जीजिविषा – डॉ उर्मिला सिन्हा

गली में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था.पहरेदार का “जागते रहो..”की तीव्र ध्वनि नीरवता भंग कर रही थी.रात आधी बीत चुकी थी .हंसा घुटनों में सिर दिये  झपकी ले रही थी. नींद के झोंके से माथा कभी इधर, कभी उधर लुढ़क पड़ता .वह पुनः सिमट कर बैठ जाती .वह जितना ही जागने का प्रयास करती नींद उसपर दुगुने वेग से हावी हो जाता….

   नीचे आंगन के गुल गपाड़े से हंसा की आंखें खुल ग‌ई .झट उठ बैठी .शायद जेठ और पति आ गये भोजन ठंडा हो गया।कोयले का आंच मंदा पड़ गया था वह जल्दी-जल्दी पंखा झलने लगी.

  नीचे शोर-शराबा बढ़ता जा रहा था…हंसा का हृदय किसी अनजाने भय से आतंकित हो उठा . स्थिति का जायजा लेने के लिए वह मुड़ेर पकड़ आंगन में झांकने लगी.उसके जेठ ,जिठानी और पति आपस में उलझ रहे थे

“कुछ तो शर्म करो ,इस तरह पीकर आधी रात को घर आना.”..

जिठानी की तड़पती आवाज ने हंसा को स्तब्ध कर दिया.

“पीकर आये हैं तो तेरे बाप का क्या ‌जाता है , आंखें दिखाती है” जेठ गालियां बकने लगे.

जिठानी शैला भी पीछे रहने वाली नहीं थी,”मेरे बाप का कुछ नहीं अपने बच्चों का तो ख्याल करो, घर खर्च चलाना मुश्किल है उसपर दारू शराब पर पैसे लुटाना , कलेजा ही जलाना है तो ‌हमें जहर लाकर दे दो फिर जो जी में आए करो…””

“जा जा खा  ले जहर ..तेरी जैसी मुंह-जोड़ से  मेरा पीछा छूटे , बच्चे सिर्फ मेरे हैं तेरे नहीं…..”पति के बेहयाई का शैला पर कोई असर नहीं हुआ.

वह चमक उठी,”घर में न‌ईनवेली दुल्हन है उसकी तो सोंचो वह मायके जाकर क्या कहेंगी हमारे बारे में लोक लिहाज कोई चीज है कि नहीं…”



  पति पत्नी को यूं ही आपस में उलझता छोड़ हंसा का पति अपने कमरे की तरफ चला. अधिक देशी चढ़ा लेने से वह होश में नहीं था , पांव डगमगा रहे थे ….मितली सी आ रही थी… दिमाग काबू में न था, धम्म से बिस्तर पर जा गिरा.

  “हंसा ओ हंसा…उसे इस समय पत्नी की बेहद आवश्यकता थी.गला प्यास से सुख रहा था.”पानी, पानी…”

हंसा ने पहली बार अपनी आंखों से दो शराबियों को यूं नशे में चूर देखा था. इत्तेफाक से दोनों उसके जेठ और पति ही थे.अभी उसके विवाह का महीना भी नहीं बीते हैं और पति का यह लक्षण.जिस पति के एक झलक से वह रोमांचित हो उठती थी वहीं नशे में डूबी पुकार हंसा के कोमल हृदय को व्यथित कर दिया.वह यूं ही मुंडेर थामे अंधेरे में खड़ी रही.

नीचे जेठ का बड़बड़ाना कम हो गया था किन्तु जेठानी की जुबान अभी भी आग उगल रही थी.

“कहां गई ओ महारानी…”पति की चीख-पुकार.. वह ज्यों की त्यों ..खड़ी रही.इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए वह कत‌ई तैयार नहीं थी….कदम आगे बढ़ते ही नहीं थे …पांव मन -मन भर भारी हो रहे थे .

