चारधाम की यात्रा – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुमन जी और उनके पति गोविन्द जी जिस‌ मोहल्ले में रहते थे,उस मोहल्ले में सभी लोग धार्मिक प्रवृत्ति के थे। हमेशा धार्मिक आयोजन जैसे सुन्दरकाण्ड का पाठ, अखण्ड रामायण पाठ, भजन संध्या, संत महात्माओं के प्रवचन आदि होते रहते थे, सभी सामुहिक रूप से उसमें भाग लेते, और भक्तियुक्त वातावरण में अपना जीवन यापन कर रहै थे। हर वर्ष एक तीर्थ यात्रा का प्रोग्राम भी बनाते और जिसकी इच्छा होती वे यात्रा पर जाते।

जब भी यात्रा का प्रोग्राम बनता,सुमन जी कहती कि पहले घर के चार धाम पूरे हो जाए फिर चलेंगे । उनकी ऑंखों में तैरती तरलता उनकी तीर्थ यात्रा पर न जाने की विवशता कहती, मगर उसे समझना सबके बस की बात नहीं थी। सुमन जी की चार बेटियॉं थी। वीणा, माया, पूनम और राखी । वे इन्हें ही अपने चारों धाम बताती थी। बच्चियों की पढ़ाई लिखाई और उनका जीवन सवांरना, वे अपना प्रथम दायित्व समझती थी।

पति माध्यमिक विद्यालय में हेडमास्टर थे, उनके वेतन से चार बच्चों की पढ़ाई लिखाई और घर खर्च बहुत मुश्किल से पूरा होता था। ऐसे में तीर्थ यात्रा के लिए पैसे खर्च करना उनकी सामर्थ्य के बाहर था। सुमन  जी के मन में यह अरमान था, कि वह चार धाम की यात्रा करे मगर  अपनी परिस्थिति को देखते हुए वे कभी किसी से कुछ नहीं कहती थी। सुमन जी और गोविन्द जी के जीवन का एक ही उद्देश्य था कि उनकी बेटियाँ पढ़ लिखकर ज्ञान अर्जित करे, संस्कारी बने और उनका जीवन सुखमय हो।

दोनों की लगन और तपस्या का ही परिणाम था, कि उनकी चारों बेटियां बहुत होशियार थी। जो भी उन्हें देखता यही कहता कि बेटियॉं हो तो ऐसी हो।
वे चारों व्यवहार कुशल थी, और अपने माता पिता की बहुत इज्जत करती थी। बड़ी बेटी वीणा ने बी. काम पास किया और वह बैंक की परीक्षा की तैयारी करने लगी। उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी बैंक में नौकरी लग गई। माता पिता ने अच्छा   घर वर देखकर उसका रिश्ता तय कर दिया।  नितिन के माता पिता दहेज के खिलाफ थे।

उन्हें बस पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की की चाहत थी। शादी के बाद भी वीणा नौकरी करती रही, साथ ही घर के काम काज भी व्यवस्थित करती। सास ससुर और पति का बराबर ध्यान रखती थी। उसने अपने व्यवहार से सास ससुर और सभी रिश्तेदारों का मन जीत लिया था। सास ससुर भी उसका हर तरह से ध्यान रखते थे, उनका भरपूर आशीर्वाद उसे मिल रहा था।
माया और पूनम ने भी बी.ए की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। माया ने बी.एड की परीक्षा पास की और शिक्षिका की नौकरी कर ली। पूनम भी घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही थी।उन लड़कियों के रिश्ते के लिए माता पिता को बिल्कुल परेशानी नहीं पड़ी। घर बैठे अच्छे रिश्ते आए। दोनों बहिनों की शादी एक साथ कर दी। वे भी अपने ससुराल में बहुत खुश थी।

