तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना – कुमुद मोहन 

शहर के सबसे बड़े कैंसर हास्पीटल की अपनी पार्किंग स्पेस में गाड़ी खड़ी करके डाक्टर सुमी जब अपने नपे-तुले क़दम रखती हस्पताल में दाखिल होतीं तो वहां छोटे से बड़े सब की नज़रें बरबस कुछ पलों के लिए उस पर टिकी रह जातीं| सुन्दर होने के साथ-साथ उसका सौम्य व्यक्तित्व, मीठी बोली और होठों पर हर समय खिली रहने वाली मुस्कान देख कर भयंकर दर्द से तड़पता मरीज़ भी कुछ पल को अपना दर्द भूल जाता।

15 न. का बेड बहुत दिनों से खाली था, सुमी ने राऊन्ड लगाते हुए देखा 45-50 साल की संभ्रांत महिला आंखें बंद कर के लेटी थी। साथ में साफ सुथरी आया थी। सुमी के “सुनिये” कहते ही उन्होंने आंखें खोल कर देखा तो एक टक उसे देखती रह गई| उनकी आंखों की कोर से दो आंसू कान तक टपक पड़े। जाने क्या था उनकी नज़रों में जो सुमी को अंदर तक हिला गया, सोचा शायद दर्द की वजह से उनके आंसू निकल आये हों।

सुमी ने उनकी फ़ाईल देखी, कोई आशा सिंह थीं| पति भारतीय प्रशासनिक सेवा में थे जो अब नहीं रहे। जहाँ-जहाँ पोस्टेड थे वहाँ-वहाँ के सारे पर्चे लगे थे। उन्हें ब्रेन ट्यूमर था, मैलिग्नेन्ट होने के कारण कीमोथेरेपी हो चुकी थी, बाल नहीं थे,स्कार्फ लगा था, रंग गोरा ,दवाओं के कारण मुरझाया चेहरा ,पर आंखों को देख कर लगता था अपने जमाने वो बेहद खूबसूरत रही होंगी। दुबली कलाईयों में हीरे के कंगन और कानों में साॅलिटियर दमक रहे थे।

कैंसर की आखिरी स्टेज देख सुमी को बहुत गुस्सा आया,बोली “हद कर दी आप लोगों ने भी,टाइम से इलाज नहीं करा सकते थे क्या”?कहते-कहते सुमी ने आशा की तरफ़ देखा जो एकटक उसे ही देख रहीं थीं।

कल से इनका ट्रीटमेंट शुरू होगा, “अम्मा बी!आप इनके बच्चों को बुला दें ताकि हम उन्हें समझा सकें क्यूँ कि टाइम बहुत कम है,”।

“वो तो नहीं आएंगे आप मुझे ही समझा दें”दुखी स्वर से आया बोलीं।”ये  दवाइयां और टॉनिक म॔गा लें “सुमी ने पर्चा  लिख दिया।

दोपहर को जाते समय सुमी ने देखा बड़ी सी गाड़ी से फलों की टोकरी लेकर आया उतरी,सुमी ने सोचा इतना पैसा होते हुए भी उनके साथ कोई नहीं?

घर मे घुसते ही आंधी की तरह मम्मा-मम्मा कहती सुमी रीमा को किचन में से हाथ खेंच कर कमरे में ले आई,”पहले सांस तो ले ले”पर सुमी तो जब तक अपनी दिनचर्या मम्मा को ना सुना दे उसे चैन कहाँ आता था,बचपन से ही उसकी यही आदत थी। उसके लिए आज की ‘हाॅट ‘न्यूज़ आशा सिंह थीं।वो कितनी सुन्दर, कितनी अमीर हैं,कैंसर की लास्ट स्टेज हैं, तीन बच्चे हैं पर कोई देखने नहीं आया,पूरी रनिंग कमेंट्री सुना दी।

अगले दिन राउंड पर फिर सुमी को लगा जैसे उनकी आंखें कुछ कहना चाह रहीं थीं,उनका इस तरह एकटक देखना सुमी को अटपटा लगता। इतने में सुमी का ‘फियांसी’ रजत आ गया ,दोनों साथ ही काम करते थे,आशा ने इशारे से पूछा कौन?”मेरे फियांसी “बताने पर वो हल्की सी मुस्कराईं और हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया उनकी आंखें फिर भर आईं।

