ज़िंदगी ख़ुशी से जीने के लिए  – के कामेश्वरी

रमा एक बहुत बड़े वकील की बेटी थी । वह देखने में बहुत सुंदर थी । पिता के पास बहुत सारे खेतखलिहान बंगले नौकर चाकर सब थे । अपने ओहदे पर उन्हें नाज़ था । उन्हें लगता था कि परिवार औरबाहर के लोग सब उनकी जी हुजीरी करें और लोग उनके पैसे और रुतबे के कारण करते भी थे । आठबच्चों में सबसे छोटी रमा थी । अपने पिता के थोडे से गुण उसने भी पाए थे । इसीलिए भाभियाँ उनसेबहुत डरतीं थीं । जैसे पुराने ज़माने में होता था औरतों को बोलने का हक़ नहीं था । उनका काम सिर्फ़रसोई में खाना बनाना परिवार के सदस्यों को और घर आए मेहमानों को खिलाना यही काम था ।किसी के सामने आना या आस पड़ोस की औरतों से बात करना ..यह तो वे सपने में भी नहीं सोचसकती थीं । रमा बहुत होशियार थी । इसलिए उनके पिता अपने ऑफिस रूम में रमा को बिठाकरखुद बाहर बैठते थे और रमा से क्लाइंट के फ़ाइल माँगते थे और वह रंग के हिसाब से उन्हें देती थी ।इस वजह से रमा को घमंड था कि मेरे पिताजी सिर्फ़ मुझसे ही ऐसा काम कराते हैं । 

जब रमा पंद्रह साल की हुई तब रमा की शादी एक ऐसे परिवार के लड़के से करा दी गई जो बहुत पढालिखा था पर रंग एकदम काला । उसका नाम था हरिश्चंद्र । घर का बड़ा बेटा था ,दो छोटे भाई थे औरएक बड़ी बहन थी जिसका विवाह बहुत पहले ही हो गया था । पिता गुजर गए थे जो कॉलेज मेंलेक्चरर थे । गोल्ड मेडिलिस्ट थे । शक्कर की बीमारी का उस समय इलाज नहीं था और वे उसीबीमारी से छोटी सी उमर में ही गुजर गए थे । उन्हीं की नौकरी हरिश्चंद्र को मिली । होशियार तो  थे परज़िद्दी भी बहुत थे । लाड़ प्यार ने भी उन्हें बिगाड़ दिया था । सोचा था कि शादी हो जाएगी तो उसकेव्यवहार में सुधार आ जाएगा । 

रमा विवाह करके हरिश्चंद्र के घर पहुँची । बडे घर से थी । उसने अपने आपको उस घर में ढालने कीबहुत कोशिश की थी ।

ननंद ने भी काम काज में उसकी बहुत मदद की थी । ननंद रुक्मिणी अपने मायके में रहती थी क्योंकिउनके पति इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे । उस जमाने में लड़कों का विवाह भी पढ़ते समय ही करदेते थे । इसलिए उसने अपनी नई नवेली भाभी को घर के तौर तरीक़ों से अवगत कराया । दूसरे बेटे कानाम रामपाल था । तीसरे बेटे का नाम रामप्रसाद था । रामपाल और रामप्रसाद दोनों ने अपनी पढ़ाईपूरी की और नौकरी की वजह से मुंबई रहने चले गए । साथ में पूरा परिवार भी चला गया क्योंकिहरिश्चंद्र ने अपनी नौकरी किसी ज़िद के कारण छोड़ दी थी ।    रमा और हरिश्चंद्र के दो बेटे हो गए ।पहला अजय दूसरा विजय । किसी तरह मुंबई में सब गुजर बसर कर रहे थे । एकदिन सुबह के घर सेबाहर निकले हरिश्चंद्र घर वापस नहीं आए । पूरा परिवार हिल गया था ।उनके सामने यह सवाल उठाकि हरिश्चंद्र के दो बच्चे और पत्नी की देखभाल कौन करेगा । घर में तनाव बढ़ने लगा ,तब तक दूसरेदोनों भाइयों का भी विवाह हो गया था । रमा भी चिड़चिड़ी हो गई थी ।दूसरों का ग़ुस्सा अपने बच्चों परनिकालती थी ।आख़िर वह भी क्या करे ,उसने अपने घर में कभी पैसों की तंगी देखी ही नहीं थी । 



एकदिन बाहर के कमरे से किसी के ज़ोर -ज़ोर से बोलने की आवाज़ें आ रही थी । अंदर बच्चों कोखाना खिला रही रमा को अपने पति का नाम सुनाई दिया भागते हुए बाहर आई कि हुआ क्या है ?जानने के लिए तभी छोटे देवर रामप्रसाद ने बताया कि भाभी भैया मिल गए हैं ,चेन्नई में नौकरी कर रहेहैं । मेरे एक मित्र ने बताया है । आप अपना और बच्चों का सामान बाँध लीजिए । मेरे मित्र ने कहा हैकि वह घर ढूँढकर आपको भाई के पास पहुँचा देगा । अगले हफ़्ते रमा अपने दोनों बच्चों के साथचेन्नई पहुँच गई । रामप्रसाद के मित्र अकेले नहीं आए थे ,अपने साथ हरिश्चंद्र को भी लेकर आए थे ।उन्हें क्या बताया था ,नहीं मालूम पर अपने बीवी बच्चों को देखते उनका पहला प्रश्न रमा के लिए यहीथा कि तुम क्यों आई । ख़ैर अपने बीबी बच्चों को लेकर हरिश्चंद्र नए घर में आ गए । रमा का नयाजीवन शुरू हुआ ।

