डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -113)- सीमा वर्मा अंतिम भाग : Moral stories in hindi

नैना धीरे-धीरे विषाद से उबर रही है।

अनुराधा! लगातार उसके साथ बनी रह कर उसके मन पर छाई गहरी अंधेरी छायाओं को हटाने में सफल हो रही है।

उसे आहिस्ता-आहिस्ता हिमांशु-विहीन जीवन की आदत पड़ने लगी है।

औफिस की ज़िम्मेदारियों, नाटकों की ताबड़तोड़ रिहर्सल एवं सफल मंचन से पूर्व की कटु स्मृतियां हाशिए पर जा रही हैं।

आखिर इस कसी हुई जीवन शैली में चलती भी कब तक ?

व्यस्त दिनचर्या में अवकाश के जो दो-चार दिन  मिलते हैं। उसमें अनुराधा उसके बेटे एवं मुन्नी की हंसी-ठिठोली को देख कर मन प्रमुदित हो जाता है।

अनुराधा को बेटे के साथ खेलते वक्त ममता से प्रफुल्लित उसका चेहरा देख नैना मन ही मन सोचती है,

“स्त्री जननी है! इसलिए पूरी प्रकृति में अति विशिष्ट है “

कभी खाली क्षण में हिमांशु की धूमिल पड़ती छाया से बचने की खातिर आजकल वो अनुराधा से बुनाई सीख कर नन्हें-नन्हें मोजे बुनती हुई देखी जाती है।

सपना और जया बीच- बीच में उसके मनोबल को बढ़ाती रहती हैं!

रोहन कुमार और देवेन्द्र के फोन आने पर  यद्यपि नैना सकुचा जाती है। लेकिन उनके लगातार प्रयास करते रहने से वह अब कुछ व्यवस्थित होने लगी है।

शोभित यह सोच कर कि,

” नैना को इस समय मानसिक और शारीरिक आराम की जरूरत है घर पर कम ही आता है “

जबकि ऐसा कर के वह खुद ही तनाव और क्लेश में घिरता जा रहा है।

एक दिन इसी उहापोह में जया और रोहन कुमार से मिलने उनके घर पहुंच गया था।  सौभाग्य से ही वहां सपना और देवेन्द्र भी आए हुए थे।

उन सब के सलाह मशविरे से ही वो नैना के घर पहुंचा था,

” नैना ,

” आधी रात की निद्रा विहीन रातों में एक बार फिर से सोचना,

अब तक हमारे बीच बने इस पेशेगत रिश्ते को मैं तुम्हें इस बच्चे के साथ स्वीकार कर सामाजिक बंधन में बांधना चाहता हूं”

” मुझसे शादी करोगी?”

” वृद्ध होने तक किसी को ‌अंतहीन और टूट कर चाहना ही प्रेम है”

नैना ने गंभीरता से सुना और सोचा,

“शोभित ! प्रेम की नई परिभाषा गढ़ने को तैयार हैं”

मन ही मन मुस्कुराई,

“सोच कर बताऊंगी “

इसके पूरे एक हफ्ते तक बेचैन रही नैना ने फिर एक दिन,

शोभित के घर की डोर बेल बजा दी थी।

दरवाजा खुला तो सामने शोभित को बांहें फैलाए खड़े देख शर्मा गई। 

शोभित ने उसे बाहों में भर कर अंदर सोफे पर बैठा दिया और खुद घुटनों पर बैठ,

” विश्वास था, तुम आओगी।

बहुत मुश्किल से मैंने तुम्हें मनाया है, अब सात जन्मों तक साथ देने का वाएदा तुम करोगी “

भावविभोर हुई नैना ने इस डर से कि,

“कहीं ये संजोग भी पिछले सपने की तरह टूट कर बिखर ना जाए ?”

अपनी आंखें मूंद रखी थीं, उसे सावधानी से खोलती हुई,

“मुरलीधर के आदेश पर इस वाएदे को निभाने के लिए ही आई हूं “

उसने अपनी यादों की संदूक को बंद कर वापस जिंदगी की ओर जाने वाले रास्ते पर कदम बढ़ा दिए हैं।

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