बंधन रिश्तों का – नीलिमा सिंघल 

“आन्या,,आन्या ” तेजस की तेज चीख आन्या के कानों मे पड़ी तो वो हड़बड़ा कर छत से नीचे उतरी और साड़ी मे पैर फिसल कर धड़ाम धड़ाम से नीचे गिरती चली गयी,,

तेजस ने आवाज सुनी पर नजरअंदाज करते हुए गुस्से मे बाहर चला गया,, 

आन्या की आवाज निकल नहीं रही थी पर उसको अहसास था कि तेजस आएगा उसको संभालेगा,,यही सोचते सोचते वो कब बेहोश हो गयी उसको खुद को पता नहीं चला,,

आशा आयी,उसकी मेड, उसने दरवाज़ा खुला देखा तो भाग कर अंदर गयी उसने आन्या को आवाज लगायी “भाभी,,भाभी कहां हो?”

एक आवाज मे सुनने वाली आन्या की तरफ से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलने से आशा को हैरानी हुई और उसके कमरे की तरफ बढ़ी, छत की तरफ से रोशनी आ रही थी तो सीढ़ियों की तरफ जाते ही बेहोश पड़ी आन्या को देखते ही चीख पड़ी,,

उसने डॉक्टर को बुलाया और पास मे काम कर रही अपनी सहेलियों को बुला कर आन्या को बिस्तर पर लिटाया,,और डॉक्टर ने आकर पट्टी की और मेडिसन देकर चला गया। 

आशा पूरे दिन आन्या के घर रहती थी सुबह 8 बजे आकर रात को 8 बजे अपने घर जाती थी,,और तेजस कभी तो आता जाता तो कभी सुबह जाकर रात गए तक आता था,,

आशा आन्या के सभी सुख दुख की साथी थी वो ज्यादा बोलती नहीं थी पर सब समझती थी और आज आन्या की हालत ने जैसे उसको अंदर से तोड़ दिया,,,,क्यूंकि उसने घर से बाहर जाते हुए तेजस को देखा था। 

आन्या को 6 घण्टे बाद होश आया उसके सिर मे तेज दर्द उठा,,हाथ लगाया तो महसूस हुआ कि पट्टी बंधी हुई है,,आशा आयी और हालचाल पूछा ।

कमजोर सी आवाज मे आन्या ने पूछा “तेजस….तेजस कहां है “

आशा ने बोला “साहब नहीं हैं, “



आन्या की आंखे भरती चली गयी,,5 साल की शादी मे अजनबियत के अलावा कुछ नहीं था रिश्ते मे,,शादी का बंधन कब जिंदगी को बंधक बनाने लगा आन्या को पता नहीं चला। 

विवाह के हफ्ते भर बाद ही पता चल गया था कि तेजस तो इस पवित्र बंधन मे बंधना ही नहीं चाहता था उसको सिर्फ कैरियर की चिंता थी आगे बढ़ने की पैसों का अंबार लगाने की महत्वाकांक्षा थी। 

5 साल की शादी मे आन्या ने खुद को बदल लिया था तेजस ने कभी नहीं कहा पर फिर भी आन्या तेजस के रंग मे रंग गयी,,पर तेजस पर कोई असर नहीं था, बाहर का,,घर का,,कहीं का भी गुस्सा आन्या पर निकालता था,,तेजस के चेहरे पर आने वाली शिकन से आन्या को डर लगता था इसीलिए वो बदलती चली गयी,,उसकी मासूमियत,,उसका बचपना सब खोता चला गया पर तेजस पर कोई असर नहीं पड़ा। 

आज सुबह 6 बजे तेजस निकल गया था घर से,,आन्या को बारिश पसन्द थी बचपन से ही और आज उसका जन्मदिन भी था तो आन्या छत पर चली गयी बारिश मे भीगने,,, पर ऊपर जाते ही तेजस की आवाज आयी तो जल्दी जल्दी मे आने के चक्कर मे बैलेंस बिगड़ा तो सीढ़ियों से गिरती चली गयी,,,

