नैना ने कांपते हाथों से पत्र खोला,
” देखो तुम नाराज़ मत होना।
और ना ही सोच- सोच कर परेशान होना। अब मेरे लिए घर लौटना संभव नहीं है।
वहां रह कर मैं तुमलोग का सामना नहीं कर पाऊंगा।
सच्चाई तो यह है कि,
मैंने ही रिशेप्शन पर बैठी स्टाफ से कह कर अपने मुक्त होने की तारीख तीन दिन बाद की कहलवाई थी।
“ऐसा करते वक्त मेरी आत्मा का सत्व पूरी तरह निचुड़ गया था पर मैं क्या करता ?
तुम ही बताओ जब इमारत ही ढ़ह रही हो तब उसकी छत के नीचे तुम्हें सुरक्षित कैसे रखता ? “
नैना की आंत में जैसे गोला सा अटक गया था।
किसी प्रकार थूक निगलते हुए उसने आगे पढ़ा,
” लेकिन यह भी मत सोच लेना कि मैं कोई ग़लत काम करने जा रहा हूं।
यहां से छूटते ही मैं सीधे घर जाऊंगा पिता की स्मृति स्वरूप रखी उन कुछ चिट्ठियों को लूंगा।
अंजान राहों में पिता का संबल साथ रहेगा! मेरे लिए तुम लोग जरा भी परेशान मत होना।
“आगे कुछ करने की कोशिश करूंगा, अब कुछ कर पाऊंगा या नहीं इसका पक्का भरोसा नहीं दिला सकता”
वर्षों- वर्षों तक मैं ने तुम्हारा बहुत नुकसान किया है, तुम निश्चिन्त रहना मैं अब वापस लौट कर नहीं आऊंगा।
यह बात तुम माया को भी बता देना अलग से लिखकर मैं उसे और परेशान नहीं करूंगा।
मैं ठीक- ठाक रहूंगा। अभी मुझे कुछ हिसाब अन्य लोगों के साथ करने हैं।
तुम सब भी ठीक रहना, हो सके तो शोभित से मेरी तरफ से क्षमा मांग लेना।
मैं उसके लिए भी परेशानी का बहुत बड़ा कारण रहा हूं।
इतने सालों तक तुम लोगों को कितनी तकलीफें दी हैं।
अगर मैं रिहैब सेंटर नहीं जाता तो शायद इसे समझ नहीं पाता कि,
“तुम लोग ना मुझे रख पाओगे और ना ही फेंक पाओगे। मैं तुम्हारे पिता की कसौटियों पर आजन्म खड़ा नहीं उतर पाऊंगा।
यह मैं उनकी आंखों में खुद के लिए पसरे तिरस्कार के भाव देख कर तत्क्षण समझ गया था “
कहा ना मैंने, मेरे लिए आंसू बहाने की जरा भी जरुरत नहीं है। अगर मुझे भुला न पाओ,
तो भी यह सोच कर शांत हो जाया करना ,
कि मैं जहां भी हूं मजे में हूं और बस यही सोच कर मजे में रहा करना “
तुम्हारा हिमांशु
नैना फफक पड़ी थी। उसे भरे मन से रो लेने देने के बाद,
…शोभित
“नैना, तुम ठीक हो?”
“हां” बेहद कमजोर आवाज में
–हिमांशु …
मैं ने नैना से झूठ नहीं कहा था।
कभी कह भी नहीं सकता था। क्योंकि एक वही तो है,
जिसने मुझे मेरी सारी कमियों एवं उसके इफ़ ऐन्ड बट्स के साथ सर्वांग रूप से स्वीकार किया है। पर मैं उसके इस मान को ‘ऐट ईज’ नहीं रख पाया हमने साथ मिल कर बहुत बड़ा अपराध कर डाला था।
सारी मान, इज्जत, मर्यादा, संस्कार को भूल कर भावावेग में बह गए थे।
यद्यपि कि नैना ने मुझसे नहीं कहा लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसके चेहरे के मधुर लालित्य को देख मैं समझ गया था,
“कि प्यासी, तपती धरती में अंकुर प्रस्फुटित होने को तैयार हैं “
” दूसरी तरफ उसके पिता बीच में मजबूत चट्टान की तरह अड़े हुए, किसी भी प्रकार से मेल संभव नहीं दिख रहा था।
फिर मैं तो प्रारंभ से ही पलायनवादी प्रकृति का रहा हूं “
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -111)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi