पूर्णिमा का चाँद – डॉ. पारुल अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

आज अरुंधति बहुत खुश थी उसका देवर नीलेश जिसे उसने सास ससुर की असमय मृत्यु के बाद बच्चे की तरह पाला था। उसने अपने भावी जीवन के लिए एक लड़की प्रिया को पसंद किया था। अब वो उसे लेकर अरुंधति और उसके पति राघव से मिलाने ला रहा था। सुबह से ही अरुंधति बहुत चाव से सारे काम देख रही थी और घर के कोने कोने की साज़ सज्जा और खाने की सभी व्यवस्था का निरीक्षण कर रही थी।

उसका समय काटे नहीं कट रहा था। हर दस पंद्रह मिनट में वो घड़ी की तरफ देख रही थी। तभी घंटी बजने की आवाज़ सुनाई दी। नीलेश प्रिया को लेकर आ गया था। जब अरुंधति ने उस लड़की को देखा तो पता नहीं क्यूँ वो उसको बहुत कुछ जानी पहचानी लगी। यही हाल प्रिया का भी था पर अरुंधति को देखते ही उसके चेहरे पर थोड़े से डर और मायूसी के भाव आ गए थे।

वो थोड़ी देर वहाँ रुकने के बाद ही कुछ आवश्यक कार्य का संदेश आने का बहाना बनाकर जल्दी जाने की बात करने लगी। सभी को प्रिया का आते ही यूँ जरूरी काम याद करने की बात करना अजीब लगा लेकिन अरुंधति ने ही कहा कि पहले चाय नाश्ता कर लो फिर निकल जाना। उसकी बात मानकर प्रिया बेमन से वहाँ थोड़ी देर रुकी और फिर चली गयी। अरुंधति ने वातावरण को हल्का बनाते हुए नीलेश को भी प्रिया के साथ जाने के लिए कहा। 

प्रिया के जाने के बाद अरुंधति प्रिया के नाम और उसके चेहरे को देखकर भूतकाल में बीती हुई कुछ घटनाओं की कड़ी दर कड़ी जोड़ने लगी। अब अरुंधति को बहुत कुछ याद आने लगा। असल में प्रिया को अरुंधति को देखकर यूँ बैचैन हो जाना और काम का बहाना बनाना सब कुछ बेवजह नहीं था। 

बात शुरू होती है जब अरुंधति ने अपनी मनोविज्ञान में परास्नातक की डिग्री पूर्ण की थी और साथ साथ इसी विषय में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त करने के लिए नामांकन कराया था। वो अपने विश्विधालय की गोल्ड मेडलिस्ट थी। उसको शहर के प्रतिस्थित हॉस्पिटल में एक मनोवैज्ञानिक काउंसलर के रखा गया था।

अभी वो मुश्किल से 23 साल की ही होगी फिर भी वो तनाव की समस्या या भयंकर रोगों का सामना कर रहे लोगों को बहुत प्रेरित करती थी। अपनी बातों और थेरेपी से वो उनके अंदर नये आत्मविश्वास का संचार करती थी। ऐसे में ही प्रिया का केस भी उसके पास आया था। प्रिया अमीर माता पिता की बिगड़ी हुई औलाद थी।

माता पिता के पास पैसा तो बहुत था पर उसको देने के लिए समय नहीं था। प्रिया वैसे भी उम्र के नाज़ुक दौर से गुजर रही थी जहाँ माता पिता के साथ और प्यार की बहुत आवश्यकता होती है। जब माता पिता से प्यार नहीं मिला तब वो उस प्यार को बाहर की दुनिया में खोजने लगी। छोटी उम्र में ही उसको नशे की लत लग गयी थी और एक लड़के के साथ तो उसके शारीरिक संबंध भी बन गए थे।

उन्हीं शारीरिक संबंध की वजह से उसके कई आपत्तिजनक वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। उन वीडियो में उसका फोन नंबर भी लिखा था। प्रिया को बहुत अश्लिल फोन और संदेश आ रहे थे।पूरे समाज में प्रिया के माता पिता और उसकी बहुत बदनामी हो रही थी। स्कूल वालों ने भी प्रिया को स्कूल से खराब आचरण के तहत निकाल दिया था।

उन लोगों को बाहर निकलना मुश्किल हो गया था। इन सबमें प्रिया बहुत तनाव में आ गयी थी। उसने हाथ की नस काटकर अपनी ज़िंदगी समाप्त करनी चाही। वो तो समय से उसको हॉस्पिटल ले जाकर उसको बचा लिया गया था। वो बच तो गयी थी पर जीवन के प्रति उदासीन हो चुकी थी।

उसने अपने आपको एक खोल में बंद कर लिया था। ऐसे में उसका केस अरुंधति को ही सौंपा गया था। अरुंधति ने प्रिया के अंदर एक मरीज़ को देखकर छोटी बहन को देखा। एक दिल का रिश्ता अरुंधति को प्रिया के साथ महसूस हुआ। सबसे पहले तो अरुंधति ने प्रिया के माता पिता को समझाया और कहा कि दुनिया चाहे कुछ भी कहे पर उन लोगों को हर कदम पर प्रिया का साथ देना है।

वैसे भी जो भी प्रिया के साथ जो भी हुआ उसमें वो दोनों भी कम दोषी नहीं हैं। माता पिता को समझ में आया उन्होंने बेवजह की पार्टी बंद करके प्रिया को समय देना शुरू किया। माता पिता को समझाने के साथ अरुंधति ने प्रिया को भी समझाया कि दुनिया की याददाश्त बहुत छोटी होती है आज भले ही हर नज़र तुम्हें अपनी तरफ घूरती हुई लग रही है पर थोड़े समय में किसी को कुछ याद भी नहीं रहेगा। 

ईश्वर ने तुम्हें दूसरा जीवन दिया है अपनी पुरानी गलतियों से सबक लो और आगे बढ़ो। रही स्कूल की बात तो शहर में बहुत सारे स्कूल हैं कहीं भी आराम से एडमिशन मिल जायेगा। प्रिया को अरुंधति की बातों से बहुत सहारा मिला। दोनों के बीच एक प्यारा सा भावनात्मक रिश्ता बन गया था।

प्रिया का एडमिशन शहर के एक ऐसे स्कूल में करवा दिया गया जहां उसे कोई नहीं जानता था। बीच बीच में अरुंधति प्रिया का हाल चाल लेती रहती थी। इसी बीच अरुंधति की शादी तय हो गई। शादी में अभी समय था पर एक सड़क दुर्घटना में अरुंधति के होने वाले सास ससुर का निधन हो गया। होने वाले ससुर अरुंधति के पापा के बहुत अच्छे दोस्त थे।

होने वाले सास ससुर के असमय निधन से ससुराल में सिर्फ उसके पति राघव और देवर नीलेश जो कि उस समय बारहवीं कक्षा में था,रह गये। घर के सभी बड़े बूढ़ों से सलाह के बाद और देवर के भविष्य को देखते हुए घर के कुछ लोगों की मौजूदगी में राघव और अरुंधति परिणय सूत्र में बंध गए। बस यहीं से अरुंधति का प्रिया से संपर्क टूट गया था। वैसे भी उस समय प्रिया भी बारहवीं कक्षा में थी। अरुंधति की थेरेपी और बातों ने उसको हर हालात का सामना करने में सक्षम बन दिया था। 

अब अरुंधति भी अपनी ससुराल में आ गई थी। यहाँ आते ही उसने नीलेश को भी संभाल लिया था। अरुंधति ने एक भाभी के रूप में नीलेश को माँ का प्यार देने की पूरी कोशिश की थी। इन सब में कब ज़िंदगी के दस साल बीत गए पता ही नहीं चला।प्रिया को दस साल बाद देखने से अरुंधति को सब याद आ गया।