नशे के गिरफ्त में पति को अपनी अवहेलना अखर गई .. उसनेे आव देखा न ताव हंसा के कमर पर खींच कर लात जमा दिया.,”औरत की जात तुम्हारी यह मजाल ;समझ क्या रखा है…”अपशब्दों का बौछार करता अपने दोनों हाथों और पैरों से पत्नी को बुरी तरह पीटने लगा.हंसा की चीखें रात्रि के सन्नाटे को चीरती दूर दूर तक फैल चुकी थी.शराब के नशे में पति शैतान बन चुका था.

  हंसा की चीख सुन जेठानी दहल उठी; वाह री दुल्हन अभी पखवाड़ा भी नहीं बीते और पति के लात-जूतों का प्रसाद मिलने लगा.उसके रोंगटे खड़े हो गए….पहली बार अपने पति के हाथों पीटकर वह भी तो इसी प्रकार चीखी-चिल्लाई थी….परन्तु उसे बचाने कोई नहीं आया था….वह जल्लाद पति के हाथों पीटती रही और उधर सास ननद मुंह में आंचल ठूंस मजा लेती रही….अतीत की स्मृति से उसकी आंखों में क्रूर चमक उभर आई….वह भी तो पीटती है अपने पति के हाथों…. .अब हंसा कहां की राजरानी हैं ….? अब इस घर में आई हैं तो यहां के रीति-रिवाज से रूबरू होना ही पड़ेगा.

 हंसा की चीखें सिसकियों में परिवर्तित होने लगी.उस रात किसी ने खाना नहीं खाया.

   ‌‌अब तो हर तीसरे दिन हंसा को मार पड़ने लगी.फूल सी कोमल काया लाल-नीली धारियों से पट गया.चेहरा सूख गया.आंखों में भय तैरने लगा.न‌ई बहू का उत्साह उमंग कपूर के नाईं उड़ गया.

 हंसा के पति और जेठ एक गल्ले के दूकान में काम करते थे…कमाई साधारण थी उसपर नशे की लत…. तीन बच्चे थे . बिटिया व्याहने लायक थी.घर में हरदम खर्चे की तंगी रहती थी.न बच्चों के कापी -किताब का ठिकाना था और न उचित शिक्षा दीक्षा की.

  हंसा ने अपने आप को परिस्थितियों के हवाले कर दिया था.दिनभर घर गृहस्थी में जुटी रहती.आधा पेट खाकर भी प्रसन्न रहने की चेष्टा करती.मार पड़ने पर भी पहले की तरह चिल्लाती नहीं थी, पीड़ा को अन्दर ही अन्दर पीने का प्रयत्न करती.जेठानी से उसका विशेष लगाव हो गया था.खाली समय में जेठ के बच्चों को ज्ञान भरी कहानियां सुनाती , क़िताबें पढ़ाती उनके पढ़ाई में मदद करतीं.

  बारिश का मौसम क्या आया अपने साथ बिमारी भी ले आया….जेठानी क‌ई दिनों तक तीव्र ज्वर में पड़ी रहीं…हंसा जी जान से उनकी तीमारदारी में लगी रही.ज्वर चला गया था किन्तु कमजोरी काफी हो गई थी.



  “दीदी, फुल्के खा लो,परवल का झोल खासकर तुम्हारे लिए पकाया है, इसे खाने से शरीर में ताकत आयेगी..”हंसा की भोली बातें सुन जेठानी का मन भर आया.वह जानती थी इस परवल के झोल के लिए इतने बड़े परिवार में हंसा ने कैसे सब्जी से दो-चार परवल छुपाकर रखे होंगे…इतनी प्यारी लड़की इन दरिंदो के हाथ में कौन-सा सुख पायेगी… जेठानी का अन्तर्मन सोच में पड़ गया.

“हंसा मैं स्वस्थ हो गई हूं, तुम कुछ दिनों के लिए अपने मायके हो आओ…”जेठानी अपना सारा स्नेह देवरानी पर लुटाने के लिए व्यग्र हो उठी.

