कुछ दिल ने कहा !!! – के. कामेश्वरी

लीला स्कूल से आकर उदास बैठी थी ।

वासंती ने बहुत कोशिश की कि वह कुछ बोले पर लीला चुप थी । वासंती को मालूम है कि लीला ज़्यादा देर तक चुप नहीं रह सकती । हाथ पैर धोकर खाना खाते हुए लीला वासंती से कहने लगी… देखो न माँ पिछली बार जब रक्षा पेंसिल भूल गई थी तब मैंने रक्षा को अपनी पेंसिल दी थी पर आज जब मैं पेंसिल भूल गई और मैंने उससे माँगा तो नहीं दी ऊपर से सबसे कहने लगी स्कूल आते समय पूरे स्कूल बेग को चेक करके आना चाहिए कुछ भूल तो नहीं गए हैं । मेरी मम्मी तो मुझे यही सब सिखाती हैं । मुझे बहुत बुरा लगा माँ ऐसे भी लोग होते हैं क्या ?अब तो मैंने सोच लिया है कि मैं किसी को भी कुछ भी नहीं दूँगी । उनकी मदद भी नहीं करूँगी ।

माँ ने कहा देख लीला हमारे साथ कोई बुरा करता है तो हमें पलटकर बुरा ही नहीं करना चाहिए तू अभी बहुत छोटी है अभी तो पेंसिल और कॉपी पर बात रुक गई पर बेटा ज़िंदगी बहुत बडी है और तुम्हें न मालूम और कितने लोगों से सामना करना पड़ेगा पर मेरी एक सीख गाँठ बाँध ले दूसरों ने हमारे साथ जैसा व्यवहार किया  हम भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे तो हम में और उनमें क्या फ़र्क़ रह जाएगा?बोल !! हाँ हमारे दिल को तसल्ली ज़रूर मिल जाएगी कि हमने बदला ले लिया है । इंनसानियत भूलना ठीक नहीं है । अपना समझ कर न सही हमदर्द समझ कर इंनसानियत

के नाते उनकी मदद कर देनी चाहिए । दिल से न सही परंतु अपना फ़र्ज़ समझकर कर देना चाहिए क्योंकि भगवान के घर देर हो सकती है परंतु अंधेर नहीं । माँ पर !!!!!!

लीला की नींद खुल गई उसने लाइट जलाया देखा यह सपना था । माँ की सीख सपने में आई क्यों ? माँ आप हमेशा मुझे यही समझाती रही हैं ।ठीक है !!मैं आपकी सीख को न भूलते हुए अपना फ़र्ज़ ज़रूर निभाऊँगी । ऐसा फ़ैसला लेते ही लीला की चिंता मिटी और वह गहरी नींद में डूब गई ।

बीते हुए कल की बात


लीला का अपना खुशहाल परिवार था । पति प्रणव एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे । बेटा मनोज और बेटी मनीषा के साथ दिन बहुत ही अच्छे से गुजर रहे थे । मनोज के पैदा होने के दस साल बाद मनीषा ने जन्म लिया था फूल सी सुंदर बच्ची को देख वसंती और प्रणव बहुत खुश हुए ।उसके पालन पोषण में समय कैसे बीतता पता ही नहीं चलता था क्योंकि दोनों को बेटी से प्यार था । इसलिए दोनों उसे एक पल अपने से अलग नहीं करते थे । उन्होंने उसे इतना प्यार दिया कि बस दुनिया की सारी सुख सुविधाएँ उसे उपलब्ध कराने की होड दोनों में लगी रहती थी । उसे किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने देना चाहते थे । इसी तरह हँसी ख़ुशी दिन बीत रहे थे । बीते हुए दिनों के साथ दोनों बच्चे भी बड़े हो गए मनोज इंजीनियरिंग पूरा करके नौकरी करने लगा और मनीषा ने भी अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और बैंगलोर में ही नौकरी करने लगी ।

एक दिन मनोज ने माता-पिता को बताया कि अपने साथ नौकरी करने वाली एक तमिल लड़की शिप्रा से वह प्यार करता है और उसी से शादी भी करना चाहता है ।दोनों ने कुछ नहीं कहा और इजाज़त दे दी । दोनों का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ । तमिल होने के बाद भी शिप्रा ने अपनी तरफ़ से परिवार के साथ रहने की पूरी कोशिश की थी पर कुछ महीनों में ही उन्होंने ने ऑफिस का बहाना बना कर अलग मकान ख़रीदा और चले गए । मनीषा भी बैंगलोर में नौकरी कर रही थी और अच्छा कमा रही थी ।

