ये कैसा जमाना – बालेश्वर गुप्ता : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : अपने कस्बे के एक पुराने प्रतिष्ठित इंटर कॉलेज में शिवशंकर जी अंग्रेजी के प्रवक्ता थे।पढ़ाने में इतने कुशल कि हर विद्यार्थी उनकी तारीफ भी करता और उन्हीं से पढ़ने को लालायित रहता।उनके घर के द्वार सभी के लिये सदैव ही खुले रहते,बिना किसी लालच के कोई भी विद्यार्थी  कभी भी उनके घर आकर पढ़ाई से संबंधित हर समस्या का निवारण कर सकता था।सही मायनों में एक आदर्श शिक्षक थे,शिवशंकर जी।

         मास्टर जी के पत्नी के अतिरिक्त एक बेटा और एक बेटी थी।दोनो बच्चे कुशाग्र बुद्धि के थे।बेटे ने पीएमटी में सफल होकर लखनऊ मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया था।छोटी 18वर्षीय बेटी सुमन भी आई आई टी की तैयारी करना चाहती थी।

      कुछ दिनों पूर्व ही मास्टर जी के पास कस्बे का ही रहने वाला लगभग 30-32 वर्षीय सरदार सिंह आया।बोला मास्टर जी अंग्रेजी बोलना सिखा दो,न बोल पाने के कारण शर्म महसूस होती है, आप जो कहेंगे फीस देने को तैयार हूं।अरे सरदार सिंह मैं तुम्हारे पिता को भी जानता हूँ,

हालांकि मैं ट्यूशन नही पढ़ाता, पर तुम्हे अंग्रेजी बोलनी सीखनी है तो ऐसा करना सुबह 8 बजे से आ जाया करना और हाँ एक अंग्रेजी का अखबार भी साथ लेके आना, उसमें से पढ़ कर उस न्यूज को अपने शब्दो मे समझाना, इसका अभ्यास करना है,इससे तुम्हारी शब्द क्षमता भी बढ़ेगी

और बोलने की हिचक भी समाप्त होती जायेगी।ठीक है मास्टर जी कह सरदार सिंह ने उनके चरण स्पर्श किये और अगले दिन आने को कह चला गया।

     अगले दिन सरदार सिंह सही समय पर अंग्रेजी अखबार लेकर मास्टरजी के पास आ गया।मास्टर जी ने अपनी तरह से पढ़ाना प्रारंभ कर दिया।मास्टरजी ने महसूस किया सरदार सिंह जिज्ञासु तो है पर बोलने में झिझक महसूस करता है तो उन्होंने अपनी बेटी सुमन को साथ मे बिठाना शुरू कर दिया।अब न्यूज़ का अपने शब्दों में विश्लेषण   सरदार सिंह और सुमन में होने लगा।जहां वो गलती करते वहां मास्टर जी दुरुस्त कर देते।

     एक दिन मास्टरजी की पत्नी बिमला फिसल कर गिर गयी,अंदर से चीखने की आवाज आयी तो सुमन,मास्टर जी अन्दर की ओर दौड़े पीछे पीछे सरदार सिंह भी आ गया।बिमला जी दर्द से कराह रही थी,तो सरदार सिंह तुरंत रिक्शा लिवा लाया और उसमें बिमला जी और मास्टरजी को बिठा कर डॉक्टर साहब की ओर रवाना कर खुद पैदल ही डॉक्टर के पास पहुंच गया।

बाद में उन्हें घर पहुचाना तथा दवा आदि लाने का सब काम सरदार सिंह ने ही किया स्वाभाविक रूप से मास्टर जी को उससे मिली सहायता से राहत मिली और उन्होंने मन मे ही सरदार सिंह का शुक्रिया भी किया,जो उन्होंने अपने व्यवहार से दर्शा भी दिया।

        अब सरदार सिंह मास्टर जी के परिवार सदस्य जैसा ही हो गया था।इस बीच सुमन को कोचिंग के लिये करीब के शहर में  दाखिल तो करा दिया गया,पर मध्यम श्रेणी के परिवार होने के कारण सुमन की माँ को झिझक थी,लड़की अकेली बस में जायेगी, उनका मन नही मान रहा था।जब यह बात सरदारसिंह के सामने आयी तो उसने कहा कि मैं तो प्रतिदिन ही शहर जाता हूँ

सुमन को मैं छोड़ दिया करूँगा,परंतु आना उसे अकेले पड़ेगा।इससे बिमला जी की तस्सली हो गयी।सुमन सरदार सिंह के साथ जाने लगी।

        एक दिन सुमन सरदारसिंह के साथ गयी,पर घर वापस नही आयी।घर मे कुहराम मच गया।सरदार सिंह ने कहा कि वह तो उसे कोचिंग सेंटर छोड़ आया था,उसके बाद का उसे नही पता।मास्टर जी पुत्री के गायब होने और लोक लाज के कारण दो दिन में ही बुरी तरह टूट चुके थे।सरदार सिंह उनको संभालने का पूरा प्रयत्न कर रहा था।साये की तरह सरदार सिंह मास्टर जी के साथ था।सुमन नही आयी, पुलिस भी नही खोज पायी।

    समय बीतता जा रहा था।सुमन की याद में मास्टरजी और उनकी पत्नी बिमला अपनी सुमन की याद में आंसू बहाते रहते।अब सरदार सिंह का आना भी कम हो गया था।तभी उन्हें पता चला कि सुमन तो सरदार सिंह के पास ही थी और उसने सुमन से कोर्ट मैरिज कर ली है और अब तो खुले आम अपने शहर के घर मे सुमन के साथ ही रह रहा है।

     मास्टरजी दिल पर हाथ रखकर बैठ गये, इतना बड़ा विश्वासघात।बेटा भी लखनऊ से आया हुआ था,वह समझ गया पिता को हार्ट अटैक आ गया है,तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया।बीच मे होश आया तो अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर बोले,बिमला क्या हमने सरदार सिंह पर विश्वास करके गलती की है या अपनी बेटी पर,या फिर अब जमाना ही ऐसा आ गया है?बिमला जी कुछ बोल पाती इससे पूर्व ही मास्टर जी अनंत यात्रा को प्रस्थान कर चुके थे।

बालेश्वर गुप्ता,पुणे

सत्य घटना पर आधारित,अप्रकाशित।

तुम पर विश्वास करना मेरी सबसे बड़ी गलती थी पर आधारित:

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