सुमी ने आया को अपना नम्बर दिया,”कोई बात हो तो मुझे बता देना,हो सकता है मै कल ना आऊं ,कुछ हरारत सी हो रही है ”

अगले दिन सुबह-सुबह आया का फोन आया, बोलीं “मेम साहब बहुत परेशान है आपकी तबियत को लेकर” ,शाम को फिर फोन आने पर सुमी झुंझलाकर बोली “वो अपनी तबियत का ख्याल करें, मैं डाक्टर हूँ अपना ख्याल रख सकती हूँ”।

इतना ‘रूड’ होने पर सुमी को बुरा लगा, सोचा सुबह जा कर ‘साॅरी’कह देगी।

अगले दिन सुमी का जन्मदिन था,रीमा ने उसके मन-पसंद का खाना बनाया, भगवान के आगे उसे टीका लगाया,”मेरा गिफ्ट” कहने से पहले ही रीमा ने एक पैकेट उसे थमा दिया,सुमी ने जल्दी से खोला,”ओ मम्मा  “एप्पल आइ फोन” आपको कैसे पता चला कि मुझे यही चाहिए था, ये तो बहुत मंहगा है”यू आर द बेस्ट”।”माँ हूँ मैं तेरी, तेरी खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं “रीमा ने प्यार से कहा”।

हस्पताल पहुंची एक-एक कर के सबने उसे फूलों, गुलदस्तों से जन्मदिन की बधाई दी वो समझ गई ये रजत की शरारत है।

बेड न.15पर पहुंची आज आशा पलंग पर बैठीं थीं,उन्होंने सुमी को पास बैठाया, आया से  छोटी सी चांदी की डिब्बी लेकर रोली का टीका लगाया,मिठाई खिलाई 24 गुलाबों का बुके थमाया,सर पर हाथ रखा, आशीर्वाद दिया। फिर पैकेट में से एक क॔गन निकाल कर सुमी को पहना दिया,सुमी हक्की-बक्की रह गई झट से क॔गन उतार कर वापस कर बोली “मैं मरीज़ से गिफ्ट बिलकुल नहीं ले सकती”। आया ने बताया “आज मेम साहब के बच्चों का भी जन्मदिन है वो तो है नहीं इसलिए आप के साथ अपनी खुशियाँ बांट रही है”।कंगन वहीं छोड़ सुमी चली गयी।

घर पहुंची तो पता चला बराबर वाली आंटी की तबियत एकाएक खराब हो गई उन्होंने मम्मा को बुलवाया था

कमरे में जाकर देखा मम्मा की अलमारी आधी खुली      सी थी, शायद जल्दी में बंद करना भूल गई हों पर यह  अलमारी तो हमेशा लाॅक रहती थी इसके लिए मम्मा बहुत परटीक्यूलर थीं  ,ये सोच कर उसने खोल कर ठीक से बंद करना चाहा तो देखा गुलाबी रंग का रिबन लटक रहा था उसे ठीक करने लगी उसमें लिपटी गुलाबी रंग की फाइल थी, सुमी ने फाइल खोली पढ़ना शुरू किया “अडौप्शन” के कागज़ थे,सुमी की एक फोटो थी जो मम्मा के अलबम में देखी थी, रीमा के नाम एक चिट्ठी,एक छोटा सा बिल्कुल वैसा सोने का कंगन जैसा आशा सिंह ने सुमी को देने की कोशिश की थी!वही डेट ऑफ बर्थ, आशा सिंह और उनके पति का नाम जो उसने हस्पताल की फाइल में देखा था।सुमी के पैरों तले से ज़मीन सरक गई,”आशा सिंह मेरी माँ?और मम्मा, नहीं ऐसा नहीं हो सकता ”

इतने में रीमा वापस लौटी सुमी के हाथों में फ़ाइल देख कर समझते देर नहीं लगी कि आज सुमी को सचाई पता चलगई! ,उसका सर चकरा गया लगा बेहोश हो जाएगी, तभी सुमी का मोबाइल बजा, हस्पताल से फोन था बेड न.15की डेथ हो गई।

