प्रदीप की शादी प्रिया से हुई । प्रिया दुल्हन बन कर कल ही आई थी। सुबह जब सासू माँ (सरला) ने नाश्ता दिया और पहला कौर खाते ही प्रिया ने कहा, ”मम्मी जी ये इसका स्वाद बिल्कुल मेरे घर जैसा है। सासू माँ ने हँसते हुये कहा प्रिया बेटा “अब ये घर तुम्हारा भी है”।
इस बात पर प्रिया ने ध्यान नहीं दिया। कुछ दिन बाद प्रिया , ननद और उनकी सहेलियों से बात कर रही थी, हमारे घर सबको मीठा पसंद है। सासू माँ ने फिर कहा,
” प्रिया बेटा ये घर तुम्हारा भी है”।
रीना ने हँसते हुये कहा, “मम्मी जी मैं अपने मायके की बात बता रही हूँ। सरला जी ने कहा हाँ-हाँ बेटा मायका बोलो उसे
घर तो अब ये ही है तुम्हारा।
मन में प्रिया के बहुत जवाब थे पर मम्मी-पापा ने समझा कर भेजा था कुछ बुरा लगे तो चुप रहना।
ऐसे ही पड़ोस की आंटी जी आई, प्रिया चाय नाश्ता ले आई।
“आओ प्रिया तुम भी चाय पी लो।” आंटी ने कहा।
“नहीं, आंटी आप लीजिये, मुझे रसोई में कुछ काम है।”
आंटी से मम्मी कह रही थी,” अभी बस मायके में ध्यान है प्रिया का,
हर बात पर मेरा घर मेरा घर ही कहती रहती है।” आंटी ने कहा सब सीख जायेगी। अभी दिन ही कितने हुये है उसे आये हुए।
रसोई बराबर में ही थी कमरे के, तो प्रिया ने सुन लिया। उसे समझ नहीं आया कि इसमें बुरा क्या मानना था जो आंटी से कहा मम्मी जी ने।
कभी -कभी प्रदीप भी बहुत बार हँसी हँसी में बोल देते थे की (अब मैं तुम्हारा और ये घर भी तुम्हारा)
मायका दूसरा घर है, तुम परायी हो चुकी वहाँ से। प्रिया भी कह देती थी वो घर मेरा है और हमेशा रहेगा,
और जब मैं या मेरा परिवार ही मुझे पराया नही समझते तो दुनिया को क्या लेना-देना।
प्रिया बोली, वो गया जमाना जब लड़कियाँँ परायी होती थी।
अब नहीं …..हमेशा मायका उसका घर था और रहेगा।
एक दिन सब घर में बैठे खाने की तैयारी कर रहे थे। तभी सरला ने पूछा प्रिया बेटा तुम्हारे घर क्या बनता है देवउठान पर। प्रिया ने बताया ” उड़द की दाल की खिचड़ी।
और आपके ? प्रिया ने तुरंत पूछा,
सासू माँ ने कहा, “हमारे घर भी ये ही बनता है।”
पर माँ आप तो उड़द साबुत वाले बनाती हैं। प्रिया ने सोचा नहीं था कि “आपके घर” कहने से सासू माँ अपना मायका समझेंगीं।
प्रिया ने कहा मम्मी जी मेरा मतलब यहाँ घर में से था। आपने अपने मायके के बारे में बताया। सासू माँ जी का चेहरा देखने लायक था।
प्रिया ने कहा,”मम्मी जी जहाँ जन्म लिया जहाँ पच्चीस साल बिताये ,वो घर तो कभी नहीं भूला जा सकता। आप अब तक नहीं भूल पाई।
और मुझे यहाँँ आये अभी तीन चार महीने ही हुऐ है, ये घर भी मेरा है। लेकिन जिन्होंने जन्म दिया, बड़ा किया, मम्मी-पापा को कभी नहीं भूला जा सकता।
जैसे प्रदीप आप अपने घर को नहीं भूल सकते।” प्रिया ने प्रदीप को देखते हुये कहा।
हर बात पर उनकी याद आना स्वाभाविक ही है। मैंने अपनी ससुराल को अपना घर मान लिया तो आप सब भी मेरे घर को अपना लें।
आज जो मन में था प्रिया के उसने सबको अच्छी तरह बता दिया …कि अपना घर को वो कभी पराया नहीं होने देगी। दोनों घर का अच्छे से ध्यान रखेगी।
हर लड़की को प्यार चाहिये और उसे समझने वाले कि मायका कभी नहीं भुलाया जा सकता ना कोई लड़की अपने घर को पराया मान सकती है और ना उसके माँ-पिता अपनी बेटी को पराया समझ सकते हैं।
वो उनके कलेजे का टुकड़ा थी और रहेगी। अगर ये दोनों बात समझ ली जाये तो हर घर खुशहाल होगा।
इसलिए प्रदीप जी वो घर भी तुम्हारा है
सासू मां_ और प्रिया बेटा ” ये घर भी तुम्हारा”
गौरी भारद्वाज ✍️
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना
🙏🙏🙏
Bahut hi achchi story hai
Absolutely