रोक लो न मुझे – माधुरी गुप्ता : Moral stories in hindi

अनुराग २ महीने बाद सिविल सर्विस की ट्रेनिंग से लौटा था,अभी सिर्फ सुबह के सात ही बजे थे और सूरज ने जैसे आग उगलना शुरू कर दिया था,लगता है इस बार सर्दी की तरह गर्मी भी जम कर पड़ने बाली हैं। मार्च की गर्मी का ताप असहनीय सा लग रहा था और मैं अपने घर के आंगन में बैठा आसमान ताक रहा था मेरा मन ,सोच रहा था काश सूरज कुछ पलोंके लिए बादल में छिपजाए और में छत पर जाकर अपनी मौली की एक झलक देख सकूं। मौली बचपन की मेरी सब से अच्छी दोस्त है और अब लड़कपन की मोहब्बत।मौली मेरे पड़ोस में रहने बाले शर्मा अंकल की बेटी है।

उसकी और मेरे छत की सीढ़ियां एकदम सटी हुई हैं हमारे दिलों की तरह।मेरे छत की मुंडेर से उसका आंगन एकदम साफ़ दिखाई देता है।आंगन के बीच में एक हरसिंगार का पेड़ लगा है, पेड़ के चारों ओर एक चबूतरा सा बना है,मौली अक्सर वहीं बैठती है,अनुराग यह बात अच्छी तरह जानता है।सूरज केबादलों की ओट में जाते ही मैं झटपट छत पर पहुंच गया ,नीचे देखा तो वह हरसिंगार के पेड़ के नीचे बैठी फूल चुन रही थी,

तभी अचानक एक साथ ढेर सारे फूल उसके उपर गिरे तो उसने ऊपर देखा,मेरी नजर उसकी नजर से जा टकराई। मुझे देखते ही व फूल चुनना छोड़, दौड़ती सी छत पर आगई। मुझे देख उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई,हंसी की खिलखिलाहट उसके चेहरे पर नूर बिखेरने लगी।हंसते समय उसके गालों में पड़ने वाले डिम्पल उसे और भी ख़ूबसूरत बना रहे थे।उसको इतना खुश देखकर मेरा मन भी पुलकित हो गया।मन किया कि अपने दोनों हाथों के बीच उसके इस हंसते हुए मासूम चेहरे को कैद करके इसी समय अपनी मोहब्बत का इजहार कर दूं।

दोस्ती व प्यार के बीच बहुत महीन सी लकीर होती है,अनुराग हमेशा से इसे मिटा कर मौली का हाथ थाम लेना चाहता था,बस उसको सही समय का इंतजार था। अगले ही पल मौली ने इधर-उधर देखते हुए अपने दुपट्टे के छोर में छुपाई हुई एक तसबीर निकाली और अनुराग को दिखाते हुए,कहने लगी,अनु देखो यह समर है मेरा मंगेतर,फौज में अफसर हैं,इसके ऊपर फौजी वर्दी कितनी सज रही है और दिखने में भी एकदम सजीला वांका जवानहै। मौली अपनी ही रौ में समर की तारीफ में कसीदे पढ़े जारही थी और मैं तो जैसे सुन कर भी कुछ सुन नहीं पा रहा था।

अपनी आंखों के आगे अपनी दुनिया लुटती देख मैं रेत के घरोंदे सा बिखर गया। उसकी बातें सुन कर लगा जैसे किसी ने सीने में खंजर उतार दिया हो। मन में उठे तूफान को छिपाते हुए मैं हल्के से मुस्कराया,तभी मौली का स्वर कानों में पड़ा,अबआए हो तो मेरी शादी के।बाद ही जाना मेरा । बिखरता टूटता मन उसकी शादी की तैयारियों में व्यस्त रहा, शादी के जोड़े मे सजी मौली का हाथ जब समर के हाथ में दिया गया तो मैं अपने घर आ गया और घंटों विस्तर पर लेटे-लेटे अपना तकिया भिगोता रहा।

सिसकता सा मन लेकर,मौली की हसीन यादें को मन से लिपटाए मैं अपनी नई पोस्टिंग पर बापिस चला आया। पूरे चार साल बाद ही आगरा से बरेली जाना हुआ,नई नौकरी , ढेरों जिम्मेदारियों, समय-समय पर होने वाले दंगे,उसे छुट्टी लेने से रोक लेते, आखिर कलक्टर जो था वह। घर पहुंचने पर मॉ ने आस -पडौस के समाचारों से उसे अवगत कराया,साथ ही मां ने कहा मौली आजकल अपने घर आई हुई है, पूरी बात बिना सुने ही मैं झटपट दो-दो सीढ़ियां फलांगता हुआ छत पर पहुंच गया।आदतन आंखें छत की मुंडेर पर पहुंच गई जहां से मौली का घर एकदम साफ दिखाई देता था।