  “नहीं दीदी , मैं यहीं ठीक हूं “हंसा ने नजरें झुका ली. “तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो ,बोलो क्या बात है?मैके जाने के नाम पर तो लड़कियां उछलने लगती हैं परन्तु तुम उदासीन हो जाती हो . जरूर इसके पीछे कोई राज है अपनी दीदी को नहीं बताओगी..?”

 “दीदी आप से क्या छुपाना.. घर में खाने वाले क‌ई हैं और कमाने वाला मेरा एक भाई…वह भी छोटी-सी नौकरी.किसी प्रकार उसनेे मेरा विवाह किया अब दुबारा मैं उसपर बोझ बनना नहीं चाहती.. अन्यथा कौन लड़की मायके जाना नहीं चाहेगी”

“ओह..”

“ग्रेजुएशन के बाद मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी..

इसी बीच विवाह हो गया और सब   पीछे छुट गया…”हंसा का उदास स्वर.

“यह क्या होता है मुझे समझाओ ..”जेठानी का आश्वासन पा हंसा विस्तार पूर्वक सब-कुछ बताने लगी.

“किताबें,फार्म भरने के लिए पैसे भी चाहिए …”

“जी…”

जेठानी ने आंखें मूंद ली मानों कोई समाधान ढूंढ रही हो.

“तुम। ट्यूशन करोगी…”वह उठकर बैठ गई.

“हां… क्यों नहीं… पर कैसे  ..मैं पहले भी ट्यूशन पढ़ाती थी..ये लोग मानेंगे…”

“यह मुझपर छोड़ दो.किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं….”

 जेठानी के समक्ष हंसा एक उम्मीद की किरण बनकर चमकी थी.उसने अपने पहचान वालों के माध्यम से ट्यूशन की व्यवस्था करवा दी.



  हंसा एक मेधावी, परिश्रमी और कुशल शिक्षिका साबित हुई.उसके सरल स्वभाव, व्यवहारिक ज्ञान, गणित, अंग्रेजी तथा अन्य विषयों पर अच्छी पकड़ की धूम मच गई.ट्यूशन चल निकला..हाथ में चार पैसे आने लगे तो घर की दशा भी सुधरने लगी..साथ ही दोनों देवरानी जेठानी का खोया हुआ आत्मविश्वास भी लौटने लगा.

   दोनों नशेबाज भाई इस सब से बेखबर  शाम ढले दारू पीकर आते , खाते, मनमानी करते,सो जाते.

घर की दोनों स्त्रियों पर मार-कुटाई कम हो चला है क्योंकि न तो वे अब पतियों से बहस करतीं और न कोई सवाल जवाब; सिर्फ उनके हां में हां मिलाती.

  दोनों भाई अंह में डूबे अपने आप को विजयी शाहंशाह समझते.

“रास्ते पर आ गई दोनों….”बड़ा भाई मूंछें ऐंठता.

“हां भाई…”छोटा खुशी से सिर हिलाता.

  इस बीच हंसा ने कब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की, रिजल्ट निकला …उसका चयन प्रशासनिक अधिकारी के लिए हुआ ; दोनों भाइयों को भनक तक नहीं लगी.

  दो अबला स्त्रियों की एकता, आत्मविश्वास ,ताकत, अच्छी नीति और नीयत ने उन्हें समाज के अगली पंक्ति में खड़ा कर दिया.

कल तक जेठानी के बच्चे उदण्ड, कमजोर,पढ़ाई में कच्चे थे वही मां, चाची का सहयोग, प्यार, पौष्टिक आहार, अध्ययन के बल पर कक्षाओं में अपनी मेधाशक्ति का  परचम लहराने लगे.

 “हमारा भाग्य बनकर आई हो ..”जेठानी देवरानी को गले लगा लेती.

 “नहीं दीदी, आपने अगर मेरा साथ नही दिया होता तो मैं भी यूं ही मार-कुटाई एक कोने में पड़ी रहती….”

