बहना चाहे भाई का प्यार-सुधा जैन  

अनुराधा के बेटे अनुराग की शादी है ।अनुराधा अपने पति आनंद के साथ शादी की तैयारी कर रही है, पर मन में बार-बार एक कसक सी उठती है …और कसक मायके को लेकर है। 10 वर्ष हो गए उसे मायके से संबंध तोड़े हुए …. तबसे ना मम्मी पापा को देखा, और ना भैया ,भाभी, भतीजा ,भतीजी को……

संबंध खराब होने का कारण बस यही था कि उसने अपने भाई से अपने पति के बिजनेस के लिए ₹500000 मांगे …लेकिन भाई ने मना कर दिया… इस बात का उसके पति आनंद  को बहुत गुस्सा आया और इसके परिणाम स्वरूप भाई बहनों के बीच में एक अदृश्य सी दीवार आ गई.. और बचपन में जिस आंगन में दोनों भाई बहन प्यार से खेले…. वह आंगन ही छूट गया…. उसे याद आता है…. एक बार जब  चचेरे भाई बहन बात कर रहे थे… तब उसके भाई ने पूछा था…

” बहन के बच्चों की शादी में मामा को मामेरा चाकभात  क्यों करना पड़ता है?” अनुराधा ने उसे समझाया था,,, “देख भाई ,बहन भी इसी आंगन का हिस्सा है… और भले ही बहन की शादी कर दो.. पर उसके सुख दुख में भाई सदैव खड़ा रहता है ….शादी की कोई भी रस्म बगैर भाई की पूरी नहीं होती…. शादी के निमंत्रण के लिए बहन बत्तीसी लेकर अपने मायके में निमंत्रण देने आती है…. भाई को  कपड़े देती है… भाभी को साड़ी उड़ाती है। भाई बहन का स्वागत करता है… भाई बहनों के प्रेम के गीत गाए जाते हैं…. उसके बाद भांजे भांजी की शादी में भाई अपनी हैसियत के अनुसार परिवार वालों के लिए उपहार लाता है… बहन के लिए साड़ी, गहने भेंट करता है… और बहुत ही प्यार भरे वातावरण में इस रस्म का निर्वाह किया जाता है।  अनुराधा के भाई हेमंत ने जब इसके महत्व को जाना…. तब उसे इस परंपरा को निभाना बहुत अच्छा लगा था।



लेकिन आज भाई और बहनों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई है… शादी की तैयारी के बीच में वह एक पल को भी अपने मायके को, अपने भाई, भाभी को नहीं भूली… हर वक्त उनके  बारे में सोचती रहती ….शादी की पत्रिका में जब मामेरे के बारे में लिखने की बात आई… तब उसने अपने पति की ओर कातर नजरों से देखते हुए कहा कि” मेरे भाई का नाम अवश्य लिखाना, भले ही वह आए या ना आए” आनंद  ने भी थोड़ी उदारता का परिचय देकर भाई का नाम लिखाया और पत्रिका पोस्ट कर दी। अनुराधा को लगता रहा… क्या पता क्या होगा? अपने पापा, मम्मी, भाई भाभी, भतीजे भतीजी के बगैर क्या मैं शादी की खुशियां मना सकूंगी? मन में संशय तो था फिर भी कहीं न कहीं आशा भी थी.. उसने अपने भाई, भाभी, भतीजे, भतीजी सभी के लिए यथा योग्य उपहार भी खरीदें…. मन ही मन यह सोचती…” कहे बहना सुनो भैया मेरे घर जल्दी से आना” बहन को लाल चुनरी, बहनोई को शेरवानी लाना, अगर इतना ना हो भैया तो खाली हाथ आ जाना, तुम मेरे अपने हो… अपनापन जतला जाना”

जैसे-जैसे शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी… अनुराधा की घबराहट बढ़ती जाती थी… घर पर मेहमानों का आना शुरू हो गया… शादी की रस्में शुरू हो गई… मेहंदी, हल्दी नेगचार होने लगे… आज मंडप पूजन था… और उसके बाद  मामेरे की रस्म होने वाली थी। उसकी आंखों में रह रह कर आंसू आ रहे थे ..जैसे ही गृह शांति, हवन वगैरह हुए… वैसे ही बाहर से ढोल बाजे की आवाज आने लगी… उसने उत्साह पूर्वक देखा तो देखती ही रह गई…. उसके भाई, भाभी, भतीजे, भतीजी मम्मी, पापा और मायके पक्ष के कई सदस्य उसके सामने उपस्थित थे… उसकी आंखों से आंसुओं की धार लग गई …अपने भाई के गले लग कर अपने मन को हल्का किया… भाई को टीका लगाया …भाई ने बहन को लाल चुनरी उड़ाई…. और सभी गाने लगे…

” भैया रमक झमक से मेरे घर आए ,भैया भी आए संग भाभी को लाए” प्यारे प्यारे भतीजे भी आए, बहना का मन भर जाए… भाई बहनों के इस मिलन ने इस बात को जता दिया कि भले ही किसी बात पर नाराजगी आ जाए….. मन में थोड़ा मैल  जाए लेकिन सुख और दुख में अपने साथ खड़े हो जाते हैं …क्योंकि  अपने तो अपने होते हैं।

 

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