उसे घर चलाने का तजुर्बा नहीं था और हरिश्चंद्र भी हर महीने की तनख़्वाह बिनामाँगे कभी नहीं देते थे । किसी तरह घर चल रहा था । रमा खुश थी । पहले से ही अपने पिता के गुणरमा में थे ।जो अब बाहर आ गए।  वह घर की मालकिन थी ।पति को उसने उँगलियों पर नचाना शुरूकर दिया । रमा और हरिश्चंद्र के अब पाँच बेटे हो गए थे । आमदनी तो बढ़ी नहीं पर परिवार बढ़ गया। बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता था । ऊपर से रमा को घर चलाने कातजुर्बा भी नहीं था । बच्चे बहुत ही होशियार थे । बड़ा बेटा अजय तो जीनियस था । उसने अपने बच्चोंको बहुत ही संस्कारों से पाला । पिता की मृत्यु के बाद रमा को मायके वालों पर मोह भी बढ़ गया था ।रमा ख़ुदगर्ज़ थी स्वाभिमान उसमें कूट -कूट कर भरा था । अपनी परेशानी किसी पर ज़ाहिर नहीं करतीथी । 

इसीलिए घर आए मायके वालों को खाना खिलाना और दो -दो ,तीन -तीन दिन अपने घर में रख कर…उनकी मदद करना सब करती थी, पर मजाल है कि उनसे किसी चीज़ की मदद ले । कहते हैं कि ऊँटभी करवट बदलता है वैसे ही रमा के घर के हालात भी सुधर गए । अजय को सरकारी नौकरी मिली ।दूसरे बेटे विजय ने पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया था फिर भी किसी तरह उसे भी नौकरी मिली पर प्राइवेटमें । तीसरा बेटा संजय ने तो भी बारहवीं पास किया था पर उसे भी प्राइवेट ही पर अच्छी नौकरी मिली। ख़ुशियों ने रमा के घर के दरवाज़े पर अभी हौले से दस्तक दिए ही थे कि रमा के चौथे बेटे संजीव कीमृत्यु सड़क दुर्घटना में हो गई ।पाँचवाँ बेटा राजीव था जो अभी पढ रहा था । 

रमा का दिल बैठ गया । रमा ग़ुस्से वाली और तेज तर्रार जरूर थी पर अपने बच्चों से किसे प्यार नहींहोता । दो , तीन साल तक उसने अपने बेटे के ग़म में शोक मनाया पर रिश्तेदारों ने उसे समझाया किअब अजय शादी के लायक़ हो गया है उसकी शादी करा दे ….घर में ख़ुशियाँ आ जाएँगी । पहले तोरमा नहीं मानी फिर सबके ज़ोर देने पर मान गई । अजय सुंदर संस्कारी और पढ़ने में भी होशियार था ।घर की हालातों के कारण उसे बी.एस.सी के बाद ही नौकरी करना पड़ा । 



अजय ने बहुत सारी लड़कियों को देखा उसे कोई भी अच्छी नहीं लगती थी । रमा भी बेज़ार हो गई थीअजय के लिए लड़कियों को देख देख कर । एक कहावत है कि बग़ल में लड़की शहर में ढिंढोरा…..वैसे ही रमा की जो दूसरी देवरानी थी कमला उसके भाई की लड़की थी पढ़ी लिखी और सुंदर थीउनका भी रिश्ता अजय के लिए आया पर कमला तो अपनी जेठानी के स्वभाव को जानती थी इसलिएउसने कभी पहल नहीं की थी पर कहते हैं न रिश्ते तो स्वर्ग में ही बनकर आ जाते हैं तो कमला कीभतीजी रुचि का रिश्ता अजय के साथ पक्का हो गया ।

कमला ने रुचि को फ़ोन पर एक ही बात कहीथी , देख बेबी मेरा बेटा प्यार का भूखा है ..तू उसे प्यार दे और अपनी ज़िंदगी खुद सँवार ले । अजय केअपने उसूल थे जैसे दहेज न लेना पर रमा को अपने पहले और बड़े बेटे के ससुराल वालों से बहुत सारीउम्मीदें थीं । उसने जहाँ तक हो सके सामने वालों से लेने की कोशिश की थी पर वह बहुत ज़्यादा खुशभी नहीं थी क्योंकि एक तो देवरानी की भतीजी दूसरी अजय इन सबके ख़िलाफ़ था इसलिए ज़्यादाडिमांड भी नहीं कर सकती थी । किसी तरह रुचि और अजय का विवाह बहुत ही धूमधाम से संपन्नहुआ , और उसने अजय का हाथ थामकर सुनहरे सपनों को सजाने के लिए अपने ससुराल में कदम रखे।