और तेजस उसको ऐसे मे भी छोड़कर चला गया,,अगर आज आशा ना होती तो…….इसके आगे वो सोच नहीं पायी। 

आशा रास्ते मे टकराई थी उससे,,चक्कर खाकर गिर गयी थी,,आन्या डॉक्टर के लेकर गयी जहाँ उसको दवाई के साथ साथ जूस और पौष्टिक खाने को भी बोला था,,,,

आशा के पास ना काम था ना ही कोई सहारा तो आन्या आशा को अपने साथ ले आयी,,महिने मे दो बार दो ही दिन की छुट्टी लेकर किसी अश्रम मे जाती थी आशा। 

और आज वहां से ही वापस आयी थी,,अगर ना आती तो,,,,तो उसका क्या होता,,सारा प्रेम समर्पण सब व्यर्थ,,तेजस का दिल नहीं जीत पायी वो,,सोचते सोचते 2 बूंद गिर गयी उसकी आँखों से,,तभी आशा ने कमरे मे कदम रखा और और उसके आंसुओ से तड़प गयी,,,,

खुद को सम्भालते हुए आशा आगे आयी और दलिया खिलाने लगी,,

आन्या ने आशा का हाथ पकड़ा और बिलख पड़ी,,,,”आशा ,,,अब मैं यहां नहीं रह पाऊँगी,,मुझे यहां से जाना हैं,,,किसी पर बोझ नहीं बनना,,,”




आशा स्तब्ध सी उसका बिलखना देख रही थी बोली “भाभी “

“नहीं, भाभी नहीं दीदी बोल आशा “

“दी,,दी,,  दीदी सब ठीक हो जाएगा अभी आप परेशान हो,,साहब,,,,,,,

“नहीं आशा,,साहब,,नहीं,,उन्हें अपने अलावा अपने साथ कोई नहीं चाहिए,,,,मैं चली जाऊँगी कहीं भी,,तू चली जा आशा”

“कहां चली जाऊँ दीदी मैं,   और आप कहीं भी क्यूँ जाओगी,,,,सब ठीक हो जाएगा,,,”  आशा से आन्या की हालत नहीं देखी जा रही थी,,,

आन्या उठने लगी तो आशा ने आगे बढ़कर उसको उठाया और बोली ” ठीक है दीदी,,,,आप मेरे साथ अश्रम चलना,,आप कहीं नहीं भटकोगी,,,”

आन्या आशा के साथ उस आश्रम मे चली गयी वहां के सात्विक वातावरण मे आन्या को शांति मिली,,,,वंहा बेसहारा महिलाएं थी,,जो जीवन यापन के लिए चिप्स पापड़ अचार मुरब्बा बनाकर बेचती थी स्वेटर बनाकर बेचती थी,,,आशा 2 दिन यहां रहकर इनकी ही सहायता करती थी,,

आशा के साथ स्नेह के बंधन ने शादी की जेल बन चुके बंधन से आजादी दिलवा दी। 

उसने वंहा की महिलाओ के साथ मिलकर तलाक के पेपर बनवाये और आशा तेजस को दे आयी,,

हैरान थी देखकर आशा कि आन्या के जाने का कोई दुख तेजस के चेहरे पर नहीं था वो तो लैपटॉप पर बैठे अपना काम कर रहा था,,तलाक के पेपर को सरसरी नजरों से देखा और सिग्नेचर कर दिए। 

आशा ने गहरी साँस ली और बाहर आटे हुए खुद से कहा “इस पत्थर दिल के साथ के बंधन को तोड़कर उसकी आन्या दी कोई गलती नहीं की। 

अब आन्या के जीवन की सारी उथल-पुथल और तूफान शांत हो चुके थे। 

#बंधन 

इतिश्री 

नीलिमा सिंघल 

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