अब उसको प्रिया के इस तरह के व्यवहार का कारण भी समझ आ रहा था। वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि इतने में नीलेश ने आकर बहुत ही दुःखी मन से उससे कहा कि पता नहीं प्रिया को क्या हुआ है? कहाँ तो वो शादी के लिए एकदम तैयार थी कहाँ अब अपनी कैरियर की वृद्धि के लिए दो साल के लिए विदेश जाने की बात कर रही है।

अरुंधति मनोविज्ञान की छात्रा रही थी। लोगों का मन पढ़ने की उसको महारत हासिल थी। उसने नीलेश से सिर्फ इतना कहा कि आखिर मेरे नीलेश की दुल्हनियां बनना है प्रिया को,कोई छोटी बात थोड़ी ना है। अब इतनी सुंदर दुल्हन नखरे तो दिखाएगी ही। ये कहकर उसने नीलेश से कहा कि अपनी भाभी माँ पर भरोसा रखे। कुछ ही दिनों में प्रिया और वो साथ साथ होंगे। प्रिया के पी.जी का पता करके अरुंधति बिना किसी को बताये उसके कमरे पर मिलने पहुँची।

प्रिया अरुंधति को देखकर हैरान रह गई। अरुंधति ने बिना भूमिका बाँधे प्रिया से कहा कि क्यों भाग रही हो प्रिया? जब ऊपर वाले ने नीलेश के साथ तुम्हारी डोर बांधी है तब तुम क्यों उस डोर को खोलना चाहती हो। अरुंधति की बात सुनकर प्रिया फूट फूट कर रोने लगी बोली दीदी ये ठीक है कि मैं जीवन में बहुत आगे बढ़ गई हूँ पर मेरे काले अतीत का साया मेरी आगे की ज़िंदगी को भी लील लेगा।

बाकी सब ठीक है पर आप भी मेरे जैसे लड़की को अपने घर की बहू नहीं बना पाओगी।शादी एक पवित्र रस्म है। मैं अपनी ज़िंदगी के ग्रहण की छाया आपके परिवार पर नहीं पड़ने दे सकती। उसकी बातों को सुनकर अरुंधति ने कहा कि मेरी प्रिया इतनी कमजोर नहीं हो सकती। तुम पूर्णिमा के चाँद के समान पवित्र हो।

जैसे चाँद भी ग्रहण के बाद निखरता है वैसे तुम भी निखर रही हो। पूर्णिमा का चाँद अपने सारे दोषों को दूर करके परिपूर्ण होकर चमकता है। अतीत में जो हुआ वो उस उम्र का भटकाव था और समय के साथ समाप्त हो गया। वो उम्र ही ऐसी होती है कोई ज्यादा भटकता है कोई कम पर महत्वपूर्ण ये है कि भटकाव के बाद संभलता कौन है?

रही अपने घर की बहू बनाने की बात तो अपने मम्मी पापा का फोन नंबर दो उनसे मिलकर शादी की तारीख तय करनी है। वैसे भी मैं तुम दोनों की शादी में सारे अरमान पूरे करना चाहती हूँ। उसकी बात सुनकर प्रिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई। प्रिया मन ही मन सोच रही थी कि कुछ लोग दिल के रिश्तों से बंध जाते हैं इसलिए कहीं ना कहीं ज़िंदगी के मोड़ पर टकरा ही जाते हैं। उधर अरुंधति नीलेश को फोन करके कह रही थी कि अब ज्यादा देवदास बनने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसकी पारो मान चुकी है। 

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? ज़िंदगी में बीते कल को छोड़कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। वैसे भी अगर किसी लड़की के बीते समय में कुछ अनहोनी घटित भी हुई हो तो वो ज़िंदगी भर के लिए अपवित्र कैसे हो सकती है।हर सुबह एक नये सूरज के साथ तो हर रात एक नये चाँद के साथ आती है। अतीत से सबक लेकर पूर्णिमा के चाँद की तरह निखरना ही ज़िंदगी है। 

डॉ. पारुल अग्रवाल 

नोएडा

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