खट्टी मीठी यादे – रीटा मक्कड़

आज सुनीता का मन सुबह से बहुत ही उदास था।समझ ही नही पा रही थी कि इतनी उदासी और बेचैनी किस लिए महसूस हो रही थी।एक तो जनवरी की कंपकपा देने वाली ठंड,ऊपर से सुबह से लगातार बारिश और ठंडी हवाओं और नासाज तबियत की वजह से घर से बाहर भी नही निकल पा रही थी।बाहर का गेट खोल कर बाहर झांकना भी मुश्किल हो रहा था।सारे दिन के अकेलेपन के बाद अब रात को सोने की नाकाम कोशिश ने उसे दस साल पीछे की यादों के झरोखों में झांकने को मजबूर कर दिया था।

वो दिन एक मीठी सी याद ही तो बन कर रह गए थे जब वो  एक अल्हड़ सी नादान सी लड़की एक भरेपूरे  परिवार में ब्याह कर आ गयी थी।मायके का परिवार छोटा और ससुराल का बड़ा परिवार होने की वजह से शुरू शुरू में थोड़ी मुश्किलें तो आयी थी लेकिन धीरे धीरे हर लड़की की तरह उसने भी खुद को उस माहौल में ढाल लिया था।परिवार बड़ा होने के कारण सारा दिन घर पर खूब रौनक रहती।ऊपर से मेहमानों का आना जाना भी लगा रहता। सुनीता और उसकी जेठानी दोनो को सारा दिन घर के कामों से जरा भी फुर्सत नही मिलती थी।दोनो के बच्चे ज्यादा समय अपनी बुआ,चाचा या  दादा दादी के साथ ही गुजारते।

उनके साथ ही सोते,उनके साथ ही खाना खाते और टीवी तो उनदिनों हर घर में एक ही हुआ करता था जो कि आंगन में लगा दिया जाता जहां सारा परिवार एक साथ बैठकर चित्रहार ,रामायण और मनपसंद सीरियल देखा करता।परिवार में सबके साथ रहते उनके बच्चे कैसे पल गए उनको पता भी नही चला।आज एकल परिवारों में तो बच्चे भी कामवाली के भरोसे ही पलते हैं।आजकल तो लड़के बच्चों को गोद में उठा कर घूमते दिखाई देते हैं।तब संयुक्त परिवार में सब लोग मिलजुल कर बच्चों को संभाल लेते थे।

 ठंड के दिनों में एक बड़ी से अंगीठी जला कर सब उसके इर्दगिर्द बैठ जाते। साथ साथ मूंगफली खाते रहते और दादा दादी से कहानियां भी सुनते रहते। बच्चे अपनी बुआ चाचा और बाकी सबकी जान थे। सुनीता कभी मायके दो चार दिन के लिए रहने जाती भी तो बच्चे वापिस आकर अपने घर ही रहते।सुनीता को वहां अकेले ही रहना पड़ता। आजकल तो हर बच्चे को अलग कमरा चाहिए अलग से टीवी चाहिए।

 प्राइवेसी चाहिए,स्पेस चाहिए। तब दोनो देवरानी जेठानी को हमेशां यही लगता कि वो दोनो के तो सारा दिन काम ही खत्म नही होते। परिवार में रहकर बिताए वो बीस साल अब लगता है ज़िन्दगी के बेशकीमती साल थे जिन की खट्टी मीठी यादें हमेशां उसके मानसपटल पर जिंदा रहेंगी और इस अकेलेपन में ये यादें ही तो हैं जो उसके जीने का सहारा बनी हुई हैं। शुक्र है इस कलम का कि कभी कभी अपने दिलोदिमाग पर अंकित इन यादों को अपनी लेखनी में उतार कर वापिस जी लेती है तो मन को जैसे एक सुकून सा मिल जाता है।इन खट्टी मीठी यादों के झरोखों में  झांकते झांकते कब सुनीता की आंख लग गयी उसको पता ही नही चला।

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

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