ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

सत्यम का मन ऑफिस में भी नही लगा.. घर भी जाने की इच्छा नहीं थी खाली खाली सा ये घर !जहां नेहा और निधी की शरारतों से घर का कोना कोना चहकता रहता था.. मां बाबूजी की उदास डबडबाई आंखे उफ्फ! कैसे सामना करूं.. भगवान तू मेरी कैसी परीक्षा ले रहा है.. अर्चना तूने #ऐसा अनर्थ क्यों किया #तुम्हे कोई शिकायत थी तो मुझसे कहती…हंसते खेलते घर को तूने तबाह कर दिया और मेरी जिंदगी मेरी भावनाओं का मजाक बना दिया है तुमने उफ्फ…अब मैं क्या करूं…असमय पार्क में आकर बैठ गया सत्यम.. शांत सुनसान पार्क उसे आज अच्छा लग रहा था

क्योंकि आज खुलकर रो सकता था कोई पहचानने वाला नही था.. जी भर के रोया सत्यम.. अचानक कंधे पर किसी का स्पर्श पा कर सत्यम चौंक गया.. अंकल आप इस समय.. अरे मैं ठहरा रिटायर्ड अकेला इंसान कभी भी कहीं भी टकरा जाऊंगा तुझसे.. पर तू इस वक्त यहां क्या कर रहा है? और तेरी आंखे क्यों लाल और सूजी हुई है.. सत्यम फफक पड़ा.. अंकल उसकी दोनों बेटियों के साथ खूब खेलते थे..

सत्यम ने अपनी आपबीती अंकल को बताना शुरू किया.. गांव का सीधा साधा लड़का जिसे इंजीनियर बनाने के लिए बाबूजी को जमीन और मां के गहने बेचने पड़े.. सत्यम को अपने माता पिता के त्याग का पूरा अहसास था.. उसने मन में ये ठान लिया था कि नौकरी करने के बाद मां बाबूजी को अपने पास रखूंगा…

सत्यम सीमेंस कंपनी में इंजीनियर बन गया.. अच्छी तनख्वाह.. रिश्ते आने लगे पर सत्यम पहले गांव में घर बनवाया.. क्योंकि बाबूजी व्यापार में पार्टनर के बेईमानी के कारण काफी घाटे में रहे थे.. घर बनाने का सपना सपना हीं रह गया था.. सब भाइयों के पक्के मकान बन गए थे बस अपना हीं घर कच्चा रह गया है

बाबूजी कहते .. बाबूजी बेटे के लिए अच्छे घर की पढ़ी लिखी बहु चाहते थे जो बेटे के कदम से कदम मिलाकर चल सके.. बेटा घरेलू लड़की चाहता था जो मां बाप को भी मान सम्मान दे.. पर होइहें वही जो राम रची राखा…

अर्चना बहु बन के आ गई.. सत्यम की एक ना चली मां बाबूजी के सामने..

और फिर शुरू हुआ सत्यम के शांत सीधी साधी जिंदगी में तूफान का प्रवेश.. अर्चना की मां शुरू से हीं बेटी के ससुराल में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था..

मां बाबूजी एक सप्ताह के अंदर गांव वापस आ गए बहुत दिन से घर छूटा है गंदा हो गया होगा का बहाना कर के..

अर्चना के मायके से कभी मां कभी बहन कभी भाई आते दो महीने रहते इसी के पैसे से ऐश करते होटल जाते मॉल जाते पर सत्यम ऑफिस से लौटता तो ब्रेड दूध तो कभी मैगी बना के खाता.. बाबूजी की तबियत खराब होने पर गांव से मां बाबूजी को लाया इलाज के लिए.. बस घर में महाभारत शुरू हो गया..

अर्चना औरत के नाम पर एक कलंक बन के रह गई.. उसे ये भी याद नहीं रहा दोनो बेटियों के होने की सूचना मिलते हीं मां कितना हुलस कर गांव से आई थी.. बिछावन से अर्चना को उतरने नही देती थी.. और बाबूजी अपने हाथ से जूस निकाल कर पिलाते थे बेटी ना होने की कसर अर्चना से पूरी कर रहे थे.. छः महीने की नेहा हो गई तब वापस गांव गए थे मां बाबूजी वो भी अर्चना की मां  के आ जाने  पर  रोज की किच किच से तंग आकर . और एक सप्ताह पहले अर्चना अपनी मां के बहकावे में आकर आधी रात को दोनो बेटियों को लेकर चली गई

औरजाते जाते पुलिस में कंप्लेन भी दर्ज करवाती गई.. सास ससुर मार पीट करते हैं पति भी साथ देता है सारा पैसा सास ससुर रखते हैं. पैसे पैसे के लिए तरसना पड़ता है.. कानून भी महिलाओं के पक्ष मे बहुत बन गए हैं जिसका नाजायज फायदा अर्चना जैसी महिलाएं उठा रही है और निर्दोष सत्यम जैसे लड़के और उसका परिवार शिकार हो रहा है..

सुबह सुबह दरवाजे पर पुलिस को देख सत्यम और उसके माता पिता अवाक रह गए.. पूछताछ करने वाले अधिकारी की अनुभवी आंखें सत्यम और उसके मां बाबूजी को देख समझ गई कि इनके साथ गलत हो रहा है.. घर की संपन्नता अर्चना के बयान को झूठला रही थी..

अधिकारी ने सत्यम को समझाया समझौते की कोशिश करो तलाक से बच्चों की जिंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.. सत्यम जिंदगी के  उलझन भरे चौराहे पर खड़ा था जहां उसके साथ थी उसकी बेबसी एक मर्द होने की, आंसू एक पिता होने की, आत्मग्लानि मां बाबूजी को इस उम्र में ये सब देखने के लिए. और शर्मिंदगी अर्चना जैसी औरत का पति होने के लिए, आक्रोश महिलाओं के लिए बने कानून के दूरोपयोग होने के लिए… क्या करे कहां जाएं ….

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Veena singh..

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