लडकी के भाई नहीं है – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

“ऐसे कैसे तूने लड़की के लिए हां कर दी, ना घर-परिवार देखा, ना ही लडकी के पापा की जमीन जायदाद देखी,  ऐसे कैसे कोई भी लड़की इस घर की बहू बन जायेंगी, और लड़की के भाई भी नहीं है। मै तो तुझे इसकी इजाजत नहीं दूंगा, चौधरी जी गुस्से में बोले।

उनकी आवाज सुनकर उनके छोटे भाई धीरज जी सहम गये, “दादा, वो लडकी अच्छे घर से है और अपने शुभम को भी पसंद है, बस और क्या चाहिए?”

 चौधरी जी फिर से रौबदार आवाज में बोले, ” शादी के लिए बहुत कुछ देखा जाता है, तुझे अभी कुछ समझ नहीं है, अगर लड़की के भाई नहीं है तो आगे लेन-देन के व्यवहार कौन करेगा? ये शादी ब्याह के मामले में तेरे शहरी रिवाज नहीं चलेंगे।”

धीरज जी कुछ ना कह सकें, तभी शुभम भी गुस्से में बोलता है, ” पापा ये ताऊजी क्या गुल खिला रहे हैं? छोटी सी बात का बखेड़ा बना रहे हैं, मुझे रीवा पसंद है, मै रीवा को पसंद हूं, और आजकल शादी के लिए इतना ही काफी है, मुझे और रीवा को साथ में रहना है तो ताऊजी क्यों अडंगा लगा रहे हैं, लड़की के भाई होना चाहिए, ये कौनसा रिवाज है?”

ये सुनकर धीरज जी गुस्सा हो गये, “चुप कर नालायक ! वो मेरे बड़े भाई पिता के समान है, उन्होंने परिवार को तब संभाला, जब पिताजी इस दुनिया से चले गए थे, मै उनके खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता हूं, थोडा गुस्से में है पर समझायेंगे तो मान जायेंगे, तुझे कोई हक नहीं है कि तू मेरे पिता समान भाई पर इस तरह से गुस्सा करें।”

“मुझे माफ़ कर दीजिए पापा,  पर मै शादी रीवा से ही करूंगा, और शुभम वहां से चला गया।

धीरज जी के बडे भाई चौधरी जी ने ही पिता के जाने के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी संभाल ली थी, कम उम्र में ही वो काम करने लगे थे, अपनी मां, दो छोटी बहनो और एक छोटे भाई का पेट पाला, उन्हें शिक्षित किया और सबकी शादियां की, इन सबमें ताईजी ने भी उनका बराबर का साथ दिया, आज घर में ताऊजी की मर्जी से ही पत्ता हिलता है, वरना कोई काम नहीं होता है, धीरज जी यूं तो कहने को शहर में अपने परिवार के साथ रहते है, पर आज भी उन्होंने बड़े भाई के प्रति मान-सम्मान में कोई कमी नहीं आने दी।

शुभम और रीवा दोनों ने एक साथ ही मेडिकल की परीक्षा पास की थी और अब दोनों डॉक्टर बन गये थे, दोनों को साथ रहते-रहते प्यार हो गया था, और शादी करना चाहते थे, भविष्य में अपना क्लीनिक भी खोलना चाहते थे, दोनों ने जीवन भर की योजना बना ली थी और इधर चौधरी जी अलग ही गुल खिला रहे थे, लडकी के भाई होना चाहिए, उनकी बस यही शर्त थी।

सब लोग थक-हार कर वापस शहर आये ही थे कि पीछे से ताईजी का फोन आया कि चौधरी जी बेहोश हो गये है, धीरज जी ने तुरंत गाड़ी भेजी और उन्हें शहर बुलवा लिया, शहर में अस्पताल में भर्ती करवा दिया, उनके हार्ट में ब्लॉकेज थे, और उनका ऑपरेशन किया गया, उन्हें जब होश आया तो उनके चारो ओर सभी रिश्तेदार मौजूद थे।

“दादा, इस डॉक्टर ने आपका ऑपरेशन करके आपको बचाया है।”

तभी ताईजी आगे बढ़कर बोलती है, “बेटी तूने मेरा सुहाग बचाया है, तू जो मांगेगी वो मै तुझे दूंगी।”

“ताईजी, मुझे शुभम दे दीजिए, हम दोनों शादी करना चाहते हैं। 

सब आश्चर्यचकित हो गये कि चौधरी जी का ऑपरेशन रीवा ने किया था।

“ताऊजी, मै अपने पैरो पर खड़ी हूं, मेरे पापा की अपनी कोई  लंबी -चौड़ी जमीन जायदाद नहीं है, हम

 दो बहनो को उन्होंने पढ़ा-लिखाकर बहुत काबिल बना दिया है, मेरी छोटी बहन इंजीनियर हैं, हम दोनों को कभी भाई की कमी महसूस नहीं होती है, क्या जिस लड़की के भाई नहीं है तो उसकी शादी ही नहीं होगी, मै अपने सारे लेने-देने के व्यवहार खुद ही निभा लूंगी, क्यों कि मै खुद अपने पांवों पर खड़ी हूं, आप मुझे और शुभम को आशीर्वाद दीजिए।”

तभी ताईजी उन्हें धीरे से बोलती है, “चौधरी जी अब कोई बखेड़ा खड़ा मत करना, आपकी होने वाली बहू ने मेरा सुहाग बचाया है, तो हमें भी उसे उसका सुहाग शुभम देना ही होगा।”

चौधरी जी मान जाते हैं, और रीवा को अपने घर की बहू के रूप में अपना लेते हैं।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

# गुल खिलाना (बखेड़ा खड़ा करना)

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