उनके गुणों की खुशबू भी चारों ओर फैल रही थी। गोविन्द जी और सुमन जी बहुत खुश थे। राखी ने बारहवीं की परीक्षा पास की उसकी इच्छा थी, कि वह पढ़ लिखकर वकील बने उसने लॉ कालेज में एडमिशन लिया। पॉंच साल का कोर्स था। उसने बहुत मेहनत से पढ़ाई की और अच्छे अंकों से‌ परीक्षा उत्तीर्ण की। सनद के लिए फार्म भरा और परीक्षा उत्तीर्ण की। राखी  को सनद मिल गई थी और उसने वकालत की प्रेक्टिस शुरू कर दी थी। माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था।

समय के साथ उसकी भी शादी कर दी, वह अपने ससुराल में बहुत खुश थी। चारों बेटियाँ समय समय पर आती और माता पिता का भी ध्यान रखती।
बड़ी बेटी वीणा के सास ससुर की तीर्थ यात्राजाने की इच्छा हुई। वीणा ने अपने पति नितिन से कहा कि ‘आप भी छुट्टी ले ले। मम्मी पापा के साथ हम भी चलेंगे इस अवस्था में उन्हें अकेले यात्रा करना ठीक नहीं है। और सुनिए मेरी इच्छा है कि मेरे मम्मी पापा को भी अपने साथ यात्रा पर ले चले। अभी तक तो वे अपनी जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त रहैं।

माँ हमेशा कहती थी कि मेरे चारों धाम मेरे घर में हैं,उन्होंने अपना पूरा जीवन हम बहनों के जीवन को संवारने में लगा दिया। आज उनकी अवस्था भी नहीं है कि वे अकेले यात्रा करे।उनका बेटा तो है नहीं जो कुछ है हम बेटियॉं ही है। आप कहेंगे तो हो सकता है वे भी चलने के लिए तैयार हो जाए। हमारे मुहल्ले के लोग जब भी तीर्थ यात्रा के लिए जाते थे, मैंने मॉं की ऑंखों में तैरती उस तरलता को देखा है, अनुभव करती थी मैं मॉं के उस दर्द का, यात्रा के लिए न जा पाने की असमर्थता का।

पर कुछ भी कर पाने में असमर्थ थी। मॉं ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा पर मैं जानती हूँ वे भी तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती है। ले चलेंगे ना उन्हें भी अपने साथ में? करेंगे ना उनसे बात?’ कहते हुए वीणा की ऑंखो में नमी आ गई थी, और उसकी आवाज भर्रा गई थी। नितिन ने कहा -‘ यह तो बहुत खुशी की बात है मैं कल ही उनसे बात करता हूँ, और उन्हें मानना ही पड़ेगा। मैं भी तो उनका बेटा ही हूँ। मेरी बहुत छुट्टियां बाकी है कल छुट्टी के लिए भी आवेदन दे देता हूँ। हम सब साथ में यात्रा पर चलेंगे। तुम भी छुट्टी ले लेना और अब चेहरे की उदासी को छोड़ो और यात्रा की तैयारी करो।’
वीणा के सास ससुर भी खुश थे, उन्हें भी यात्रा में अच्छा साथ मिल गया था।दूसरे दिन वीणा और नितिन वीणा के मायके गए और उनसे सारी बातें की। नितिन ने कहा ‘आप साथ में चलेंगे तो हमें और मॉं- पापा को बहुत अच्छा लगेगा।आपको अपने बेटे की यह बात माननी पड़ेगी।’

वीणा ने कहा -‘मॉं तेरे चारों धाम अपने घर में सुखी है, एक धाम तो खुद तुझे लेने आया है, अब तू मना नहीं करेगी। ‘ दोनों ने मिलकर सुमन जी और गोविन्द जी को मना लिया। तीन महिने बाद के रिजर्वेशन कराए और एक महिने का पूरा प्रोग्राम बनाया। द्वारिका, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी की यात्रा का।

सुमन जी की ऑंखों की तरलता के स्थान पर आज चमक नजर आ रही थी, उनका बरसों का यात्रा का अरमान जो  पूरा होने वाला था। उनकी यात्रा स आनन्द सम्पन्न हुई। नितिन ने कहा मम्मी जी अगले वर्ष उत्तराखण्ड की यात्रा करेंगे। इस तरह सुमन जी की चार धाम की यात्रा का अरमान पूरा हुआ।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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