दृष्टि – बालेश्वर गुप्ता

        ओ सरस्वती जरा पिंकी को तो दे, उसे दूध पिला दूँ.

  लाई – लाई, लो संभालो अपनी बेटी को, मुझे तो ये छोड़ती ही नही.

    एक बात तो बता सरस्वती, तू मेरा इतना ध्यान रखती है, मेरी बच्ची को तो एक तरह से तू ही पाल रही है, मेरा तेरा क्या रिश्ता है, भला?

     पिछले जन्म की मेरी बहन है तू सुमन. मैं तो जो करती हूँ अपनी बहन समझ कर ही करती हूँ.

    सरस्वती, पिछले जन्म की नही, तू इसी जन्म की मेरी बहन है और कौन है हमारा.

         तीन वर्ष में ही सुमन की दुनिया बदल गयी थी. महिला अनाथालय में पढ़ी पली सुमन का तीन वर्ष पूर्व ही अनाथ विक्रम से विवाह हो गया और एक वर्ष बाद ही पिंकी गोद में आ गयी.


          पिंकी के आने के समय सिवाय विक्रम के सुमन के पास कोई भी नही था. कोई होता भी कैसे आखिर दोनो ही अनाथ जो थे. ऐसे में उनकी सोसाइटी के पास रहने वाले किन्नर जिसका नाम था सरस्वती, उसने भरपूर सहायता की.

      सरस्वती के सुमन के यहाँ आने जाने पर सोसाइटी वाले बड़ी ही कौतुहल से देखते थे, कभी-कभी तो कुछ छिछोरे फबतिया भी कसते. पर सरस्वती इन  सब की परवाह किये बिना सुमन के फ्लेट पर उसके पास आती रही. दो वर्ष हो गये, अब तो सरस्वती और सुमन एक प्रकार से दो जिस्म एक जान हो गये.

        विक्रम ने भी अपने जीवन में अनाथ होते हुए भी कम संघर्ष नही किया. पी डब्ल्यू डी में किसी प्रकार क्लर्क की नौकरी मिल गयी तब जाकर उसने विवाह किया. यतीम था तो यतीम को ही जीवन साथी भी चुना. एक बेड रूम का फ्लेट लेकर दोनो ने अपनी गृहस्थी जमा ली.

      विक्रम मेहनती और ईमानदार था, उसका अपने वेतन में खूब अच्छी तरह परिवार चल रहा था. शादी के एक वर्ष बाद ही उन्हे एक नन्ही परी भी मिल गयी थी, और सुमन को सरस्वती के रूप में एक सच्चा मित्र.

      सब कुछ ठीक चल रहा था. आज सोसाइटी में अचानक ही एक चारो ओर से शोर उठा. एक भगदड़ सी मच रही थी. सुमन भी असमंजस में थी कि ये कैसा शोर है? उसने विक्रम को आवाज भी लगाई, देखो तो बाहर कैसा हंगामा हो रहा है. विक्रम थोड़ी देर पहले ही बाल्कनी में सुमन के सामने ही गया था. उसका उत्तर ना पाकर सुमन बाल्कनी में जाकर विक्रम को फिर आवाज लगाने को होती है, पर वहाँ तो विक्रम है ही नही. एक अनजानी आशंका से सुमन बाल्कनी से नीचे झाँककर देखती है तो उसके मुहँ से एक चीख निकल जाती है. बदहवास सी सुमन नीचे दौड़ पड़ती है. उसे देख भीड़ एक तरफ हट जाती है, उसके सामने पड़ा था विक्रम का क्षत विक्षत शरीर. भावशून्य और पत्थर की हो गयी सुमन. आज एक अनाथ लड़की को फिर अनाथ कर दिया था विक्रम ने. पगलाई सी सुमन करे तो क्या करे, उसका तो कोई भी नही, कोई रिश्तेदार नहीं दोस्त नहीं, वो तो अनाथ ही रह गयी.


        किसी ने उसके कंधों से पकड़ कर उठाया तो सुमन ने देखा कि पिंकी को लिये सरस्वती खड़ी है, मानो कह रही है मैं हूँ ना.

          अंतिम संस्कार से लेकर विक्रम के ऑफिस तक की औपचारिकताओं में सरस्वती ने ही पूरी सहायता की. इस बीच विक्रम के अंतिम पत्र से पता चल गया था कि उसको एक ठेकेदार ने रिश्वत के झूठे केस में फंसा दिया था, इस कलंक को सह ना पाने के कारण विक्रम अपनी सुमन और दो वर्ष की पिंकी को तडपता छोड़ दूसरे लोक में चला गया था.

        अवसाद में आयी सुमन को सरस्वती ने ही सम्भाला, उसकी बच्ची को अपने दिल का टुकड़ा मान उसका पालन भी किया और सुमन को अवसाद से बाहर निकाल विक्रम के ऑफिस में ही उसके लिये नौकरी के प्रयास भी किये.

      सच्चे प्रयास विफल नहीं होते. आज पिंकी स्कूल भी जाती है और माँ का ध्यान भी रखती हैं पर अपनी बड़ी माँ सरस्वती के पावन पैर छूने नहीं भूलती.


         लोग तो आज भी सरस्वती को किन्नर होने के कारण हेय दृष्टि से ही देखते हैं, कहाँ से लाएँगे वो सुमन और पिंकी वाली दृष्टि – – – – – -?

                      बालेश्वर गुप्ता

                               पुणे (महाराष्ट्र)

         अप्रकाशित, मौलिक

 

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