उसके लिए माता-पिता ने ही योग्य वर की खोज की और शादी कराई । मनीषा और उसका पति सृजन भी इसी शहर में रहते थे । माता-पिता ने मनीषा को इतना प्यार दिया पर एक दिन भी उसने अपने माता-पिता को अपने घर नहीं बुलाया । लीला हमेशा सोचती थी कि कभी न कभी मनीषा के मुँह से निकलेगा कि माँ आप दोनों हमारे घर दो -तीन दिन आकर रहें या माँ आप हमेशा हमारे लिए खाना बनाती हैं हमारा इतना ख़याल रखती हैं ।चलिए दो दिन आप हमारे घर आ जाइए आराम कीजिए न !!!!!!!कभी भी उसके मुँह से यह नहीं निकाला ।


प्रणव रात को सोए तो फिर सुबह उठे ही नहीं । बेटा अमेरिका में सेटिल हो गया था । एक हफ़्ते के लिए आकर चला गया और बेटी ने उस दिन से घर की तरफ़ आना ही छोड़ दिया । चार साल हो गए थे बेटी से मिले ।कहते हैं कि बेटियाँ तो माँ के मन की बात बिना बताए ही जान जाती हैं पर मनीषा ने कभी भी माँ को नहीं समझा ।बस पैसे कमाने में वह व्यस्त हो गई और अपनी माँ की ख़बर भी नहीं ली ।

कल सुबह की ही बात थी । दरवाज़े पर घंटी की आवाज़ सुनकर लीला दरवाज़ा खोलती है । उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि पूरे चार साल बाद दरवाज़े के बाहर दामाद सृजन खड़े थे । मैंने उनके नमस्ते का जवाब देते हुए उन्हें घर के अंदर बुलाया ।साथ ही मन ही मन सोचने लगी कि इतने दिनों बाद यह क्यों आए हैं बेटी कैसी है? सृजन बैठ गए मैंने पानी दिया चाय पिलाई । देख रही थी कि सृजन कुछ कहना चाहते थे पर शायद हिचकिचा रहे थे । मैंने ही पूछा घर में सब लोग ठीक हैं तब धीरे से उन्होंने कहा जी सब ठीक हैं । क्या आप हमारे घर आ सकती हैं  ? मेरे काटो तो खून नहीं । कभी भी एक बार भी मियाँ बीवी ने अपने घर आने का न्यौता नहीं दिया था । प्रणव की मृत्यु के बाद अकेली पड़ गई थी पूरा ख़ाली घर काटने को दौड़ता था तब भी इन लोगों ने दो वक़्त की रोटी नहीं खिलाई और न ही सहारा दिया ।मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया ।शहर में रहकर भी मेरी ख़ैरियत नहीं पूछी पर इतने सालों बाद आज !!! मुझे ग़ुस्सा आया ।ग़ुस्से से ज़्यादा रोना आया क्या बात है ?आज मैं कैसे याद आई पर बाहर से मैंने इतना ही कहा

मैं नहीं आ सकती मेरी भी तबियत ठीक नहीं रहती है सॉरी!!!!!! सृजन ने एक बार भी फिर से आने के लिए नहीं कहा और चले गए । मैं निढाल होकर सोफ़े पर बैठकर सोचने लगी कि आज अचानक मेरी याद इन्हें क्यों आई ? मैंने तो ग़ुस्से में कारण भी नहीं पूछा यही सोच रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी हेलो !!!कहा तो उधर से मनीषा की आवाज़ सुनाई दी क्या है ?माँ आपने पूछा भी नहीं कि सृजन क्यों आए और वे क्या कहना चाहते हैं ।बस सीधे कह दिया मैं नहीं आ सकती । मुझे आपकी सहायता की आवश्यकता है ।कल मैं बाथरूम में गिर गई थी और मेरा एक पैर टूट गया मैं उठ नहीं सकती करने वाला कोई नहीं है ।इसीलिए आपसे मदद माँगने आए थे और आपने तो बिना कुछ सुने ही न कह दिया । आप मेरी माँ हैं और मेरी इतनी भी मदद नहीं कर सकती हैं क्या ? बोलिए आ रही हैं न !! चार साल बाद माँ को फ़ोन किया ।वह भी अपनी ज़रूरत के लिए दिल में आया कह दूँ नहीं आऊँगी ।तुमने मेरी ख़बर ली कि मैं कैसी हूँ ? ज़िंदा हूँ कि नहीं ?अपने पर आई तो फ़ोन करके बुला रही है …तभी कल का सपना याद आया माँ की कही हुई बातें याद आईं सोचा जाकर दूसरों के घर में हेलपर जैसे मदद करते हैं वैसे ही कर दूँगी ।बस मन में ठान लेने के बाद कहा ठीक है आजाऊँगी । सुनते ही बेटी ने कहा मैं आपके लिए गाड़ी भेज दूँगी ।आ जाइए कहते हुए फ़ोन रख दिया । मेरा दिल रो रहा था ।

कितने प्यार से पाला था इसे और यह ख़ुदगर्ज़ निकली । मेरे बारे में सोचा भी नहीं शायद यही है दुनिया का 

दस्तूर!!!!

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