बडकी बहू – आराधना सेन : Moral stories in hindi

नई दुल्हन अभी अपने कमरे मे भी  नही पहुंची थी उससे पहले ही उसके घर से आया सारा समान आँगन मे फैल चुका था जिसे देखकर रिश्तेदार तरह तरह की बाते कर रहे थे ताई जी तो गुस्से मे आग बबूलाहो रही थी।

ताऊजी को देखते ही बोल पड़ी “यह समान आया हैं रमेश के ससुराल से बहू के माँ बाप ने इतने सस्ती चीजो से बहू को विदा क्या हैं आपने देखा हैं मेरे शादी के कांसे पीतल के बरतन कितने बडे बडे हैं उसमे सारे गांव का खाना बन जाए यह इतने छोटे की इस परिवार का खाना ही न बन पायेगा और बडे बुजुर्गो को इतनी सस्ते कपडे देकर उनका सम्मान कोई करता हैं मेरा इतना बडा खानदान हैं उन्होने सिर्फ सात साड़िया वह भी सस्ती वाली भेज दी ननद के लिए कुछ भी नेग नही,यह किस घर मे आपने रिश्ता जोड़ लिया”

ताऊजी ने मुस्कुराते हुए कहा “मैने ही उन्हे कहा था की अपने सामर्थ्य के हिसाब से सब करे फिर भी उनहोने अपने सामर्थ्य से ज्यादा किया हैं मैने बेटे की शादी एक अच्छे लडकी से की हैं इसलिए मैने शादी मे मिले समान को  न देखकर उसकी अच्छाई देखी,अब तुम चुप करो बहू क्या सोचेगी “कहते हुए तौउजी बैठक की तरफ चले गए।

ताई जी को गरीब घर की लडकी बिल्कुल पसंद नही थी लेकिन क्या करे अब जब वह इस घर की बडी बहू बन ही गई हैं तो ताई जी उससे घर का हर काम कराती थी घर के साफ सफाई चूल्हा चौकी,देवर ननद की देखभाल पहले से लगे नौकर छुड़ा दिये यह बोल कर की अब हम सास बहू मिलकर सारा काम कर लेंगे।

ताई जी काम के नाम पर सिर्फ पान की सुपारी तोडती पान चबाती और अपने होठ लाल करते हुए मुँह बनाकर बडकी बहू ओह बडकी बहू पुकारते हुए आदेश देती।

बडकी बहू सुबह साढे चार बजे  ससुर  जी की चाय से आरम्भ करते हुए रात को सासु माँ को दुध का ग्लास देते हुए अपने दिन की समाप्ती करती,धीरे धीरे बडी बहू सबकी चहेती बन गई थी अपनी हंसमुख कर्मठ स्वभाव से सभी का दिल उसने जीत लिया था सास भी बडकी बहू की आदी हो चुकी थी लेकिन मुँह से कभी तारीफ नही करती थी।

एक दिन अचानक ताई जी अपने विशाल पलंग से गिर गई जिसके कारण उनके कमर की हड्डी टूट चुकी थी डॉक्टर साहब ने उन्हे बेड रेस्ट पे रहने को कहा अब वह उठकर बाथरुम तक नही जा पा रही थी बडकी बहू घर के सारे जिम्मेदारियो को करते हुए भी ताई जी की देखभाल कर रही थी

बडे ही सेवा भाव से वह ताई जी के सारे दिनचर्या के काम करवाती थी उन्हे साफ सुथरा रखना कपडे बदल देना बाल ठीक करना इस सेवा भाव को देखकर ताई मन ही मन रोती थी की इस बच्ची को मैने सामनो के साथ तोला इस के लिए मैने मन मे इतने बेर रखे मेरे से बहुत बडी गलती हुई मैने इसकी अच्छाई नही देखी यह मेरी गलती हैं,ताई जी एक दिन” बडकी बहू बडकी बहू  कह्के जोर से बुलाने लगी”

क्या हुआ मांजी?

जरा पान की डीबिया देना और इधर बैठ, लेकिन मांजी मुझे तो बहुत सारे काम हैं शाम के खाने का इन्तजाम भी करना हैं!

एक बार तू मेरे पास बैठ और दो पान बना एक मेरे लिए एक तुम्हारे लिए लेकिन मांजी मैं पान  नही खाती!

अरे कुछ नही होगा मीठा पान बना लेना इसी बहाने कुछ देर तो बैठेगी मेरे पास  आज रोटिया मोड़ के रामदिन से मँगवा लेंगे सब्जी सिर्फ बनना क्युंकि तुम बहुत अच्छा बनाती हो और एक बात तुम्हारे ससुर जी आए तो बोलना मैने उन्हे बुलाया हैं कल से एक कामवाली को रखना हैं।

दोनो सास बहुये पान चबाते हुए भरी दोपहर मे न जाने कितने तरह की बाते कर रहे थे होठो की लालिमा के साथ दोनो के चेहरे पर आज अजीब सी खुशी थी।

#रिश्ते हमेशा बराबरी वालो से करने चाहिये

स्वरचित

आराधना सेन

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