकलौता चिराग था। जो काफ़ी पूजा पाठ और मन्नतों के बाद हुआ था। उसके होने के बाद से पुरोहित जी में उसके माता- पिता की श्रद्धा काफ़ी बढ़ गई थी। वे पुरोहित जी किसी बात की भी अवज्ञा नहीं करना चाहते थे।

वहीं दूसरी तरफ सिया भी अपनी वजह से मानव का कोई अनिष्ट नहीं चाहती थी। वैसे तो वो पढ़ी लिखी इक्कीसवीं सदी की लड़की थी पर जब बात मानव की आती तो वो कमज़ोर पड़ जाती। इस तरह मानव और सिया के सजाए सारे सपनें संवरने से पहले ही बिखर गए। मानव तो पूरी तरह टूट गया था पर सिया ने मजबूती दिखाई।अपने प्रेम का हवाला देते हुए मानव को समझाया कि अब वो दोनों कभी नहीं मिलेंगे और मानव अपने माता-पिता के कहे अनुसार किसी दूसरी लड़की से शादी कर लेगा।

 आने वाले कुछ ही दिनों में सिया आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई। इस तरह दोनों की राहें अलग अलग हो गई। चूंकि मानव ने सिया से वादा किया था अतः उसने अपने माता पिता की स्वीकृति से प्रिया नाम की लड़की से शादी कर ली। शादी के बाद उन दोनों के जुड़वा बेटियां हुई, जिनके नाम रिद्धि और सिद्धि रखे गए। उन दोनों की शरारतों और तोतली बोली से मानव फिर से खुश रहने लगा था।अभी जिंदगी पटरी पर लौट ही रही थी। 

कुछ समय पहले ही सिया ने भी अमेरिका से वापस लौट कर अपने शहर के एक बड़े समाचार पत्र में प्रबंधक के रूप में कार्यभार संभाला था कि अचानक से कोरोना की दूसरी लहर आ गई। दूसरी लहर ने लोगों को संभलने का मौका नहीं दिया। बहुत सारे घर के चिराग बुझ गए। मानव और उसकी पत्नी भी कब इस बीमारी की चपेट में आ गए पता ही नहीं चला। दोनों को हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा। जिंदगी की जंग हुए वो दोनों भी काल का ग्रास बन गए। अब घर पर दोनों बूढ़े माता-पिता और तीन साल की जुड़वा बच्चियां रह गई थी जो सारी बातों से अनजान थी। वैसे तो बहुत लोग असमय चले गए थे पर शहर के इतनी बड़ी फैक्ट्री के मालिक के पुत्र और पुत्रवधु की मृत्यु होने की सूचना समाचार पत्र के शौक संदेश कॉलम में भी पहुंच गई थी।जैसे ही समाचार पत्र के शौक संदेश वाले स्तंभ पर सिया की नज़र गई तब मानव और उसकी पत्नी का नाम देखकर उसे विश्वास नहीं हुआ पर निवास स्थान और फैक्ट्री का पता देखकर वो जड़ रह गई। नियति ने बहुत ही क्रूर मज़ाक किया था। उसने तो मानव से भविष्य में ना मिलने का वादा लिया था पर यहां तो वो उसके आखिरी दर्शन भी न कर पाई। वो पत्थर हो गई थी। किसी तरह उसने अपने आपको संभाला। मानव के घर जाने का फैसला लिया। जहां लोग एक दूसरे से मिलने से बच रहे थे ऐसे में वो मानव के घर पहुंची। मानव के माता-पिता का हाल बुरा था। उनके तो बुढ़ापे की लाठी ही छिन गई थी। दोनों बच्चियों को भी कोई दुलारने वाला ना था। सिया का दिल बैठ गया। दोनों बच्चियों में उसे मानव का अक्स दिख रहा था। सिया ने पहले वहां सब संभाला। मानव के माता-पिता की आंखों में बहुत पछतावा था। सिया ने उन लोगों को दिलासा दिया। वैसे भी सिया के मन में उनके लिए भी कोई गिला-शिकवा नहीं था, सब कुछ भूलकर उसने दोनों बेटियों को गले से लगा लिया। दोनों बच्चियों को भी इतने दिन बाद स्नेह की छांव मिली थी।



 घर आकर सिया ने दोनों बच्चियों को अपनाने की सोची। अपने माता-पिता को भी अपना फैसला बता दिया था। उसके माता-पिता तो वैसे भी हर कदम पर उसके साथ थे पर कहीं ना कहीं उनको लग रहा था कि भविष्य में उसके इस फैसले से सिया की शादी नहीं हो पाएगी। ऐसी ही सोच मानव के माता-पिता को भी थी वो नहीं चाहते थे की उनकी वजह से एक बार फिर सिया को कुछ सहना पड़े। ये देखकर सिया ने उन चारों को एक साथ बैठाया और मानव की बेटियों को अपनाने का अपना अंतिम निर्णय सुनाया। सिया ने उनको कहा कि मानव उसकी ज़िंदगी का पहला और आखिरी प्रेम था। उसके बाद वैसे भी वो किसी से भी शादी ना करने का निर्णय ले चुकी है। उसके लिए असली प्रेम वो है जो प्रेमी से ही नहीं बल्कि उससे जुड़े सभी लोगों से भी हो। रिद्धि-सिद्धि के रूप में मानव उसके आस पास रहेगा। वो अपने प्यार की निशानी को एक माली बनकर प्यार देगी। फिर वो माहौल को हल्का बनाते हुए हंसकर उन चारों को कहती है कि आप लोगों के समय एक फूल दो माली फिल्म आई थी पर अब मेरी प्रेम कहानी दो फूल एक माली के नाम से सब याद रखेंगे। अब रिद्धि और सिद्धि मेरी ही बागियां के सबसे सुंदर हैं जिन्हें मेरे से कोई अलग नहीं कर सकता। वो ये सोच ही रही थी कि रिद्धि और सिद्धि दोनों ने ही नींद में मम्मा बोलते हुए उसके गले में अपनी छोटी-छोटी बाहें डाल दी।

 

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी। कृपा अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। प्रेम विषय पर इस कहानी को भी पूरे प्यार से लिखा है क्योंकि प्रेम सिर्फ पाने का ही नहीं बल्कि अपने आपको पूरी तरह न्योछावर करने का भी नाम है।

#प्रेम 

स्वरचित और मौलिक

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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