जिंदगी इम्तिहान लेती है…. – सुधा जैन

 रक्षाबंधन पर्व पर बेटा शुभम और बिटिया सृष्टि आए हुए है.. हम सब बैठकर बातें कर रहे थे शुभम कहने लगा “आप अच्छा लिखते हो,  और इसलिए सब कुछ अच्छा लिख पाते हो क्योंकि आपका बचपन भी भरा पूरा रहा और प्रभु कृपा से शादी के बाद भी सब कुछ अच्छा है” लेकिन सभी के साथ इतना अच्छा नहीं होता मम्मी”

 इसलिए सब सभी से अच्छे रहें यह संभव नहीं हो पाता”

 मैं भी सोचने लगी, यह बात तो सच है …सभी का जीवन अलग होता है… और सभी के जीवन के संघर्ष भी अलग होते हैं… जीवन हर पल कुछ न कुछ सिखाता .रहता है। जिंदगी इम्तिहान लेते रहती है ।ऐसे समय में अगर हम सोचे कि सब खुश रहे …एक दूसरे से अच्छे रहे… प्यार बांटते रहें… यह थोड़ा कठिन हो जाता है..।

 मेरी एक परिचिता  बहन है.. मेरी ही उम्र की.. साहित्यिक अभिरुचि वाली बहन, भावुक एवं संवेदनशील पर उनकी शादी अलग परिवेश में हो गई। 3 बच्चे हो गए और एक दिन अचानक पति दुर्घटना में चल बसे… अब उन बहन का जीवन संघर्ष  इतना ज्यादा है कि क्या कहें ?जब बच्चों की परवरिश अकेले करना होती है, तो बहुत कठिनाइयों का सामना करना होता है ,जब बच्चों के पिता नहीं होते तो जिंदगी के मायने ही बदल जाते हैं …बच्चे जिंदगी की  कशमकश में कभी-कभी सही और गलत का निर्णय भी नहीं कर पाते और बच्चों की जिंदगी भी इतनी सरल नहीं होती… जितने की होना चाहिए।


 भाई बहनों के प्यार की बात भी कहें तो कभी-कभी रिश्तो में, संपत्ति माता पिता और कुछ बातों को लेकर विवाद इतने गहरे हो जाते हैं कि एक दूसरे का मुंह देखना भी पसंद नहीं करते, ऐसे समय में भाई बहनों के निश्चल प्यार की बात उनको बहुत बेमानी लगती है ।पति पत्नी के रिश्ते में भी कहीं कहीं ना अलगाव हो जाता है कि उनके रिश्ते में जरा सी भी मिठास नहीं बचती, और तलाक के सिवाय कोई रास्ता नजर नहीं आता..

 अपने रोजगार में ,काम में, रिश्तेदारी में कोई इतने असफल हो जाते हैं कि उन्हें सफलता की बात 

सुनना भी अच्छा नहीं लगता …सभी के जीवन की कहानियां अलग-अलग है और सभी अलग-अलग चोट खाए हुए रहते हैं… दिल इतने टूटे हुए होते हैं की प्यार की बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती… मैं भी चीज को स्वीकार करती हूं…

 सभी का जीवन अलग होता है संघर्ष भी अलग होते हैं …इसीलिए किसी के व्यवहार को हम जज नहीं कर सकते…. फिर भी कुल मिलाकर थोड़ा प्यार ,थोड़ा अपनापन ,थोड़ा सहयोग का वातावरण तैयार करने की हल्की सी कोशिश करती हूं…

 अपने भावों से, विचारों से, शब्दों से, व्यवहार से थोड़ी सकारात्मकता बनाने की कोशिश करती हूं… बाकी कोई दिखावा या प्रशंसा के भाव नहीं है ..।बस ऐसा लगता है

 “छोटी सी जिंदगी है किसी के काम आ सकूं…

 बच्चों से बात करके भी जिंदगी के नए-नए पहलुओं के बारे में हम जान सकते हैं… और जिंदगी के इम्तिहानो को समझ सकते हैं.।

सुधा जैन

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