अपना पति पति और दूसरों का?? – चेतना अरोड़ा प्रेम।

आकाश,कल तुम्हारे मम्मी पापा वापिस जा रहे हैं तो उनके लिए सुबह ऑटो मंगवा लेना।तुम मत छोड़ने जाना रेलवे स्टेशन बेवजह थक जाओगे।अवनी अपने पति को सलाह देती हुई बोली।जिसे उसके पति ने भी झट से मान लिया।

ऋतु जो अवनी की भाभी थी,वो भी अपने पति विवेक व बच्चे के साथ उनसे मिलने आयी हुई थी।अवनी के मुंह से ये बात सुन वो बहुत अचंभित हो गई कि जो लड़की अपने मां बाप के लिए अपने भाई भाभी के सही कामों को गलत बताती थी।हमेशा अपने भाई भाभी को मां बाप की सुविधाओं का ध्यान रखने का ज्ञान देती थी।आज वो अपने पति की सुविधा को ज्यादा महत्व दे रही है।आज उसे अपने पति की थकान की ज्यादा फिक्र है जबकि बूढ़े सास ससुर के प्रति कोई कर्तव्य नहीं जो इतना लंबा सफ़र तय करके अपने पोते की देखभाल के लिए आते थे ताकि अवनी और आकाश बेफिक्र होकर नौकरी करें।कुछ महीने तो उनका पोता आया के भरोसे ना रह कर अपने दादा दादी के साथ रहे।जबकि आकाश उनका इकलौता बेटा था।उसके व पोते के प्यार में भागे चले आते थे वो।ऋतु के मन में यही गूंजने लगा #ननद_रानी_बड़ी_सयानी

ऋतु को फिर से वो दिन याद आ गए जब विवेक के ऑफिस की नाइट ड्यूटी होती थी तब भी अगर उसके सास ससुर को कहीं जाना होता तब भी विवेक को ही जाना पड़ता चाहे नींद पूरी है या नहीं इससे किसी को मतलब नहीं था।ना ही सास ससुर को उनके बच्चे से कोई लगाव था।उन्हें खाना तो समय पर चाहिए था पर मजाल है कि रोते हुए बच्चे को देख लें।कभी कभी बच्चे की वजह से भी विवेक की नींद पूरी नहीं हो पाती।उन्हें तो अपने बेटे की भी चिंता नहीं थी कि नींद पूरी नहीं होगी तो उसकी तबीयत बिगड़ सकती है और तो और वो ऑफिस में काम कैसे करेगा।उससे भी कोई मतलब नहीं था।


तब भी बेटी ने मां बाप को कुछ नहीं समझाया।बस उनकी गलत बातों में उनका साथ दिया।भाभी के आने से भाई से भी वैर हो गया था।आज मां बाप नहीं हैं फिर भी अवनी के दिल में भाभी के लिए बहुत नफ़रत है।उसे हमेशा अपनी भाभी गलत लगी क्योंकि उसने एक समय के बाद सास ससुर व अवनी की गलत बातों का विरोध करना जो शुरू कर दिया था।विवेक और ऋतु अपने बच्चे के साथ अलग जो रहने लग गए थे।आखिर मां बाप को भी समझना चाहिए।भले ही विवक उनका इकलौता बेटा था फिर भी उन्होंने हमेशा उसे अवनी से नीचे ही रखा।जबकि वो अवनी से उम्र में भी बड़ा था।

तबसे लेकर आज तक अवनी ऊपर से भले प्यार दिखाती थी पर अंदर से आज भी ऋतु को देखकर खुश नहीं होती थी।ये सब ऋतु भली भांति समझती थी।

ऋतु को पहले यही अनुभव था कि लोग बेटों को ज्यादा लाड प्यार देते हैं व बेटियों को लाड प्यार तो दूर उन्हें उनके हक का प्यार भी नहीं मिलता।लेकिन शादी के बाद विवेक के साथ उसके मां बाप के भेदभाव को देखकर उसको बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि मां बाप अपने बेटे के साथ भी ऐसा कर सकते हैं।

