यादें मिट क्यों नहीं जाती? ( भाग-5 ) : Moral stories in hindi

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि अनुराग और रश्मि एक दूसरे को चाहते थे लेकिन दोनों में से कोई खुलकर अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पा रहे थे। एक दिन हिम्मत करके अनुराग ने अपनी चाहत को उसके सामने रखा। उसके जवाब में रश्मि ने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए उसके प्रति समर्पण की भावना व्यक्त की और अपने विचारों को उसके साथ साझा किया। उसके बाद जब भी मौका मिलता दोनों अंतरंगता से सराबोर बातचीत में डूब जाते। न जाने कैसे हवेली के लोगों को उन पर शक हो गया। उन पर सख्त निगरानी रखी जाने लगी। दोनों के बीच संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसको सहन करना उन्हें मुश्किल था। आपसी संवाद कायम करने के लिए ही अनुराग ने एक खत लिखा, जिसको चुपके से उसने उसके हाथ में दे दिया। किन्तु वह खत सरिता के हाथ लग गया।

  फिर क्या होता है, जानने के लिए पढ़िए आगे की कहानी………..

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  उस खत ने उन लोगों के क्रोध की आग में घी का काम किया। हवेली के अंदर भूचाल आ गया। बौखला गया उसका परिवार इस घटना से। इज्जत पर बट्टा लगने के भय से हवेली के समस्त लोगों ने मिलकर इस घटना को गुप्त रखने का निर्णय लिया। हालांकि राम नरेश बाबू और उनके एक-दो दबंग मित्रों ने अनुराग को सबक सिखाने का मन बना लिया था। लेकिन वे लोग लड़की का मामला होने के कारण खून का घूंँट पीकर रह गए थे।

  उस कस्बे में एक हिंसक घटना घटते-घटते टल गई थी कुछ समझदार लोगों के प्रयास से।

  बात तो उस वक्त दब गई, लेकिन राम नरेश बाबू के गले के नीचे यह बात नहीं उतर रही थी कि दो कौड़ी के उसी कस्बे के आदमी का लड़का जिस पर उसके बाप-दादों ने शासन किया था, उन्हीं के खांदान की लड़की से प्रेम-प्रसंग चलाए। उनके शरीर में बहने वाला सामंती खून यह सोचकर खौलने लगता था। लेकिन वे विवश थे कोई हिंसक कदम उठाने में नये जमाने के बदलते तेवर और कानून के शिकंजे में फंँस जाने के भय से।

  अनुराग का वहांँ से संपर्क टूट गया।  वह बेचैन  रश्मि की छवि अपने दिल में संजोए पागलों की तरह भटकता रहता हवेली के इर्द-गिर्द।

  उस कस्बे के लोग उस पर व्यंग्य करने लगे। मखौल उड़ाने लगे उसका। वह खिसियाकर कभी अनाप-शनाप बक देता।

  न उसे भूख थी, न प्यास। उस पर जुनून सवार रहता था कि कैसे वह अपनी प्रेयसी का दीदार करे।

  कई -कई दिनों के बाद उसे कभी हवेली की छत पर या खिड़की पर रश्मि दिख जाती थी। उस दिन वह इतना खुश रहता मानो उसे कोई अनमोल निधि मिल गई हो।

      अपने घर में जब वह एकांत में होता तो सोचता क्यों वह ऊँचे घराने की लड़की के साथ दिल लगाया? आखिर क्यों?… उसे लगता वह भटक गया। उसने क्यों अपनी जिन्दगी में आग लगा ली? लेकिन इन प्रश्नों का उसके पास कोई उत्तर नहीं था।

  अपने दिल की कचोट से वह तिलमिला जाता। उसे ऐसा लगता कि वह अपने ही गालों पर दो-चार तमाचे जड़ ले।

  कुछ दिनों के पश्चात रश्मि उसे छत या खिड़की पर भी नहीं दिखने लगी।

  वह घायल परिंदा की तरह छटपटाने लगा रश्मि के लिए लेकिन उसके घर के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे।

