वो एक फरिश्ता थी -सुषमा यादव Moral stories in hindi

कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से भी बढ़कर हो जाते हैं। ये रिश्ते हमारे दिलों से जुड़ कर# दिल का रिश्ता बन जातें हैं। जिन्हें हम ताउम्र निभाते हैं।

राजस्थान के कोटा में स्नेहा को मेडिकल कोचिंग के लिए उसके माता-पिता ले गए थे । उसे एक पीजी होस्टल में रखा था पर वहां की मकान मालकिन स्नेहा से अपने बच्चों को पढ़वाने लगी। जिसके कारण उसकी पढ़ाई में विघ्न पड़ रहा था।

उसके पापा ने उसे एक अलग कमरा किराए पर ले कर वहां शिफ्ट कर दिया।

स्नेहा का कमरा ऊपर था और नीचे के मकान में एक बिहारी परिवार रहता था।

उसके पापा उसकी सब व्यवस्था करके वापस लौट आए।

कुछ समय बाद स्नेहा की मम्मी कोटा गई।

स्नेहा की मम्मी श्रेया के पास एक महिला आई, नमस्ते कहने के बाद अपना परिचय मीना बताते हुए बोली कि भाभी जी, मैं नीचे वाले मकान में रहतीं हूं। आईये हमारे साथ चाय पी लीजिए। एक अनजान शहर में अनजान महिला के आत्मीयता भरे शब्दों को सुनकर श्रेया को बहुत खुशी हुई।

फिर क्या था, दोनों में एक प्यारा सा रिश्ता कायम हो गया। मीना के तीन बच्चे थे,दो प्यारी खूबसूरत बेटियां और एक प्यारा सा बेटा।

कुछ महीनों बाद मीना को एक अच्छा मकान मिल गया और वो सब वहां चले गए। क्यों कि स्नेहा को मीना उनके पति और बच्चे बहुत ज्यादा मानने लगे थे। मीना उसे अपनी बेटी जैसा प्यार देती थी इसलिए उन लोगों ने स्नेहा को भी वहीं पर एक कमरा दिलवा दिया।

श्रेया और मीना की आपस में फोन द्वारा बातचीत होती रहती।

मीना एक डेयरी जाती और अपने साथ स्नेहा के लिए भी गाय का शुद्ध दूध सामने निकलवा कर लाती। जो भी नाश्ता खाना बनता उसमें स्नेहा का भी बराबर का हिस्सा होता। परदेश में कोई इस तरह बेटी का ख्याल रखे इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है।

एक दिन स्नेहा कोचिंग क्लास से रोती हुई घर आई तो मीना ने उससे पूछा, क्या हुआ ? , क्यों रो रही हो?

स्नेहा ने कहा, आंटी जो मेरी सहेली अंजना मेरे घर आती थी मेरी अच्छी सहेली थी,वह एक लड़के को लेटर देते हुए कोचिंग के संचालक द्वारा पकड़ी गई तो उसने मेरा नाम लगा दिया यह लेटर स्नेहा ने उस लड़के को देने के लिए कहा है। सर ने मुझे बुलाकर खूब डांटा , पढ़ने आई हो या यह नाटक करने।

मीना गुस्से में उनके पास गई और उस लड़के को बुला कर सच्चाई उगलवाई। सर ने स्नेहा को बुला कर माफी मांगी और उसे अपनी बेटी बना लिया। स्नेहा पढ़ने में बहुत होशियार थी। यह सब मीना ने स्नेहा की मम्मी को नहीं बताया। स्नेहा ने ही अपनी मां को बाद में बताया।

ओह, मीना तुमने सच में सच्चे दिल से स्नेहा को अपनी बेटी माना।

एक दिन मीना ने श्रेया को फोन किया, भाभी, स्नेहा का टिफिन बाहर ज्यों का त्यों रखा रहता है उसमें चींटियां लग जाती है, टिफिन वाला रोज आकर वह भरा हुआ टिफिन उठा ले जाता है।

आप जल्द आ जाइए मुझे लगता है वह डिप्रेशन में जा रही है। रोती रहती है,पूछो तो कुछ बताती नहीं है। यह सुनकर श्रेया फौरन दो दिन का सफर तय करके कोटा आ जाती है।

स्नेहा मां से लिपट कर रोने लगी, मम्मी, मुझे बहुत डर लग रहा है, शायद मैं मेडिकल टेस्ट पास नहीं कर सकती। पढ़ाई का बहुत प्रेशर है। मीना और श्रेया ने स्नेहा को बहुत समझाया, कोई बात नहीं बेटा। सभी लोग एक बार में ही नहीं कर पाते। एक और चांस ले लेना।जरूरी नहीं कि सभी डॉक्टर इंजिनियर बन जाएं। अब तो नौकरी के बहुत से विकल्प मौजूद हैं। तुम कुछ और कर लेना। इसके लिए तुम अपना मन क्यों दुखी करती हो। स्नेहा अपनी मां से लिपट कर रोती हुई बोली, मम्मी, मेरे साथ पढ़ने वाली कई लड़कियां अवसाद ग्रस्त हो कर पागल हो गईं हैं उनके मम्मी पापा उन्हें आकर ले गए।

