दामाद अपना बेटी पराई – स्मिता सिंह चौहान

“दामादजी को  वक़्त नहीं मिल पा रहा है तो तुम चली जाओ। इतने वक़्त तक अपना घर छोड़ना ठीक नहीं है। दामादजी का फ़ोन आया था ना  कल तुम्हारे पास क्या कह रहे थे?” ममता जी ने अपनी बेटी सीमा के हाथ से सुबह की चाय के कप लेते हुए कहा।

“क्या माँ आप भी अभी 15-20 दिन हुए नहीं  मुझे यहाँ आये आप तो ऐसे बात कर रही हो जैसे यह घर मेरा है ही नहीं। “सीमा ने अपनी माँ को प्रत्युत्तर देते हुए कहा।

ये पकड़ना “चादर का एक कोना पकड़ाते हुए।” ऐसा नहीं है लेकिन अभी शादी को 2  महीने  भी नहीं हुए तुम 3 बार आ गयी। बात है कोई ?अच्छा नहीं लगता। माना की दामादजी और तुम अकेले रहते हो लेकिन नयी नयी गृहस्थी में कितने काम होते है? दामादजी भी अपना खाना पीना कैसे कर रहे होंगे ?” ममता जी  ने सीमा  को जैसे अप्रत्याशित रूप से फिर से उसको उसके घर जाने की सलाह दे डाली। 

“ठीक है माँ आपको इतनी ही भारी होने लगी हूँ तो आज ही बात करके कहती हूँ मैं आ रही हूँ। ” सीमा तुनकते हुए नहाने चल दी।

सीमा ममता जी  की एकलौती संतान थी। उसके पिता की मृत्यु तब हो गयी थी जब वह तीन साल की थी। ममता जी  को उनके पति की गवर्मेंट जॉब मिल गयी जिसकी वजह से उन्हें दिल्ली मैं अपना भरा पूरा परिवार छोड़कर चंडीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा था। ममता जी  ने सीमा की परिवरिश बड़े लाढ प्यार से की थी। लेकिन उन्होंने ऑफिस की ज़िम्मेदारियों के साथ साथ अपने घर परिवार की ज़िम्मेदारिया भी बखूबी निभाई थी।

“माँ माँ दरवाजे की घंटी बज रही है  प्लीज खोलो  ना। मुझे थोड़ी देर और सोना है। ” कम्बल से अपना मुँह ढकते हुए सीमा  ने आवाज़ दी। लेकिन घंटी लगतार बजती ही जा रही थी। ” पता नहीं कौन आ गया सुबह सुबह ?माँ माँ कहा हो तुम ?” कहते हुए सीमा अपने बालो को समटते हुए दरवाज़ा खोला ही था की सामने अनमोल {सीमा का पति }खड़ा था।

“तुम….. तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी। ” सीमा ने दरवाजा बंद  करने को हाथ बढ़ाया ही था की ममता जी  हाथ में  मंदिर की थाली पकडे   सामने से आती हुई बोली



अरे अनमोल बेटा बाहर क्यों खड़े हो? अंदर चलो। जाओ सीमा  पानी ले आओ और चाय भी चढ़ा दो जल्दी से। ” ममता जी  ने अनमोल का स्वागत करते हुए कहा।

“माँ प्रणाम।कैसी है आप ? ” अनमोल सहर्ष ममता जी  को सर झुकाकर पैर छूते हुए बोला।

“माँ पानी…..। ” सीमा  अनमोल के आने से खुश नज़र नहीं आ रही थी पानी देकर अंदर की तरफ जा ही रही थी की ममता जी  ने टोकते हुए कहा “सीमा  तुम यही बैठो अनमोल के पास। मैं चाय को सिम पर चढ़ा आती हूँ। ” ममता जी  उठकर  रसोई की तरफ जाती है।जैसे ही वह कमरे मैं पहुँचती है वैसे ही सीमा झल्लाकर कहती है “आपने अनमोल को यहाँ बुलाया  है ना ?मुझसे एक बार पुछा तो होता माँ। ” 

“क्यों तुमसे क्या पूछना था ?तुम यहाँ आने से पहले मुझसे पूछ के  आयी थी। यह तुम्हारा ही नहीं अनमोल का भी घर है ।उसे भी यहाँ आने के लिए किसी की परमिशन की जरूरत नहीं है। ” अनमोल के सर पर अपना हाथ फेरते हुए बोलती है।