  उसने लाख यत्न किया लेकिन रश्मि से उसकी मुलाकात नहीं हो सकी। हवेली को ऐसा चाक-चौबंद कर दिया गया था कि परिंदा भी वहां पर नहीं मार सकता था।

  हवेली के नौकर-चाकर, गुमस्ता और अन्य कारिंदों को राम नरेश बाबू ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह क्या, उसकी छाया भी नजर नहीं आनी चाहिए हवेली के पास।

  निराशा के बीच भी आशा की पतली किरण उसके जेहन में झिलमिला रही थी कि कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलेगा रश्मि से मिलन का। वह इतनी बेवफाई उसके साथ नहीं करेगी। कम से कम खत अवश्य लिखेगी या किसी के मार्फत कोई संदेश भेजेगी।

  लेकिन न तो खत आया और न कोई संदेश।

  जिस उम्मीद की नींव पर धैर्य की इमारत टिकी हुई थी, वह समय के साथ-साथ ध्वस्त होने लगी। विरह की वेदना उसके दिल को छलनी करने लगी। उसके दिल में ऐसा जख्म पैदा हो गया था, जो शायद इस जन्म में नहीं भर सकता था। पहुंँच गया था वह अगति की अवस्था में।

  उस कस्बे का पहला साइंस ग्रेजुएट अजायबघर के अजूबे जीव  में परिणत हो गया था।

  वह खोया-खोया सा रहने लगा। उसकी चंचलता को ग्रहण लग गया था। किसी काम को व्यवस्थित व कारगर ढंग से निपटाने की क्षमता उसमें नहीं रही। बेकार होने के बावजूद भी, न वह अखबारों में रिक्तियों का विज्ञापन देखता, न कहीं आवेदन करता।

  उसे अपने रहन-सहन की भी परवाह नहीं रही। सप्ताह – दो सप्ताह तक बिना हजामत बनवाए यूंँ ही रह जाता। अपनी हजामत तब बनवाता जब उसके बापू या कोई पड़ोसी टोकता उसे।

  उसके माता-पिता ने उसकी यह हालत देखकर अपना सिर पीट लिया। उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया था। फिर भी उसके बापू करुणा भरी दृष्टि से अपने पुत्र को निहारते लेकिन उन्हें कुरेदने की हिम्मत नहीं पड़ती उसे। उसके दिल पर लगे सदमें से वे वाकिफ थे। कुछ रोज पहले ही अनुराग और रश्मि के संबंध के बारे में बतलाया था उसकी पत्नी ने।

  कस्बे के कुछ लोग दबी जुबान से उसके प्रेम-प्रसंग का बिरोध भी करते तो कुछ लोग रहम की बारिश करने से भी नहीं चूकते उस पर।

  अनुराग अपने समर्थकों और बिरोधियों दोनों की बातें सुनता लेकिन गुम-शुम रहता। वह नहीं व्यक्त करता अपनी प्रतिक्रिया

  जब उनका प्रलाप उनकी सहनशीलता की सीमा का उल्लंघन करने लगती तब वह वहाँ से चल देता। ऐसे मौकों पर अक्सर उसकी आँखें नम हो आती।

  उसकी उम्मीदों के सभी दरवाजे बंद हो गए, जब उसे पता चला कि रश्मि अब इस कस्बे में नहीं है। कहीं बाहर भेज दी गई है। उसका मन उस कस्बे से उचट गया।

  वह नौकरी ढूढ़ने के बहाने अपने दिल में दर्द लिये भटकता रहा। कभी नवादा, कभी पटना, कभी गया लेकिन जहाँ भी गया रश्मि की छाया भी उसके साथ साथ चलती रही।

  इस भटकाव में जब भी वह अपनी प्रेयसी के बारे में सोचता उसकी आँखें छलछला आती।

  उस दिन उसके दिल पर ऐसा आघात लगा जिसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी। उस घटना ने तो मानो उसे सरेआम नंगा करके रख दिया था।