सुमी को समझ नहीं आया क्या करे,रीमा ने खुद को संभाला और सुमी को कहा हस्पताल चलते हैं, वहाँ जाकर आशा को देख रीमा एकदम पहचान गई भले एक बार ही उन्हें देखा था।

सुमी ने आया से कहा इनके बच्चों को बुला लें,
उसने बारी-बारी चारों को फोन किया, बड़े बेटे ने कहा वो किसी कान्फ्रेस में बिज़ी है नहीं आ सकता, बड़ी बेटी ने बताया वो अपनी फ़ैमिली के साथ वर्ल्ड टूर पर जा रही है, छोटे बेटे( सुमी का जुड़वाँ)की सास की सर्जरी हुई है वो उनकी देखभाल कर रहा है, छोटी बेटी( सुमी की जुड़वां) भी बहाना बनाकर टाल गई,उन्होंने कहा “आया बी आप “क्रीमेशन “ठीक से करा देना पैसे की चिंता मत करना”।

रीमा ने सुमी को एक तरफ बुलाया और कहा “अब तुम्हें ही करना है “सुमी हक्की-बक्की सी सी बोली “मैं”क्यूँ?”बेटा उनका हक है “रीमा ने कहा, “हक”कैसा हक?गुस्से से सुमी ने कहा” तब ये हक कहाँ था जब एक मासूम को मरने के लिए”चाइल्ड होम” में छोड़ा था,रीमा ने कहा” बेटा मेरे ऊपर इनका क़र्ज़ है मेरे लिए उसे तुम उतार दो”,
“आपने कब इनसे कर्ज़ लिया”सुमी ने तिनक कर पूछा?

“इनकी वजह ही तो मैं तुम जैसी बेटी की माँ बनी,ये कर्ज नहीं तो और क्या है? अब देर मत करो”।,

रजत ने सब इंतज़ाम करा दिया।

चलते समय सुमी ने आया बी के हाथों को पकड़ कर कहा “एक अहसान आपका भी मेरे ऊपर होगा| जब मैं इनके घर में थी जब भी बादल गरजे होंगे, बिजली चमकी होगी, आपने ही मुझे अपनी गोद में छुपाया होगा, लोरी सुनाई होगी, खुद गीले में सोकर मुझे सूखे में सुलाया होगा। अब आप हमारे साथ हमारे घर में रहेंगी| घर बंद कर के चाबियां इनके बच्चे जिसे कहें दे दीजिये।

आया बी ने सुमी के हाथों को पकड़ कर बताया कैसे आशा सिंह के पति और सास के आगे उनकी एक न चली| सुमी को ‘चाइल्ड होम’ छोड़ने के बाद वो अंदर ही अंदर घुटती रहीं, उन्होंने तो जीने की इच्छा ही छोड़ दी थी| यहाँ आकर जब से तुम्हें देखा, फिर से जीने की चाह होने लगी|
आशा सिह का क्रिमेशन करे के बाद सुमी अपने आप को अजीब से बंधनों में जकड़ा महसूस करने लगी।

एक तरफ आशा सिंह वो मां जिसने अपनी दुधमुंही बच्ची को सिर्फ इस लिए त्याग दिया क्योंकि सोनोग्राफी से पता चला कि उनको ट्रिपलेट्स हैं यानि तीन बच्चे जिसमें एक बेटा और दो बेटियां! एक बेटा बेटी उनको पहले ही थी !उनकी सास ने बहुत दबाव डाला कि तीन तीन बेटियां हो जाऐंगी !उनकी बिरादरी में बेटियां बोझ समझी जाती !वह भी तब जब घर में किसी चीज की कमी नहीं थी!
क्योकि सुमी थोड़ी कमज़ोर थी इस लिए उसे पैदा होने के कुछ समय बाद ही चाइल्ड होम में दे दिया गया!

दूसरी वो रीमा जो सुमी को पाकर अपने को पूर्ण समझने लगी थी!जिसकी दुनिया सुमी से शुरू होकर उसी पर खत्म होती थी!
सुमी को लगा जन्म का बंधन आज एक अनजाने बंधन की ममता और त्याग के आगे हार गया!
“चलो मम्मा अपने घर चलें” सुमी ने रीमा को सहारा देकर कार में बैठाया और कार स्टार्ट कर दी।

#बंधन

लेखिका : कुमुद मोहन

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