पूरा घर रिश्तेदारों से भरा था । सबको जाने में समय लगा धीरे-धीरे घर में सिर्फ़ परिवार के लोग हीबच गए थे । अजय भी ऑफिस जाने लगे क्योंकि हनीमून जाने की इजाज़त सासू माँ ने नहीं दियाउनका कहना था कि वह सब नए ज़माने के चोंचलें हैं । ठीक है फिर अजय ऑफिस से जल्दी आते थेतो वह भी सासु जी को पसंद नहीं आया …आए दिन ताने देती थी कि पहले तो घर कभी जल्दी नहींआता था अब बीबी आ गई तो पाँच बजे ही घर आ रहा है । अजय ने धीरे-धीरे घर अपने नॉर्मल समयपर आना शुरू किया तब वे कहती थी कि शादी कर लिया फिर भी देर से आता है क्यों ? 



रुचि ने देखा ससुराल में सब सासु माँ की ही बात सुनते हैं । तीन देवर थे सबसे छोटे वाले बारहवीं मेंपढ रहे थे । सास कड़क थी आते ही रुचि ने महसूस कर लिया था । एक महीने तक सब ठीक से हीचल रहा था ।रमा ने रुचि को पहले दिन ही बता दिया था कि सबेरे जल्दी उठना है क्योंकि पीने कापानी भरना पड़ता है । इसलिए ५.३० को ही रुचि उठ जाती थी , कभी देरी हो गई तो बर्तनों का नाचहोता था । अजय के बहुत से मित्र थे । वे सब दोनों को खाने पर बुलाना चाहते थे । परंतु अजय कोमालूम था माँ रुचि को साथ ले जाना पसंद नहीं करेंगी । इसलिए वह आए दिन कुछ न कुछ बहाने बनादेता था!एकदिन उनके एक सहकर्मी ने अजय को खाने पर बुलाया ।जिन्हें वह टाल नहीं सका तो उसनेरुचि से कहा रात को खाना खाने मेरे एक मित्र के घर जाना है तैयार हो  जाना ।

माँ को भी बताया किरात का खाना बाहर है एक दोस्त के घर रमा ने पूछा ….तुम्हारा दोस्त शाकाहारी है या मांसाहारी अगरमांसाहारी है तो उनके घर तुम खा लेना पर बहू नहीं खाएगी । अब अजय की बोलती बंद क्योंकि किसीके घर पति पत्नी गए और पति खाना खाए पर पत्नी नहीं यह कितनी शर्मिंदगी की बात है । अजय ने  रुचि से कहा रुचि उनके घर खा लो और घर में भी कुछ थोड़ा सा खा लेना ।अब आगे से कोई दोस्तखाने पर बुलाएँ तो कुछ बहाना बना दूँगा । दोनों रात को घर पहुँचे ।रमा बिना खाना खाए दोनों काइंतज़ार कर रही थी । दोनों ने थोड़ा सा खाया पर रमा समझ गई कि ये लोग खाकर आए हैं । उस दिनउसने घर में इतना बवाल मचाया कि रुचि परेशान हो गई क्योंकि उसने अपने पिता के घर में इस तरहके बवालों को नहीं देखा था । उसके आँखों से आँसू बहने लगे । अब तो आए दिन घर में कुछ न कुछहोते ही रहता था । 

अजय बहुत ही अच्छा था पर रुचि को उसका साथ सिर्फ़ थोडे समय के लिए ही मिलता था । रविवारके दिन भी रमा कुछ न कुछ काम ऐसे निकाल लेती थी कि रुचि को सास का हाथ बँटाना ही पड़ता था। अब अजय रविवार को भी कोई न कोई मीटिंग के लिए बाहर चले जाते थे । इसी तरह एक सालबीता और रुचि की गोद में सुंदर सी बच्ची ने जन्म लिया । अब घर के झगड़े कम हुए । रमा की अपनीकोई लड़की नहीं थी …..इसलिए वह अनुजा को एक पल भी नहीं छोडती थी । दिन बीतते गए औररुचि ने एक लड़के को भी जन्म दिया आनंद बस अब न रमा और न रुचि को ही फ़ुरसत थी । दोनों हीबच्चों में इतनी व्यस्त हो गई कि और किसी मुद्दे पर बात करने के लिए समय ही नहीं मिलता था । वैसेभी रुचि के व्यवहार से रमा भी उसे चाहने लगी थी कभी-कभी उसे याद आ जाता था कि वह सास है पररमा की सहेलियाँ और उसके मायके वालों ने तो रुचि को सर्टिफिकेट दे दिया कि रमा तुम्हारे अच्छेकर्म हैं जो तुझे रुचि जैसी बहू मिली है । 

रमा भी खुश हो गई थी कि चलो ज़िंदगी अब पटरी पर आ गई है । कभी ख़ुशियाँ तो कभी गम मिले परअंत में पोती पोते के साथ ज़िंदगी ख़ुशियों से भर गई है । 

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

के कामेश्वरी 

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