  पास-पड़ोस की औरतें जहां देवरानी- जेठानी, सास-बहू,ननद-भाभी एक दूसरे की चुगली कर लड़ झगड़ रसातल में जा रहीं थी …वहीं इन दोनों का प्रेम और उन्नति देख ‌उनकी आंखें भी खुलने लगी….

“देवरानी जेठानी हो तो ऐसी..”

“सच में ,अब तो छोटी अफसर बन जायेंगी.”

वे आपस में बतियाती.परिचित दोनों भाइयों को हंसा की सफलता की बधाईयां देने लगे.तब उनका माथा ठनका,”क्या छोटी नौकरी करेगी..”



छोटा भाई भौंचक.. आज उनका क्रोध सातवें आसमान पर था.”इनकी यह मजाल.. अब लात-घूंसे से काम नहीं चलेगा….”

“डंडा चलाना पड़ेगा..’

  दोनों बिफरे हुए घर पहुंचे, यहां का तो माहौल ही दुसरा था.लोग बधाईयां दे रहे थे. बच्चे दौड़-दौड़ कर सबकी आवभगत कर रहे थे.

देवरानी जेठानी किसी सम्भ्रांत घर की महिला की तरह शिष्ट, सलीकेदार नजर आ रही थी.

  आज गुस्से में दोनों भाइयों ने दारू पी ही नहीं….उन्हें जल्दी थी अपनी घर वालियों को सबक सिखाने की,”हमलोग दिन-रात खटते हैं… और ये दोनों यहां गुलछर्रे उड़ा रही हैं….”

वे पूरी तरह होश में थे…अपनी आंखों से देखा…यह उन्हीं का घर है साफ-सुथरा, रंगीन चादर, बच्चों के चेहरे पर रौनक.. इज्जतदार लोगों का जमघट.

 दोनों ने अपने उपर नजर डालीं, गन्दा -संदा , तुड़े-मुड़े कपड़े,क‌ई दिनों से शेव नहीं किया हुआ नशा करने से निस्तेज चेहरा,बुझी हुई आंखें..

उन्होंने अपने आप को धिक्कारा… आत्मग्लानि से भर उठे…,”हम भी कैसे मूर्ख हैं … पत्नी को मारना पीटना दारू पीकर उत्पात मचाना … बहादुरी समझते हैं…!”

 इस बदली हुई सुखद स्थिति को स्वीकारने के अतिरिक्त उनके पास कोई चारा नहीं था.

वह दिन और आज का दिन.हंसा प्रशासनिक पद पर कार्यरत है.विभागीय गाड़ी, ड्राईवर, चपरासी सब-कुछ उपलब्ध है,पद, पैसा, प्रतिष्ठा उसके कदमों में.

 घर और बच्चों का भार जेठानी के कुशल हाथों में .. सहायता के लिए घरेलू सेविका है.

  बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं .सुख सम्पत्ति , इज्जत पाते ही दोनों भाइयों ने दारू से तौबा कर ली.

अब वे अपनी पत्नियों के जरखरीद गुलाम हैं.

“हमसे भारी भूल हुई .. गलतियां भी.. हमें माफ़ कर दो..”

पतियों के चिरौरी पर दोनों हंस पड़ती.

  आज दोनों देवरानी जेठानी ने समाज के समक्ष अनुपम उदाहरण पेश किया है.लोग उन दोनो  का उदाहरण देते नहीं थकते.

“रो-धोकर मत काटो जिन्दगी.अपनी काबिलियत, परिश्रम और सूझबूझ से सामना करो.विपरीत धारा को भी अपनी ओर मोड़ने का कूव्वत पैदा करो , यह दुनिया क्या…यह समाज क्या ..सारी कायनात तुम्हारी बंदगी करेगा…”उम्मीद का दीपक हृदय में जलना चाहिए.

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

डॉ उर्मिला सिन्हा ©®

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