  कई सप्ताहों तक ठोकरें खाने के बाद वह फिर घर लौट आया था।

  पहले ही की तरह गुम-शुम अपने घर की चारपाई पर पड़ा रहता। बातचीत तक नहीं करता किसी से। उसके माता-पिता कुछ भी पूछते तो उसका जवाब हांँ या नहीं में देकर चुप्पी साध लेता।

  आखिरकार अपने बापू और शुभचिंतकों के बहुत समझाने पर वह अपने मित्र के यहाँ रांची जाने के लिए राजी हुआ। नौकरी की खोज में।

  जंगल में चलते-चलते अचानक बाघ मिल जाता है किसी को तो उसकी जो मनोदशा होती है, कुछ इसी प्रकार की मनःस्थिति में उसकी मुलाकात उस कस्बे से दूर स्थित स्टेशन पर एकांत में राम नरेश बाबू से हुई। शायद वे भी कहीं बाहर जा रहे थे।

  ग्रामीण इलाके का छोटा सा स्टेशन प्रायः वीरान ही रहता था। फिर भी कुछ लोग उस दिन थे जो टिकट-खिड़की पर टिकट लेने में मशगूल थे।

  राम नरेश बाबू से नजरें मिलते ही उसने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे।

  उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन यका-यक प्लेटफार्म पर बने सीमेंट के बने हुए बेंच पर से उठ खड़ा हुए। देखते-देखते उनकी लाल-लाल आंँखें अंगारे बरसाने लगी। क्रोध से उनके होंठ कांपने लगे।

  अनुराग के बढ़ते कदम रुक गए।

  होंठों में दबाई हुई खैनी बगल में पच से थूकते हुए कहा, ” मैंने तुम्हारे बारे में जो सुना है… क्या वह सच है?…”

  “जी हाँ!… आपने जो भी सुना है, वह सच है” हिम्मत बटोरकर उसने कहा।

  “बेशर्म!… बेहया! तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसी हरकत करने की… तेरी चमड़ी उधेड़ कर रख दूंगा… मजनू बने फिरते हो… झोपड़ी में रहकर महल का ख्वाब देखते हो..”उसने गरजकर कहा।

 ” सच्चा प्रेम महल और झोंपड़ी नहीं देखता है… यह हृदय की अनमोल धरोहर है… और आपको मालूम होना चाहिए कि झोपड़ी के कारण ही महल हैं और महल के कारण झोपड़ी… फिर भी जरूरत पड़ने पर महलवालों को भी झोपड़ी की शरण में जाना पड़ता है” अनुराग ने बेबाकी से कहा।

  “दो कौड़ी का आदमी!… हमसे जुबान लड़ाओगे… तुम मेरे सामने क्या हो?… जात-बिरादरी समान होने से क्या होता है? “उसका बदन गुस्से से कांप रहा था।

 ” मैं भी जात-बिरादरी एक होने का फायदा उठाना नहीं चाहता हूँ… अगर आप ऐसा समझते हैं तो ये आपकी भूल है… जहाँ तक ख्वाब देखने की बातें हैं तो सुन लीजिए इस नये दौर में साधारण से साधारण आदमी भी तरक्की करना चाहता है… चाहता है आगे बढ़ना… अपनी क्षमता के बल पर… अपनी सोच में बदलाव लाइए… दूसरे के महल का ख्वाब आज का प्रगतिशील युवक नहीं देखता है। “

  अनुराग के माकूल जवाब से राम नरेश बाबू का क्रोध भड़क उठा,” चुप रहो… मुझे समझाने और उपदेश देने की कोशिश मत करो!… अपनी औकात में रहो…तेरी कीमत ही कितनी है… मेरे यहांँ मुनीम की जो औकात है, वह तुम्हारे बाप की नहीं है… “

 ” खबरदार!… मेरे बाप को मत घसीटिए इसमें… मैं अभी तक आपकी इज्जत कर रहा था… यह मत समझिए कि अब भी हमलोग आपकी जमींदारी में हैं… और यह भी सुन लीजिए कि मनुष्य की कीमत रुपये – पैसे से नहीं आंकी जाती है… लेकिन आप जैसे लोगों की आदत इंसान को धन से ही तौलने की होती है… चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित “अनुराग का चेहरा गुस्सा से तमतमा आया था।

