चटोरा कौन !! – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

सलोनी आज अपने पति राज के साथ पहली बार मुंबई जा रही थी जहाँ राज नौकरी करता है । यूँ तो उसकी शादी को दो महीने हो गये थे लेकिन शादी के तुरंत बाद राज उसे अपने साथ नही लाया था क्योकि वो चाहता था सलोनी कुछ दिन ससुराल मे रुककर ससुराल वालों को जाने समझे। अब क्योकि राज की माताजी सुलोचना जी भी चाहती थी बहू बेटे के पास जाये और उसके साथ रह उसकी देखभाल करे। इसलिए उन्होंने खुद से सलोनी को ले जाने की बात की थी और राज माँ के कहने से सलोनी को अपने साथ ले आया था । सलोनी भी खुश थी अब पति को अपने हाथ से बना खाना खिलाएगी , अपनी गृहस्थी को अपने हाथों से सजायेगी । 

” सुनिए आप थोड़ा मेरा हाथ बंटा दीजिये सफाई करने मे फिर मैं जल्दी से खाना बना दूंगी । बहुत भूख भी लगी है !” मुंबई मे राज के किराये के घर मे पहुंच जब सलोनी ने देखा घर बहुत गंदा है तो उसने राज से कहा। 

” अरे तुम खाना छोड़ो वो मैं खाना ऑर्डर कर देता हूँ तुम खाना खाकर सफाई कर लेना तब तक नहा धो लो !” राज बोला ।

” पर खाना बनाने मे ज्यादा टाइम नही लगेगा !” सलोनी बोली। 

” देखो ये सफाई वफाई तुम ही देखो और मुझे भूख लगी है तो मैं खाना ऑर्डर कर रहा हूँ !” ये बोल राज खाना ऑर्डर करने लगा। 

सलोनी फटाफट सफाई करने लगी क्योकि ऐसे गंदे घर मे उससे खाया तो क्या बैठा भी नही जाता । राज मजे से सोफे पर पसर कर मोबाइल चला रहा था। सलोनी ने सबसे पहले रसोई की सफाई की फिर बैडरूम की साथ ही बेड की चादर भी बदली अब बचा था बस हॉल । इतने ही खाना आ गया । सलोनी ने राज का खाना बैडरूम मे लगा दिया जिससे वो हॉल की सफाई कर सके । राज ने उसे पहले खाना खाने को बोला पर सलोनी ने इंकार कर दिया। और फटाफट सफाई करके नहाने चली गई। नहाने के बाद उसने खाना खाया और दोनो आराम करने लगे।

” सुनो राज चलो बाज़ार चलते है घर का सामान लाना है !” शाम को सलोनी ने कहा और दोनो बाज़ार चल दिये । सलोनी ने राशन का कुछ सामान लिया फिर सब्जियाँ लेने लगी पर वो जो भी सब्जी लेती राज मना कर देता हार कर सलोनी आलू , प्याज़ और टमाटर लेकर आ गई। रात को उसने दाल रोटी बनाई जिसे राज ने बेमन से खाया। 

अगले दिन जल्दी उठ सलोनी ने खाना बनाया नाश्ते मे उसने आलू के पराठे और खाने मे राजमा , चावल बनाये। 

” सलोनी मैं तो नाश्ते मे ब्रेड , मक्खन लेता हूँ !” राज जब तैयार हो नाश्ते की मेज पर आया तब बोला।

” पर तब आप अकेले थे अब मैं हूँ तो अच्छे से नाश्ता कीजिये ना !” सलोनी बोली। 

” ठीक है अब तुमने बना दिया तो एक पराठा खा लेता हूँ पर कल से मुझे ये सब मत देना और हां लंच मे कैंटीन मे कर लूंगा !” राज बोला। 

सलोनी कहना तो चाहती थी कि जो मैने बनाया उसका क्या पर राज को बेमन से पराठा खाते देख उसने कुछ नही बोला। 

शाम को राज ऑफिस से आते मे समोसे और रसगुल्ले ले आया वो खाने के बाद दोनो की खाने की इच्छा नही हुई। राज सुबह मे रोज ब्रेड मक्खन या जेम लेता साथ मे दूध । दोपहर का खाना वो बाहर ही खाता तो सलोनी का भी मन नही करता कुछ बनाने का इसलिए वो चावल या कुछ भी खा काम चला लेती। बस रात का ही खाना था जो वो बनाती उसमे भी कभी राज कुछ ले आता या फिर सलोनी को ले घूमने निकल जाता और फिर दोनो बाहर ही खा लेते।

” आपको मेरे हाथ का खाना पसंद नही है क्या , या कोई और बात है आप मुझे बताइये तो सही ?” एक रात सलोनी ने राज से पूछा। 

” नही ऐसी तो कोई बात नही !” राज बोला। 

” मुझे आप बता दीजिये आपको क्या पसंद है मैं वही बना दिया करूंगी !” सलोनी बोली। 

” क्यो परेशान हो रही हो सलोनी मैने क्या कोई शिकायत की तुमसे ।” राज सलोनी का हाथ पकड़ता हुआ बोला। 

” नही पर आप इतना बाहर का खाना खाते है ये ठीक नही मैं घर पर बना दिया करूंगी जो आपको पसंद है !” सलोनी  बोली।

” ठीक है बता दूंगा अभी सोते है !” राज ने उसे टालते हुए कहा। 

असल मे अकेले रहते मे राज को बाहर के खाने की आदत पड़ चुकी थी अब उसे घर का खाना कम पसंद आता था सलोनी ने एक से एक चीज बनाने की कोशिश की पर राज या तो बेमन से खाता या खाता भी तो कभी एक शब्द नही बोलता।। धीरे धीरे सलोनी का भी खाना बनाने से मन हटने लगा। अब जब घर मे खाने वाले दो उसमे से एक बेमन से खाये तो बनाने वाला कब तक मेहनत करेगा। 

