आज जब कनिका के बचपन की सहेली पूजा उससे अकस्मात ही मिलने आयी और बातों बातों में बोली “तेरा अच्छा है कनिका, सास ससुर का कोई चक्कर ही नहीं है! अपनी पसंद के कपड़े पहनो जो खाना है खाओ, प्रेम विवाह किया तूने और इससे ज्यादा कितनी ख़ुशी चाहिए किसी को अपने जीवन में?”
कनिका का दर्द आँखों में अब और ना सिमट सका और आसूं बनकर बाहर बह निकला..
पूजा नें इतना बोल कनिका की तरफ देखा, तो बोली, “अरे!! मैंने कुछ गलत बोल दिया क्या? तू तो रोने ही लगी क्या हुआ सखी? तू मुझसे अपना दर्द बाँट सकती है।”
पूजा की तरह कनिका की सभी सहेलियों को लगता था कि वो कितनी खुशनसीब है जिसने अपनी पसंद के लड़के से शादी की है और शादी के बाद घर परिवार के झमेलों से दूर रहती है अपने पति और छोटी सी बेबी पीहू के साथ।
वास्तविकता तो कुछ और ही थी, इस ख़ुशी के पीछे उसका ग़म भी छिपा था।
कनिका ने जब प्रेम विवाह की जिद की तब उसके अपने घरवालों नें उसको शादी के बाद छोड़ ही दिया ये कह कर, ” बेटी अब तुमने अपनी पसंद से शादी की है तो जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही रहेगी, हम शायद ही तुम्हारी भविष्य में कोई मदद कर पाए।”
ससुराल वाले भी बस कनिका के पति विशाल से ही मतलब रखते थे। ना उन्होंने कभी पूरे दिल से कनिका को अपनाया था और ना ही कनिका को लगता था कि वह अपने ससुराल में कभी सम्मान और प्यार पा सकती है।
कनिका स्वयं में विश्वास रखती थी और निष्ठा के साथ घर में अपनी पत्नी के फर्ज़ निभाती और जॉब करके आर्थिक जिम्मेदारी भी उठाने लगी। सब अच्छा चल रहा था कि शादी के 6 महीने बाद कनिका प्रेग्नेंट हुई।
कनिका के घरवालों नें बस दूर दूर से ही उसको अपना ख्याल रखने की हिदायत दी और ससुराल पक्ष की तरफ से कनिका की गुड न्यूज़ सुन कोई खास रिएक्शन ही नहीं हुई।
कनिका सब कुछ संभालती रही, उसने अकेले ही अपने प्रेग्नेंसी के 6 महीने बिता दिए पर अब कुछ कॉम्प्लिकेशन्स आने लगे थे। डॉक्टर नें कनिका से कहा, “आपको अब अपने काम से छुट्टी लेनी पड़ेगी आप यूँ 7-8 घंटे बैठे बैठे काम करोगी तो बच्चे के लिये अच्छा नहीं है और आपका बी पी भी बढ़ रहा है।”
कनिका नें ऑफिस से छुट्टी ली और जैसे तैसे 1 महीना पूरा किया और काफी प्रयासों से प्री मैचयूर बच्ची को जन्म दिया गया और बच्ची को बचाने में आई सी यू का भी काफ़ी खर्चा आया।
जिम्मेदारी के पड़ते ही विशाल का सारा प्यार भी हवा में उड़ गया। विशाल,बच्ची को पलवाने में कनिका की कोई खास मदद नहीं करता था। जब भी रात में जागने की बारी आती तो विशाल अगले दिन ऑफिस जाना है, ऐसा बोलकर अपना पल्ला झाड़ लेता था।
घर के कामों में भी विशाल कनिका की कोई मदद नहीं करता था। बच्ची के होने से खर्चा भी बढ़ गया था और अब कनिका को भी पगार नहीं मिलती थी इसलिए विशाल मदद के लिये एक और कामवाली भी नहीं लगवाना चाहता था।
