छत्रछाया – डॉ. पारुल अग्रवाल

वैशाली के मायके की तरफ आज एक विवाह था, वो बहुत दिनो बाद अपने मायके की तरफ के किसी कार्यक्रम में जा रही थी। वो बहुत खुश थी क्योंकि उसे लगता है वहां उसको अपने पुराने  रिश्तेदार मिलेंगे। जिन लोगों को बहुत समय से वो नहीं मिल पाई है,उनसे भी मुलाकात होगी।

वो दिल में बहुत सारी भावनाओं का सागर लेकर कार्यक्रम में पहुंचती है। सबसे खुशी खुशी मिलती है पर जैसे ही वो मिलकर आगे की तरफ बढ़ती है, वैसे ही उसके कानों में कुछ चिरपरिचित से स्वर सुनाई देते हैं जो उसी के परिवार के बारे में बात कर उसके भाइयों और घर की पीठ पीछे बुराई कर रहे थे। जो आवाजें उसने सुनी थी, उनसे इस तरह के व्यवहार की उसे उम्मीद नहीं थी, वो एक बार को रुकी पर फिर अपने चेहरे पर कोई भाव ना लाते हुए आगे बढ़ गई। 

किसी तरह बेमन से उसने वो विवाह कार्यक्रम निबटाया घर आकर वो अपने ख्यालों की दुनिया में खो गई। उसे आज अपने बचपन से लेकर अब तक के कई किस्से याद आ गए जब उसके पापा जिंदा थे और वो पास तो क्या दूर को रिश्तेदारों को भी उनकी कोई ज़रूरत पड़ती थी तो अपना परिवार समझ उनकी मदद करने के लिए तैयार रहते थे।

 पर पिछले एक साल से जब से पापा की मृत्यु हुई तबसे उसने सबके व्यवहार में एक परिवर्तन देखा। आज जिन लोगों को वैशाली ने पीठ पीछे बात करते देखा उसमें से एक की लड़की के रिश्ते से लेकर शादी की बारात तक का सारा इंतजाम पापा ने करवाया था तो वहीं दूसरे के बेटे को जब उनके ही शहर में नौकरी मिली थी और उसके रहने और खाने की जगह की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी तब पापा ने उस लड़के की सारी जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर उनको चिंतामुक्त कर दिया। ऐसे ही कई काम पापा ने सबके लिए किए थे।पर आज जब पापा के ना रहने पर वैशाली के दोनों भाई में जायदाद को लेकर झगड़े शुरू हुए तो ये ही लोग तमाशबीन बनकर उन दोनों को एक दूसरे के खिलाफ भड़का रहे थे।



रही-सही कसर उसके भाइयों ने अपने मतभेद ना सुलझाकर ऐसे रिश्तेदारों के सामने एक-दूसरे की बुराई करके पूरी कर दी थी।

आज वैशाली को पापा की बहुत याद आ रही थी। जिनकी छत्रछाया में उसका तीन भाई बहनों का परिवार हंसता- खेलता पनप रहा था। साथ-साथ उसे पापा के वो शब्द भी याद आ रहे थे जब वो अपने बच्चों को भी हमेशा दूसरों की मदद करने की सलाह देते थे और कहते थे कि मेरे ना रहने पर भी मेरे बच्चे कभी अपने आपको अकेला नहीं समझेंगे क्योंकि मैं उनको भावनाओं और प्यार से जुड़ा एक बहुत बड़ा परिवार देकर जाऊंगा। अपने आखिरी समय में उसके पापा भी बदलते वक्त को थोड़ा समझ रहे थे पर उनमें सोचने समझने की इतनी ताकत नहीं रही थी। 

अब वैशाली को लगा कि पापा तो इस दुनिया से अपने और पराए सबके रंग ढंग देखने से पहले सही समय पर चले गए, नहीं तो शायद उनका भावुक मन इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पाता । साथ-साथ उसे ये बात भी आज अच्छे से समझ आ गई कि पिता की छाया परिवार के लिए एक बरगद के समान होती है, जिसमें उसकी संतानें संरक्षित रहती हैं। गल्ती तो उसके भाइयों ने भी की थी जो एक दूसरे से सीधे अपनी समस्या ना कहकर,रिश्तेदारों के द्वारा बात कर रहे थे। जो ना सिर्फ उसके परिवार में हुए झगड़े का मज़ा ले रहे थे बल्कि एक की चार बात बना रहे थे। आखिर में वो सोचती है कि पापा के प्यार और संस्कार से बनाए इस परिवार को एक बनाए रखने के लिए वो अपने भाइयों से खुद बात करेगी। क्या पता, पापा के आर्शीवाद से उसका बिखरा परिवार फिर से एक हो जाए।

दोस्तों, बड़े लोग तो परिवार को अपनी छत्रछाया से जोड़ते ही हैं पर छोटो का भी कर्तव्य है कि वो परिवार की अखंडता को बनाए रखें। अगर मतभेद हो भी जाएं तो मनभेद ना रखें। कितनी भी बड़ी बात क्यों ना हो जाए पर किसी बाहर वाले के सामने उसकी चर्चा ना करें, नहीं तो कच्चे आलू से आलू चाट बनते देर नहीं लगेगी।

#परिवार 

डॉ. पारुल अग्रवाल

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