दर्द कि इंतहा -मंजू ओमरMoral stories in hindi

शुभी कबसे देवेश को फोन कर रही थी लेकिन देवेश का फोन नहीं उठ रहा था । काफी देर हो गई थी देवेश को गए हुए । शुभी सोचने लगी इतनी देर क्यों लगा गई देवेश को अमित शुभी का भाई उसको ट्रेन में बैठाने ही तो गये थे देवेश ।दस बजे की ट्रेन थी और अब तो 11 बज रहे थे।सोच में डूबी शुभी सोफे पर बैठ गई तभी शुभी की तीन साल की बेटी तनु कहने लगी मम्मा मम्मा टी वी चलाओ कार्टून देखना है । शुभी ने जैसे ही टीवी चलाया न्यूज चैनल लगा हुआं था उसपर न्यूज आने लगी कि अभी अभी किसी रिश्तेदार को गाड़ी में बिठाने आए यूवक की कार से टक्कर हो गई और वो लहूलुहान हालत में सड़क पर पड़ा है ।ये खबर सुनकर शुभी थोड़ी सी चौंकी और उसने फिर से ध्यान से वो न्यूज़ सुनी ।एक युवक खून से लथपथ सड़क पर पड़ा है उसके सिर से खून बह रहा है लेकिन युवक का चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था । लेकिन शुभी देवेश की शर्ट से पहचान गई अरे क्या ये देवेश है ।उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।

                  शुभी जल्दी से बगल वाले फ्लैट के गुप्ता अंकल के पास गई और बोली अंकल टीवी पर ऐसा ऐसा न्यूज दिखा रहे हैं आप प्लीज जरा स्टेशन जाकर पता करिए न । अच्छा बेटा तू घबरा मत मैं अभी जाता हूं पता लगाने। गुप्ता जी ने अपनी स्कूटर उठाई और चल पड़े स्टेशन । 

                       वहां जाकर देखा तो देवेश बड़ी बुरी हालत में सड़क पर पड़ा हुआ था । पूछने पर पता चला कि चार लड़के जो अत्यधिक शराब पीए हुए थे उनकी गाड़ी अनियंत्रित होकर इस आदमी को ठोकर मारी दी और ये उनकी गाड़ी के नीचे आ गया जिससे घसीटता हुआ कुछ दूर तक चला गया । पता नहीं किसका बेटा है बेचारा । पुलिस आई और एंबुलेंस बुलाई गई देवेश को उठाकर अस्पताल ले गए लेकिन देवेश की तब-तक मृत्यु हो चुकी थी।

                  शुभी जिसकी अभी पांच साल पहले शादी हुई थी ।28 की ही तो थी शादी के समय । शुभी के सांस ससुर गांव में रहते थे एक जेठ जीठानी थी वो बांबे में रहते थे । देवेश और शुभी भोपाल में रहते थे । शुभी और देवेश के दो बेटियां थीं एक तीन साल की थी तनु और दूसरी एक साल की थी मनु ।मनु आज एक साल की हुई है उसका आज पहला जन्मदिन था ।उसी में शुभी के सास ससुर और शुभी का भाई अमित आया हुआ था । जन्मदिन की छोटी सी पार्टी रखी थी घर पर करना तो धूमधाम से था पर देवेश के पापा बीमार थे उनका घुटनों का आपरेशन हुआ था इसलिए बस थोड़े से लोगों को बुला कर घर में ही पार्टी कर ली थी । जिसमें शुभी का भाई झांसी से आया था ।रात में उसको ट्रेन में बिठाना था क्योंकि दूसरे दिन उसका पेपर था।

                    खबर की जांच पड़ताल अच्छे से की गई तो पता चला कि खबर पक्की है वो चार लड़के अमीरजादे थे जो नशे में धुत्त होकर गाड़ी चला रहे थे । देवेश तो किनारे खड़ा होकर फोन पर किसी से बात कर रहा था इतने में गाड़ी डिसबैलेंस होकर देवेश को रौंदती हुई चली गई। देवेश की चीख पुकार सुन कर लोग इकट्ठे हो गए और उसको हासपिटल तक पहुंचाया लेकिन तब तक उसकी मृत्यु हो गई थी ।

                 शुभी पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था । देवेश के मां बाप का भी रो-रोकर बुरा हाल था आखिर उनका जवान बेटा चला गया था । बांबे से शुभी के जेठ जिठानी भी आ गए थे ।दो दिनों तक पुलिस कार्रवाई चलती रही । फिर तीसरे दिन देवेश की बाड़ी घर आई । बाड़ी बहुत बुरी कंडीशन में थी इसलिए खोलने की इजाजत नहीं दी गई लेकिन शुभी बार बार जिद कर रही थी कि एक बार चेहरा दिखा दो । चेहरा देखते ही शुभी बेहोश हो गई । अंतिम संस्कार के लिए बाड़ी ले जाई गई । शुभी की तो दुनिया ही उजड़ गई थी । शुभी के साथ साथ देवेश के मां बाप का भी बहुत बुरा हाल था।

                  तेरहवीं के बाद शुभी के मम्मी पापा उसको अपने साथ ले आए । बच्चों के खातिर जीना तो था ही। हिम्मत जुटानी पड़ी ।मनु तो बोर नहीं पाती थी लेकिन तनु पूछती थी मम्मा पापा कहां गए। शुभी कोई जवाब नहीं दे पाती थी । लेकिन शुभी को अब हिम्मत दिलाना था तो जो कोई भी शुभी से मिलने आता शुभी की मम्मी उनसे शुभी की हिम्मत बढ़ाने की बात करती ।बस इसी तरह दिन महीने निकलते रहे ।

                 सभी के सहयोग से शुभी में थोड़ी हिम्मत आई ।देवेश रेलवे में थे तो उनकी नौकरी शुभी को आफर हुई , शुभी पढ़ी लिखी तो थी ही ।एक साथ बाद शुभी आज उस नौकरी का इंटरव्यू देने गई और वो सलेक्ट हो गई वो तो नौकरी उसको मिलना ही था।

                     आज शुभी दोनों बेटियों की मम्मी और पापा दोनों बनकर खड़ी है ।आज तीन साल हो गए वो छोटी सी शुभी आज छोटी सी उम्र में ही काफी मैच्योर दीख रही थी । शुभी के एक बुआ फूफा है जो शुभी को बहुत प्यार करते हैं उनके कोई औलाद नहीं है तो वो शुभी को ही अपने बच्चों सा प्यार करते हैं । शुभी ने एक अलग घर ले लिया है और उसमें अपने बुआ फूफा को भी साथ रख लिया है । शुभी को तो बच्चों के लिए सहारे की जरूरत थी और बुआ फूफा को बच्चों की जरूरत थी सो दोस्तो दोनों की जरुरतें पूरी हो रही है। दोनों एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं।

                सच है ऊपर वाला एक सहारा छीनता है तो दूसरा सहारा भेज देता है । दोनों एक दूसरे का सहारा बनकर जीवन यापन कर रहे हैं।बुआ फूफा का प्यार दुलार पाकर बच्चे भी देवेश को भूल गए हैं । आखिर बच्चियों की उम्र ही क्या थी महज तीन साल की सब भूल जाता है।उस ईश्वर के न्याय को क्या कह सकते हैं ।बस उसके फैसले को हमें मानना ही पड़ता है। यही विधि का विधान है ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

19 अप्रैल

#दिल का रिश्ता

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