ऋतु को लगता था कि बेटियों को भी लाड प्यार मिलना चाहिए।लेकिन अब उसकी सोच बदल गई थी बेटा हो या बेटी उन्हें ज्यादा लाड प्यार देकर बिगाड़ना नहीं चाहिए। उन्हें प्यार के साथ साथ अपने बहन भाई व बड़ों के प्रति सम्मान देना भी सिखाना चाहिए।बेटी हो या बेटा उनको अपनी सीमा का पता होना चाहिए।

अगले दिन जब अवनी के सास ससुर चले गए।तो नाश्ता करने के बाद अवनी,विवेक व ऋतु बैठे थे।आकाश कुछ काम से बाज़ार गया था।तो बातों बातों में विवेक ने अवनी से पूछा गांव में तुम्हारे सास ससुर कैसे रहते हैं।मतलब उनका ध्यान कौन रखता है।

तो अवनी झट से बोली, मेरी ननद आस पास रहती है ना।वही ध्यान रखती है।

तब विवक ने पूछा,बेटे का कोई कर्तव्य नहीं होता?तुम समझ रही होना मैं क्या कहना चाहता हूं।

ये सुन अवनी जैसे होश में आयी हो।

हां, मैं समझ गई बोल,किचन समेटने लगी।

अवनी के व्यवहार को देखकर अब उसके सास ससुर तथा ननद का व्यवहार भी उसके साथ बदल गया था।अब जब भी वो लोग आते तो किसी ना किसी बात पर उनका अवनी के साथ काफी झगड़ा होता।अवनी भी कम नहीं थी उसे अपनी नौकरी का भी घमंड था।जिस भाभी के गृहणी होने पर उसने कोई कद्र नहीं कि और हमेशा उसे नौकर की तरह समझा।आज वो नौकरी करते हुए अपने सास ससुर की बातों को कैसे सहन कर सकती थी।कभी कभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वो मायके आ जाती थी। जब तक मां बाप जिंदा थे तो वो अवनी को समझाने कि बजाए उसका भरपूर साथ देते।विवक व ऋतु को ये सब नहीं बताया जाता था लेकिन कुछ बातें छुपाए नहीं छुपती।विवक उसे समझाने की कोशिश करता तो वो एक ना सुनती।पर अब मां बाप के ना होने पर विवेक ही उसे व उसके पति को समझाता।ऋतु भी विवेक का साथ देती।क्यूंकि जिसके साथ बीता हो वो ही अच्छे से समझ सकता है।कई बार अवनी अपने भाई के प्रति एहसान मंद भी होती।तो ऋतु को लगता शायद अब अवनी सुधर जाएगी।पर ऐसा कुछ ना हुआ।


दोस्तों कुछ लोग कभी नहीं सुधरते चाहे उनके साथ कुछ भी हो जाए।

हमें अपने बच्चों को प्यार देने के साथ एक दूसरे के दुख दर्द समझने की शिक्षा भी देनी चाहिए।हर किसी की परवरिश अलग तरह से होती है।हर किसी का खाने पीने का,पहनने ओढ़ने का अपना अपना सलीका होता है।खुद को बदलना कितना मुश्किल है तो हम दूसरों के लिए ये कैसे मान सकते हैं कि वो हमारे अनुसार खुद को बदल ले।बहू भी दूसरे घर से आयी है तो वो एक दम कैसे खुद को बदले या वो जिस तरह से सास ससुर की सेवा कर रही है तो बेटियों को कोई हक़ नहीं बनता उसकी तुलना करने का या उन्हें नीचा दिखाने का।ये शिक्षा मां बाप बच्चों को तभी दे पायेंगे जब वो खुद इसे समझ पाएं।
चेतना अरोड़ा प्रेम।

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