मौली की एक झलक पाने को मन बेताव हुआ जा रहा था, कैसी दिखती होगी शादी के बाद,खुश तो होगी न,सोचते-सोचते मुंडेर के नीचे नजर गई तो एकदम चौंक गया मौली हमेशा की तरह वहीं हरसिंगार के पेड़ के नीचे बैठी थी,सूनी मांग व सूनी कलाइयां साथ ही साड़ी भी एकदम हल्के रंग की पहनी हुई थी।उसके पास ही उससे चिपटी उसकी बेटी बैठी थी,जो शायद तीन साल की होगी।

अचानक मौली ने ऊपर देखा,अरे,अनु तुम। कब आए, नीचे आओ न मै तुरंत उसके घर की सीढ़ियां, उतर कर उसके घर पहुंचा,मौली की आंखों में उदासी का रेगिस्तान पसरा पड़ा था।समर देश के लिए लड़ते हुए शहीद हो गया था। मेरी आवाज़ सुन कर आंटी बाहर आगई,अरे अनु बेटा इस बार बहुत दिनों के बाद आना हुआ तेरा,तू बैठ मैं अभी तेरी पसंद की कॉफी बना कर लाती हूं तेरे लिए।

कॉफी का कप पकड़ाते हुए आंटी ने हमेशा की तरह कहा,अनु, शादी की या नही अभी तक समय निकल रहा है और फिर अकेले भी तो जिंदगी का सफर तय नहीं होता न, मौली की तरफ देखते हुए आंटी बोलीअब तू ही समझा न इसे,मेरी तो सुनती नहीं है आजकल मां, तुम भी न क्या बात लेकर बैठ गई। तभी मौली की बेटी कुहू। कहने लगी,अंकल देखो न मै मां से कब से कह रही हूं पार्क चलने के लिए परंतु मां चलती ही नही बस गुमसुम सी बैठी रहती है हरदम मेरे साथ खेलती भी नहीं आजकल।,

अच्छा कुहू बेटी को पार्क में लेकर मैं चलता हूं ,कहते हुए अनुराग ने कुहू के गोद में उठा लिया,हम लोग पार्क चलते हैं, तुम्हारी मां भी पीछे-पीछे आ जायगी, क्योंकि मां कुहू से बहुत प्यार जो करती है पार्क में पहुंचते ही कुहू दौड़ कर झूले पर जा बैठी,खुश होकर मौली की तरफ देखने लगी, मौली भी कुहू को खुश देख कर थोड़ा सा मुस्कुराई। मै और मौली पार्क की बैंच पर जा बैठे,कभी न चुप रहने वाली मौली आज एकदम चुपचाप बैठी थी। तभी एक पत्ता टूट कर मौली की गोद में आकर गिरा,मौली ने पत्ते को फेंकते हुए कहा लगता है पतझड़ का मौसमआगया है,

तभी पेड़ों की शाखें कितनी सूनी है,एक दीर्घ श्वास छोड़ते हुए उसने कहा,मानो कहना चाह रही हो बिलकुल मेरी तरह। लेकिन मौली पतझड़ के बाद बसंत भी तो आता है,तब यही पेड़,पौधे नए पत्तों से फिर से भर भी तो जाते हैं। हां, मौली मैं परसों बापिस जा रहा हूं। इतनी जल्दी,मौली ने चौंकते हुए कहा, पार्क से बापिस आकर मैं अपनी पैकिगं करने में व्यस्त हो गया,तभी मौली हाथ में एक डिब्बा लिए आई ,मेरे बैग में रखते हुए बोली आम का मुरब्बा है,मैने बनाया है, तुम्हें बहुत पसंद है न। तुम्हें मेरी पसंद अभी तक याद है?

उसने मेरी बात का जबाव न देते हुए कहा,अनु,कुछ दिन और रुक जाते,देखो न तुम्हारे आने से कुहू कितनी खुश हैं और तुम्हारे साथ कितना घुल मिल गई है तो रोक लो न मुझे,न जाने मन की बात मेरी जवान से निकल ही गई मौली बही बिस्तर पर एकओर बैठ गई मौली मैं तुम्हें इस तरह उदास नहीं देख सकता,मै तुम्हें और कुहू को जिंदगी की सारी खुशियां देना चाहता हूं, जिसकी तुम व कुहू हकदार हो,मैं कुहू के साथ खेलना चाहता हूं,मैं कुहू का पापा बनना चाहता हूं,मैं तुम्हें दोबारा खोना नहीं चाहता । मौली ने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा, दोबारा ,और धीरे से उठ कर आई और मेरे कंधे पर अपना सिर टिका दिया,कुहू भी आकर मुझसे लिपट गई।

माधुरी गुप्ता

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