कुछ दिन बाद सलोनी की सास कुछ दिन उनके पास रहने आई। 

” ये क्या बहू बस ब्रेड जेम , तुमने नाश्ता नही बनाया राज के लिए ?” नाश्ते की मेज पर सुलोचना जी बोली।

” मांजी ये यही खाते है इसलिए मैं भी अब यही खाने लगी हूँ । आपको क्या खाना आप बता दीजिये बना दूंगी !” सलोनी ने सास से पूछा।

” तभी मेरा बेटा इतना कमजोर हो रहा है ठीक से खाना जो नही मिलता !” सुलोचना जी बोली। 

” अरे माँ आप भी ना , मैं कहा कमजोर हूँ । अच्छा ये बताओ शाम को आपके लिए क्या लेकर आऊं खाने को ?” राज माँ से बोला।

” बाहर से क्यो जो खाना होगा बहू बना देगी ना । तू अभी जा आज मैं तेरे लिए कुछ बनाउंगी बढ़िया सा !” कुछ सोचते हुए सुलोचना जी बोली। 

शाम को सुलोचना जी ने बहू के साथ मिलकर शाही पनीर , दाल और रोटी बनाई। राज ने चुपचाप सब खा लिया। सलोनी हैरान थी उसके सामने नखरे करने वाला राज आज कैसे चुपचाप खा रहा है । 

अगले दिन सुलोचना जी जल्दी उठी और नाश्ता बनाने लगी।

” मांजी वो नही खाएंगे आप बेकार मेहनत कर रही है !” सलोनी उन्हे रसोई मे लगा देख बोली।

” बहू मैने तुम्हे यहां राज की देखभाल को भेजा था तुम ये देखभाल करती हो उसकी । खाना तक ठीक से बना कर नही देती हो। लगता है तुम्हारी जीभ ज्यादा ही चटोरी है इसलिए घर का खाना तुम्हे नही भाता और मेरे बेटे को भी तुम बना कर नही देती।” सुलोचना जी बोली।

” मांजी जीभ मेरी नही आपके बेटे की चटोरी है जब यहाँ आई तो एक से एक चीजे बनाई पर इन्हे बेमन से खाते देख मेरा मन कब तक करेगा बनाने का। जब मैं यहाँ आई थी खुश थी कि पति को अपने हाथ से खाना बना खिलाऊंगी पर सुबह उन्हे ब्रेड मक्खन खाना है दिन मे कैंटीन मे तो बताइये मैं किसके लिए बनाऊं ।” सलोनी बोली।

” अरे तुम अच्छा खाना बनाती तो वो अपने आप लेकर जाता पर तुम तो खुद आलसी हो गई या यूँ कहो चटोरी !” सुलोचना जी बोली।

” मांजी सब करके देखा पर कोई फायदा नही कितनी बार खाना फेंका है मैने । अब आप इसे मेरा आलस कहो या चटोरापन क्योकि बहू को ये कहना आसान है पर वो आलसी या चटोरी किसके कारण बनी ये कोई नही देखता । सच यही है जब मेहनत का कोई फायदा नही तो क्यो की जाए !” सलोनी बोली। सुलोचना जी ये सुन चुप हो गई और खाना बनाने लगी क्योकि उन्होंने सलोनी को दो महीने देखा है सबके लिए शौक से खाना बनाते।

” राज आज से तुम ये ब्रेड मक्खन नही घर का खाना खाओगे और टिफिन भी लेकर जाओगे समझे !” जब राज तैयार होकर आया तब सुलोचना जी बोली।

” पर माँ ब्रेड मक्खन मे क्या बुराई है !” राज बोला।

” बुराई ये है की ये सेहत के लिए सही नही तुम्हारे कारण बहू को भी बाहर का खाना पड़ता है या फिर भूखे रहना पड़ता है । रोज रोज बाहर का खाना ठीक नही !” सुलोचना जी बोली। 

” पर माँ !” राज कुछ बोलने को हुआ ।

” राज अपनी आदत बदलो वरना बहू को मैं अपने साथ ले जा रही हूँ क्योकि तुम खुद तो अपना अहित कर रहे हो उसे भी बीमार कर दोगे।” सुलोचना जी बोली।

” ये क्या बात हुई माँ मैं क्या उसे मना करता हूँ कुछ भी खाने को !” राज झुंझलाया।

” बेटा वो अपने अकेले के लिए नही बना पाती तुम समझो ये बात जब अकेले थे तब बाहर का खाया ठीक है अब बहू है तुम खाओगे मन से तो वो बनाएगी। हफ्ते मे एक बार बाहर का ठीक है पर रोज रोज ये चटोरापन सही नही !” सुलोचना जी बोली। बहुत देर तक दोनो की बहस होती रही पर आखिरकार राज को झुकना पड़ा । सुलोचना जी ने भी सोच लिया जब तक यहाँ है राज के चटोरेपन पर अंकुश लगाएगी जिससे उसमे बदलाव आये। 

दोस्तों अक्सर औरतों को चटोरी बोला जाता है पर ये भी सच है कुछ घरो मे उन्हे चटोरी घर के पुरुष बनाते है क्योकि वो खुद चटोरे होते है बाहर का तेल मसाले का खाना उन्हे भाता है और धीरे धीरे पत्नी का मन हट जाता है खाना बनाने से ऐसे मे गलती किसकी है उस पत्नी की या पति की ।।।।।।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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