ये पल मिलेंगे कहां – अंजना ठाकुर : Moral stories in hindi

बालकनी मैं बैठे हुए राजेंद्र जी अपने बेटे अभय के साथ अपने पोते देव को खेलता हुआ देख कर खुद पर अफसोस कर रहे थे अभय , देव के साथ बच्चा बना हुआ  था और काफी खुश लग रहा था सोच रहे थे अभय कितना व्यस्त रहता है फिर भी बच्चे के साथ  वक्त निकाल लेता है  इसी वजह से शायद वो खुश रहता है और मैं अपने कुंठित स्वभाव के कारण कभी परिवार मैं अपनी जगह नही बना पाया सोचते हुए राजेंद्र अपने अतीत मैं चले गए

जब उनकी शादी  हुई थी पत्नी श्यामली काफी हंस मुख और मिलनसार थी  घर की जिम्मेदारी के साथ उसने पूरे परिवार को भी जल्दी अपना बना लिया राजेंद्र नौकरी के सिलसिले मैं अकेला रहता था किसी से मिलना ,बात करना उसे पसंद नहीं था पर श्यामली के कारण सब मिलने आने लगे कई बार श्यामली कहती आप सब से मिलते जुलते क्यों नहीं हो

राजेंद्र दो टूक उत्तर देते ये सब मुझे पसंद नही है

दिन भर फालतू बातें करना इतना समय अपने काम मै लगाना चाहिए।

श्यामली कहती लेकिन ये भी जिंदगी की जरूरत है सब का साथ और अपनापन जीवन मै उमंग बनाए रखता है आप तो मुझसे भी ज्यादा बात नही करते

पर राजेंद्र की उम्र उस समय ऐसी थी की उसे  किसी की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी और यही आदत के साथ जिंदगी चल रही थी अब श्यामली भी कम बात करती

समय के साथ दो बच्चे हो गए अभय और अनीता पर राजेंद्र ने कभी उन पर अपना प्यार नही लुटाया थोड़ा बड़ा होने पर और बच्चों की तरह दोनों जिद्द करते की पापा हमारे साथ खेलो ,बाहर घुमाने ले चलो ,पर राजेंद्र डांट कर दूर कर देते ।

एक दिन अनिता की सहेली  ने बताया उसके पापा उसके लिए बहुत सुंदर गुडिया लाए है तब से अनिता को भी लगा की वो भी मंगाएगी अपने पापा से और अपनी सहेली को दिखायेगी वो घर आ कर पापा का इंतजार करने लगी और आते ही जिद्द करी की उसे भी गुड़िया चाहिए आज ही दो तीन बार कहने पर राजेंद्र ने एक चांटा मार कर लगा खबरदार जो जिद्द करी जो चाहिए अपनी मां से कहो आठ साल की अनिता के मन मै डर बैठ गया श्यामली बोली इतना गुस्सा क्यों है आपको बच्चों के संग तो हर इंसान खुश रहता है

पता नही आपको अपनापन क्यों नहीं है ।

उस दिन से दोनों बच्चे दूर  ही रहते ।समय के साथ बड़े हो गए दोनों की नौकरी लग गई अनिता की शादी पहले हो गई शादी के समय भी

अनीता को लगा अब तो पापा गले लगाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।

अभय नौकरी करने बाहर चला गया श्यामली को अकेलापन खलने लगा अब वो अक्सर बीमार रहने लगी और एक दिन इसी गम मैं दुनियां से विदा हो गई  बच्चे आए और सब रस्म होने के बाद अपने घर चले गए अभय बोला पापा आप साथ चलो पर राजेंद्र ने मना कर दिया

अब राजेंद्र को अकेलापन सताने लगा पूरे घर मैं कोई नही अब उन्हें कमी महसूस होती किसी अपने की लेकिन अब सब दूर हो चुके थे बच्चों से कभी बात करी नही तो वो भी ज्यादा बात नही करते अभय ने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली और जल्दी ही एक बेटे का पिता बन गया

राजेंद्र जी को तबियत ज्यादा खराब थी तो अभय उन्हे अपने साथ ले आया पर उनके डर के कारण सब कम बोलते थे आज अभय को बच्चे के साथ खेलता देख उन्हे अहसास हो रहा था उन्होंने कितने यादगार पल खो दिए  जो हमारे जीवन की अनमोल धरोहर होते है हम समझते है समय एक सा रहेगा पर समय चक्र घूमता रहता है

अकेलेपन मैं उन्हे सब याद आ रहा था अब उन्होंने तय कर लिया कि समय के साथ खुद को बदलना जरुरी है वो उठकर नीचे गए और देव से बोले आओ हम मिलकर खेलेंगे

देव खुश हो गया बोला मैं भी दादू के साथ खेलूंगा

जैसे कबीर खेलता है मैं दादू से कहानी भी सुनूंगा

राजेंद्रजी बोले हां जरूर सुनाऊंगा और बच्चे के साथ बच्चा बनकर उन्हे अच्छा लग रहा था

अभय आश्चर्य से उन्हे देख रहा था

राजेंद्र जी बोले जानता हूं बेटा तू क्या सोच रहा है पर समय चक्र सब सिखा देता है

स्वरचित

अंजना ठाकुर

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