कनिका अकेले ही रातों को जगती और अपनी ये हालत देख रोती थी। कनिका नें अपनी सेविंग्स से ही एक कामवाली बाई रख ली, जोकि दो घंटे के लिये आती और कनिका की मालिश करती और बच्चे के कपड़े धोना, उसे नहलाना ये सब काम कर चली जाती थी।
ना जाने क्यूँ बच्चे के पालने में किसी से भी कोई मदद ना मिलने पर कनिका चिड़चिड़ी हो गयी थी, अब उसे विशाल से भी कोई खास लगाव नहीं रह गया था।
बच्ची तो बड़ी हो गयी, पर जो ना बदला था वो था विशाल का अपने बच्चे के प्रति रवैया। विशाल समय के साथ और आलसी होता गया। विशाल को भी पता था कि कनिका की शिकायत ना ही उसके मायके वाले सुनते है और ससुराल वालों को तो वैसे भी कोई मतलब नहीं था कनिका से।
कनिका ने आर्थिक जिम्मेदारियों के चलते अब ऑफिस भी ज्वाइन कर लिया था। बहुत परेशानी से एक माँ की जिम्मेदारी, ऑफिस की जिम्मेदारी और घर संभालती थी।
कनिका सोचती बस एक साल और ये सब संघर्ष है फिर तो विशाल का प्रमोशन हो जायेगा ऑफिस में और वो अपनी जॉब छोड़ थोड़ा अपने लिये समय निकालेगी।
एक साल बाद आज विशाल का प्रमोशन होना था पर ऐसा हुआ नहीं!!
घर आकर विशाल गुस्से से कनिका पर चिल्लाने लगा।
विशाल को समझाते हुए कनिका बोली, “आप चिल्लाओ नहीं, इस बार नहीं तो अगले साल हो जायेगा प्रमोशन”।
“नहीं होगा अब कुछ भी, मैंने रिजाइन कर दिया है कंपनी से! जहाँ मेरे काम की इज़्ज़त नहीं वहाँ मै काम नहीं कर सकता हूँ” विशाल बोला।
कनिका नें अपना सर पीट लिया। उसने क्या सोचा था और क्या हुआ?
“अब घर कैसे चलेगा?” कनिका बोली।
“तुम्हारी जॉब तो है ना” विशाल बोला।
कनिका का दिमाग़ ख़राब हो चुका था उसने विशाल से इस समय कोई बहस नहीं की और अगले दिन जब पूजा उसकी बचपन की सहेली उससे मिलने आयी तब उससे खुद के इमोशन पर कण्ट्रोल ना हो सका।
अकेले में ले जाकर कनिका ने अपनी सहेली को अपनी पूरी दुख भरी कहानी सुना दी।
पूजा को भी बड़ा अफ़सोस हुआ कनिका की इस चमक धमक की जिंदगी के पीछे की सच्चाई जानकर।
पूजा नें कहा, “अब तू क्या करेगी?”
“बस यार, विशाल को तीन महीने का समय दूँगी, जॉब लगी तो ठीक, वरना अकेले ही अपनी बच्ची को पालूंगी और सिंगल मदर ही रहूंगी। वैसे भी अभी भी बच्ची का खर्चा, पालन पोषण सब मेरे ही ऊपर है” कनिका सुबकते हुए बोली।
पूजा तो चली गयी और कनिका की चेतावनी नें विशाल के सर पर चढ़ा हुआ आलस भी उतार दिया।
जिस कनिका को विशाल बेसहारा समझ रहा था उसके दृढ़ निश्चय को देख विशाल भी घबरा गया।
छोटी ही सही विशाल ने अपनी जॉब लगाई और अब वो अपने पिता के फर्ज़ के साथ साथ कनिका का हाथ भी बटाने लगा था।
दोस्तों, सही कहा हैआप किसी की बाहरी जिंदगी को देख ये तय नहीं कर सकते कि वह व्यक्ति सच में खुश है या किसी ग़म में है, पर जब ख़ुशी आपकी तो ग़म भी.. इसलिए बस दृढ़ निश्चय से अपने दुखों पर विजय पाइये और ख़ुशी की ओर अग्रसर होना चाहिए|
कहानी कैसी लगी आपको? प्रतिक्रिया अवश्य दे।
#कभी_खुशी_कभी_ग़म
@स्वरचित
धन्यवाद
राशि रस्तोगी