माँग भरो सजना – कमलेश राणा

आभा आंटी हमारे पड़ोस में ही रहतीं थी,, मम्मी – पापा और अंकल- आन्टी हम उम्र थे तो शीघ्र ही उनसे हमारे पारिवारिक और बहुत घनिष्ट संबंध बन गये,, उनके बच्चे और हम लोग भी अच्छे मित्र बन गये,,

परदेश में अच्छा पड़ोसी मिलना बहुत बड़े सौभाग्य की बात होती है,, घर परिवार दूर होने के कारण सुख- दुख में सबसे पहले मित्र और पड़ोसी ही काम आते हैं,, संयोग कुछ ऐसा रहा कि बार बार हम मिलते रहे और अब यह रिश्ता दोस्ती की परिभाषा से कई कदम आगे बिल्कुल एक परिवार ही बन गया,,

मैं ऑन्टी की ज़बरदस्त फैन थी,, होती भी क्यों न,, वो थी ही ऐसी,, सर्वगुण संपन्न,,पुराने जमाने की पढ़ी लिखी महिला थी,, उन्होंने 1962 में ग्रेजुएशन किया था,,हर काम में बहुत होशियार थी वो,, अपने जमाने में बिल्कुल आशा पारेख जैसी खूबसूरत दिखतीं थी,, 

पिता का कारखाना था,, पैसे की कोई कमी नहीं,, उन्होंने अच्छा सा लड़का और उच्च शिक्षित परिवार देखकर उनकी शादी अमर जी से कर दी,,जो एक सरकारी विभाग में इंजीनियर थे,, 

उस समय सैलरी बहुत कम हुआ करती थी,, जब अंकल ने पहली बार आभा ऑन्टी के हाथ में सैलरी ला कर दी और कहा कि पूरे महीने का खर्च इसी में चलाना है तो वो सोच में पड़ गई,, 500 रु में महीने का खर्च कैसे चलेगा,, इतने पैसे तो उसके पिता रोज शाम को बच्चों को बांट देते थे,, पर उन्होंने कुछ कहा नहीं और हिसाब से घर चलाने लगी,, 

वक्त के साथ उसके आँगन की फुलवारी में दो फूल भी खिले,, धीरे धीरे समय आगे बढ़ता रहा पर उन दोनों का प्यार वैसा ही जवान रहा,, 

जब भी अंकल ऑफिस से आते वो बड़ी प्यारी मुस्कान के साथ उनका स्वागत करतीं,, और कहतीं,, आ गये आप,, उस समय उनके चेहरे पर कितना प्यार नज़र आता था,, उसे शब्दों में बयां कर पाना बहुत ही मुश्किल है,,इस क्रम में आजीवन कोई बदलाव नहीं हुआ,,



जब मेरी शादी हुई तो उन्होंने मुझसे सिर्फ़ दो ही बातें कहीं जो आज भी याद हैं मुझे और भरसक कोशिश की है मैंने उन्हें अमल में लाने की,, सुखी जीवन के दो सूत्र,, पहला पति को कभी भी उसकी कमाई का ताना मत दो और दूसरा आपस की लड़ाई को कभी भी दूसरे दिन का सूरज मत देखने दो अर्थात् उसी दिन समझौता कर लेना ही श्रेयस्कर है अन्यथा बात बढ़ती ही चली जाती है,, अगर उनके शब्दों में कहूँ तो रात को ही बात खत्म हो जानी चाहिए,, फिर नया दिन नये प्यार के साथ,, पुरानी कोई बात रिपीट नहीं करनी,, 

उनके बच्चे भी बड़े हो गये और नौकरी करने लगे,, घर में बहुएं भी आ गई,, एक दिन उनके पेट में भयंकर दर्द उठा,, डॉक्टर को दिखाया,, बहुत सारी जांचें हुईं तो पता चला कि उनके पेट में ट्युमर है और बहुत एडवांस स्टेज़ पर है,, ऑपरेशन भी संभव नहीं है,, ट्युमर के फूटने से कुछ भी हो सकता है अत: ,, आप इन्हें घर ले जाएं और सेवा करें,, कुछ दवाएं और हिदायतें देने के बाद डॉक्टर ने उन्हें डिस्चार्ज कर दिया,, 

अब जिंदगी पहले जैसी निश्चिंत तो नहीं थी,, पर घर में कभी भी किसी ने उनके सामने इस बात का जिक्र नहीं किया कि उनको क्या परेशानी है,, दवाओं के सहारे दो साल तक वो चलती रहीं,, 

एक दिन फ़िर बहुत तेज दर्द हुआ पेट में,, जो किसी भी दवा से बंद नहीं हो रहा था,, हॉस्पिटल में एडमिट कर दिया गया उन्हें,, सभी समझ रहे थे कि अंतिम समय नज़दीक आ गया था उनका,, अंकल सारे दिन हाथ पकड़े बैठे रहते उनका,, 

उनका कष्ट देखा नहीं जा रहा था उनसे,, उन्होंने उस रात गायत्री मंत्र का जाप किया उनके सामने और रोते हुए बोले,, अब तुम जाओ आभा,, मैं तुम्हें अपने प्यार के बंधन से मुक्त करता हूँ,,आँखों से आँसुओं की धार बह रही थी दोनों की,, दो दिन से ऑन्टी बोल नहीं पा रही थी,, 

उन्होंने अंकल का हाथ पकड़ कर माथे से लगाया,, कुछ कहना चाह रही थी वो,, पर किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था,, वो बार बार इसी क्रिया को दोहरा रही थी,, काफी देर बाद उनकी ननद बोलीं,, भैया, शायद भाभी आपसे माँग भरने के लिए कह रहीं हैं,,

तुरंत सिंदूर मंगाया गया और अंकल  ऑन्टी की माँग भरकर उनके दोनों हाथों को हाथों में लेकर माथे से लगा कर बिलखने लगे,, तभी अचानक उन्हें महसूस हुआ,, कि ऑन्टी के हाथ लटकने लगे हैं,, 

चौँककर उन्होंने उनके चेहरे की ओर देखा,, ऑन्टी दुनियाँ से दूर जा चुकीं थी,,उनके चेहरे पर अपूर्व शांति थी,,उनके प्यार की निशानी से उसकी माँग जगमगा रही थी,, उनको तो अंकल ने अपने प्यार बंधन से मुक्त कर दिया था ताकि उनके शारीरिक कष्टों का अंत हो जाये,, यह भी तो प्यार का ही एक रूप है जिसमें प्रेमी अपने प्रियतम को कष्ट में नहीं देख सकता,, 

पर वो खुद को कभी भी उस बंधन से आज़ाद नहीं कर पाये,, जब भी उनसे मिलती इस बात का अहसास बड़ी शिद्दत के साथ होता मुझे,, 

आज वो दोनों ही इस दुनियाँ में नहीं हैं,, पर उनके सानिंध्य में बिताये पल मेरे जीवन की अनमोल धरोहर हैं,, बहुत याद आते हैं वो और उनकी जीवनोपयोगी शिक्षाएं,, 

# बंधन

कमलेश राणा

ग्वालियर

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