एक लड़की ने तो नींद की ढेर सारी गोलियां खा ली थी उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसके माता-पिता उसे लेकर चले गए। मैं भी बहुत डर गई थी,आपका इतना पैसा बर्बाद हो रहा है, मैं आपके मानदंड पर खरी नहीं उतरी तो मेरा भी मर जाना ही बेहतर है।मेरे मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे। मीना आंटी ना होती तो सच में मैं कुछ कर लेती। आंटीजी दिन रात मुझ पर नज़र रखतीं थीं और अपनी बेटी को मेरे पास पढ़ने भेजतीं थीं।

आंटीजी के कारण ही मैं अपने खतरनाक इरादे में सफल नहीं हो पा रही थी। श्रेया यह सुनकर भौंचक रह गई।हे भगवान। अगर मीना ने उसकी देखरेख नहीं की होती और मुझे सूचना नहीं दी होती तो आज मेरी बेटी की जगह उसकी… नहीं नहीं मीना तुम्हारा लाख लाख शुक्र है जो तुम्हारी वजह से मेरी बेटी मुझे वापस मिल गई। श्रेया अब स्नेहा के साथ ही रहने लगी और मीना और उसके परिवार वाले हमेशा की तरह स्नेहा का खूब ख्याल रखते। कहीं भी जाते बिना मां बेटी को लिए बगैर जाते नहीं थे।

एक बार मीना के बेटे और बेटी को बंगलौर एक परीक्षा में शामिल होने जाना था। मीना ने श्रेया से कहा, भाभी मैं स्नेहा के साथ रह लूंगी।आप मेरे बच्चों को बंगलौर ले जाइए परीक्षा दिलाने। इनके पापा बाहर गए हैं और मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है।आप सक्षम हैं मैं जानती हूं। श्रेया सोचने लगी एक पराए पर मीना कितना भरोसा करके अपने बच्चों को भेज रही है। उसने कहा, मीना मैं कैसे? तुम अपने बच्चों को मेरे साथ अकेले वो भी सात दिनों के लिए। किसी पर इतना विश्वास करना ठीक नहीं है।

मीना ने श्रेया को गले लगाते हुए कहा, भाभी आपसे मेरा दिल का रिश्ता जुड़ गया है। आप पर भरोसा नहीं करुंगी तो फिर किस पर करूंगी। सबका रिजर्वेशन करा कर श्रेया के हाथ में दस हजार रुपए रखकर बच्चों को उसके हवाले कर दिया।

श्रेया ने भी पूरी तरह अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।

इसके बाद तो दोनों के रिश्ते और भी प्रगाढ़ हो गए। बाद में सभी बच्चों का सलेक्शन हो जाने के बाद मीना अपने परिवार के साथ बिहार चली गई और श्रेया की मां भी अपनी बेटी को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिला कर वापस अपने कार्यस्थल लौट आई।

यह बरसों की बात हो गई अब तो सबकी शादी हो गई सब बाल-बच्चे वाले हो गए परन्तु आज भी मीना और श्रेया का रिश्ता वैसे ही है। उसमें कोई बदलाव नहीं आया।

आज भी दोनों अपने परिवार की बातें एक दूसरे से शेयर करतीं हैं और सुख दुःख में हमेशा शामिल होतीं हैं। व्हाट्सएप्प पर अपने परिवार की दोनों फोटो डालतीं हैं।

उन दोनों की सुबह गुड मॉर्निंग और रात गुड नाईट से प्रतिदिन होती है।

आज श्रेया सोच कर ही कांप जाती है कि यदि मीना ने स्नेहा का इतना बारीकी से देखभाल ना किया होता तो आज उसकी बेटी उसके साथ नहीं होती।

मीना का वह एहसान वह जिंदगी भर नहीं भूल सकती उसी के कारण आज स्नेहा एक सफल सर्जन बन गई है।

श्रेया तहेदिल से मीना का शुक्रिया अदा करती है और उसके परिवार के लिए भगवान से प्रार्थना और शुभकामनाएं मांगती है।

कुछ विरले लोग ही ऐसे होते हैं जो अपने घर परिवार की ज़िम्मेदारियों से ऊपर उठकर गैरों की दिल से मदद करतें हैं। वरना मीना को क्या पड़ी थी दूसरों का सिरदर्द अपने ऊपर लेने का।

इसीलिए कहते हैं, कभी कभी खून के रिश्तों पर गैरों का रिश्ता बहुत भारी पड़ जाता है और यह हमारे दिलों से चुंबक की तरह जुड़ जाता है।

सुषमा यादव प्रतापगढ़

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

 #दिल का रिश्ता

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