” बकवास बंद कर नालायक!… नमकहराम!… जिस थाली में खाया उसी में छेद किया… “घृणा से उसका चेहरा विकृत हो गया था।

” तमीज से बात कीजिए!… नहीं तो मुझे भी सभ्यता त्यागकर असभ्यता का दामन थामना पड़ेगा।… आगे आपने एक भी अपशब्द कहा तो ठीक नहीं होगा… मेरी नसों में भी खून बहता है, पानी नहीं… “

” कितना खून और पानी तुम्हारी देह में है, जानता हूँ मैं… क्या बक-बक कर रहा है… अगर मैं चाहूँ तो चींटी ऐसा मसल दूंँ… लेकिन तुम मेरे सामने बच्चा है… जुबान मत बढ़ा… और  तू तमीज सिखा रहा है हमको मेरी मान-मर्यादा मिट्टी में मिलाकर…. “

 ” आपकी मान-मर्यादा सुरक्षित है… मैंने कोई ऐसा-वैसा काम नहीं किया है, जिससे आपकी इज्जत खतरे में पड़ जाएगी।… आप स्वयं चीख-चीखकर अपनी इज्जत पर बट्टा लगा रहे हैं “अपने को संयत करते हुए अनुराग ने कहा।

 ” हांँ तो सुन ले!… अंतिम चेतावनी दे रहा हूँ… मेरे यहांँ दुबारा कदम रखा, और मेरी बेटी से मिलने की कोशिश की तो  अंजाम बहुत बुरा होगा।

  वह जवाब दे पाता कि उसके पहले ही प्लेटफार्म पर ट्रेन की घड़घड़ाहट की आवाज गूंजने लगी थी।

  राम नरेश बाबू ब्रीफकेस लिए तेज कदमों से वहाँ से चल पड़े थे प्लेटफार्म की तरफ।

  एक-दो यात्री क्रोध से बौखलाए राम नरेश बाबू को देखते रह गए, लेकिन किसी को भी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई।

 अनुराग किंकर्तव्यविमूढ़ सा तीखी निगाहों से राम नरेश बाबू को देखता रह गया।

   वह सोच रहा था, ” काश!… अपने दिल में जहर घोलने के पहले समझ पाता कि प्रेम की माप नासमझ लोग पैसे से करते हैं। क्या दुनिया के सारे रिश्ते-नाते व  प्रेम-मोहब्बत पैसे के आधार पर ही कायम होते हैं?…क्या प्यार की गाड़ी पैसे की पटरी पर ही चलती है?… हृदय की गहराई और समानता पर नहीं? “

  उसने रांची जाने का प्रोग्राम स्थगित कर दिया था।

  वह चल पड़ा था निष्प्राण सा अपने घर की ओर।

                              उसकी सांसें तेज गति से चलने लगी। कड़ाके की ठंड में भी वह पसीने से तर हो गया। उसने हटा दी रजाईअपनी देह से परे।

  वह उठ बैठा। चारो ओर सन्नाटा पसरा था, जिसको क्षण-क्षण भंग कर रहा था कुत्ते की आवाज।

  उन घटनाओं की यादों नेउसे बेचैन कर दिया। वह क्षोभ से सुलग उठा। उसके दिल में अनेक प्रश्न चुभने लगे कांटे की तरह। क्यों यादें उसके जीवन को आंदोलित कर देती है? क्यों छलती है उसे? पुरानी जीर्ण-शीर्ण यादों के घरौंदे क्यों तड़पती है उसे?… तरसाती है!…।

  उसकी आँखें डब-डबा आई।

                    अनायास ही उसके मुंँह से निकल गया,

   “यादें मिट क्यों नहीं जाती?”

               समाप्त

    स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित

         ©® मुकुन्द लाल

               हजारीबाग(झारखंड)

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