“माँ मैं आपको बताता हूँ ये कैसे मुझे बिना बताये चली आयी ?और मुझे मोबाइल पर मैसेज करके बोली की..  । ” अनमोल बोला ही था की ममता जी  ने बीच मैं टोकते हुए बोली “नहीं मैं तुम दोनों मैं से किसी से नहीं पूछूँगी की क्या हुआ ?ये तुम पति पत्नि का आपस का मामला है ।लेकिन हां मैं  बड़ी हूँ अनुभवों में  भी और उम्र में भी इसलिए अब तुम दोनों मेरी बात सुनो। अनमोल मैं मानती हूँ की सीमा थोड़ा लाढ प्यार में रही हुई लड़की है ।एक रात में या  शादी के 2-3  महीने में  ये बिलकुल बदल  जाएगी ऐसा कोई जादू तो है नहीं। इसे भी वक्त लगेगा ये तुम्हे समझना पड़ेगा। और सीमा तुम क्या तुम शादी से पहले घर के काम नहीं करती थी मैं तो ऑफिस चली जाती थी तबसे लेकर अपनी पढ़ाई स्कूल कालेज   के बावजूद भी तुम सब कुछ करती थी। फिर अब क्या हो गया ?वो तो तुम्हरे सास ससुर ने तुम दोनों को अपनी ज़िन्दगी अपने हिसाब से चलने की आज़ादी दे रखी  है तो क्या तुम दोनों को उसकी भी कदर नहीं? तुम एक दुसरे को ही नहीं निभा पा रहे हो पड़े लिखे होने के बावजूद। इससे तो अनपढ़ है उन्हे   दुनिया का और कोई ज्ञान हो न हो पर अपने घर परिवार को चलने का ज्ञान तो होता ही है। ” ममता जी  ने जैसे सीमा और अनमोल की जदोजहद को भाप लिया था।



“लेकिन माँ …….। ” सीमा  ने बीच में बोलते हुए कहा।

“नहीं….। मुझे कुछ सुनना  ही नहीं है। मैं तो बस इतना जानती हूँ की ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती। कम या ज्यादा दोनों की ही गलती होगी। गृहस्थी बनाना कोई आसान काम नहीं है लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं है अगर आपस  मे सिर्फ दिल लगाया जाए तो। तुम दोनों को एक दुसरे की भावनाओं  की इज़्ज़त भी करनी पडेगी । एक दुसरे को सही गलत में टोकना भी पड़ेगा सुख हो या दुख यह सफर सिर्फ तुम्हारा होना चाहिए। लड़ना झगड़ना रूठना मनाना ये सब तो इस सफर मैं समय समय पर आने वाले पड़ाव है इन्हे मिलकर पार करोगे  तभी यह सफर उतार चढाव के बाद भी खूबसूरत लगेगा। अगर छोटी छोटी बात पर अपने अहम् को इतना महत्त्व दोगे  एक दुसरे का साथ छोड़ते रहोगे तो एक दिन अकेले रह जाओगे। ” ममता जी  ने दोनों का हाथ एक दुसरे के हाथ मैं देते हुए कहा।

“सॉरी “दोनों के मुह से एक दुसरे के लिए अनायास ही निकल पड़ा। दोनों के चेहरे  पर फिर से मुस्कराहट खिल  गयी। ममता जी  बात को समझते हुए एकदम  से बोली “तुम दोनों नाश्ता पानी वगैरह कर लेना। मैं ऑफिस जाकर कर लूंगी। सीमा मुझे शाम को शायद देर हो जाए तुम अपनी जाने की तैयारी कर लेना बाकि मैं आकर देखती हूँ। अनमोल तुम्हे लेने आये है। ” 

ममता जी  अंदर जाकर अपना पर्स लेते हुए बाहर की तरफ निकल ही रही  थी की सीमा दौडते  हुए आवाज़ लगाती है “माँ ये फल ले जाओ रास्ते  में  खा लेना “ममता जी  के हाथ मैं देतेहुए उनके  हाथ पकड़ कर बोली “थैंक यू माँ लेकिन आपको कैसे पता चला ?आप हमेशा कि तरह सब जानती थी माँ ।मैंने तो अपनी तरफ से आपको कोई हिंट नहीं दी ऐसी। ” 

“मैं  तेरी माँ हूँ तेरी आखों और चेहरे की मुस्कराहट के ऊपर नीचे होते ही समझ जाती हूँ तेरे दिल का हाल।  घर  संभालना तुम दोनों की  ज़िम्मेदारी है। मैं यह नहीं कहूँगी की गलत सहन करो या अपने आत्म सम्मान से समझौता करो लेकिन यह बात गाँठ बांध लो की तुम्हारा एक एक कदम मेरी परवरिश को गलत और सही साबित करता है।आइंदा इस तरह आने की जरूरत नहीं है अब तुम्हारी कर्मभूमि तुम्हारा ससुराल है।अब जाओ अनमोल सोच रहा होगा ये माँ बेटी फिर बातो में लग गयी। मैं आती हूँ।  ” ममता जी  बड़े हलके मन से ऑफिस की ओर चल दी। 

दोस्तों आजके बदलते परिवेश में जहां गृहस्थी के मायने बदलते जा रहे है वहां  जरूरत है ममता जी  जैसी मांओ की जो बेटियों को सक्षम केवल पढ़ाई लिखाई में ही नहीं बनाती बल्कि उन्हें ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने के लिए ज़िम्मेदार भी बनाती है। क्या आप मेरी बात से सहमत है अपनी राय अवश्य दे।

 लेखिका 

स्मिता सिंह चौहान 

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